मुक्तक-
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एक दृष्टि से देखें जग को कोई न अपना गैर है।
करे अनीति तनिक जो उसकी नहीं कहीं भी खैर है।।
एक दृष्टि से देखें जग को कोई न अपना गैर है।
करे अनीति तनिक जो उसकी नहीं कहीं भी खैर है।।
आस्था-कलश, प्रयास सलिल, श्रम आम्र-पर्ण, श्रीफल परिणाम-
कृपा-दृष्टि, मुस्कान मधुर कहती न कोई भी गैर है।।
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कृपा-दृष्टि, मुस्कान मधुर कहती न कोई भी गैर है।।
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