मुक्तकमाँमाँ की महिमा जग से न्यारी, ममता की फुलवारीसंतति-रक्षा हेतु बने पल भर में ही दोधारीमाता से नाता अक्षय जो पाले सुत बडभागी-ईश्वर ने अवतारित हो माँ की आरती उतारीनारीनर से दो-दो मात्रा भारी, हुई हमेशा नारीअबला कभी न इसे समझना, नारी नहीं बिचारीमाँ, बहिना, भाभी, सजनी, सासु, साली, सरहज भीसखी न हो तो समझ जिंदगी तेरी सूखी क्यारी*पत्निपति की किस्मत लिखनेवाली पत्नि नहीं है हीनभिक्षुक हो बारात लिए दर गए आप हो दीनकरी कृपा आ गयी अकेली हुई स्वामिनी आजकद्र न की तो किस्मत लेगी तुझसे सब सुख छीन*दीप प्रज्वलनशुभ कार्यों के पहले घर का अँगना लेना लीपचौक पूर, हो विनत जलाना, नन्हा माटी-दीपतम निशिचर का अंत करेगा अंतिम दम तक मौनआत्म-दीप प्रज्वलित बन मोती, जीवन सीप*परोपकारअपना हित साधन ही माना है सबने अधिकारपरहित हेतु बनें समिधा, कब हुआ हमें स्वीकार?स्वार्थी क्यों सुर-असुर सरीखा मानव होता आज?नर सभ्यता सिखाती मित्रों, करना पर उपकार*एकतातिनका-तिनका जोड़ बनाते चिड़वा-चिड़िया नीड़बिना एकता मानव होता बिन अनुशासन भीड़रहे-एकता अनुशासन तो सेना सज जाती है-देकर निज बलिदान हरे वह, जनगण कि नित पीड़*असली गहनाअसली गहना सत्य न भूलोधारण कर झट नभ को छू लोसत्य न संग तो सुख न मिलेगाभोग भोग कर व्यर्थ न फूलो***
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 8 दिसंबर 2016
mukatak
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