कार्यशाला-
छंद बहर का मूल है- १.
*
उर्दू की १९ बहरें २ समूहों में वर्गीकृत की गयी हैं।
१. मुफरद बहरें-
इनमें एक ही अरकान या लय-खण्ड की पुनरावृत्ति होती है।
इनके ७ प्रकार (बहरे-हज़ज सालिम, बहरे-ऱज़ज सालिम, बहरे-रमल सालिम, बहरे-कामिल, बहरे-वाफिर, बहरे-मुतक़ारिब तथा बहरे-मुतदारिक) हैं।
२. मुरक्कब बहरें-
इनमें एकाधिक अरकान या लय-खण्ड मिश्रित होते हैं।
इनके १२ प्रकार (बहरे-मनसिरह, बहरे-मुक्तज़िब, बहरे-मुज़ारे, बहरे-मुजतस, बहरे-तवील, बहरे-मदीद, बहरे-बसीत, बहरे-सरीअ, बहरे-ख़फ़ीफ़, बहरे-जदीद, बहरे-क़रीब तथा बहरे-मुशाकिल) हैं।
*
क. बहरे-मनसिरह
बहरे-मनसिरह मुसम्मन मतबी मौक़ूफ़-
इस बहर में बहुत कम लिखा गया है। इसके अरकान 'मुफ़तइलुन फ़ायलात मुफ़तइलुन फ़ायलात' (मात्राभार ११११२ २१२१ ११११२ २१२१) हैं।
यह १८ वर्णीय अथधृति जातीय शारद छंद है जिसमें ९-९ पर यति तथा पदांत में जगण (१२१) का विधान है।
यह २४ मात्रिक अवतारी जातीय छंद है जिसमें १२-१२ मात्राओं पर यति तथा पदांत में १२१ है।
उदाहरण-
१.
थक मत, बोझा न मान, कदम उठा बार-बार
उपवन में शूल फूल, भ्रमर कली पे निसार
पगतल है भू-बिछान, सर पर है आसमान
'सलिल' नहीं भूल भूल, दिन-दिन होगा सुधार
२.
जब-जब तूने कहा- 'सच', तब झूठा बयान
सच बन आया समक्ष, विफल हुआ न्याय-दान
उर्दू व्याकरण के अनुसार गुरु के स्थान पर २ लघु या दो लघु के स्थान पर गुरु मात्रा का प्रयोग करने पर छंद का वार्णिक प्रकार बदल जाता है जबकि मात्रिक प्रकार तभी बदलता है जब यह सुविधा पदांत में ली गयी हो। हिंदी पिंगल-नियम यह छूट नहीं देते।
३.
अरकान 'मुफ्तइलुन फ़ायलात मुफ्तइलुन फ़ायलात' (मात्राभार २११२ २१२१ २११२ २१२१)
क्यों करते हो प्रहार?, झेल सकोगे न वार
जोड़ नहीं, छीन भी न, बाँट कभी दे पुकार
कायम हो शांति-सौख्य, भूल सकें भेद-भाव
शांत सभी हों मनुष्य, किस्मत लेंगे सुधार
४.
दिल में हम अप/ने नियाज़/रखते हैं सो/तरह राज़
सूझे है इस/को ये भेद/जिसकी न हो/चश्मे-कोर
प्रथम पंक्ति में ए, ओ, अ की मात्रा-पतन दृष्टव्य।
(सन्दर्भ ग़ज़ल रदीफ़-काफ़िया और व्याकरण, डॉ. कृष्ण कुमार 'बेदिल')
=============
छंद बहर का मूल है- १.
*
उर्दू की १९ बहरें २ समूहों में वर्गीकृत की गयी हैं।
१. मुफरद बहरें-
इनमें एक ही अरकान या लय-खण्ड की पुनरावृत्ति होती है।
इनके ७ प्रकार (बहरे-हज़ज सालिम, बहरे-ऱज़ज सालिम, बहरे-रमल सालिम, बहरे-कामिल, बहरे-वाफिर, बहरे-मुतक़ारिब तथा बहरे-मुतदारिक) हैं।
२. मुरक्कब बहरें-
इनमें एकाधिक अरकान या लय-खण्ड मिश्रित होते हैं।
इनके १२ प्रकार (बहरे-मनसिरह, बहरे-मुक्तज़िब, बहरे-मुज़ारे, बहरे-मुजतस, बहरे-तवील, बहरे-मदीद, बहरे-बसीत, बहरे-सरीअ, बहरे-ख़फ़ीफ़, बहरे-जदीद, बहरे-क़रीब तथा बहरे-मुशाकिल) हैं।
*
क. बहरे-मनसिरह
बहरे-मनसिरह मुसम्मन मतबी मौक़ूफ़-
इस बहर में बहुत कम लिखा गया है। इसके अरकान 'मुफ़तइलुन फ़ायलात मुफ़तइलुन फ़ायलात' (मात्राभार ११११२ २१२१ ११११२ २१२१) हैं।
यह १८ वर्णीय अथधृति जातीय शारद छंद है जिसमें ९-९ पर यति तथा पदांत में जगण (१२१) का विधान है।
यह २४ मात्रिक अवतारी जातीय छंद है जिसमें १२-१२ मात्राओं पर यति तथा पदांत में १२१ है।
उदाहरण-
१.
थक मत, बोझा न मान, कदम उठा बार-बार
उपवन में शूल फूल, भ्रमर कली पे निसार
पगतल है भू-बिछान, सर पर है आसमान
'सलिल' नहीं भूल भूल, दिन-दिन होगा सुधार
२.
जब-जब तूने कहा- 'सच', तब झूठा बयान
सच बन आया समक्ष, विफल हुआ न्याय-दान
उर्दू व्याकरण के अनुसार गुरु के स्थान पर २ लघु या दो लघु के स्थान पर गुरु मात्रा का प्रयोग करने पर छंद का वार्णिक प्रकार बदल जाता है जबकि मात्रिक प्रकार तभी बदलता है जब यह सुविधा पदांत में ली गयी हो। हिंदी पिंगल-नियम यह छूट नहीं देते।
३.
अरकान 'मुफ्तइलुन फ़ायलात मुफ्तइलुन फ़ायलात' (मात्राभार २११२ २१२१ २११२ २१२१)
क्यों करते हो प्रहार?, झेल सकोगे न वार
जोड़ नहीं, छीन भी न, बाँट कभी दे पुकार
कायम हो शांति-सौख्य, भूल सकें भेद-भाव
शांत सभी हों मनुष्य, किस्मत लेंगे सुधार
४.
दिल में हम अप/ने नियाज़/रखते हैं सो/तरह राज़
सूझे है इस/को ये भेद/जिसकी न हो/चश्मे-कोर
प्रथम पंक्ति में ए, ओ, अ की मात्रा-पतन दृष्टव्य।
(सन्दर्भ ग़ज़ल रदीफ़-काफ़िया और व्याकरण, डॉ. कृष्ण कुमार 'बेदिल')
=============
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें