कार्यशाला-
गीत-प्रतिगीत
राकेश खण्डेलवाल-संजीव वर्मा 'सलिल'
*
गहन निशा में तम की चाहे जितनी घनी घटाएं उमड़े
पथ को आलोकित करने को प्राण दीप मेरा जलता है
गीत-प्रतिगीत
राकेश खण्डेलवाल-संजीव वर्मा 'सलिल'
*
गहन निशा में तम की चाहे जितनी घनी घटाएं उमड़े
पथ को आलोकित करने को प्राण दीप मेरा जलता है
पावस के अंधियारों ने कब अपनी हार कहो तो मानी
हर युग ने दुहराई ये ही घिसी पिटी सी एक कहानी
क्षणिक विजय के उन्मादों ने भ्रमित कर दिया है मानस को
पलक झुकाकर तनिक उठाने पर दिखती फिर से वीरानी
हर युग ने दुहराई ये ही घिसी पिटी सी एक कहानी
क्षणिक विजय के उन्मादों ने भ्रमित कर दिया है मानस को
पलक झुकाकर तनिक उठाने पर दिखती फिर से वीरानी
लेकिन अब ज्योतिर्मय नूतन परिवर्तन की अगन जगाने
निष्ठा मे विश्वास लिए यह प्राण दीप मेरा जलता है
निष्ठा मे विश्वास लिए यह प्राण दीप मेरा जलता है
खो्टे सिक्के सा लौटा है जितनी बार गया दुत्कारा
ओढ़े हुए दुशाला मोटी बेशर्मी की ,यह अँधियारा
इसीलिए अब छोड़ बौद्धता अपनानी चाणक्य नीतियां
उपक्रम कर समूल ही अबके जाए तम का शिविर उखाड़ा
ओढ़े हुए दुशाला मोटी बेशर्मी की ,यह अँधियारा
इसीलिए अब छोड़ बौद्धता अपनानी चाणक्य नीतियां
उपक्रम कर समूल ही अबके जाए तम का शिविर उखाड़ा
छुपी पंथ से दूर, शरण कुछ देती हुई कंदराएँ जो
उनमें ज्योतिकलश छलकाने प्राण दीप मेरा जलता है
उनमें ज्योतिकलश छलकाने प्राण दीप मेरा जलता है
दीप पर्व इस बार नया इक संदेसा लेकर है आया
सीखा नहीं तनिक भी तुमने तम को जितना पाठ पढ़ाया
अब इस विषधर की फ़ुंकारों का मर्दन अनिवार्य हो गया
दीपक ने अंगड़ाई लेकर उजियारे का बिगुल बजाया
सीखा नहीं तनिक भी तुमने तम को जितना पाठ पढ़ाया
अब इस विषधर की फ़ुंकारों का मर्दन अनिवार्य हो गया
दीपक ने अंगड़ाई लेकर उजियारे का बिगुल बजाया
फ़ैली हुई हथेली अपनी में सूरज की किरणें भर कर
तिमिरांचल की आहुति देने प्राण दीप मेरा जलता है
तिमिरांचल की आहुति देने प्राण दीप मेरा जलता है
३१ अक्टूबर २०१६
गीतसम्राट अग्रजवत राकेश खंडेलवाल को सादर समर्पित
प्रति गीत
*
मेरा प्राण दीप जलता है, स्नेह तुम्हारा अक्षय पाकर
श्वास न रास आस की सकती थाम, तुम्हारे बिना निमिष भर
*
पावस के अँधियारे में बन विद्युत्छ्टा राह दिखलातीं
बौछारों में साथ भीगकर तन-मन एकाकार बनातीं
पलक झुकी उठ नयन मिले, दिल पर बिजली तत्काल गिर गयी
झुलस न हुलसी नव आशाएँ, प्यासों की हर प्यास जिलातीं
प्रति गीत
*
मेरा प्राण दीप जलता है, स्नेह तुम्हारा अक्षय पाकर
श्वास न रास आस की सकती थाम, तुम्हारे बिना निमिष भर
*
पावस के अँधियारे में बन विद्युत्छ्टा राह दिखलातीं
बौछारों में साथ भीगकर तन-मन एकाकार बनातीं
पलक झुकी उठ नयन मिले, दिल पर बिजली तत्काल गिर गयी
झुलस न हुलसी नव आशाएँ, प्यासों की हर प्यास जिलातीं
मेरा आत्म अवश मिलता है, विरति-सुरति में सद्गति बनकर,
मेरा प्राण दीप जलता है, स्नेह तुम्हारा अक्षय पाकर
*
खरा हो गया खोटा सिक्का, पारस परस पुलकता पाया
रोम-रोम ने सिहर-सिहर कर, सपनों का संतूर बजाया
अपनों के नपनों को बिसरा, दोहा-पंक्ति बन गए मैं-तुम
मुखड़ा मुखड़ा हुआ ह्रदय ही हुआ अंतरा, गीत रचाया
मेरा प्राण दीप जलता है, स्नेह तुम्हारा अक्षय पाकर
*
खरा हो गया खोटा सिक्का, पारस परस पुलकता पाया
रोम-रोम ने सिहर-सिहर कर, सपनों का संतूर बजाया
अपनों के नपनों को बिसरा, दोहा-पंक्ति बन गए मैं-तुम
मुखड़ा मुखड़ा हुआ ह्रदय ही हुआ अंतरा, गीत रचाया
मेरा काय-कुसुम खिलता है, कोकिल-कूक तुम्हारी सुनकर
मेरा प्राण दीप जलता है, स्नेह तुम्हारा अक्षय पाकर
*
दीप-पर्व हर रात जगमगा, रंग-पर्व हर दिन झूमा सा
तम बेदम प्रेयसि-छाया बन, पग-वंदन कर है भूमा सा
नीलकंठ बन गरल-अमिय कर, अर्ध नारि-नर द्वैत भुलाकर
एक हुए ज्यों दूर क्षितिज पर नभ ने
मेरा प्राण दीप जलता है, स्नेह तुम्हारा अक्षय पाकर
*
दीप-पर्व हर रात जगमगा, रंग-पर्व हर दिन झूमा सा
तम बेदम प्रेयसि-छाया बन, पग-वंदन कर है भूमा सा
नीलकंठ बन गरल-अमिय कर, अर्ध नारि-नर द्वैत भुलाकर
एक हुए ज्यों दूर क्षितिज पर नभ ने
मेरा मन मुकुलित होता है, तेरे मणिमय मन से मिलकर
मेरा प्राण दीप जलता है, स्नेह तुम्हारा अक्षय पाकर
*
टीप- भूमा = धरती, विशाल, ऐश्वर्य, प्राणी।
२.११.२०१६ जबलपुर
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मेरा प्राण दीप जलता है, स्नेह तुम्हारा अक्षय पाकर
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टीप- भूमा = धरती, विशाल, ऐश्वर्य, प्राणी।
२.११.२०१६ जबलपुर
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