कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

navgeet

नवगीत:
रस्म की दीवार
करती कैद लेकिन
आस खिड़की 
रूह कर आज़ाद देती
सोच का दरिया
भरोसे का किनारा
कोशिशी सूरज
न हिम्मत कभी हारा
उमीदें सूखी नदी में
नाव खेकर
हौसलों को हँस
नयी पतवार देती
हाथ पर मत हाथ
रखकर बैठना रे!
रात गहरी हो तो
सूरज लेखना रे!
कालिमा को लालिमा
करती विदा फिर
आस्मां को
परिंदा उपहार देती
*

कोई टिप्पणी नहीं: