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शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

muktak / muktika

मुक्तक
जी से लगाया है जी ने जो जी को
जी में बसाया है जी ने भी जी को
जीना न आया, जीना गए चढ़
जी ना ना जी के बिना आज जी को
*
मुक्तिका 
*
पहले कहते हैं आभार 
फिर भारी कह रहे उतार 
*
सबसे आगे हुए खड़े
कहते दिखती नहीं कतार
*
फट-फट कार चलाती वे
जो खुद को कहतीं बेकार
*
सर पर कार न धरते क्यों
जो कहते खुद को सरकार?
*
असरदार से शिकवा क्यों?
अ सरदार है गर सरदार
*
छोड़ न पाते हैं घर-द्वार
कहते जाना है हरि-द्वार
*
'मिथ' का 'लेश' नहीं पाया
जब मिथलेश हुई साकार
***

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