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बुधवार, 20 जुलाई 2016

मुक्तिका

एक रचना
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दर्दे सर, दर्दे जिगर, दर्दे कमर दे दर्दे दिल
या खुदाया शायरा का संग भी इस बार दे।।
जो लिखे, सुन दाद देकर दर्द सारे सह सकूँ
पीर जाए हार, वह चितवन का ऐसा वार दे ।।
प्राण-मन खुशबू से जाए भीग, दे मदहोशियाँ
एक तो दे-दे कली, बाकी सभी गर खार दे।।
दहशतें भी ज़िंदगी का एक हिस्सा हों अगर
एक हिस्सा शहादत कर दे अता, उपहार दे।।
नाव ले-ले, छीन ले पतवार कोई गम नहीं
मुझ 'सलिल' को नर्मदा के घाट बहती धार दे।।
***
(प्रथम पंक्ति गीता वर्मा)

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