नवगीत:
एकता
संजीव
*
मतभेदों की चली आँधियाँ
तिनकों जैसी
हुई एकता
*
धूमधाम से बैनर बाँधे
उठा होर्डिंग ढोते काँधे
मंच बनाया भाग-दौड़कर
भीड़ जुटी ज्यों वानर फाँदे
आश्वासन से सजी वादियाँ
भाषण गूँजे
हुई एकता
मतभेदों की चली आँधियाँ
तिनकों जैसी
हुई एकता
*
सगा किसी का कौन यहाँ पर?
लड़ते ऊँचा निजी निशां कर
संकट में चल दिये छोड़कर
अपना नारा आप गुंजाकर
मौन रहो, चुप सहो खामियाँ
सच सुनकर
कब टिकी एकता?
मतभेदों की चली आँधियाँ
तिनकों जैसी
हुई एकता
*
बैठ मंच पर सज दूल्हा बन
चमचों से करवा अभिनंदन
रोली माला चन्दन श्रीफल
फोटो भाषण खबर दनादन
काम बहुत कम अधिक लाबियाँ
मनमानी को
कहें एकता
मतभेदों की चली आँधियाँ
तिनकों जैसी
हुई एकता
*
Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
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