विचारोत्तेजक रचना
कोर्ट मार्शल किसका ???
- रमेश चहल
*
आर्मी कोर्ट रूम में आज एक केस अनोखा अड़ा था
छाती तान अफसरों के आगे फौजी बलवान खड़ा था
बिन हुक्म बलवान तूने ये कदम कैसे उठा लिया?
किससे पूछ उस रात तू दुश्मन की सीमा में जा लिया?
बलवान बोला: 'सर जी ! ये बताओ कि वो किस से पूछ के आये थे
सोये फौजियों के सिर काटने का फरमान, कौनसे बाप से लाये थे?'..
बलवान का जवाब में सवाल दागना अफसरों को पसंद नही आया..
और बीच वाले अफसर ने लिखने के लिए जल्दी से पेन उठाया..
एक बोला: 'बलवान हमें ऊपर जवाब देना है..
और तेरे काटे हुए सिर का पूरा हिसाब देना है..
तेरी इस करतूत ने हमारी नाक कटवा दी..
अंतरास्ट्रीय बिरादरी में तूने थू थू करवा दी'..
बलवान खून का कड़वा घूंट पी के रह गया..
आँख में आया आंसू भीतर को ही बह गया..
बोला: 'साहब जी! अगर कोई आपकी माँ की इज्जत लूटता हो
आपकी बहन बेटी या पत्नी को सरेआम मारता कूटता हो..
तो आप पहले अपने बाप का हुकमनामा लाओगे??
या फिर अपने घर की लुटती इज्जत खुद बचाओगे??'
अफसर नीचे झाँकने लगा
एक ही जगह पर ताकने लगा!!
बलवान बोला: 'साहब जी ! गाँव का ग्वार हूँ बस इतना जानता हूँ
कौन कहाँ है देश का दुश्मन सरहद पे? खड़ा खड़ा पहचानता हूँ..
सीधा सा आदमी हूँ साहब ! मै कोई आंधी नहीं हूँ
थप्पड़ खा गाल आगे कर दूँ मै वो गांधी नहीं हूँ!!
अगर सरहद पे खड़े होकर गोली न चलाने की मुनादी है
तो फिर साहब जी ! माफ़ करना ये काहे की आजादी है
सुनों साहब जी..सरहद पे जब जब भी छिड़ी लडाई है..
भारत माँ दुश्मन से नही आप जैसों से हारती आई है..
वोटों की राजनीति साहब जी लोकतंत्र का मैल है..
और भारतीय सेना इस राजनीति की रखैल है..
ये क्या हुकम देंगे हमें जो खुद ही भिखारी हैं..
किन्नर है सारे के सारे न कोई नर है न नारी है..
ज्यादा कुछ कहूँ तो साहब जी..दोनों हाथ जोड़ के माफ़ी है
दुश्मन का पेशाब निकालने को तो हमारी आँख ही काफी है..
और साहब जी एक बात बताओ..
वर्तमान से थोडा सा पीछे जाओ..
कारगिल में जब मैंने अपना पंजाब वाला यार जसवंत खोया था
आप गवाह हो साहब जी उस वक्त मैं बिल्कुल भी नहीं रोया था..
खुद उसके शरीर को उसके गाँव जाकर मै उतार कर आया था..
उसके दोनों बच्चों के सिर साहब जी मै पुचकार कर आया था..
पर उस दिन रोया मैं जब उसकी घरवाली होंसला छोड़ती दिखी..
और लघु सचिवालय में वो चपरासी के हाथ-पांव जोड़ती दिखी..
आग लग गयी साहब जी दिल किया कि सबके छक्के छुड़ा दूँ
चपरासी और उस चरित्रहीन अफसर को मैं गोली से उड़ा दूँ..
एक लाख की आस में भाभी आज भी धक्के खाती है..
दो मासूमों की चमड़ी धूप में यूँही झुलसी जाती है..
और साहब जी.. शहीद जोगिन्दर को तो नहीं भूले होंगे आप
घर में जवान बहन थी जिसकी और अँधा था जिसका बाप
अब बाप हर रोज लड़की को कमरे में बंद करके आता है..
और स्टेशन पर एक रूपये के लिए जोर से चिल्लाता है..
पता नहीं कितने जोगिन्दर जसवंत यूँ अपनी जान गवांते हैं..
और उनके परिजन मासूम बच्चे यूँ दर दर की ठोकरें खाते हैं.. '
भरे गले से तीसरा अफसर बोला: 'बात को और ज्यादा न बढाओ..
उस रात क्या- क्या हुआ था.. बस यही अपनी सफाई में बताओ..'
भरी आँखों से हँसते हुए बलवान बोलने लगा..
उसका हर बोल सबके कलेजों को छोलने लगा..
'साहब जी...उस हमले की रात
हमने सन्देश भेजे लगातार सात
हर बार की तरह कोई जवाब नही आया..
दो जवान मारे गए पर कोई हिसाब नही आया..
चौंकी पे जमे जवान लगातार गोलीबारी में मारे जा रहे थे..
और हम दुश्मन से नहीं अपने हेडक्वार्टर से हारे जा रहे थे..
फिर दुश्मन के हाथ में कटार देख मेरा सिर चकरा गया..
गुरमेल का कटा हुआ सिर जब दुश्मन के हाथ में आ गया..
फेंक दिया ट्रांसमीटर मैंने और कुछ भी सूझ नहीं आई थी
बिन आदेश के पहली मर्तबा सर...मैंने बन्दूक उठाई थी..
गुरमेल का सिर लिए दुश्मन रेखा पार कर गया
पीछे पीछे मै भी अपने पांव उसकी धरती पे धर गया
पर वापिस हार का मुँह देख के न आया हूँ
वो एक काट कर ले गए थे मै दो काटकर लाया हूँ'
इस ब्यान का कोर्ट में न जाने कैसा असर गया
पूरे ही कमरे में एक सन्नाटा सा पसर गया
पूरे का पूरा माहौल बस एक ही सवाल में खो रहा था
कि कोर्ट मार्शल फौजी का था या पूरे देश का हो रहा था????????
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Ajai Vir <ajaivir@hotmail.com>
कोर्ट मार्शल किसका ???
- रमेश चहल
*
आर्मी कोर्ट रूम में आज एक केस अनोखा अड़ा था
छाती तान अफसरों के आगे फौजी बलवान खड़ा था
बिन हुक्म बलवान तूने ये कदम कैसे उठा लिया?
किससे पूछ उस रात तू दुश्मन की सीमा में जा लिया?
बलवान बोला: 'सर जी ! ये बताओ कि वो किस से पूछ के आये थे
सोये फौजियों के सिर काटने का फरमान, कौनसे बाप से लाये थे?'..
बलवान का जवाब में सवाल दागना अफसरों को पसंद नही आया..
और बीच वाले अफसर ने लिखने के लिए जल्दी से पेन उठाया..
एक बोला: 'बलवान हमें ऊपर जवाब देना है..
और तेरे काटे हुए सिर का पूरा हिसाब देना है..
तेरी इस करतूत ने हमारी नाक कटवा दी..
अंतरास्ट्रीय बिरादरी में तूने थू थू करवा दी'..
बलवान खून का कड़वा घूंट पी के रह गया..
आँख में आया आंसू भीतर को ही बह गया..
बोला: 'साहब जी! अगर कोई आपकी माँ की इज्जत लूटता हो
आपकी बहन बेटी या पत्नी को सरेआम मारता कूटता हो..
तो आप पहले अपने बाप का हुकमनामा लाओगे??
या फिर अपने घर की लुटती इज्जत खुद बचाओगे??'
अफसर नीचे झाँकने लगा
एक ही जगह पर ताकने लगा!!
बलवान बोला: 'साहब जी ! गाँव का ग्वार हूँ बस इतना जानता हूँ
कौन कहाँ है देश का दुश्मन सरहद पे? खड़ा खड़ा पहचानता हूँ..
सीधा सा आदमी हूँ साहब ! मै कोई आंधी नहीं हूँ
थप्पड़ खा गाल आगे कर दूँ मै वो गांधी नहीं हूँ!!
अगर सरहद पे खड़े होकर गोली न चलाने की मुनादी है
तो फिर साहब जी ! माफ़ करना ये काहे की आजादी है
सुनों साहब जी..सरहद पे जब जब भी छिड़ी लडाई है..
भारत माँ दुश्मन से नही आप जैसों से हारती आई है..
वोटों की राजनीति साहब जी लोकतंत्र का मैल है..
और भारतीय सेना इस राजनीति की रखैल है..
ये क्या हुकम देंगे हमें जो खुद ही भिखारी हैं..
किन्नर है सारे के सारे न कोई नर है न नारी है..
ज्यादा कुछ कहूँ तो साहब जी..दोनों हाथ जोड़ के माफ़ी है
दुश्मन का पेशाब निकालने को तो हमारी आँख ही काफी है..
और साहब जी एक बात बताओ..
वर्तमान से थोडा सा पीछे जाओ..
कारगिल में जब मैंने अपना पंजाब वाला यार जसवंत खोया था
आप गवाह हो साहब जी उस वक्त मैं बिल्कुल भी नहीं रोया था..
खुद उसके शरीर को उसके गाँव जाकर मै उतार कर आया था..
उसके दोनों बच्चों के सिर साहब जी मै पुचकार कर आया था..
पर उस दिन रोया मैं जब उसकी घरवाली होंसला छोड़ती दिखी..
और लघु सचिवालय में वो चपरासी के हाथ-पांव जोड़ती दिखी..
आग लग गयी साहब जी दिल किया कि सबके छक्के छुड़ा दूँ
चपरासी और उस चरित्रहीन अफसर को मैं गोली से उड़ा दूँ..
एक लाख की आस में भाभी आज भी धक्के खाती है..
दो मासूमों की चमड़ी धूप में यूँही झुलसी जाती है..
और साहब जी.. शहीद जोगिन्दर को तो नहीं भूले होंगे आप
घर में जवान बहन थी जिसकी और अँधा था जिसका बाप
अब बाप हर रोज लड़की को कमरे में बंद करके आता है..
और स्टेशन पर एक रूपये के लिए जोर से चिल्लाता है..
पता नहीं कितने जोगिन्दर जसवंत यूँ अपनी जान गवांते हैं..
और उनके परिजन मासूम बच्चे यूँ दर दर की ठोकरें खाते हैं.. '
भरे गले से तीसरा अफसर बोला: 'बात को और ज्यादा न बढाओ..
उस रात क्या- क्या हुआ था.. बस यही अपनी सफाई में बताओ..'
भरी आँखों से हँसते हुए बलवान बोलने लगा..
उसका हर बोल सबके कलेजों को छोलने लगा..
'साहब जी...उस हमले की रात
हमने सन्देश भेजे लगातार सात
हर बार की तरह कोई जवाब नही आया..
दो जवान मारे गए पर कोई हिसाब नही आया..
चौंकी पे जमे जवान लगातार गोलीबारी में मारे जा रहे थे..
और हम दुश्मन से नहीं अपने हेडक्वार्टर से हारे जा रहे थे..
फिर दुश्मन के हाथ में कटार देख मेरा सिर चकरा गया..
गुरमेल का कटा हुआ सिर जब दुश्मन के हाथ में आ गया..
फेंक दिया ट्रांसमीटर मैंने और कुछ भी सूझ नहीं आई थी
बिन आदेश के पहली मर्तबा सर...मैंने बन्दूक उठाई थी..
गुरमेल का सिर लिए दुश्मन रेखा पार कर गया
पीछे पीछे मै भी अपने पांव उसकी धरती पे धर गया
पर वापिस हार का मुँह देख के न आया हूँ
वो एक काट कर ले गए थे मै दो काटकर लाया हूँ'
इस ब्यान का कोर्ट में न जाने कैसा असर गया
पूरे ही कमरे में एक सन्नाटा सा पसर गया
पूरे का पूरा माहौल बस एक ही सवाल में खो रहा था
कि कोर्ट मार्शल फौजी का था या पूरे देश का हो रहा था????????
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Ajai Vir <ajaivir@hotmail.com>
13 टिप्पणियां:
wrote:
लेखक की लेखनी और दिल में आग है. अंतिम पंक्तियाँ बहुत कुछ कहती हैं--
पूरे का पूरा माहौल बस एक ही सवाल में खो रहा था
कि कोर्ट मार्शल फौजी का था या पूरे देश का हो रहा था????????
--ख़लिश
आ० अजय वीर जी की रचना अद्वितीय है और हमारी वर्तमान विदेश और रक्षा नीतिओं
पर करारा तमाचा हैं । पकिस्तान का फ़ौजी यह करता तो उसे पदकों से नवाजा जाता पर
यह इन्दोस्तान है जहां शौर्य देश-द्रोह दुश्मन का शिकार बनना देश-भक्ति है । हम इसीलिये
हर मोर्चे पर मात खा रहे है ।
कमल
ये साधारण कविता नहीं , एक धधकता शोला ऐसा
नस नस में जो आग लगा दे वीर सिपाही बोला जैसा
हम हारेहैं नहीं कभीभी पर अपनों ने हमें हराया
दुश्मन को तो पता है इसका इसीलिए तो जान गवाँया ॥
wrote:
रचना सेना के अन्दर के हालात का वर्णन करती है और किसी भुक्त भोगी देश भक्त की आवाज़ है । ऐसे हालात बाहर कभी कभार ही आते है लेकिन अनेक स्थितियों में रहते हैं । जनरल कॉल ऐसे ही अफसरों में थे जिन्होंने देश के सम्मान को मिटटी में मिलाया था । आज भी हैं जो अपने स्वार्थ के लिए देश भक्तों की बलि देने में नहीं चूकते । लेकिन बलबान जैसों की संख्या भी कम नहीं हैं जो अदम्य उत्साह का परिचय देते हुए विद्रोह करते हैं । ऐसे बहादुर देश भक्तों को सलाम करते हुए रचनाकार के साहस एवं काव्य कौशल की दाद देते हुए :-
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
Ghanshyam Gupta
कुसुम जी,
१. यदि आपको पता हो तो बतायें कि 'कोर्ट मार्शल किसका???' रचना के रचयिता कौन हैं?
२. कमल जी तो समझे हैं कि यह रचना अजय की है।
३. मुझे जान पड़ता है कि ऐसा नहीं है, वीर जी ने किसी अन्य व्यक्ति (ashim) द्वारा अग्रेषित रचना को महिपाल जी को भेजा और महिपाल जी ने ई-कविता पर पहुंचाया। ऐसा ही सम्भवतः आप भी कह रही हैं।
४. अब रचना पर हुई सब प्रतिक्रियाएं आप अजय वीर जी को भेज रही हैं और बदले में उनका अभिवादन और स्नेहिल आभार हम सब तक।
५. क्या ही अच्छा होता यदि अजय जी इस रचना को स्वयं मंच पर भेजते। उन्हें सदस्य बनने के लिये प्रेरित करें।
६. ऐसा हुआ होता तो रचना के विषय में अजय जी के अपने विचार क्या हैं यह जानने की उत्कंठा का निवारण भी सम्भव हो पाता।
७. समाज की व्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति के अपने नागरिक कर्त्तव्यों और अधिकारों को समझ-बूझ कर तदनुसार सीमाबद्ध रह कर कार्य करने पर ही निर्भर करती है। बच्चों को परिवार में अनुशासन सिखाया जाता है, विद्यार्थियों को कक्षा में। सैनिकों और पुलिस के सिपाहियों में अनुशासन की आवश्यकता और अपने से ऊपर के अधिकारी की अवज्ञा न करने पर तो विशेष बल दिया जाता है। हस्पताल में शल्य-चिकित्सक के आदेश की अवहेलना परिचारिकायें करने लगें तो मरीज़ों का क्या होगा यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। इसी प्रकार जेलर न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करते हुए किसी कैदी को अपने मतानुसार निर्दोष या दोषी करार देकर उसकी सज़ा को घटाने बढ़ाने लगे तो अनुचित होगा।
नियमानुकूल आचरण, कानून को अपने हाथ में न लेना, व्यवस्था के लिये आवश्यक है। इसके अपवाद अवश्य होते हैं लेकिन इस रचना में तो केवल भावावेश है और अनुशासन की बखिया उधेड़ी गई है। रचना अपने आप में शिल्प और प्रवाह की दृष्टि से औसत से अच्छे दर्जे की है और अपने उद्देश्य में सफल है जैसा कि उन दिग्गजों की प्रतिक्रियाओं से भी स्पष्ट है जो स्वयं प्रशासनिक, सेना, और पुलिस की सेवाओं में रत रह चुके हैं।
- घनश्याम
jo bhi bola sach bola hai
yah rachna bam ka gola hai
Kusum Vir
आदरणीय कमल जी, शुक्ल जी, अचल वर्मा जी, खलिश जी,आचार्य जी, महेश जी, प्रताप सिंह जी एवं प्रणव दी,
आदरणीय महिपाल जी ने कर्नल अजय वीर जी द्वारा उन्हें अग्रेषित कविता
' कोर्ट मार्शल किसका ??? ' को इ कविता के मंच पर भेजा l
इस कविता पर आप सबकी प्रीतिकर प्रतिक्रियाओं और स्नेहिल भावनाओं से
मेरे द्वारा कर्नल अजय वीर जी को अवगत करा दिया गया है l
उन्होंने आप सभी को सादर अभिवादन भेजा है और अपना हार्दिक स्नेहिल आभार व्यक्त किया है l
सादर,
कुसुम वीर
hairan hun meri kvita ko kiso or ke nam se publish huyi dekhkar ... mai nhi janta ki ye ajay veer singh koun h pr meri rachna ko apna nam dekar is bhai sahab ne kayron wala kam kiya hai..... my self Ramesh Chahal,m sirsa haryana se belong krta hu 9729997701 mera contact no hai or
https://www.facebook.com/chahalramesh
ye meri fb profile ka link hai....thnxxxxx or agr koi is ajay veer ke bare me or janta hai to plz mujhe btaye ......
मित्रो मैं हरियाणा का रहने वाला हूँ हमारे यहाँ ठेठ बोली में एक कहावत है -
दूसरे की छंद छाप काट कर जो अपना नाम कह्या करै
कह मांगे राम पान्ची वाला वो सबका साला होया करै।
अर्थात जो किसी के दोहे ,छंद या कविता को अपनी कहता है वो सबका साला होता है। बाकि हैरानी ये है की दिव्या नर्मदा जैसे प्रतिष्ठित ब्लॉग पर ऐसा हुआ है। खैर जो भी हो मेरे लिए ये कविता मेरे बच्चे जैसी है और अपने बच्चे का यु अंदर मुझे अच्छा नही लगा। वैसे मैं इस ब्लॉग के एडिटर से बात करना चाहता हूँ। क्या कोई सज्जन हैं जो मुझे ;ब्लॉग एडिटर का मोबाइल नम्बर दे दे।
मेरा नम्बर है. 09729997701 . आभारी रहूंगा अगर एडिटर खुद फोन के ले तो।
धन्यवाद। - रमेश चहल।
Ramesh Chahal ji ,
रचना आपकी है , भूल सुधार कर दिया गया है . आपको हुई पीड़ा के लिये संपादक मण्डल को खेद है . इसी तरह लिखते रहें . रचना अच्छी है .
vivek ranjan shrivastava
bahut bahuit dhnyawad vivek ji.....
lekin english title me abhi bhi ajya veer ji moujud hain
ramesh ji!
apki rachna kth apka naam de diya gaya hai. apse doorbhash par charch bhee ho chuki hai. is truti ke peechhe kisi ki kott banniyat naheen hai, keval communication gap ke karan chook huee.
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