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गुरुवार, 26 अक्तूबर 2017

राम चरितावली

भरत भक्ति कर राम की, तज पाए मद-मोह
राम न सत्ता तज सके, पाया पत्नी विछोह
मोह नहीं कर्तव्य था, राजा हो निष्काम
सुविधा वरता नागरिक, तजते राजा राम
दोष न सीता ने दिया, बनी रही अनुरक्ति
दूर हुए पर सिया से, रही राम की युक्ति 
*
युगल भक्ति आदर्श का है पावनतम रूप
तन-मन दोनों ही कहें, सिया-राम हैं भूप
सिया-राम हैं भूप, मोह-माया को मारें
निरासक्त कर कर्म, 'सलिल' तो प्रभु जी तारें
अहंकार को मार, रिपुसूदन का ध्यान कर
सदय रहें श्रुतकीर्ति, युगल मूर्ति का गान कर
*
सदियाँ गाती हैं सतत, शुची संयम के गीत
भारत-मांडवी का मिलन, देहातीत पुनीत
*
लखन-उर्मिला एक मन, भले रहे तन दूर
रिपुसूदन-श्रुतिकीर्ति थे, तार और संतूर
*
सिया राम थीं, राम सिय, सलिल-सलिल की धार
द्वैताद्वैत न भिन्न ज्यों, जग असार में सार
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आठ, चार, थे एक भी, मिल हनुमत सम्पूर्ण
शून्य कर सके दनुज-दल, अहं कर सके चूर्ण
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साँसों की सरयू सलिल, आस-हास सिय-राम
भारत-मांडवी गोमती, सिकता कमल अनाम
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लखन-उर्मिला शौर्य-तप, हो न सके विधि वाम 
रिपुसूदन-श्रुतिकीर्ति हैं, श्रेय-प्रेय निष्काम
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शून्य 'स्व' सब कुछ 'सर्व' है, सत्ता सेवाग्राम
राम-राम कर सब चले, हनु संकल्प अकाम
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घातक आरक्षण रजक, लव-कुश युक्ति न आम
ऍम-ख़ास अंतर न हो, घट-घटवासी राम
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छोड़ दिया है राम ने, नहीं व्यथा का अंत
प्राण-पखेरू उड़ चल, नहीं अवध में तंत
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दशरथ की दस इन्द्रियाँ, पल में हो निष्प्राण
तज कर देह विदेह हो, पाती-देतीं त्राण
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उन्मन मन-खग उड़ चला, वहीं जहाँ सिय-राम
वध न श्रवण का क्षम्य था, भोग लिया परिणाम
*
चित्रगुप्त के न्याय में, होती तनिक न भूल
कर्म किया फल भी गहो, मिले फूल या शूल
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सत्य राम का दिव्य शर, कर्म राम का चाप
दृष्टि राम की सियामय, लक्ष्य मिटाना पाप
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धर्म काम निष्काम कर, कौशल्या सम मौन
मर्म सुमित्रा-कैकई, सम परिपूरक कौन?
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जनक विरागी राग हैं,दशरथ अवध बहाल
कृपा दृष्टि है सुनयना, सीता धरणि निहाल
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राम नाम को सेतु कर, सिया नाम तट बंध
हनुमत दृढ़ स्तम्भ भव, पार करे हो अंध
पार करे हो अंध, राम-सिय बने सहारा 
दौड़े देव तुरंत, भक्त ने अगर पुकारा
पग पखार ले 'सलिल', बिसर मत ईश-नाम को
सिया नाम तट बांध, सेतु कर राम नाम को 
*
यायावर हो विचर मन, तज न राम का ध्यान
राम सनेही जो वही, है सच्चा इनसान
 है सच्चा इनसान, सिया के चरणों में नत
हिंदी की जयकार, करे दिन-रात अनवरत
जीव तभी संजीव, मिटा तम बने दिवाकर
साथ शब्द के विचरे, बन निश-दिन यायावर 
*
दंडक दुनिया छंद भी, देख न हो भयभीत
संग सिया-विश्वास तो, होगी पग-पग जीत
होगी पग-पग जीत, दनुज बाधा हारेगी
शीशम कोशिश सतत, लक्ष्य पर मन वारेगी
श्रृंगवेरपुर संध्या,वन्दन कर पा ठंडक
होकर भाव-विभोर, भोर जय कर ले दंडक 
*

*
भीतर-बाहर राम हैं, सोच न तू परिणाम
भला करे तू और का, भला करेंगे राम
*
विश्व मित्र के मित्र भी, होते परम विशिष्ट
युगों-युगों तक मनुज कुल, सीख मूल्य हो शिष्ट
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राम-नाम है मरा में, जिया राम का नाम
सिया राम का नाम है, राम सिया का नाम
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उलटा-सीधा कम-अधिक, नीचा-ऊँच विकार 
कम न अधिक हैं राम-सिय, पूर्णकाम अविकार
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मन मारुतसुत हो सके, सुमिर-सुमिर सिय-राम
तन हनुमत जैसा बने, हो न सके विधि वाम
*
मुनि सुतीक्ष्ण मति सुमति हो, तन हो जनक विदेह
धन सेवक हनुमंत सा, सिया-राम का गेह
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शबरी श्रम निष्ठा लगन, सत्प्रयास अविराम
पग पखर कर कवि सलिल, चल पथ पर पा राम
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हो मतंग तेरी कलम, स्याही बन प्रभु राम
श्वास शब्द में समाहित, गुंजित हो निष्काम
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अत्रि व्यक्ति की उच्चता, अनुसुइया तारल्य
ज्ञान किताबी भंग शर, कर्मठ राम प्रणम्य
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निबल सरलता अहल्या, सिया सबल निष्पाप
गौतम संयम-नियम हैं, इंद्र शक्तिमय पाप
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नियम समर्थन लोक का, पा बन जाते शक्ति
सत्ता दण्डित हो झुके, हो सत-प्रति अनुरक्ति
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जनगण से मिल जूझते, अगर नहीं मतिमान.
आत्मदाह करते मनुज, दनुज करें अभिमान.
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भंग करें धनु शर-रहित, संकुच-विहँस रघुनाथ.
भंग न धनु-शर-संग हो, सलिल उठे तब माथ.
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