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रविवार, 16 मार्च 2025

अपराजिता

अपराजिता
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अपराजिता का वानस्पतिक नाम Clitoria ternatea है। इसे विष्णुकांता या शंकरपुष्पी भी कहा जाता है। अपराजिता फूलों वाली बेल है जिसे आकर्षक फूलों के कारण इसे लान की सजावट के तौर पर भी लगाया जाता है। ये भी इकहरे होती है और दुहरे फूलों वाली भी। फूल भी दो तरह के होते हैं - नीले और सफेद। बंगाल या पानी वाले इलाकों में अपराजिता एक बेल की शक्ल में पायी जाती है। इसका पत्ता आगे से चौड़ा और पीछे से सिकुड़ा रहता है। इसके पुष्प भी शंकु आकार के होते हैं। काली पूजा और नवदुर्गा पूजा में अपराजिता आवश्यक है। है। काली के स्थान पर इसकी बेल जरूर लगाई जाती है। गर्मी के कुछ समय के अलावा हर समय इसकी बेल फूलों से सुसज्जित रहती है। अपराजिता के पौधे या बीज अच्छी तरह से सूखी कार्बनिक पदार्थयुक्त मिट्टी में धूप वाली जगह पर लगाएँ। मिट्टी लगातार नम रखें और नियमित रूप से पानी दें। झाड़ीदार विकास और ज़्यादा फूलों के लिए छँटाई करें। इसे पश्चिम-दक्षिण दिशा में न लगाएँ। पौधे में फूल न आएँ तो चायपत्ती को पानी में मिलाकर अच्छे से उबाल लें। फिर पानी को ठंडा करके अपराजिता की पौधे की जड़ में डालें। अधिक फूल के लिए लगभग २० ग्राम फिटकरी एक ग्लास पानी में मिलाकर अथवा सरसों चूर्ण पानी में मिलाकर मिट्टी में डाल दें। अपराजिता के लिए धूप जरूरी है। फलियाँ आने पर तोड़ दें ताकि फूल कम न हों।  
औषधीय गुण
स्त्री रोगों में तो अपराजिता रामबाण है। मासिक धर्म में अधिक रक्त निकलने की समस्या हो तो अपराजिता के पत्तों का १० मि.ली. ताजा रस १० ग्राम मिश्री पाउडर मिलाकर पिलाएँ, तुरंत आराम होता है। यह दिव्य जड़ी-बूटी गर्भ स्थापक गुण युक्त है। गर्भ ना ठहरने पाए सफेद अपराजिता की ५ ग्राम छाल तथा पत्तों को बकरी के दूध के साथ पीसकर तथा थोड़ा सा शहद मिलाकर पीने से गिरता हुआ गर्भ भी ठहर जाता है। सफेद अपराजिता की १ ग्राम जड़ शुद्ध पानी से धोकर बकरी के दूध के साथ पीस-छानकर थोड़ा सा शहद मिलाकर कुछ दिनों तक लगातार पीने पर भी गिरता हुआ गर्भ ठहर जाता है। इस बूटी की लता को कमर में बाँधने से ही तीसरे दिन में आने वाला ज्वर छूट जाता है। प्रसव में देरी और पीड़ा अधिक हो तो अपराजिता की बेल स्त्री की कमर पर लपेटने पर प्रसव जल्दी हो कर पीड़ा भी दूर हो जाती है। प्रसव के तुरंत बाद कमर पर बँधी बेल हटा दें। अपराजिता के फूलों की चाय पीने से बॉडी डिटॉक्स होती है, मेंटल स्ट्रेस कम होता है और दिमाग ठंडा रहता है। अपराजिता के फूलों के एंटी-इंफ़्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण पेट की मांसपेशियों को आराम देकर पाचन में सहायता करते हैं।  अपराजिता की चाय मेटाबॉलिज़्म को तेज़ी से बढ़ाती है, जिससे वज़न कम करना आसान हो जाता है।
 देवी अपराजिता पूजन 
माता अपराजिता के सामने ४० दिन तक अखंड दीप जलाकर दीपक जला कर अपराजिता स्त्रोत का निरंतर ४०  दिन तक पाठ करने पर व्यापार, भूमि, कचहरी अथवा सरकारी कार्यों में सफलता मिलती है। माता अपराजिता के पूजन का समय अपराह्न अर्थात दोपहर के तत्काल बाद का है। अपराजिता का अर्थ है जो कभी पराजित न हो। देवी भक्त  नवरात्र में विजयादशमी के दिन माँ अपराजिता की पूजा अवश्य करें। जब देवासुर संग्राम के मध्य नवदुर्गाओं ने दानवों के संपूर्ण वंश का नाश कर दिया तब माँ दुर्गा अपनी मूल पीठ शक्तियों में से अपनी आदि शक्ति अपराजिता को पूजने के लिए शमी की घास लेकर हिमालय में अन्तरध्यान हुईं। बाद में देवताओं द्वारा दानवों पर विजय प्राप्त के उपलक्ष्य में   आर्यावर्त में विजय पर्व के रूप में नव रात्रि में नौ  दुर्गा पूजन व विजय दशमी के दिन देवी अपराजिता को पूजना आरंभ 
हुआ।
धर्मसिंधु में अपराजिता की पूजन की विधि-
"अपराह्न में गाँव के उत्तर पूर्व  में एक स्वच्छ स्थल गोबर से लीपकर चंदन से आठ कोणों का एक चित्र खींच देना चाहिए उसके पश्चात संकल्प करना चहिए : मैं सकुटुंब कुशल-क्षेम हेतु अपराजित देवी का पूजन करता हूँ। 
"मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्ध्‌यर्थमपराजितापूजनं करिष्ये"
अक्षत कोणी चित्र के बीच में अपराजिता का आवाहन करउसके दाहिने एवं बायें जया एवं विजया का आवाहन कर 'क्रियाशक्तिको नमस्कार' एवं 'उमा को नमस्कार' कहें। इसके उपरांत :"अपराजितायै नम:,जयायै नम:,विजयायै नम:' अपराजित को नमन, जया को नमन, विजया को नमन कहकर तीनों का षोडशोपचार पूजन व प्रार्थना करें। शक्ति मंत्रों में यदि "ह्रीं,क्लीं,क्रीं, ऐं, श्रीँ आदि परम आद्या शक्ति के तीन रूप भक्तों के हितार्थ हैं , इनमें कोई भेद नहीं है। अपराजिता का पूजन शक्ति क्रम में गुरु, गणपति, भैरव, देवी आदि का षोडशोपचार  पूजन कर मन्त्र/स्तोत्र जप करें-  "ॐ सर्वविजयेश्वरी विद्महे महाशक्तयै धीमहि तन्नो: अपराजितायै प्रचोदयात"। अंत में हवन कर प्रार्थना करें- ''हे देवी! मैंने अपनी रक्षा के लिए यथाशक्ति जो पूजा की है, उसे स्वीकार कर आप अपने स्थान को गमन करें ताकि मैं अगली बार पुनः आपका आवाहन और पूजन वंदन कर सकूँ।'' 

..अथ श्री अपराजिता स्तोत्र..

ॐ नमोपराजितायै ..
ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः .गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि .श्री लक्ष्मीनृसिंहो देवता .ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् .हुं शक्तिः .सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ..
विनियोग
ॐ नमोऽपराजितायै . ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः .गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि . लक्ष्मीनृसिंहो देवता . ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् . हुं शक्तिः . सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः .
ध्यान:
ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् ..शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ..१..
शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम् ..बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ..२..
नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ..३..
मार्ककण्डेय उवाच :शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ..
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ..४..
ॐ नमो नारायणाय,नमो भगवते वासुदेवाय,नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे,क्षीरोदार्णवशायिने,शेषभोगपर्य्यङ्काय,गरुडवाहनाय,अमोघायअजायअजितायपीतवाससे ..
ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम .वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा ..
ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत -पिशाच-कूष्माण्ड-सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान् उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरुकुरु स्वाहा ..
ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषीकेश, केशव,सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन,सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबन्धविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा ..विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा ..सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी ..५..
सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा ..नानया सदृशं किङ्चिद्दुष्टानां नाशनं परम् ..६..
विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता ..पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्त्वगुणाश्रया ..७..
ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ..प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ..८..
अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम् ..
या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता ..९..
सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या ..या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ..सर्वकामदुधा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते ..१०..
य इमामपराजितां परमवैष्णवीमप्रतिहतां पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां जपति पठति शृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा न तस्याग्निवायुवज्रोपलाशनिवर्षभयं, न समुद्रभयं, न ग्रहभयं, न चौरभयं, न शत्रुभयं, न शापभयं वा भवेत् .
.क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्रीराजकुलविद्वेषि-विषगरगरदवशीकरण-विद्वेष्णोच्चाटनवधबन्धनभयं वा न भवेत्..एतैर्मन्त्रैरुदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः .... ॐ नमोऽस्तुते ..
अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठति, सिद्धे जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि, सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुन्धति, गायत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति, धरणि, धारणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते, गौरि, गान्धारि, मातङ्गी कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि, ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे, सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतं अन्तरिक्षगतं वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा ..यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ..म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ..११..
धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते ..गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः ..१२..
भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः ..एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ..१३..
रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत् ..शस्त्रं वारयते ह्योषा समरे काण्डदारुणे ..१४..
गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम् ..शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् ..१५..
इत्येषा कथिता विध्या अभयाख्याऽपराजिता ..एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते ..१६..
नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः ..
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः ..१७..
यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः ..
अग्नेर्भयं न वाताच्व न स्मुद्रान्न वै विषात् ..१८..
कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ..उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ..१९..
न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ..पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ..२०..
हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान् ..हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम् ..२१..
रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम् ..पाशाङ्कुशाभयवरैरलङ्कृतसुविग्रहाम् ..२२..
साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मन्त्रवर्णामृतान्यपि ..
नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमम् ..२३..
रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा .प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि ..तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम् ..२४..
ॐ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम् ..सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम् ..२५..
दारिद्र्यदुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम् ..भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम् ..२६..
डाकिनी शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम् ..महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम् ..२७..
गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः ..
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः शृणु ..२८..
एकान्हिकं द्व्यन्हिकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम् ..द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम् ..२९..
पाञ्चमासिकं षाङ्मासिकं वातिक पैत्तिकज्वरम् ..
श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततज्वरम् ..३०..
मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरम् .द्व्यहिन्कं त्र्यह्निकं चैव ज्वरमेकाह्निकं तथा ..क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणादपराजिता ..३१..
ॐ हॄं हन हन, कालि शर शर, गौरि धम्, धम्, विद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच विद्ये नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा दुःखस्वप्नविनाशिनि कमलस्तिथते विनायकमातः रजनि सन्ध्ये, दुन्दुभिनादे, मानसवेगे, शङ्खिनि, चाक्रिणि गदिनि वज्रिणि शूलिनि अपमृत्युविनाशिनि विश्वेश्वरि द्रविडि द्राविडि द्रविणि द्राविणि केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनि दुर्म्मददमनि ..शबरि किराति मातङ्गि ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ..ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान् सर्वान् दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि वैष्णवि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंहि ऐन्द्रि चामुन्डे महालक्ष्मि वैनायिकि औपेन्द्रि आग्नेयि चण्डि नैरृति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ..ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति स्वस्ति-तुष्टि पुष्टि-विवर्द्धिनि .कामाङ्कुशे कामदुधे सर्वकामवरप्रदे ..सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा .आकर्षणि आवेशनि-, ज्वालामालिनि-, रमणि रामणि, धरणि धारिणि,तपनि तापिनि, मदनि मादिनि, शोषणि सम्मोहिनि ..नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ..महाचान्द्रि महासौरि महामायूरि आदित्यरश्मि जाह्नवि ..यमघण्टे किणि किणि चिन्तामणि ..सुगन्धे सुरभे सुरासुरोत्पन्ने सर्वकामदुघे ..यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्ध्यतु स्वाहा ..ॐ स्वाहा ..ॐ भूः स्वाहा ..ॐ भुवः स्वाहा ..ॐ स्वः स्वहा ..ॐ महः स्वहा ..ॐ जनः स्वहा ..ॐ तपः स्वाहा ..ॐ सत्यं स्वाहा ..ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ..यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहेत्योम् ..अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता ..३२..
स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा ..
एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता ..३३..
नानया सद्रशी रक्षा. त्रिषु लोकेषु विद्यते ..तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शक्तिरियं मता ..३४..
कृतान्तोपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः ..मूलधारे न्यसेदेतां रात्रावेनं च संस्मरेत् ..३५..
नीलजीमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ..उद्यदादित्यसङ्काशां नेत्रत्रयविराजिताम् ..३६..
शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च विभ्रतीम् ..व्याघ्रचर्मपरीधानां किङ्किणीजालमण्डिताम् ..३७..
धावन्तीं गगनस्यान्तः तादुकाहितपादकाम् ..दंष्ट्राकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषिताम् ..३८..
व्यात्तवक्त्रां ललज्जिह्वां भृकुटीकुटिलालकाम् ..स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः ..३९..
सप्तधातून् शोषयन्तीं क्रुरदृष्टया विलोकनात् ..
त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयनतीं मुहुर्मुहः ..४०..
पाशेन बद्ध्वा तं साधमानवन्तीं तदन्तिके ..अर्द्धरात्रस्य समये देवीं धायेन्महाबलाम् ..४१..
यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मन्त्रं निशान्तके ..
तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापि योगिनी ..४२..
ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ..अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्ण्वीम् ..४३..
श्रीमदपराजिताविद्यां ध्यायेत् ..
दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च ..
व्यवहारे भेवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये ..४४..
यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्वऽक्षरहीनमीडितम् ..तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायताम् ..४५..
तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि ..
यादृशासि महादेवी तादृशायै नमो नमः ..४६..
इस स्तोत्र का विधिवत पाठ करने से सब प्रकार के रोग, शत्रु और बन्ध्या दोष नष्ट हो जाते हैं। मुकदमादि में सफलता और राजकीय कार्यों में अपराजित रहने के लिये यह पाठ रामबाण है.
अपराजिता स्तोत्र हिंदी अनुवाद
ॐ अपराजितादेवी को नमस्कार .
विनियोग ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव बृहस्पति-मार्कण्डेया ऋषयः गायत्रि उष्णिग् अनुष्टुब् बृहति-छन्दांसि, लक्ष्मीनृसिंहो देवता, ॐ क्लीँ श्रीं ह्रीं बीजम्, हुं शक्तिः, सकलकामनासिद्ध्यर्थम् अपराजिताविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः.
(इस वैष्णवी अपराजिता महाविद्या के वामदेव बृहस्पति मार्कण्डेय ऋषि गायत्री उष्णिग् अनुष्टुप् बृहति छन्द, लक्ष्मी नरसिंह देवता क्लीँ बीजम्, हुं शक्ति, सकलकामना सिद्धिके लिये अपराजिता विद्या मन्त्रपाठ में विनियोग.)
नीलकमलदल के समान श्यामल रंग वाली भुजङ्गों के आभरण से युक्त शुद्धस्फटिकके समान उज्ज्वल तथा कोटी चन्द्र के समान मुख वाली, शंख चक्र धारण करने वाली बालचन्द्र मस्तक पर धारण करने वाली, वैष्णवी अपराजिता देवीको नमस्कार करके महान् तपस्वी मार्कण्डेय ऋषि ने इस स्तोत्र का पाठ किया .
मार्कण्डेय ऋषि ने कहा – हे मुनियो सर्वार्थ सिद्धिदेनेवाली असिद्धसाधिका वैष्णवी अपराजिता देवी (के इस स्तोत्र) को सुने.
ॐ नारायण भगवानको नमस्कार वासुदेव भगवान को नमस्कार, अनन्तभगवान् को नमस्कार जो सहस्र सिर वाले क्षीर सागर में शयन करने वाले, शेष नाग के शैया में शयन करने वाले, गरुड वाहन वाले, अमोघ, अजन्मा, अजित, तथा पीतांबर धारण करने वाले हैं.
ॐ हे वासुदेव, संकर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर, राम, बलाराम, परशुराम, हे वरदायक, आप मेरे लिये वरदायक हों. आपको नमस्कार है.
ॐ असुर दैत्य यक्ष राक्षस भूत प्रेत पिशाच कूष्माण्ड सिद्धयोगिनी डाकिनी शाकिनी शाकिनी स्कन्दग्रह उपग्रह नक्षत्रग्रह तथा अन्य ग्रहों को मारो मारो पाचन करो पाचन करो. मथन करो मथन करो विध्वंस करो विध्वंस करो तोड दो तोड दो चूर्ण करो चूर्ण करो. शङ्ख चक्र वज्र शूल गदा मुसल तथा हल से भस्म करो .
ॐ हे सहस्र बाहु , हे सहस्र प्रहार आयुध वाले, जय , विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, जलाने वाले, प्रज्वालित करने वाले, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सभी असुरोंको उत्सादन करने वाले, हे सभी भूत प्राणियों को वश में करने वाले, हे सभी दुःस्वप्न नाश करने वाले, सभी यन्त्रों को नाश करने वाले, सभी नागों को विमर्दन करने वाले, सर्वदेवों के महादेव, सभी बन्धनों का विमोक्ष करने वाले, सभी अहितों को मर्दन करने वाले, सभी ज्वरों को नाश करने वाले, सभी ग्रहों को निवारण करने वाले, सभी पापों को प्रशमन करने वाले, हे जनार्दन आप को नमस्कार है. ये भगवान् विष्णुकी विद्या सर्वकामना के देने वाली, सर्वसौभाग्य की जननी, सभी भयको नाश करने वाली है. ये विष्णुकी परम वल्लभा सिद्धों के द्वारा पठित है, इसके समान दुष्टनाश करने वाली कोई और विद्या नहीं है. ये वैष्णवी अपराजिता विद्या साक्षात् सत्वगुण समन्वित सदा पढने योग्य तथा प्रशस्ता है.
ॐ शुक्लवस्त्र धारण करने वाले चन्द्र वर्ण वाले चार भुजा वाले प्रसन्न मुख वाले भगवान का सर्व विघ्न विनाश करने के लिये ध्यान करें.
हे वत्स अब मैं मेरी अभया अपराजिता के विषय में कहूंगा जो रजोगुणमयी कही गई हैं. ये सभी सत्व वाली सभी मंत्रों वाली स्मृत पूजित जपित कर्मों में योजित सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली हैं. इसको ध्यान पूर्वक सुनो. जो इस अपराजिता परम वैष्णवी अप्रतिहता पढने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने से सिद्ध होने वाली,विद्याको सुने पढें स्मरण करें धारण करें, कीर्तन करें, उसे अग्नि वायु वज्र पथ्थर खड्ग वृष्टि आदि का भय नहीं होता, समुद्र भय, चौर भय, शत्रु भय, शाप भय, भी नहीं होता. रात्रि में, अन्धकार में, राजकुल से विद्वेष करने वालों से, विष से विषदेने वालों से, वशीकरण आदि टोना टोटका करने वालों से, विद्वेषियों से, उच्चाटन करने वालों से, वध भय बन्धन का भय आदि समस्त भय से रहित हो जाते हैं. इन मन्त्रों के द्वारा कही गई सिद्ध साधकों द्वारा पूजित, अपराजिता शक्ति है. -
ॐ आप को नमस्कार है. हे भय रहित, पापरहित, परिमाण रहित, अमृत तत्त्ववाली, अपरा, अपराजिता, पढने से सिद्ध होने वाली, जप करने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने मात्र से सिद्धि देने वाली, नवासिवाँ स्थान वाली, अकेले रहने वाली, निश्चेता, सुद्रुमा, सुगन्धा, एक अन्न लेने वाली, उमा, ध्रुवा, अरुन्धती, गायत्री, सावित्री, जतवेदा, मानस्तोका, सरस्वति, धरणी, धारण करने वाली, सौदामिनी, अदिती, दिती, विनता, गौरी, गान्धारी, मातङ्गी, कृष्णा, यशोदा, सत्यवादिनी, बह्मवादिनी, काली कपालिनी, कराल नेत्र वाली, भद्रा, निद्रा, सत्य की रक्षा करने वाली, जलमे स्थल में अन्तिक्ष में सर्वत्र सभी प्रकार के उपद्रवों से रक्षा करो स्वाहा.
जिस स्त्री का गर्भ नष्ट होता है, गिर जाता है, बालक मर जाता है, अथवा वह काक बन्ध्या भी हो तो इस विद्या को धरण करने से गर्भिणी जीववत्सा होगी इसमे कोई संशय नहीं है.
इस मंत्र को भोजपत्र में चन्दन से लिख कर धारण करने से सौभग्यवती स्त्रियाँ पुत्रवती हो जाती है इसमे कोई संदेह नहीं.
युद्ध में राजकुल में जुआ में इस मन्त्र के प्रभाव से नित्य जय हो जाता है. भयंकर युद्ध में ये विद्या अस्त्र सस्त्रों से रक्षा करती है.
गुल्म रोग शूल रोग आँख के रोग की व्यथा शीघ्र नाश हो जाती है. ये विद्या शिरोवेदना, ज्वर आदि नाश करने वाली है. इस प्रकार की अभया अपराजिता विद्या कही गई है, इसके स्मरण मात्र से कहीं भी भय नहीं होता. सर्प भय रोग भय तस्करोंका भय , योद्धाओंका भय, राज भय, द्वेष करने वालोंका भय और शत्रु भय नहीं होता है. यक्ष राक्षस वेताल शाकिनी ग्रह अग्नि वायु समुद्र विष इत्यादि से भी भय नहीं होता. क्रिया से शत्रु के द्वारा किये हुये वशीकरण हो, उच्चाटन स्तम्भन हो विद्वेषण हो इन सब का लेश मात्र भी प्रभाव नहीं होता जहाँ माँ अपराजिता का पाठ हो, यहाँ तक की मुख में कण्ठस्थ हो लिखित रूप में हो, चित्र अर्थात् यन्त्र रूप मे लिखा हो तो भी भय बाधायें कुछ नहीं होते. यदि माँ अपराजिता के इस स्तोत्र को तथा चतुर्भुजा स्वरू को हृदय में धारण करेगा तो बाहर भीतर सब प्रकार से भय रहित शान्त हो जाता है.
लाल पुष्प माला धारण की हुई , कोमल कमलकान्ति के समान कान्ती वाली, पाश अङ्कुश , तथा अभय मुद्राओं से समलङ्कृत सुन्दर स्वरूप वाली, साधकों को मन्त्र वर्ण रूप अमृत को देती हुई, माँ का ध्यान करें. इस विद्या से बढकर न कोई वशीकरण सिद्धि देने वाली विद्या है, न रक्षा करने वाली, न पवित्र. अतः इस विषय में कोई चिन्तन करनेकी आवश्यकता नहीं है. प्रात काल में साधकों को माँ के कुमारी रूप की पूजन विविध खाद्य सामग्री से अनेक प्रकार के आभरणों से करनी चाहिये, फिर इस मन्त्र का प्रेम पूर्वक पाठकरना चाहिये. कुमारी देवी के प्रसन्न होने से मेरी ( अपराजिता की ) प्रीति बढ जाती है.
ॐ अब मैं उस महान बलशालिनी विद्या को कहूंगा जो सभी दुष्ट दमन करने वाली सभी शत्रु नाश करने वाली, दारिद्र्य दुःख को नाश करने वाली, दुर्भाग्य का नाश करने वाली, रोग नाश करने वाली, भूत प्रेत पिशाच यक्ष गन्धर्व राक्षस का नाश करने वाली है. डाकिनी शाकिनी स्कन्द कुष्माण्ड आदि का नाश करने वाली, महा रौद्र रूपा, महा शक्ति शालिनी, तत्काल विश्वास देने वाली है. ये विद्या अत्यन्त गोपनीय तथा भगवान भूतभावन भोलेनाथ की तो सर्वस्व है इस लिये गुप्त रखना चाहिये. ऐसी विद्या तुम्हें कहता हूं सावधान होकर सुनो.
एक दो , चार दिन या आधे महिने एक महिने, दो महिने, तीन महिने, चार महिने, पाँच महिने, छह महिने, तक चलने वाला वात ज्वर पित्त संबन्धी ज्वर अथवा कफ दोष, या सन्निपात हो, या मुहूर्त मात्र रहने वाला पित्त ज्वर, विष का ज्वर , विषम ज्वर दो दिन वाला , तीन दिन वाला एक दिन वाला अथवा अन्य ज्वर हो वे सब अपराजिता के स्मरण मात्र से शिघ्र नाश हो जाते हैं.
ॐ हृ हन हन कालि शर शर, गौरि धम धम, हे विद्या स्वरूपा हे आले ताले माले गन्धे बन्धे विद्याको पचा दो पचा दो नाश करो नाश करो पाप हरण करो हरण करो संहार करो संहार करो , दुःस्वप्न विनाश करने वाली कमलपुष्प मे स्थित विनायक मात रजनि सन्ध्या स्वरूपा दुन्दुभि नाद करने वाली मानस वेग वाली शङ्खिनी चक्रिणी वज्रिणी शूलिनी अपस्मृत्यु नाश करने वाली विश्वेश्वरी द्रविडि द्राविडी द्रविणी द्राविणी केशव दयिते पशुपति सहिते, दुन्दुभी दमन करने वाली दुर्मद दमन करने वाली, शबरी किराती मातङ्गी ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु.
जो प्रत्यक्ष या परोक्ष में मुझसे जलते हैं उन सब का दमन करो दमन करो मर्दन करो मर्दन करो, तापित करो तापित करो, छिपा दो छिपा दो , गिरा दो गिरा दो, शोषण करो शोषण करो, उत्सादित करो , उत्सादित करो, हे ब्रह्माणि हे वैष्णवी, हे माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, हे नृसिंह संबन्धिनी, ऐन्द्री, चामुण्डा, महालक्ष्मी, हे विनायक संबन्धिनी, हे उपेन्द्र संबन्धिनी, हे अग्नी संबन्धिनी, हे चण्डी, हे नैऋत्य संबन्धिनी, हे वायव्या, हे सौम्या, हे ईशान संबन्धिनी, हे प्रचण्डविद्या वाली, हे इन्द्र तथा उपेन्द्र की भगिनी आप उपर तथा नीचे से रक्षा करें.
ॐ जया विजया शान्ती स्वस्ति तुष्टि पुष्टि बढाने वाली देवी आप को नमस्कार.
दुष्टकामनाओं को अंकुश करने वाली शुभ कामना देने वाली, सभी कामनाओं का वर देने वाली, सब प्राणियों मे मूझको प्रिय करो प्रिय करो स्वाहा.
आकर्षण करने वाली, आवेशित करने वाली, ज्वाला माला वाली, रमणी, रमाने वाली, पृथ्वी स्वरूपा, धारण करने वाली, तप करने वाली तपाने वाली, मदन रूपा, मद देने वाली, शोषण करने वाली, सम्मोहन करने वाली, नील ध्वज वाली महानील स्वरूपा, महागौरी, महाश्रिया, महाचान्द्री, महासौरी, महा मायूरी, आदित्य रश्मी, जाह् नवी. यमघण्टा किणि किणि ध्वनी वाली, चिन्तामणी, सुगन्ध वाली, सुरभा, सुर असुर उत्पन्न करने वाली, सब प्रकार के कामनाओं की पूर्ति करने वाली, जैसा मेरा मन इच्छित कार्य है (यहाँ अपनी कामना का चिन्तन कर सकते हैं ) वह सम्पन्न हो जाये स्वाहा.
ॐ स्वाहा . ॐ भूः स्वाहा . ॐ भुवः स्वाहा . ॐ स्वः स्वहा . ॐ महः स्वहा . ॐ जनः स्वहा . ॐ तपः स्वाहा . ॐ सत्यं स्वाहा . ॐ भूभःभुवः स्वः स्वाहा .
जो पाप जहाँ से आया है वहीं लौट चलें स्वाहा इति ॐ ये महा वैष्णवी अपराजिता महा विद्या अमोघ फलदायी है. ये महाविद्या महा शक्तिशाली है अतः इसे अपराजिता अर्थात् किसी प्रकार के अन्य विद्या से पराजित न होने वाली कहा गया है. इसको स्वयं विष्णु ने निर्माण किया है सदा पाठ करने से सिद्धि प्राप्त होती है.
इस विद्या के समान तीनों लोकों में कोई रक्षा करने में समर्थ दूसरी विद्या नहीं है. ये तमोगुण स्वरूपा साक्षात् रौद्रशक्ति मानी गई है. इस विद्या के प्रभाव से यमराज भी डरकर चरणों में बैठ जाते हैं. इस विद्या को मूलाधार में स्थापित करना चाहिये तथा रात को स्मरण करना चाहिये. नीले मेघ के समान चमकती बिजली जैसे केश वाली चमकते सूर्यके समान तीन नेत्र वाली माँ मेरे प्रत्यक्ष विराजमान हैं. शक्ति त्रिशूल शङ्ख पानपात्र को धारण की हुई, व्याघ्र चर्म धारण की हुई, किङ्किणियों से सुशोभित मण्डप में विराजमान, गगनमण्डल के भीतरी भाग में धावन करती हुई, तादुकाहित चरण वाली, भयंकर दाँत तथा मुख वाली, कुण्डल युक्त सर्प के आभरणों से सुसज्जित, खुले मुख वाली, जिह्वा को बाहर निकाली हुई, टेढी भौहें वाली, अपने भक्त से शत्रुता करने वालों का रक्त पानपात्र से पिने वाली, क्रूर दृष्टि से देखने से सात प्रकार के धातु शोषण करने वाली, बारंबार त्रिशूल से शत्रु के जिह्वा को कीलित कर देने वाली, पाश से बाँधकर उसे पास में लाने वाली, ऐसी महा शक्तिशाली माँ को आधे रात के समय में ध्यान करें. फिर रात के तीसरे प्रहर में जिस जिसका नाम लेकर जप किया जाये उस उस को वैसा बना देती हैं ये योगिनी माता.
ॐ बला महाबला असिद्धसाधनी स्वाहा इति. इस अमोघ सिद्ध श्रीवैष्णवी विद्या, श्रीमद् अपराजिता को दुःस्वप्न दुरारिष्ट आपद के अवस्था में, किसी कार्यके आरंभ में ध्यान करें इससे विघ्न बाधायें शान्त हो जायेंगी सिद्धि प्राप्ती होगी.
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