लेख
स्वास्थ्य-समृद्धि वर्धक रातरानी
*
रातरानी (वानस्पतिक नाम : सेस्ट्रम नोक्टरमम् Cestrum nocturnum) सोलनेसी (Solanaceae) कुल का एक पादप है। यह दक्षिण एशिया एवं वेस्टइंडीज का देशज पौधा है। इसमें रात्रि के समय बहुत सुगंधित फूल खिलते हैं। पूर्णिमा के दिन इस पर फूल पूरी तरह से खिलते हैं और अधिकतम महकते हैं जबकि अमावस्या के दिन फूल नहीं खिलते। मूलत: यह दक्षिण एशिया एवं वेस्टइंडीज का देशज पौधा है जो हर तरह के मौसम और मिट्टी में लगाया जा सकता है। रातरानी चमेली कुल का पौधा है। इसके पौधे लगभ १० फीट ऊँचे और ६ फीट तक फैले हो सकता है। रातरानी को आमतौर पर "इंडियन येलोवुड" के नाम से जाना जाता है। यह पेड़ की एक प्रजाति है जो भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है और हिमालय की तलहटी और पश्चिमी घाट सहित भारत के कई हिस्सों में पाया जाता है। पेड़ अपने सुगंधित पीले फूलों के लिए जाना जाता है, जो गुच्छों में खिलते हैं और एक मीठी, नाजुक सुगंध रखते हैं। पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में, रातरानी के फूल और छाल का उपयोग विभिन्न औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। रातरानी को हिंदी में चाँदनी, तगर, संस्कृत में सुगंधा, ओड़िया में काटो , काटोचम्पा, मोल्लीफुलाना, कोंकड़ी में वडलीनामदीत, कन्नड़ में कोट्टू , नंदीबटलू, गुजराती में चाँदनी, सागर, तमिल में करेरदूप्पलै, नंदीयावत्तम, तेलुगु में गंधीतगराप्पू, नंदीवरदानमु, बांग्ला में चमेली, तगर, नेपाली में चाँदनी, मारती में अनंता, गोंदतगर, मलयालम में बेलुटा अमेलपोडी, नंदी ऐरवेटुम, कूट्टमपाले , तकरम तथा अंग्रेजी में East Indian Rosebay, Moon beam, Adam’s apple, Crepe jasmine कहा जाता है।
एक बड़े गमले में उर्वर मिट्टी और खाद को मिलाकर भरें। रात रानी के पौधे से ६-७ इंच की कलम तोड़/काट कर गाड़ दें। मिट्टी को हल्का गीला रखें। गमला कम धूप वाली जगह पर रखें। एक-दो हफ्ते में कलम में नई कोंपलें निकलने लगेंगी। रात रानी का पौधा बगीचे, गमलों बाहर बालकनी में किसी भी मिट्टी में उगा सकते हैं। गमलों में उगाए गए पौधों को पूरी तरह से विकसित होने के लिए महीने में दो बार खाद दें। उद्यानिकी के शौकीन आसानी से रात रानी का रख-रखाव कर सकते हैं। वास्तु के अनुसार रातरानी, गुलाब, गेंदा, चमेली और मोगरा के पौधे घर की उत्तर या पूर्व दिशा में लगाएँ।ये घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाते हैं। रातरानी का पौधा घर में दक्षिण दिशा में खिड़की के पास लगाने से परिवार में मनमुटाव घटता है, तनाव और चिंता क्म् होती है, अच्छी नींद आती है, मन एकाग्र रहता है। मुख्य द्वार पर रातरानी खुशबू और समृद्धि बढ़ाता है। अध्ययन कक्ष में रातरानी का पौधा लगाने से शैक्षणिक प्रगति अधिक होती है।
रातरानी में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी इंफ्लामेट्री और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं।रात की रानी के फूल के रस का इस्तेमाल मधुमेह (टाइप २ ममेलिटस डायबिटीज) ठीक करने के लिए किया जाता है। रात की रानी के फूल और पत्ते में इथेनॉल पाया जाता है, जो ब्रोन्कोडायलेटर है, इम्यूनिटी बेहतर कर सूखी खाँसी और गले की जलन से राहत देता है है। इसके २०-२५ पत्ते और फूल एक गिलास पानी के साथ उबालें जब तक पानी आधा न हो जाए। इसे तीन हिस्सों में बाँटकर सुबह, दोपहर और शाम को बराबर मात्रा में सेवन करें। रात की रानी की पत्ती और छाल का एंटीबैक्टीरियल गुण डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसे बुखार में जल्द आराम देता है। बुखार घटाने के लिए कुछ बूँद तेल में एक मिली. जैतून का तेल मिलाकर पैरों के तलवे में अच्छे से मालिश करें। यह अस्थमा, गठिया, साइनस और साइटिका (कमर से संबंधित नस) में भी लाभप्रद है। रातरानी के के पत्ते, फूल और तुलसी की पत्तियों की चाय पीने से कफ में राहत मिलती है। इसकी ३ ग्राम छाल और २ ग्राम पत्तों को दो या तीन तुलसी के पत्तों के साथ उबालकर दिन में दो बार पिएँ।आर्थराइटिस में हरसिंगार के पौधे के पत्तों, फूलों और छाल को २०० एमएल पानी में उबालें जब एक चौथाई ५० एमएल रह जाए तो गर्म गर्म पिएँ।
रात की रानी का तेल या इत्र मुँहासे, चोट के निशान, दाग-धब्बे आदि मिटाता है। सौंदर्य प्रसाधन शैम्पू, लोशन आदि बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है।
अरोमाथेरेपी के अनुसार रातरानी का इत्र स्ट्रेस और एंजायटी को दूर कर दिमाग में Serotonin लेवल को बढ़ाता, डर, दुःख और निराशा दूर कर आत्मविश्वास, आशा और उत्साह का भाव जगाता है। रातरानी की खुशबू शरीर की ऊर्जा को जाग्रत, संरक्षिट और संतुलित करती है।
रातरानी के फूल और पत्तियों को पीसकर आँगन में छिड़काव करने से शाम को मच्छर नहीं आते। रातरानी की पत्तियाँ पीसकर सूजन वाली जगह पर पुल्टिस बाँधने से सूजन कम होती है। सरदर्द, मसूढ़े की सूजन, नपुंसकता, नेत्र रोग, डिप्रेशन, तनाव, तंत्रिका-तन्त्र, प्रसूति सम्बन्धी समस्याओं आदि में रातरानी उपयोगी है। मुँह में छाले होने पर २-३ बार रात की रानी की एक पत्ती का टुकड़ा मुँह में डाल कर चाबें, रस को छाले वाली जगह पर फिराकर थूक दें।
***
गंध-रेखा
०
रातरानी
खींचती है गंध-रेखा
कर रहा है समय क्यों
यह सच अदेखा?
जिंदगी निर्गंध
क्या अच्छी लगेगी?
फैलती दुर्गंध
क्या मन को रुचेगी?
गर नहीं तो
रातरानी बनें हम सब।
स्नेह का परिमल बिखेरें
भुला जब-तब।
महमहाए श्वास
पूरी आस हो हर।
नर्मदा में नहा गाएँ
गीत मनहर।।
१६.१.२०२५
०००
पूर्णिका
.
मन लुभाए रातरानी आह भर।
छिप बुलाए रातरानी बाम पर।।
.
खत पठाए इशारों में बात कर।
रुख छिपाए चिलमनों से झाँककर।।
.
कहीं जाए तो पलट देखे इधर
यों जताए देखती है वो उधर।।
.
खिलखिलाए लूट मन का चैन ले।
तिलमिलाए दाँत से लब काटकर।।
.
जो न पाए तो बुलावा भेज दे।
सो न जाए रात रानी जागकर।।
.
हाथ आए या न आए क्या पता?
साथ आए बेखबर हो बाखबर॥
.
आ लुभाए लाल हो गुलनार सी
रू-ब-रू हों ख्वाब औ' सच बाँह भर।।
.
पूर्णिमा में पूर्णिका 'संजीव' की
गुनगुनाए झुका नजरें रात भर।।
१५.१.२०२५
०००
पूर्णिका
गमकती है रातरानी।
कहानी कहती सुहानी।।
दमकता है लोक राजा
महकती है राजरानी।।
सूर्य-शशि साथी सनातन
दिवस राजा, रात रानी।।
आस्था विश्वास निष्ठा
सभ्यता शाश्वत कहानी।।
कोशिशों का खैरमकदम
आसमां की निगहबानी।।
धरा अधरा मृदुल मधुरा
प्रीतिमय पोथी पुरानी।।
ख्वाब सब साकार करती
हौसलों की राजधानी।।
१४.१.२०२५
०००
रातरानी - ख्याल अपना अपना
*
फ़िराक़ गोरखपुरी
वो कभी रंग वो कभी ख़ुशबू
गाह गुल गाह रात-रानी है
.
दिन को सूरज-मुखी है वो नौ-गुल
रात को है वो रात-रानी भी
०
अंजुम रहबर
उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में
ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए
०
राहत इंदौरी
चमकता रहता है सूरज-मुखी में कोई और
महक रहा है कोई और रात-रानी में
०
संजीव 'सलिल'
बेकली में हाथ ने खोली किताब
रातरानी की कली महकी मिली
.
गाड़ी चली, रुमाल जैसे ही हिला
रातरानी की सजल आँखें हुईं
०
अभिषेक शुक्ला
नवाह-ए-जाँ में भटकती हैं ख़ुशबुएँ जिस की
वो एक फूल कि लगता है रात-रानी है
० सलीम रज़ा, रीवा
जब से उन की मेहरबानी हो गई
ज़िंदगी अब रात-रानी हो गई
०
शिखा पचौली
रुत सुहानी है उस की आँखों में
रात रानी है उस की आँखों में
०
शुतोष मिश्रा 'अज़ल'
रात-रानी बन वो आए ख़्वाब में फिर
महकी इन साँसों को हर शब फूल कहिए
०
इशराक़ अज़ीज़ी
तिरे आँचल को धानी लिख रहा हूँ
तुझे मैं रात-रानी लिख रहा हूँ
०
विनीत आश्ना
याद कीजे वो परी-चेहरा सदा
और हर सू रात-रानी देखिए
०
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ज़ुल्मतों में भी हँस के खुल जाना
उस ने सीखा है रात-रानी से
०
राकेश तूफ़ान
चमन में बाग़बाँ की साज़िशों ने
महकती रात-रानी ख़त्म कर दी
०
चाँदनी पांडे
चाँद की आग़ोश में होने से जिस का है वजूद
खिल सकेगी क्या भला वो रात-रानी धूप में
०
वन्दना भारद्वाज तिवारी 'वाणी'
गुल-बूटे और बाग़ जब सो जाते हैं ख़्वाबों को ओढ़े
तब रात रानी ही ख़ुशबू दे रात की ख़ामुशी में
०
गौतम राजऋषि
डसा रत-जगों ने है ख़्वाबों को फिर से
सुलगती हुई रात-रानी कहे है
०
मोहम्मद असदुल्लाह
रात-रानी सा तू महकता है
मेरी यादों के सब्ज़ एल्बम में
०
मेहदी प्रतापगढ़ी
ख़िज़ाँ में हिज्र की डूबा विसाल का मौसम
मगर है ज़ेहन में ख़ुशबू सी रात रानी की
०
फ़ारूक़ नूर
रात-रानी महक उठी होगी
जब वो करवट बदल रहा होगा
०
राहुल झा
रात-रानी से मोहब्बत थी हमें कुछ इस क़दर
रात को खिलने लगे और रात-राना हो गए
०
ज्योती आज़ाद खतरी
अमावस न पूनम से मुझ को ग़रज़ है
महकती हुई रात-रानी नहीं हूँ
०००
रातरानी की महक सिर्फ़ रातरानी से उतरती है
***
ग़ज़ल
वो कभी रंग वो कभी ख़ुशबू
गाह गुल गाह रात-रानी है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में
ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए
अंजुम रहबर
ग़ज़ल
दिन को सूरज-मुखी है वो नौ-गुल
रात को है वो रात-रानी भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
चमकता रहता है सूरज-मुखी में कोई और
महक रहा है कोई और रात-रानी में
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
नवाह-ए-जाँ में भटकती हैं ख़ुशबुएँ जिस की
वो एक फूल कि लगता है रात-रानी है
अभिषेक शुक्ला
ग़ज़ल
जब से उन की मेहरबानी हो गई
ज़िंदगी अब रात-रानी हो गई
सलीम रज़ा रीवा
ग़ज़ल
रुत सुहानी है उस की आँखों में
रात रानी है उस की आँखों में
शिखा पचौली
ग़ज़ल
रात-रानी बन वो आए ख़्वाब में फिर
महकी इन साँसों को हर शब फूल कहिए
आशुतोष मिश्रा अज़ल
ग़ज़ल
तिरे आँचल को धानी लिख रहा हूँ
तुझे मैं रात-रानी लिख रहा हूँ
इशराक़ अज़ीज़ी
ग़ज़ल
याद कीजे वो परी-चेहरा सदा
और हर सू रात-रानी देखिए
विनीत आश्ना
ग़ज़ल
ज़ुल्मतों में भी हंस के खुल जाना
उस ने सीखा है रात-रानी से
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
चमन में बाग़बाँ की साज़िशों ने
महकती रात-रानी ख़त्म कर दी
राकेश तूफ़ान
ग़ज़ल
चाँद की आग़ोश में होने से जिस का है वजूद
खिल सकेगी क्या भला वो रात-रानी धूप में
चाँदनी पांडे
ग़ज़ल
गुल-बूटे और बाग़ जब सो जाते हैं ख़्वाबों को ओढ़े
तब रात रानी ही ख़ुशबू दे रात की ख़ामुशी में
वन्दना भारद्वाज तिवारी 'वाणी'
ग़ज़ल
डसा रत-जगों ने है ख़्वाबों को फिर से
सुलगती हुई रात-रानी कहे है
गौतम राजऋषि
ग़ज़ल
रात-रानी सा तू महकता है
मेरी यादों के सब्ज़ एल्बम में
मोहम्मद असदुल्लाह
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ में हिज्र की डूबा विसाल का मौसम
मगर है ज़ेहन में ख़ुशबू सी रात रानी की
मेहदी प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
रात-रानी महक उठी होगी
जब वो करवट बदल रहा होगा
फ़ारूक़ नूर
ग़ज़ल
रात-रानी से मोहब्बत थी हमें कुछ इस क़दर
रात को खिलने लगे और रात-राना हो गए
राहुल झा
ग़ज़ल
अमावस न पूनम से मुझ को ग़रज़ है
महकती हुई रात-रानी नहीं हूँ
ज्योती आज़ाद खतरी
वियोगिनी ठाकुर
रातरानी की महक सिर्फ़ रातरानी से उतरती है
गुलाबों-सी गंध सिर्फ़ गुलाबों से
तुम्हारी तरह कौन चूमता है माथा
कौन फेरता है होंठों पर उँगलियाँ
तुम्हारे सिवा दे भी कौन सकता है
तुम्हारी सी-पीड़ा
हर भी कौन सकता है
सिवा तुम्हारे
हाँ समय भी हरता है—
समय की पीर
पर वह तुम तो नहीं हो
न ही वह तुम है
तुम्हारे सिवा कर कौन सकेगा
मुझे तुम-सा प्रेम
आता भी किसको है भला ऐसा जादू-वादू
सिर्फ़ तुम्हारे आने से खिलता है तन
महक उठती है मन की मौलश्री।
***
दिन-दुपहरिया और रातरानी
दिन-दुपहरिया और रातरानी
प्रखर शर्मा
Roman
तुमने कभी दिन दोपहरिया देखा है?
चमचमाती धूप में
उसके प्रज्ज्वलित कलेवर
मणिधारक नाग की तरह
फुफकारते हैं
और शाम होते ही सिकुड़ जाते हैं।
उसके आभामंडल पर लगे
जलमिश्रित मृदा के छीटे
दब जाते हैं उसी सिकुड़न में
आज की भूख और
कल की ताज़गी के लिए।
इतने में उत्तर मिलता है
अरे भाई! मैंने नहीं देखा है दिन-दुपहरिया।
मैंने हँसकर कहा कि
जिसने सही से दिन नहीं देखा है
वह दिन-दुपहरिया क्या देखेगा।
मैंने पुनः पूछा :
अच्छा, तो क्या तुमने रातरानी को देखा है?
उसने जवाब दिया :
हाँ, श्वेत वर्ण, नर्म चिकनी बनावट
लगभग कृशकाय महिला की भाँति उसका कलेवर
उसके पराग से गिरा एक कण भी
सुगंधित करता है
पूरा वातावरण
और सुबह होते ही
गुम हो जाता है बीती रात में।
मैंने कहा :
दिन-दुपहरिया सोख लेता है
दिन की धूप और हवा की धूल
तब रातरानी
उसी परिवेश में बिखेर देती है
केवल और केवल
दिखावटी महक।
***
रात रानी रात में
दिन में खिले सूरजमुखी
किन्तु फिर भी आज कल
हम भी दुखी
तुम भी दुखी!
हम लिए बरसात
निकले इन्द्रधनु की खोज में
और तुम
मधुमास में भी हो गहन संकोच में।
और चारों ओर उड़ती
है समय की बेरूखी!
हम भी दुखी
तुम भी दुखी!
सिर्फ आँखों से छुआ
बूढ़ी नदी रोने लगी
शर्म से जलती सदी
अपना 'वरन' खोने लगी।
ऊब कर खुद मर गए
जो थे कमल सबसे सुखी।
हम भी दुखी
तुम भी दुखी।
~ ओम प्रभाकर
***
इतना सा बुखार
राकेश श्रीमाल
‘‘पता है
यह कविताओं का बुखार है
लिख लीजीए
उतर जाएगा’’
पर यह नहीं बताया तुमने
कितने तापमान की
कैसी और कितनी कविताएं
इत्र बनाने वाले एक दूर गांव में
गोलियॉं मिलती हैं बुखार की
लाल
पीली
हरी
यकीनन नीली भी
नब्ज टटोलकर बताता है वैद्य
कितनी खुराक लेना है
सुबह
दोपहर
और सोने से पहले
तब नींद में तो
अकेला हो जाता होगा बुखार भी
अपने सपने में बुखार
दूर से तुम्हें छूता होगा
दूर से ही सिहर जाती होगी तुम
रातरानी की खुशबू
बात करती होगी
नींद में खोए अकेले बुखार से
तुम्हारे लगाए सारे फूल
एकजुट हो जलते होंगे रातरानी से
अपने संगी साथियों से बेखबर
अपनी ही लय में रातरानी
घुलती रहती होगी बुखार में
कौन समझाए बूढ़े वैद्य को
अब कैसे जाएगा बुखार
देर रात तक बतकही करता रहता है
वह रातरानी से
अपनी सुध-बुध खो
रातरानी भी
सो जाती है बुखार की देह में
कभी ना उठने की इच्छा लिए
व्यर्थ हैं सारी दवाईयां
निरर्थक हैं कविताएं भी
अकेली देह के बुखार में
बस गया है जीवन का अनंत निराकार
एक दूसरे की फिक्र करते हुए
एक दूसरे का हाथ थामे हुए
कभी विलग ना होने की चाह लिए.
***
रंजना वर्मा
एक खुशबू रातरानी हो गयी।
देख लो पुरवा सुहानी हो गयी॥
घेर कर बादल बरसने फिर लगे
लो धरा की चुनर धानी हो गयी॥
हर लहर उठने लगे जब ज्वार सी
तब समझ लेना जवानी हो गयी॥
जीर्ण पन्ने पीत वर्णी हो गये
डायरी अब तो पुरानी हो गयी॥
लोग बीती बात हर देते भुला
जिंदगी जैसे कहानी हो गयी॥
छेड़ने बादल गगन में आ गये
खेत क्यारी पानी-पानी हो गयी॥
***
राह कोई भी समझ आती नहीं
हर गली जैसे अजानी हो गयी॥
रातरानी खिली आज फिर
आज फिर याद आते हो तुम
एक सपना कि जैसे नयन से मिले
देह जैसे अचानक छुअन से मिले
मिल रहे तुम हमें आज कुछ इस तरह
टूटकर चैन जैसे थकन से मिले
लो हथेली थमा दी तुम्हें
चाँद-सूरज उगाते हो तुम ?
आ रही हैं तुम्हें क्या अभी हिचकियाँ
क्या चुभा पैर में द्वार का सातिया
क्या तुम्हें भी चिढ़ाती मिली हैं कभी
एक-दूजे से उलझी हुई खिड़कियाँ
जो तुम्हें याद करती, उसे
किस तरह भूल जाते हो तुम?
प्यार करना, नहीं कुछ जताना कभी
रूठना, पर नहीं है मनाना कभी
है नदी की अगर प्यास से दोस्ती
तो हमें भी हुनर ये सिखाना कभी
मैं लगा ना सकूँ आलता
किस तरह जी लगाते हो तुम?
- मनीषा शुक्ला
***
राजकुमारी रश्मि
रातरानी कहो या कहो चाँदनी
शीश से पाँव तक गीत ही गीत हूँ ।
बाँसुरी की तरह तुम पुकारो मुझे
एक पागल ह्रदय की विकल प्रीत हूँ ।
तुम किसी तौर पर ही निभा लो मुझे
तो लगेगा तुम्हें जीत ही जीत हूँ ।
जो सुवासित करे रोम से प्राण तक
पर्वतों में पली चन्दनी गन्ध हूँ ।
जिसकी अनुगूँज है आज हर कण्ठ में
गीत-गोविन्द का मैं वही छन्द हूँ ।
नेह के भाव में राग-अनुराग में
सात सुर में बँधा एक संगीत हूँ ।
एक आकुल प्रतीक्षा किसी फूल की
हाथ पकड़े पवन को बुलाती रह ।
शोख सूरज किरन चम्पई रंग से
एड़ियों पर महावर लगाती रही ।
प्राण जिसको सहेजे हुए आजतक
लोक व्यवहार की अनकही रीत हूँ ।
वन्दना के स्वरों से सजा लो मुझे
मैं पिघलती हुई टूटती सांस हूँ ।
युग-युगों से बसी है किसी नेह सी
मैं तुम्हारे नयन की वही प्यास हूँ ।
खो दिया था जिसे तुमने मझधार में
तुमसे बिछुड़ी हुई मैं वही मीत हूँ ।
*
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