: समय साक्षी गजल संकलन 'दिल बंजारा' :
[कृति विवरण : दिल बंजारा, ग़ज़ल संग्रह, हिमकर श्याम, पृष्ठ १२५, मूल्य २००/-, आवरण बहुरंगी, पेपरबैक, संपर्क ८६०३१७१७१०]
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भारतीय भाषाओं की द्विपदियों ने समय के साथ साक्षात करते हुए खुद को विविध रूपों में ढाला है। संस्कृत में श्लोक, हिंदी में दोहा-सोरठा और फारसी में शे'र के रूप में कथ्य और शिल्प के विविध संयोजनों और रंगों ने अपने समय का सच उद्घाटित किया। दोहों और शे'रों (अशआर) में अर्थ गांभीर्य और नफासत गीति-सलिला के दो किनारों की तरह सतत प्रवाहमान रहे हैं। काव्य सत्य के शूल को कल्पना के फूल के साथ ग्रहणीय बनाने की कला है। इस कला को साधना पीर और धीर, दर्द और हर्ष को साँस-साँस, साथ-साथ जीने की तरह है। हिमकर श्याम सोते-जागते इस अंतर्विरोध को बखूबी जीते रहे हैं। समय ने उनकी कड़ी परीक्षा ली है और वे समय की आँखों में आँखेँ डालकर हर बार जीतते आए हैं। उनकी गजलें इस संघर्ष को बखूबी बयान करती है।
ये गजलें किसी भाषा की सरहदों में कैद नहीं हैं, ये आम आदमी की जुबान की कायल हैं। जज़्बात बयानी के लिए जब जहाँ जो शब्द सटीक लगा उसे लेने में हिमकर को गुरेज नहीं है। दोहकार-गजलकार-कवि हिमकर छंद और बह्र दोनों को गंभीरता से लेते हैं। उनके दोहे हिंदी के मात्रा और लय के अनुसार लिखे जाते हैं तो शे'र बह्र के वज़्न और तरन्नुम का खयाल रखते हैं। मौजूदा दौर में अदब में छा रहे छिछोरेपन और नकारात्मकता को दरकिनार करते हुए हिमकर 'है' पर 'हो' को वरीयता देते हुए गजल को आशिकों-माशूक की हसीन गुफ्तगू नहीं, आम लोगों के जद्दोजहद और उम्मीदों का तब्सिरा मानते हैं। उनके लिए लिखना पेशा नहीं पूजा है।
दीवान की शुरुआत में ही गजलकार अदब में हाथ आजमाने का मकसद बयां करता है-
मिटाना हर बुराई चाहता हूँ / जमाने की भलाई चाहता हूँ
हर हाल में हिम्मत और हौसले के झण्डा बुलंद कर हार रहे लोगों को जीतने का रास्ता दिखाती गजलें फारस नहीं, भारत की माटी और संस्कार की थाती सम्हाले है-
राह मुश्किल सही हौसला कीजिए / क्या किसी का यहाँ आसरा कीजिए
धर्म क्या, जात क्या देखिए खूबियाँ / फ़र्क अच्छे-बुरे में किया कीजिए
और- मुश्किलों को हौसलों से पार कर / जिंदगी के मरहलों से प्यार कर
सामने आते मसाइल नित नये / बैठ मत इन गर्दिशों से हार कर
कोशिशों की कामयाबी के लिए काबलियत भी जरूरी है। नौजवानों को हुनरमंद होने की अहमियत मालूम होना ही चाहिए-
हर कदम पे हुनर काम आता यहाँ / कौन देता भला साथ फन के सिवा
भारत के सनातन मूल्यों में सहअस्तित्व, समानता और सहिष्णुता नीव के पत्थर की तरह है। इसलिए भारत कभी हमलावर नहीं हुआ। हिमकर समानता का उद्घोष करते हैं-
छोटा नहीं है कोई न कोई यहाँ बड़ा / कुदरत ने हर किसी को बराबर बना दिया
कोशिश करनेवालों की हौसला अफजाई करते हुए गजलगो उम्मीद का दामन थामे रहने का मशवरा देता है-
अँधेरा हर तरफ गहरा हुआ लेकिन / कहीं उम्मीद का इक दीप जलता है
आदमी में खूबियों और खामियों दोनों का होना लाजमी है लेकिन हर बशर खुद को खामियों से दूर और खूबियों से भरपूर मानने की गलतफहमी पाल लेता है। बकौल हिमकर-
खामियाँ अपनी कहाँ आतीं नज़र इंसान को / दूसरों की खूबियाँ किसको कभी अच्छी लगी
तरक्कीपसंद दिखाने की होड़ में समाज अपनी विरासत से दूर होता जा रहा है। सादगी की जगह दिखावा पसंद करती नई पीढ़ी को आईना दिखाते हैं हिमकर-
ढल रहे हैं लोग सारे इक नयी तहज़ीब में / बात मीठी है जुबां पर हाथ में शमशीर भी
नेकियाँ ईमां शराफ़त सादगी दरियादिली / पास इंसां के कभी थी ये बड़ी जागीर भी
आम आदमी की जिन्दगी में दिनों-दिन ज्यादा से ज्यादा जहर घोलती सियासत के खतरे से चेताते हुए शायर किसी पार्टी या नेता का नाम लिए बिना कड़वी हकीकत पूरी ईमानदारी से बयां करता है-
फक्त आंकड़ों में नुमाया तरक्की / यहाँ मुफलिसी दर-ब-दर फिर रही है
कब तक यूं बहलाएँगे / कब अच्छे दिन आएँगे
है सारा खेल कुर्सी का समझते क्यों नहीं लोगों / लगाकर आग नफरत की उन्हें बस वोट पाना है
अब भरोसा उठ गया इंसाफ से / हाय इकतरफ़ा बयानी मुल्क में
फ़क़त लीडरों में है उलझा सिपाही / भला कैसे होगी हिफाजत किसी की
इन गज़लों में मुहावरों, लोकोक्तियों आदि को बखूबी शामिल किया गया है-
साँच को आँच नहीं कहता पर / सच सलीके से दबा रखा है
किसी ने याद किया आज मुझको शिद्दत से / खड़ी हैं साथ मिरे हिचकियाँ गवाहों में
चादर से बढ़कर पाँव न निकल कभी मेरा / होता नहीं निबाह भी रस्ता दिखाइए
भारत की सरजमीं के ज़रखेजपन पर पूरी तरह भरोसा है हिमकर को। शायर भारत की बहुरंगी सभ्यता और संस्कृति का कल है। उसे पूरा भरोसा है कि वहशत के इस दौर में भी भारत महफूज है और रहेगा-
कोई नफरत भी बोता तो पनपती है मुहब्बत ही / अजब जादू है माटी में, कोई वरदान है भारत
'दिल बंजारा' की गज़लों की कसौटी शायर ने ही तय कर दी है-
ग़ज़ल ऐसी कहो जो दिल को छू ले / न पहुँचे दिल तलक क्या शायरी है
है एहसास इसमें तो छूती है दिल / सुखन को है करती मोअत्तर ग़ज़ल
इन ग़ज़लों में फिक्रे कुदरत है तो टूटते परिवार और बूढ़े माँ-बाप की चिंता भी है, समाज की बदसूरत तस्वीर है तो खूबसूरत और दिलकश चित्र भी हैं, तराजू के दो पलड़ों की तरह ग़ज़लों के अश'आर धूप-छाँव दोनों को सामने लाते हैं। अ इन ग़ज़लों के कई शे'र वाम की जुबान पर चढ़ने का माद्दा रखते हैं। बकौल हिमकर-
सबके हिस्से की कुछ चिट्ठी / बाँट रहा हिमकर हरकारा
ये केवल अशआर नहीं हैं हिमकर के / अपने ग़म शेरों में ढाले है साहब
जब रचनाकार रचना को होने देता है तब वह अपनी स्वाभाविकता में मन में घर कर लेती है लेकिन जब रचनाकार कथ्य को अपने अनुसार पेश करना चाहता है तो वह बनावटी हो जाता है। दिल बंजारा की ग़ज़लें दिल से दिल तक का सफ़र करने में समर्थ हैं।
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संपर्क- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१ ८३२४४
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