सलिल सृजन नवंबर २७
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कनेर / करवीर
कनेर सर्वकालिक उपयोगी लोकप्रिय, सुंदर पुष्प है। कनेर के फूल बेहद आकर्षक और अलग-अलग रंगों के होते हैं। इसकी एक बित्ता लंबी और आध अंगुल से एक अंगुल तक चौड़ी, नुकीली, कड़ी, ऊपर चिकनी, नीचे खुरदरी, गहरे हरे रंग की लगभग २० से. मी. लंबी, १.५ से. मी. चौड़ी दो-दो पत्तियाँ एक साथ आमने-सामने निकलती हैं । डाल में से सफेद दूध निकलता है। यह सफेद, पीला, गुलाबी और लाल ४ रंगों का होता है। फूलों के झड़ जाने पर आठ दस अंगुल लंबी पतली पतली फलियाँ लगती हैं । फलियों के पकने पर उनके भीतर से बहुत छोटे-छोटे मदार की तरह रूई में लगे बीज निकलते हैं। कनेर के लगभग ४ मीटर ऊँचे पौधे में लंबी-पतली डंडियाँ होती है। एक अन्य प्रकार के कनेर के पेड़ की पत्तियाँ पतली छोटी और अधिक चमकीली, फूल बड़ा, पीले रंग का होता है। फूल गिरने पर उसमें लगे गोल फल के भीतर गोल चिपटे बीज निकलते हैं।
कनेर को हिंदी में कनैल, करवीर, संस्कृत में शतकुंभ, अश्वमारक, अश्वघ्न, हयमार, तुरंगारि शतकुंद, स्थल-कुमुद्र, शकुद्र, चंडा, लगुद, भूतद्रावी, उर्दू में कनीर, अंग्रेजी में नेरियम ओलीएंडर, नेरियम इंडिकम, स्वीट सेन्टेड ओलिएन्डर, कॉमन ओलिएन्डर, सीलोन रोज, रोजबे, आदि, ओड़िया में कोनेरो/कोरोबीरो, कन्नड़ में कणगिले, गुजराती में कणेर, करेणकणहेर, तमिल मेंअलरी, तेलुगु मेंकस्तूरिपट्टा, गन्नेरू बांग्ला में कराबी, करबी, मराठी में कण्हेर, कनेरी, मलयालम में करवीरम, अरबी में दिफ्ली, सुमेलहीमर, फारसी में खरजाह्राहकहा जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार सफेद और पीले रंग के कनेर फूल घर में लगाना बहुत शुभ होता है। कनेर के पौधे का संबंध देवी लक्ष्मी से माना जाता है। कनेर के पौधे को घर में लगाने से धन की देवी का वास स्थापित होता है। घर में मौजूद नकारात्मक शक्ति और बाधा दूर हो जाती है। कनेर को गाय, भेड़, बकरियाँ नहीं खातीं। यह बाड़ (हेच) हेतु उपयुक्त है। घर में पश्चिम या पूर्व दिशा में सफेद या पीला कनेर लगाने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। घर में लाल रंग के कनेर फूल वाले पौधा नहीं लगाना चाहिए । कनेर के पौधे को घर में लगाने से सुख, समृद्धि और धन संपन्नता का आगमन होता है।
वैद्यक ग्रंथों में गुलाबी फूल और काले; दो प्रकार के कनेर का उल्लेख मिलता है। काले रंग के कनेर की चर्चा निघंटु रत्नाकर ग्रंथ में है। आज-कल काला कनेर अनुपलब्ध है। कनेर की जड़, पत्तियाँ, फूल तथा बीज विषैले होते है। कनेर गरम, कृमिनाशक, घाव, कोढ़ और फोड़े-फुंसी आदि को दूर करता है। इसकी छाल कड़वी भेदन व बुखार नाशक होती है। छाल की क्रिया बहुत ही तेज होती है, इसलिए इसे कम मात्रा में सेवन करते है। नहीं तो पानी जैसे पतले दस्त होने लगते हैं। कनेर का मुख्य विषैला परिणाम हृदय की मांसपेशियों पर होता है। कनेर का दूध शरीर की जलन को नष्ट करने वाला और विषैला होता है। कनेर का जहर डाइगाक्सीन ड्रग की तरह है। डाइगाक्सीन दिल की धड़कन की रफ्तार कम करता है। इसमें कार्डियक ग्लाइकोसाइड्स रसायन होता है, जिसमें ओलेंड्रिन, फोलिनेरिन और डिजिटॉक्सिजेनिन जैसे तत्त्व सम्मिलित हैं, जो हृदय पर औषधीय प्रभाव डाल सकते हैं। कनेर विषाक्तता के लक्षणों में मतली, दस्त, उल्टी, चकत्ते, भ्रम, चक्कर आना, अनियमित हृदय गति, मंद ह्रदय गति और गंभीर मामलों में मृत्यु होना शामिल हैं।
भावप्रकाश के अनुसार यह संक्रमित घावों, त्वचा रोगों, रोगाणुओं एवं परजीवियों तथा खुजली के उपचार में उपयोगी है। सफेद कुष्ठ की चिकित्सा के लिए सफेद फूल वाले कनेर का बहुतायत प्रयोग किया जाता है। सफेद कनेर की जड़, कुटज-फल, करंज-फल, दारुहल्दी की छाल और चमेली की नयी पत्तियों को पीसकर लेप कुष्ठ रोग में लाभदायक होता है। कनेर के पत्तों का काढ़ा बनाकर नहाने योग्य जल में मिला लें। नियमित रूप से कुछ दिन तक स्नान करने से कुष्ठ रोग में बहुत लाभ होता है। कनेर के ५० ग्राम ताजे फूल १०० मि.ली. मीठे तेल में पीस लें। इसे एक हफ्ते तक रख दें। फिर २०० मिली जैतून के तेल में मिलाकर लगाएँ। इससे कुष्ठ रोग, सफेद दाग दूर होता है। सफेद कनेर के फूलों को पीसकर चेहरे पर मलने से चेहरे की कान्ति बढ़ती है।
सफेद बालों को काला करने में कनेर फायदेमंद है। सिर से सफेद बालों को उखाड़ लें, या बालों को जड़ से काट लें। इस स्थान पर दूध में पिसे हुए कनेर की जड़ के पेस्ट का लेप करें। इससे बालों के सफेद होने की समस्या में लाभ होता है। बराबर मात्रा में हरीतकी, बहेड़ा, आँवला, कनेर की जड़ के साथ विजयसार, भृंगराज तथा गुड़ की मसी बनाकर बालों पर लेप करने से सफेद बालों की समस्या में लाभ होता है।यह कुष्ठ रोग जैसी दुःसाध्य और निरंतर बनी रहने वाली त्वचा की बीमारियों में लाभ दायक है। कनेर तथा दुग्धिका को कूट लें। इसे गोदधि के साथ मिलाकर सिर पर लेप करें। इससे बालों का असमय सफेद होना तथा गंजापन रोग में लाभ होता है।
सिर दर्द मिटाने के लिए कनेर के फूल तथा आँवले को काँजी में पीस लें। इसे मस्तक पर लेप करने से सिर का दर्द ठीक होता है। सफेद कनेर के पीले पत्तों को सुखाकर महीन पीस लें। सिर के जिस तरफ दर्द हो रहा हो उस तरफ से नाक में एक दो बार सूंघें। इस छींक आएगी और सिर दर्द ठीक हो जाएगा।
ह्रदय रोग, बुखार, रक्त-विकार आदि में पीला कनेर का उपाय करने पर लाभ मिलता है।
लिंग के ढीलेपन की समस्या हेतु १० ग्राम सफेद कनेर की जड़ को पीसकार २० ग्राम घी में पकाएँ। ठंडा करके लिंग (कामेन्द्रिय) पर मालिश करें। इससे लिंग के कम तनाव (कामेन्द्रिय की शिथिलता) की समस्या दूर होती है। कनेर के ५० ग्राम ताजे फूलों को १०० मि.ली. मीठे तेल में पीस लें। इसे एक हफ्ते तक रख दें। फिर २०० मि.ली. जैतून के तेल में मिलाकर २-३ बार लगाएँ। इससे कामेन्द्रिय पर उभरी नसों, लिंग की कमजोरी की समस्या दूर होती है। सिफलिस (उपदंश) के घावों को कनेर-पत्तों के काढ़ा से धोएँ। सफेद कनेर की जड़ पानी के साथ पीसकर उपदंश के घावों पर लगाएँ। इससे लाभ होता है।
लकवा लगने पर कनेर के ५० ग्राम ताजे फूल १०० मि.ली. मीठे तेल में पीस लें। इसे एक हफ्ते तक रख दें। फिर २०० मिली जैतून के तेल में मिलाकर लगाएँ । सफेद कनेर की जड़ की छाल, सफेद गुंजा की दाल तथा काले धतूरे के पत्ते को समान मात्रा में लेकर पेस्ट बना लें। इसके बाद चार गुना जल लें। पेस्ट के बराबर मात्रा में तेल लें। सभी को कलई वाले बर्तन में धीमी आग पर पकाएं। जब केवल तेल शेष रह जाए तब कपड़े से छान लें।
अफीम की आदत ५० मि.ग्रा. कनेर की जड़ का महीन चूर्ण दूध के साथ कुछ हफ्ते तक दिन में दो बार खिलाते रहने से छूट जाती है।
कीड़े-मकौड़े के काटने पर कनेर के पत्तों को तेल में पका लें। इससे मालिश करें। इससे आराम मिलता है। संक्रमण वाले कीड़े या जीव शरीर पर नहीं बैठते हैं।
सांप के काटने पर पीले कनेर के पत्ते को १२५ से २५० मि.ग्रा. की मात्रा में या १-२ की संख्या में थोड़े-थोड़े अंतर पर देते रहें। इसके कारण उल्टी होकर सांप का विष उतर जाता है।
जोड़ों के दर्द में कनेर के पत्तों को पीसकर तेल में मिलाकार बनाया लेप करने लगाएँ। कनेर के ५० ग्राम ताजे फूलों को १०० मि.ली. मीठे तेल में पीस लें। इसे एक हफ्ते तक रख दें। फिर २०० मिली जैतून के तेल में मिलाकर लगाएं। इससे पीठ का दर्द, बदन दर्द दूर होता है।
दाद में कनेर की जड़ की छाल को तेल में पकाकर, छान लें। इसे लगाने से दाद और अन्य त्वचा विकारों में लाभ होता है। कनेर के पत्तों से पकाए हुए तेल को लगाने से खुजली मिटती है। पीले कनेर के पत्ते या फूलों को जैतून के तेल में मिलाकर मलहम बना लें। इसे लगाने से हर प्रकार की खुजली में लाभ होता है।
सफेद कनेर की डाली से दातुन करने पर दांतों का दर्द भी ठीक हो जाता है।
कनेर सूखे का सामना करने की अपनी क्षमता के लिये लोकप्रिय है तथा इसका उपयोग आमतौर पर भूनिर्माण एवं सजावटी उद्देश्यों के लिये किया जाता है।
यदि आपका कोई शत्रु आपको परेशान कर रहा है तो गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले लाल कनेर की जाली तोड़े और इसके सात टुकड़े लेकर उन्हें कपूर के साथ जला दें। किसी व्यक्ति पर मंगल दोष है तो रोजाना कनेर के पौधे की जड़ में जल चढ़ाएँ, मौजूद मंगल दोष से मुक्ति मिलती है। कनेर का पौधा शुभ प्रभाव देता है। इसे घर में पश्चिम या नैऋत्य कोण में लगाना उत्तम रहता है।
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मुक्तिका
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ऋतुएँ रहीं सपना जगा।
मनु दे रहा खुद को दगा।।
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अपना नहीं अपना रहा।
किसका हुआ सपना सगा।।
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रखना नहीं सिर के तले
तकिया कभी पगले तगा।।
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कहना नहीं रहना सदा
मन प्रेम में नित ही पगा।।
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जिससे न हो कुछ वासता
अपना हमें वह ही लगा।।
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मुक्तक
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मतदान कर, मत दान कर, जो पात्र उसको मत
मिले।
सब जन अगर न पात्र हों, खुल कह, न रखना लब सिले।।
मत व्यक्त कर, मत लोभ-भय से, तू बदलना राय निज-
जन मत डरे, जनमत कहे, जनतंत्र तब फूले-फले।।
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भाषा न भूषा, जात-नाता-कुल नहीं तुम देखना।
क्या योग्यता, क्या कार्यक्षमता, मौन रह अवलोकना।।
क्या नीति दल की?, क्या दिशा दे?, देश को यह सोचना-
उसको न चुनना जो न काबिल, चुन न खुद को कोसना।।
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जो नीति केवल राज करने हेतु हो, वह त्याज्य है।
जो कर सके कल्याण जन का, बस वही आराध्य है।
जनहित करेगा खाक वह, दल-नीति से जो बाध्य है-
क्यों देश-हित में सत नहीं, आधार सच्चा साध्य है।।
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शासन-प्रशासन मात्र सेवक, लोक के स्वामी नहीं।
सुविधा बटोरें, भूल जनगण, क्या यही खामी नहीं?
भत्ते व वेतन तज सभी, जो लोकसेवा कर सके-
वही जनप्रतिनिधि बने, क्यों भरें सब हामी नहीं??
२७-११-२०१८
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नवगीत :
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अपने मुँह
अपना यश-गान।
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अब भी हैं
धृतराष्ट्र धरा पर
आत्म-मोह से ग्रस्त।
जाते जिसके निकट
उसी को
करते हैं संत्रस्त।
अहंकार के
मारे को हो
कैसे सुख-संतोष?
देख न निज के दोष
दूसरों को
देते हैं दोष।
जनगण-जनमत
को ठुकराते
कर-पाते अपमान
अपने मुँह
अपना यश-गान।
*
आधा देखें,
आधा लेखें,
मुँह-देखी बोलें।
विष-रस भरा
कनक-घट दिखता
जब भी मुँह खोलें।
परख रहे
औरों की कृतियाँ,
छिपा रहे हैं
खुद की त्रुटियाँ।
माइक पकड़ें
जमकर जकड़ें
मन माना बोलें।
सीख सयानों की
बिसरादी
बात तनिक तोलें।
क्षमा न करता
समय, कुयश का
कोई नहीं निदान
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बर्दाश्तगी
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एक शायर मित्र ने आग्रह किया कि मैं उनके द्वारा संपादित किये जा रहे हम्द (उर्दू काव्य-विधा जिसमें परमेश्वर की प्रशंसा में की गयी कवितायेँ) संकलन के लिये कुछ रचनाएँ लिख दूँ, साथ ही जिज्ञासा भी की कि इसमें मुझे, मेरे धर्म या मेरे धर्मगुरु को आपत्ति तो न होगी? मैंने तत्काल सहमति देते हुए कहा कि यह तो मेरे लिए ख़ुशी का वायस (कारण) है।
कुछ दिन बाद मित्र आये तो मैंने लिखे हुए हम्द सुनाये, उन्होंने प्रशंसा की और ले गये।
कई दिन यूँ ही बीत गये, कोई सूचना न मिली तो मैंने समाचार पूछा, उत्तर मिला वे सकुशल हैं पर किताब के बारे में मिलने पर बताएँगे। एक दिन वे आये कुछ सँकुचाते हुए। मैंने कारण पूछा तो बताया कि उन्हें मना कर दिया गया है कि अल्लाह के अलावा किसी और की तारीफ में हम्द नहीं कहा जा सकता जबकि मैंने अल्लाह के साथ- साथ चित्रगुप्त जी, शिव जी, विष्णु जी, ईसा मसीह, गुरु नानक, दुर्गा जी, सरस्वती जी, लक्ष्मी जी, गणेश जी व भारत माता पर भी हम्द लिख दिये थे। कोई बात नहीं, आप केवल अल्लाह पर लिख हम्द ले लें। उन्होंने बताया कि किसी गैरमुस्लिम द्वारा अल्लाह पर लिख गया हम्द भी क़ुबूल नहीं किया गया।
किताब तो आप अपने पैसों से छपा रहे हैं फिर औरों का मश्वरा मानें या न मानें यह तो आपके इख़्तियार में है -मैंने पूछा।
नहीं, अगर उनकी बात नहीं मानूँगा तो मेरे खिलाफ फतवा जारी कर हुक्का-पानी बंद दिया जाएगा। कोई मेरे बच्चों से शादी नहीं करेगा -वे चिंताग्रस्त थे।
अरे भाई! फ़िक्र मत करें, मेरे लिखे हुए हम्द लौटा दें, मैं कहीं और उपयोग कर लूँगा। मैंने उन्हें राहत देने के लिए कहा।
उन्हें तो कुफ्र कहते हुए ज़ब्त कर लिया गया। आपकी वज़ह से मैं भी मुश्किल में पड़ गया -वे बोले।
कैसी बात करते हैं? मैं आप के घर तो गया नहीं था, आपकी गुजारिश पर ही मैंने लिखे, आपको ठीक न लगते तो तुरंत वापिस कर देते। आपके यहां के अंदरूनी हालात से मुझे क्या लेना-देना? मुझे थोड़ा गरम होते देख वे जाते-जाते फिकरा कस गये 'आप लोगों के साथ यही मुश्किल है, बर्दाश्तगी का माद्दा ही नहीं है।'
२७.११.२०१५
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