मेरे गीत गोमती का जल : सलिल प्रवाहित कलकलकल
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ॐ अनादि-अनंत है। ॐ से उत्पन्न सृष्टि का ॐ में ही विलय होता है। ॐ का प्रकाश 'श्याम' नहीं; शुक्ल ही होता है। ॐ की ऊर्जा ही जीव रूप में अवतार लेती है। सुयोग है की ॐ के एक अंश ने गोमती तीर पर धरावतरण किया और गोमती किनारे बालुका राशि के अक्षर कणों से घरघूला बनाते हुए अक्षरों को जोड़कर विचार को व्यक्त करना सीखा और 'गाँधी और उनके बाद' जैसी विचारोत्तेजक-समजोपयोगी कृति के रचना की।
गोमती के सलिल-प्रवाह में अंतर्निहित छंद को आत्मसात कर ॐ का प्रकाश अपनी शुक्लता को गीत पंक्तियों में समाहित कर 'मेरे गीत गोमती का जल' की रचना कर सका है। 'नीता' का सत्संग पाकर नीति-पथ पर चलना स्वाभाविक है। ॐ प्रकाश के गीत देश और समाज, प्रकृति और नियति, कर्तव्य और भावना, व्यष्टि और समष्टि, प्रेम और क्षेम के दो किनारों के बीच भाव-रस के प्रवाह पर अभिव्यक्ति का सेतु बनाते चलते हैं।
इन गीतों में लोक है तो उसमें व्याप्त लोभ और उससे उपजा शोक भी है, कान्हा है तो कनुप्रिया भी है, फागुन है तो बसंत भी है। ॐ प्रकाश की शुक्लता बाह्य नहीं आभ्यंतरिक है। वह करात्रिमत से सर्वथा दूर है-
बनावटी ही शब्द अगर मैं चुनकर लाऊँगा
प्रणय गीत या राष्ट्र वंदना कैसे गाऊँगा?
इन गीतों में हृदयोद्गार पंक्ति-पंक्ति में समाहित है। अमिधा और लक्षणा का प्रयोग अधिक है। व्यंजना भोजन में नमक की तरह ही होनी चाहिए, और है। सरलता, सहजता और सुबोधता का मणि-कांचन योग इनमें है। प्रिय ॐप्रकाश 'दिमाग' से नहीं 'दिल' से गीत रचते हैं, इसलिए वे सीधे दिल तक पहुँचते हैं। हार्दिक बधाई। विश्वास है ये लोकप्रिय होंगे और ॐप्रकाश के सृजनशील व्यक्तित्व का अन्य पहलू लेकर नई कृति शीघ्र ही प्राप्त होगी।
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभिएन
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१
९४२५१८३२४४
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