रामचरित मानस में जीवन रक्षक मंत्र
मानस रचना के पश्चात् गोस्वामी तुलसीदास जी से पूछा गया कि अब तक राम कथा को 'रामायण' ही कहा गया है। विशिष्टता दर्शाने के लिए रामायण के साथ विशेषण जोड़ दिया जाता है. यथा - वाल्मीकि रामायण, कंबन रामायण, अध्यात्म रामायण आदि।
गोस्वामी जी ने उत्तर दिया कि रामायण का रथ है राम का मंदिर। मंदिर में जाने की मर्यादा है। मंदिर स्वच्छ हो, वास्तु के अनुसार बना हो, नियमानुसार पूजन-आरती और विश्राम आदि हो, मंदिर जानेवाला स्नान आदि कर स्वच्छ ही, स्वच्छ वस्त्र पहने हो, पूजन सामग्री लिए हो। मानस अर्थात मन का सरोवर, सरोवर में मलिनता से मुक्ति हेतु जाते हैं, सरोवर में जाने के लिए कोई सामग्री नहीं चाहिए, समय का प्रतिबंध नहीं होता। कोई भी, कभी भी, कहीं भी सरोवर में जा सकता है और अपनी मलिनता से मुक्त होकर निर्मल हो सकता है।
१. रक्षा हेतु - मामभिरक्षय रघुकुल नायक। घृत वर चाप रुचिर कर सायक।।
२. विपत्ति मुक्ति - राजिव नयन धरे धनु सायक। भक्त विपति भंजन सुखदायक।।
३. सहायता हेतु - मोरे हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोई होऊ।।
४. कार्य सिद्धि हेतु - बन्दौं बाल रूप सोइ रामु। सब सिधि सुलभ जपत जेहि नामू।।
५. वशीकरण हेतु - सुमिर पवनसुत पावन नामू। अपने वाश कर रखे रामू।।
६. संकट निवारण हेतु - दीनदयालु विरुद संभारि। हरहु नाथ मम संकट भारी।।
७. विघ्न विनाश हेतु - सकल विघ्न व्यापहु नहीं तेहि। राम सुकृपा बिलोकहिं जेहि।।
८. रोग मुक्ति हेतु - राम कृपा नासहि सब रोगा। जो यहि भाँति बनहि संयोगा।।
९. ज्वर निवारण हेतु - दैहिक दैविक भौतिक जापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
१०. दुःख मुक्ति हेतु - राम भक्ति मणि जिस उर बस जाके। दुःख लवलेस न सपनेहु ताके।।
११. गुमी वस्तु प्राप्ति हेतु - गई बहोरि गरीबनवाजू। सरल सहज साहब रघुराजू।।
१२. अनुराग वृद्धि हेतु - सीताराम चरण रत मोरे। अनुदिन बढ़े अनुग्रह मोरे।।
१३. सुख प्राप्ति हेतु - जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख-संपति नाना विध पावहिं।।
१४. सुधार हेतु - मोहि सुधारहि सोई सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।
१५. विद्या प्राप्ति हेतु - गुरु गृह पढ़न गए रघुराई। अलप काल विद्या सब आई।।
१६. सरस्वती की कृपा हेतु - जेहि पर कृपा करहि जन जानी। कवि उर अजिर नचावहि बानी।।
१७. निर्मल मति हेतु - ताके युग पद कमल मनाऊँ। जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ।।
१८. मोह/भ्रम नाश हेतु - होय विवेक मोह भ्रम भंगा। टीवी रघुनाथ चरण अनुरागा।।
१९. स्नेह संवर्धन हेतु - सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति रीति।।
२०. बैर नाश हेतु - बैर न करु काहू संग कोई। राम प्रताप बिसमता खोई।।
२१. परिवार-सुख प्राप्ति हेतु - अनुजन संयुत भोजन करहिं। देखि सकल जननी सुख भरहीं।।
२२. भातृ सुख हेतु - सेवहिं सानुकूल भाई। राम चरन रति अति अधिकाई।।
२३. मेल-मिलाप हेतु - गरल सुधा रिपु करहिं मिलाई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
२४. शत्रु नाश हेतु - जाके सुमिरन ते रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा।।
२५. आजीविका हेतु - बिस्व भरण पोसन करि सोई। ताकर नाम भरत अस होई।।
२६. मनोकामना पूर्ति हेतु - राम सदा सेवक रुचि राखी। बेद पुरान साधु सुर साखी।।
२७. मुक्ति हेतु - पापी जाकर नाम सुमिरहीं। अति अपार भव सागर तरहीं।।
२८. अल्प मृत्यु नाश /सौंदर्य हेतु - अलप मृत्यु नहिं कवनिहुँ पीरा। सब सुंदर सब नीरज सरीरा।।
२९. दरिद्रता नाश हेतु - नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छनहीना।।
३०. प्रभु प्राप्ति हेतु - अतिशय प्रीति देखि रघुबीरा। प्रगटे हृदय हरन भाव पीरा।।
३१. प्रभु साक्षात् हेतु - नयनबंत रघुपतिहिं बिलोकी। आए जनम फल होहिं बिसोकी।।
३२. क्षमा प्राप्ति हेतु - अनुचित बहुत कहहुँ अज्ञाता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।
३३. विश्राम/शांति हेतु - रामचरित मानस एहि नामा। कहत सुनत पाइअ बिसरामा।।
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