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गुरुवार, 3 नवंबर 2022

चित्रांश वंशज महासभा, दिवाली, दोहा, नवगीत, मुक्तक, स्वाति तिवारी, दिया, कविता

अखिल भारतीय चित्रांश वंशज महासभा 

- प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन ६ नवंबर २०२२ अयोध्या -  

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' को राष्ट्रीय चित्रांश गौरव सम्मान 

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अयोध्या। सिया राम के पावन धाम अयोध्या में दिनाँक ६ नवंबर २०२२ को अखिल भारतीय चित्रांश वंशज महासभा का प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन  आयोजित किया जा रहा है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि होंगे श्री अरुण सक्सेना वन एवं पर्यावरण मंत्री उत्तर प्रदेश। विशिष्ट अतिथि की असन्दियों की शोभा वृद्धि करेंगे सर्व श्री मधुभाई श्रीवास्तव विधायक बाघोड़िया गुजरात, आशुतोष सिन्हा विधायक वाराणसी, राज सिन्हा विधायक रांची तथा वेद प्रकाश गुप्ता विधायक अयोध्या। इस अवसर पर पधार रहे अतिथियों में कैलिफोर्निया से विशेष अतिथि स्वर अलका कोकिला भटनागर तथा मुम्बई से अभिनेता संजय श्रीवास्तव उल्लेखनीय हैं।   

शब्द संस्कृति के श्रेष्ठ दूत, शासन-प्रशासन में दक्ष कायस्थ समाज के इस महत्वपूर्ण आयोजन में देश के विविध भागों से चयनित असाधारण योगदान कर कायस्थों की कीर्तिपताका फहरानेवाली विभूतियों को 'राष्ट्रीय चित्रांश गौरव सम्मान' से सम्मानित किया जाएगा। इनमें प्रमुख हैं प्रो. कृष्ण जी श्रीवास्तव विभागाध्यक्ष हिंदी लखनऊ विश्वविद्यालय, इंजी. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' छन्दशास्त्री संपादक समीक्षक जबलपुर, चिरंजीव सिन्हा सहायक आयुक्त पुलिस, डॉ. विवेक श्रीवास्तव अस्थि विशेषज्ञ, डॉ. अनामिका सिन्हा शिक्षाविद, देवेंद्र खरे अधिवक्ता, अभिषेक श्रीवास्तव पत्रकार कानपुर, नेहा खरे पर्यावरण कार्यकर्ता, संदीप श्रीवास्तव पत्रकार झाँसी, श्याम प्रकाश श्रीवास्तव डबरा साहित्यकार, प्रदीप श्रीवास्तव संपादक प्रणाम पर्यटन पत्रिका, सुशील खरे साहित्यकार पन्ना, चन्द्रहास श्रीवास्तव पक्षी संरक्षक, अजय श्रीवास्तव समाजसेवी सागर, संध्या श्रीवास्तव वाराणसी संपादक, अमित श्रीवास्तव अधिवक्ता इलाहाबाद तथा राकेश श्रीवास्तव समाजसेवी लखनऊ आदि। आयोजन की गरिमा वृद्धि करने हेतु  श्री जयशंकर श्रीवास्तव वरिष्ठ राजनयिक लखनऊ, श्री मनोज सक्सेना वरिष्ठ उपाध्यक्ष अभाकाम भी सहभागिता कर रहे हैं। 

 गौरव मैरिज लॉन, शंकरगढ़ अयोध्या में आयोजित इस सम्मलेन में संस्था पदाधिकारियों के प्रतिवेदन प्रथम सत्र में प्रस्तुत किए जाएँगे। तत्पश्चात देश व समाज के समक्ष उपस्थित सम सामयिक समस्याओं के समाधान में कायस्थ समाज की भूमिका, राजनीति-व्यवसाय तथा अन्य  क्षेत्रों में कायस्थ युवाओं को अवसर वृद्धि, राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने में कायस्थों के अवदान आदि विषयों पर चर्चा होगी। अपराह्न सत्र में पुस्तकों तथा स्मारिका का विमोचन प्रतिभा सम्मान के पश्चात् तृतीय सत्र में सांस्कृतिक प्रस्तुतिययाँ एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। उत्तरप्रदेश के कायस्थ विधायकों सर्व श्री सिद्धार्थनाथ सिंह प्रयागराज, सौरभ श्रीवास्तव वाराणसी, अरुण सक्सेना बरेली, अंजनी श्रीवास्तव लखनऊ,  संरक्षक श्री जयशंकर श्रीवास्तव लखनऊ,, राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नगेन्द्र माथुर, राष्ट्रीय महामंत्री श्री अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम' दतिया, प्रांताध्यक्ष उत्तर प्रदेश डॉ. अमित श्रीवास्तव,  उप प्रांताध्यक्ष श्रीमती अनामिका श्रीवास्तव तथा श्री प्रदीप खरे, संगठन सचिव श्री अनिल निगम, जिला अध्यक्ष फर्रुखाबाद श्री राहुल सक्सेना आदि ने सम्मेलन की सफलता हेतु सभी कायस्थबंधुओं से तन-मन-धन से सहयोग करने का आह्वान किया है।  

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दोहा दिवाली
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मृदा नीर श्रम कुशलता, स्वेद गढ़े आकार।
बाती डूबे स्नेह में, ज्योति हरे अँधियार।।
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तम से मत कर नेह तू, झटपट जाए लील।
पवन झँकोरों से न डर, जल बनकर कंदील।।
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संसद में बम फूटते, चलें सभा में बाण।
इंटरव्यू में फुलझड़ी, सत्ता में हैं प्राण।।
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पति तज गणपति सँग पुजें, लछमी से पढ़ पाठ।
बाँह-चाह में दो रखे, नारी के हैं ठाठ।।
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रिद्धि-सिद्धि, हरि की सुने, कोई न जग में पीर।
छोड़ गए साथी धरें, कैसे कहिए धीर।।
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संजीव, ३.११.२०१८
९४२५१८३२४४
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नवगीत
दर्द
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दर्द होता है
मगर
चुपचाप सहता।
*
पीर नदियों की
सुनाते घाट देखे।
मंज़िलों का दर्द
कहते ठाठ लेखे।
शूल पैरों को चुभे
कितने, कहाँ, कब?
मौन बढ़ता कदम
चुप रह
नहीं कहता?
*
चूड़ियों की कथा
पायल ने कही है।
अचकनों की व्यथा
अनसुन ही रही है।
मर्द को हो दर्द
जग कहता, न होता
शिला निष्ठुर मौन
झरना
पीर तहता।
*
धूप को सब चाहते
सूरज न भाता।
माँग भर सिंदूर
अनदेखा लजाता।
सौंप देता गृहस्थी
लेता न कुछ भी
उठाता नखरे
उपेक्षित
नित्य दहता।
*
संजीव
३.११.२०१८
९४२५१८३२४४
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दोहा
सदा रहें समभाव से, सभी अपेक्षा त्याग.
भुला उपेक्षा दें तुरत, बना रहे अनुराग.
३-११-२०१७
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कार्यशाला
मुक्तक लिखें
आज की पंक्ति 'हुई है भीड़ क्यों?'
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उदाहरण-
आज की पंक्ति हुई है भीड़ क्यों?
तोड़ती चिड़िया स्वयं ही नीड़ क्यों?
जी रही 'लिव इन रिलेशन' खुद सुता
मायके की उठे मन में हीड़ क्यों?
(हीड़ = याद)
*
आज की पंक्ति हुई है भीड़ क्यों, यह कौन जाने?
समय है बेढब, न सच्ची बात कोई सुने-माने
कल्पना का क्या कभी आकाश, भू छूती कभी है
प्रेरणा पा समुन्दर से 'सलिल' बहना ध्येय ठाने
३-११-२०१६
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पुस्तक सलिला –
‘मेरी प्रिय कथाएँ’ पारिवारिक विघटन की व्यथाएँ
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
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[पुस्तक विवरण – मेरी प्रिय कथाएँ, स्वाति तिवारी, कहानी संग्रह, प्रथम संस्करण २०१४, ISBN९७८-८३-८२००९-४९-८, आकार २२ से.मी. x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी, सजिल्द, पृष्ठ १३२, मूल्य २४९/-, ज्योतिपर्व प्रकाशन, ९९ ज्ञान खंड ३, इंदिरापुरम, गाज़ियाबाद २०१०१२, दूरभाष९८११७२११४७, कहानीकार सम्पर्क ई एन १ / ९ चार इमली भोपाल, चलभाष ९४२४०११३३४ stswatitiwari@gmail.com ]
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स्वाति तिवारी लिखित २० सामयिक कहानियों का संग्रह ‘मेरी प्रिय कथाएँ’ की कहानियाँ प्रथम दृष्टया ‘स्त्री विमर्शात्मक’ प्रतीत होने पर भी वस्तुत: पारिवारिक विघटन की व्यथा कथाएँ हैं. परिवार का केंद्र सामान्यत: ‘स्त्री’ और परिधि ‘पुरुष’ होते हैं जिन्हें ‘गृह स्वामिनी’ और गृह स्वामी’ अथवा ‘लाज और ‘मर्यादा कहा जाता है. कहानी किसी केन्द्रीय घटना या विचार पर आधृत होती है इसलिए बहुधा नारी पात्र और उनके साथ हुई घटनाओं का वर्णन इन्हें स्त्रीप्रधान बनाता है. स्वाति बढ़ाई की पात्र इसलिए हैं कि ये कहानियाँ ‘स्त्री’ को केंद्र में रखकर उसकी समस्याओं का विचारण करते हुए भी कहीं एकांगी, अश्लील या वीभत्स नहीं हैं, पीड़ा की गहनता शब्दित करने के लिए उन्हें पुरुष को नाहक कटघरे में खड़ा करने की जरूरत नहीं होती. वे सहज भाव से जहाँ-जितना उपयुक्त है उतना ही उल्लेख करती हैं. इन कहानियों का वैशिष्ट्य संश्लिष्ट कथासूत्रता है.
अत्याधुनिकता के व्याल-जाल से पाठकों को सचेष्ट करती ये कहानियाँ परिवार की इकाई को परोक्षत: अपरिहार्य मानती-कहती ही सामाजिककता और वैयक्तिकता को एक-दूसरे का पर्याय पति हैं. यह सनातन सत्य है की समग्रत: न तो पुरुष आततायी है, न स्त्री कुलटा है. दोनों में व्यक्ति विशेष अथवा प्रसंग विशेष में व्यक्ति कदाचरण का निमित्त या दोषी होता है. घटनाओं का सामान्यीकरण बहुधा विवेचना को एकांगी बना देता है. स्वाति इससे बच सकी हैं. वे स्त्री की पैरोकारी करते हुए पुरुष को लांछित नहीं करतीं.
प्रथम कहानी ‘स्त्री मुक्ति का यूटोपिया’ की नायिका के माध्यम से तथाकथित स्त्री-मुक्ति अवधारणा की दिशाहीनता को प्रश्नित करती कहानीकार ‘स्त्री मुक्ति को दैहिक संबंधों की आज़ादी मानने की कुधारणा’ पर प्रश्न चिन्ह लगाती है.
‘रिश्तों के कई रंग’ में ‘लिव इन’ में पनपती अवसरवादिता और दमित होता प्रेम, ‘मृगतृष्णा’ में संबंध टूटने के बाद का मन-मंथन, ‘आजकल’ में अविवाहित दाहिक सम्बन्ध और उससे उत्पन्न सन्तति को सामाजिक स्वीकृति, ‘बंद मुट्ठी’ में आत्मसम्मान के प्रति सचेष्ट माँ और अनुत्तरदायी पुत्र, ‘एक फलसफा जिंदगी’ में सुभद्रा के बहाने पैसे के लिए विवाह को माध्यम बनाने की दुष्प्रवृत्ति, ‘बूँद गुलाब जल की’ में पारिवारिक शोषण की शिकार विमला पाठकों के लिए कई प्रश्न छोड़ जाती हैं. विधवा विमला में बलात गर्भवती कर बेटा ले लेनेवाले परिवार के प्रति विरोधभाव का न होना और सुभद्रा और शीरीन में अति व्यक्तिवाद नारी जीवन की दो अतिरेकी किन्तु यथार्थ प्रवृत्तियाँ हैं.
‘अस्तित्व के लिए’ संग्रह की मार्मिक कथा है जिसमें पुत्रमोह की कुप्रथा को कटघरे में लाया गया है. मृत जन्मी बेटी की तुलना अभिमन्यु से किया जाना अप्रासंगिक प्रतीत होता है ‘गुलाबी ओढ़नी’ की बुआ का सती बनने से बचने के लिए ससुराल छोड़ना, विधवा सुंदर नन्द को समाज से बहाने के लिए भाभी का कठोर होना और फिर अपनी पुत्री का कन्यादान करना परिवार की महत्ता दर्शाती सार्थक कहानी है.
‘सच तो यह है कि आज फैक्ट और फिक्शन में कोई फर्क नहीं रह गया है- हम एक खबर की तरह हो गए हैं’, एक ताज़ा खबर कहानी का यह संवाद कैंसरग्रस्त पत्नी से मुक्तिचाहते स्वार्थी पति के माध्यम से समाज को सचेत करती है. ‘अचार’ कहानी दो पिरियों के बीच भावनात्मक जुड़ाव का सरस आख्यान है. ‘आजकल मैं बिलकुल अम्मा जैसी होती जा रही हूँ. उम्र का एक दौर ऐसा भी आता है जब हम ‘हम’ नहीं रहते, अपने माता-पिता की तरह लगने लगते हैं, वैसा ही सोचने लगते हैं’. यह अनुभव हर पाठक का है जिसे स्वाति जी का कहानीकार बयां करता है.
‘ऋतुचक्र’ कहानी पुत्र के प्रति माँ के अंध मोह पर केन्द्रित है. ‘उत्तराधिकारी’ का नाटकीय घटनाक्रम ठाकुर की मौत के बाद, नौकर की पत्नी से बलात-अवैध संबंध कर उत्पन्न पुत्र को विधवा ठकुरानी द्वारा अपनाने पर समाप्त होता है किन्तु कई अनसुलझे सवाल छोड़ जाता है. ‘बैंगनी फूलोंवाला पेड़’ प्रेम की सनातनता पर केन्द्रित है. ‘सदियों से एक ही लड़का है, एक ही लड़की है, एक ही पेड़ है. दोनों वहीं मिलते हैं, बस नाम बदल जाते हैं और फूलों के रंग भी. कहानी वही होती है. किस्से वही होते हैं.’ साधारण प्रतीत होता यह संवाद कहानी में गुंथकर पाठक के मर्म को स्पर्श करता है. यही स्वाति की कलम का जादू है.
‘मुट्ठी में बंद चाकलेट’ पीटीआई के प्रति समर्पित किन्तु प्रेमी की स्मृतियों से जुडी नायिका के मानसिक अंतर्द्वंद को विश्लेषित करती है. ‘मलय और शेखर मेरे जीवन के दो किनारे बनकर रह गए और मैं दोनों के बीच नदी की तरह बहती रही जो किसी भी किनारे को छोड़े तो उसे स्वयं सिमटना होगा. अपने अस्तित्व को मिटाकर, क्या नदी किसी एक किनारे में सिमट कर नदी रह पाई है.’ भाषिक और वैचारिक संयम की तनिक सी चूक इस कहानी का सौन्दर्य नाश कर सकती है किन्तु कहानीकार ऐसे खतरे लेने और सफल होने में कुशल है. ‘एक और भीष्म प्रतिज्ञा’ में नारी के के प्रेम को निजी स्वार्थवश नारी ही असफल बनाती है. ‘स्वयं से किया गया वादा’ में बहु के आने पर बेटे के जीवन में अपने स्थान को लेकर संशयग्रस्त माँ की मन:स्थिति का वर्णन है. ‘चेंज यानी बदलाव’ की नायिका पति द्वारा विव्हेटर संबंध बनने पर उसे छोड़ खुद पैरों पर खड़ा हो दूसरा विवाह कर सब सुख पति है जबकि पति का जीवन बिखर कर रह जाता है. ‘भाग्यवती’ कैशौर्य के प्रेमी को माँ के प्रति कर्तव्य की याद दिलानेवाली नायिका की बोधकथा है. ‘नौटंकीवाली’ की नायिका किशोरावस्था के आकर्षण में भटककर जिंदगीभर की पीड़ा भोगती है किन्तु अंत तक अपने स्वजनों की चिंता करती है. कहानी के अंत का संवाद ‘सुनो, गाँव जाओ तो किसी से मत कहना’ अमर कथाकार सुदर्शन के बाबा भारती की याद दिलाता है जब वे दस्यु द्वारा छलपूर्वक घोडा हथियाने पर किसी से न कहने का आग्रह करते हैं.
स्वाति संवेदनशील कहानीकार है. उनकी कहानियों को पढ़ने-समझने के लिए पाठक का सजग और संवेदशील होना आवश्यक है. वे शब्दों का अपव्यय नहीं करती. जितना और जिस तरह कहना जरूरी है उतना और उसी तरह कह पाती न. उनके पात्र न तो परंपरा के आगे सर झुकाते हैं, न लक्ष्यहीन विद्रोह करते हैं. वे सामान्य बुद्धिमान मनुष्य की तरह आचरण करते हुए जीवन का सामना करते हैं. ये कहानियों पाठक के साथ नवोदित कहानिकारें के सम्मुख भी एक प्रादर्श की तरह उपस्थित होती हैं. स्वाति सूत्रबद्ध लेखन में नहीं उन्मुक्त शब्दांकन में विश्वास रखती है. उनका समग्रतापरक चिंतन कहानियों को सहज ग्राह्य बनाता है. पाठक उनके अगले कहानी संग्रह की प्रतीक्षा करेंगे ही.
संपर्क- आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४, दूरडाक – salil.sanjiv@gmail.com

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कविता:

दिया
*
सारी ज़िन्दगी
तिल-तिल कर जला.
फिर भर्र कभी
हाथों को नहीं मला.
होठों को नहीं सिला.
न किया शिकवा गिला.
आख़िरी साँस तक
अँधेरे को पिया
इसी लिये तो मरकर भी
अमर हुआ
मिट्टी का दिया.
*
दिया २
राजनीति का
लोकतंत्र के
मेंढक को खा रहा है.
भोली-भाली जनता को
ललचा-धमका रहा है.
जब तक जनता
मूक होकर सहे जाएगी.
स्वार्थों की भैंस
लोकतंत्र का खेत चरे जाएगी..
एकता की लाठी ले
भैंस को भागो अब.
बहुत अँधेरा देखा
दिया एक जलाओ अब..
३-११-२०१०
***

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