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गुरुवार, 24 नवंबर 2022

मुक्तिका, शिशु गीत, नवगीत, लघुकथा, दोहा, रेलगाड़ी,

विश्ववाणी हिंदी संस्थान
समन्वयम २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष: ९४२५१ ८३२४४ ​/ ७९९९५ ५९६१८ ​
salil.sanjiv@gmail.com
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​इकाई स्थापना आमंत्रण
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विश्ववाणी हिंदी संस्थान एक स्वैच्छिक अपंजीकृत समूह है जो ​भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रचार-प्रसार तथा विकास हेतु समर्पित है। संस्था पीढ़ियों के अंतर को पाटने और नई पीढ़ी को साहित्यिक-सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने के लिए निस्वार्थ सेवाभावी रचनात्मक प्रवृत्ति संपन्न महानुभावों तथा संसाधनों को एकत्र कर विविध कार्यक्रम न लाभ न हानि के आधार पर संचालित करती है। इकाई स्थापना, पुस्तक प्रकाशन, लेखन कला सीखने, भूमिका-समीक्षा लिखवाने, विमोचन-लोकार्पण-संगोष्ठी-परिचर्चा अथवा स्व पुस्तकालय स्थापित करने हेतु संपर्क करें: salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१ ८३२४४ ​/ ७९९९५ ५९६१८।
सामयिक लघुकथाएँ
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में 'सार्थक लघुकथाएँ' शीर्षक से सहयोगाधार पर इच्छुक लघुकथाकारों की २-२ प्रतिनिधि लघुकथाएँ, चित्र, संक्षिप्त परिचय (जन्मतिथि-स्थान, माता-पिता, जीवन साथी, साहित्यिक गुरु व प्रकाशित पुस्तकों के नाम, शिक्षा, लेखन विधाएँ, अभिरुचि/आजीविका, डाक का पता, ईमेल, चलभाष क्रमांक) आदि २ पृष्ठों पर प्रकाशित होंगी। लघुकथा पर शोधपरक सामग्री भी होगी। पेपरबैक संकलन की २-२ प्रतियाँ पंजीकृत पुस्त-प्रेष्य की जाएँगी। यथोचित संपादन हेतु सहमत सहभागी मात्र ३००/- सहभागिता निधि पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com पर ईमेल करें। संपादक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' हैं। संपर्क हेतु ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com, roy.kanta@gmail.com, चलभाष ९४२५१८३२४४ । अतिरिक्त प्रतियाँ मुद्रित मूल्य से ४०% रियायत पर पैकिंग-डाक व्यय निशुल्क सहित मिलेंगी।
दोहा शतक मंजूषा
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान तथा आचार्य संजीव 'सलिल' व डॉ. साधना वर्मा के संपादन में दोहा शतक मंजूषा के ३ भाग 'दोहा-दोहा नर्मदा', 'दोहा सलिला निर्मला' तथा 'दोहा दीप्त दिनेश' का प्रकाशन कर सहयोगियों को भेजा जा चुका है। ८००/- मूल्य की ३ पुस्तकें ( ५०० से अधिक दोहे, दोहा-लेखन विधान, २५ भाषाओँ/बोलिओं में दोहे, हर रस के दोहे, अपभृंश बी हिंदी के प्रतिनिधि दोहे, तथा बहुमूल्य शोध-सामग्री) ५०% छूट पर पैकिंग-डाक व्यय निशुल्क सहित उपलब्ध हैं। इस कड़ी के भाग ४ "दोहा आशा-किरण" हेतु यथोचित सम्पादन हेतु सहमत दोहाकारों से १२० दोहे, चित्र, संक्षिप्त परिचय (जन्मतिथि-स्थान, माता-पिता, जीवन साथी, साहित्यिक गुरु व प्रकाशित पुस्तकों के नाम, शिक्षा, लेखन विधाएँ, अभिरुचि/आजीविका, डाक का पता, ईमेल, चलभाष क्रमांक आदि) ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com पर आमंत्रित हैं। नव दोहाकारों को दोहा लेखन विधान, मात्रा गणना नियम व मार्गदर्शन उपलब्ध है।
प्रतिनिधि नवगीत
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में 'प्रतिनिधि नवगीत'' शीर्षक से प्रकाशनाधीन संकलन हेतु इच्छुक नवगीतकारों से एक पृष्ठीय ८ नवगीत, चित्र, संक्षिप्त परिचय (जन्मतिथि-स्थान, माता-पिता, जीवन साथी, साहित्यिक गुरु व प्रकाशित पुस्तकों के नाम, शिक्षा, लेखन विधाएँ, अभिरुचि/आजीविका, डाक का पता, ईमेल, चलभाष क्रमांक) सहभागिता निधि ३०००/- सहित आमंत्रित है। यथोचित सम्पादन हेतु सहमत सहभागी ३०००/- सहभागिता निधि पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com को ईमेल करें। । प्रत्येक सहभागी को १५ प्रतियाँ निशुल्क उपलब्ध कराई जाएँगी जिनका विक्रय या अन्य उपयोग करने हेतु वे स्वतंत्र होंगे। ग्रन्थ में नवगीत विषयक शोधपरक उपयोगी सूचनाएँ और सामग्री संकलित की जाएगी। देशज बोलिओं व हिंदीतर भारतीय भाषाओँ के नवगीत हिंदी अनुवाद सहित भेजें।
शांति-राज स्व-पुस्तकालय योजना
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में नई पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति प्रेम तथा भारतीय संस्कारों के प्रति लगाव तभी हो सकता है जब वे बचपन से सत्साहित्य पढ़ें। इस उद्देश्य से पारिवारिक पुस्तकालय योजना आरम्भ की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत ५००/- भेजने पर निम्न में से ७००/- की पुस्तकें तथा शब्द साधना पत्रिका व् दिव्य नर्मदा पत्रिका के उपलब्ध अंक पैकिंग व डाक व्यय निशुल्क की सुविधा सहित उपलब्ध हैं। राशि अग्रिम पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com को ईमेल करें। इस योजना में पुस्तक सम्मिलित करने हेतु salil.sanjiv@gmail.com या ७९९९५५९६१८/९४२५१८३२४४ पर संपर्क करें।
पुस्तक सूची
०१. मीत मेरे कविताएँ -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/-
०२. काल है संक्रांति का गीत-नवगीत संग्रह -आचार्य संजीव 'सलिल' १५०/-
०३. कुरुक्षेत्र गाथा खंड काव्य -स्व. डी.पी.खरे -आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
०४. पहला कदम काव्य संग्रह -डॉ. अनूप निगम १००/-
०५. कदाचित काव्य संग्रह -स्व. सुभाष पांडे १२०/-
०६. Off And On -English Gazals -Dr. Anil Jain ८०/-
०७. यदा-कदा -उक्त का हिंदी काव्यानुवाद- डॉ. बाबू जोसफ-स्टीव विंसेंट ८०/-
०८. Contemporary Hindi Poetry - B.P. Mishra 'Niyaz' ३००/-
०९. महामात्य महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' ३५०/-
१०. कालजयी महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' २२५/-
११. सूतपुत्र महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' १२५/-
१२. अंतर संवाद कहानियाँ -रजनी सक्सेना २००/-
१३. दोहा-दोहा नर्मदा दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
१४. दोहा सलिला निर्मला दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
१५. दोहा दिव्य दिनेश दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा ३००/-
१६. सड़क पर गीत-नवगीत संग्रह आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
१७. The Second Thought - English Poetry - Dr .Anil Jain​ १५०/-
१८. हस्तिनापुर की बिथा कथा (बुंदेली संक्षिप्त महाभारत)- डॉ. एम. एल. खरे २५०/-
१९. शब्द वर्तमान नवगीत संग्रह - जयप्रकाश श्रीवास्तव १२०/-
२०. बुधिया लेता टोह - बसंत कुमार शर्मा - १८०/-
२१. पोखर ठोंके दावा नवगीत संग्रह - अविनाश ब्योहार १८०/-
२२. मौसम अंगार है नवगीत संग्रह - अविनाश ब्योहार १६०/-
२३. कोयल करे मुनादी नवगीत संग्रह - अविनाश ब्योहार २००/-
२४. अंधी पीसे कुत्ते खाँय व्यंग्य काव्य संग्रह - अविनाश ब्योहार १००/-
२५. काव्य मंदाकिनी काव्य संग्रह - ३२५/-
***
सॉनेट आज ● आज कह रहा जागो भाई! कल से कल की मिली विरासत कल बिन कहीं न कल हो आहत बिना बात मत भागो भाई! आज चलो सब शीश उठाकर कोई कुछ न किसी से छीने कोई न फेंके टुकड़े बीने बढ़ो साथ कर कदम मिलाकर आज मान आभार विगत का कर ले स्वागत हँस आगत का कर लेना-देना चाहत का आज बिदा हो दुख मत करना कल को आज बना श्रम करना सत्य-शिव-सुंदर भजना-वरना २३-११-२०२२ ९४२५१८३२४४ ●●● मुक्तिका
पदभार : १२१२ x ४
प्रभो! तुम्हें सदा जपूँ, कभी न भूलना मुझे।
रहूँ न काम के बिना, अकाम ही सदा रहूँ।।

न याचना, न कामना, न वासना, न क्रोध हो।
स्वदेश के लिए जिऊँ, स्वदेश के लिए मरूँ।।

ध्वजा कभी झुके नहीं, पताकिनी रुके नहीं।
न शत्रु एक शेष हो, सुमित्र के लिए जिऊँ।।

न आम आदमी कभी दुखी रहे, सुखी रहे।
न खास का गुलाम हो, हताश मैं कभी रहूँ।।

अमीर है वही न जो, गरीब से घृणा करे।
न दर्द दूँ कभी, मिटा सकूँ जरा तभी तरूँ।।

स्वधर्म को तजूँ नहीं, अधर्म मैं वरूँ नहीं।
कुरीत से सदा बचूँ, अनीत मैं नहीं करूँ।।

प्रभो! कृपा बनी रहे, क्षमा करो, दया करो।
न पाप हो; न शाप दो, न भाव भक्ति मैं तजूँ।।
२४-११-२०२२
***
दोहा और रेलगाड़ी
*
बीते दिन फुटपाथ पर, प्लेटफॉर्म पर रात
ट्रेन लेट है प्रीत की, बतला रहा प्रभात
*
बदल गया है वक़्त अब, छुकछुक गाड़ी गोल
इंजिन दिखे न भाप का, रहा नहीं कुछ मोल
*
भोर दुपहरी सांझ या, पूनम-'मावस रात
काम करे निष्काम रह, इंजिन बिन व्याघात
*
'स्टेशन आ रहा है', क्यों कहते इंसान?
आते-जाते आप वे, जगह नहीं गतिमान
*
चलें 'रेल' पर गाड़ियाँ, कहते 'आई रेल'
आती-जाती 'ट्रेन' है, बात न कर बेमेल
*
डब्बे में घुस सके जो, थाम किसी का हाथ
बैठ गए चाहें नहीं, दूजा बैठे साथ
*
तीसमारखाँ बन करें, बिना टिकिट जो सैर
टिकिट निरीक्षक पकड़ता, रहे न उनकी खैर
*
दर्जन भर करते विदा, किसी एक को व्यर्थ
भीड़ बढ़ाते अकारण, करते अर्थ-अनर्थ
*
ट्रेन छूटने तक नहीं चढ़ते, करते गप्प
चढ़ें दौड़ गिरते फिसल, प्लॉटफॉर्म पर धप्प
*
सुविधा का उपयोग कर, रखिए स्वच्छ; न तोड़
बारी आने दीजिए, करें न नाहक होड़
*
कभी नहीं वह खाइए, जो देता अनजान
खिला नशीली वस्तु वह, लूटे धन-सामान
*
चेहरा रखिए ढाँककर, स्वच्छ हमेशा हाथ
दूरी रखिए हमेशा, ऊँचा रखिए माथ
*
२३-११-२०२०
***
मुक्तक
मुख पुस्तक मुख को पढ़ने का ग्यान दे
क्या कपाल में लिखा दिखा वरदान दे
शान न रहती सदा मुझे मत ईश्वर दे
शुभाशीष दे, स्नेह, मान जा दान दे
***
नवगीत
.
बसर ज़िन्दगी हो रही है
सड़क पर.
.
बजी ढोलकी
गूंज सोहर की सुन लो
टपरिया में सपने
महलों के बुन लो
दुत्कार सहता
बचपन बिचारा
सिसक, चुप रहे
खुद कन्हैया सड़क पर
.
लत्ता लपेटे
छिपा तन-बदन को
आसें न बुझती
समर्पित तपन को
फ़ान्से निबल को
सबल अट्टहासी
कुचली तितलिया मरी हैं
सड़क पर
.
मछली-मछेरा
मगर से घिरे हैं
जबां हौसले
चल, रपटकर गिरे हैं
भँवर लहरियों को
गुपचुप फ़न्साए
लव हो रहा है
ज़िहादी सड़क पर
.
कुचल गिट्टियों को
ठठाता है रोलर
दबा मिट्टियों में
विहँसता है रोकर
कालिख मनों में
डामल से ज्यादा
धुआँ उड़ उड़ाता
प्रदूषण सड़क पर
२४-११-२०१७
***
नवगीत महोत्सव लखनऊ के पूर्ण होने पर
एक रचना:
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
*
दूर डाल पर बैठे पंछी
नीड़ छोड़ मिलने आये हैं
कलरव, चें-चें, टें-टें, कुहू
गीत नये फिर गुंजाये हैं
कुछ परंपरा,कुछ नवीनता
कुछ अनगढ़पन,कुछ प्रवीणता
कुछ मीठा,कुछ खट्टा-तीता
शीत-गरम, अब-भावी-बीता
ॐ-व्योम का योग सनातन
खूब सुहाना मीत पर्व यह
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
*
सुख-दुःख, राग-द्वेष बिसराकर
नव आशा-दाने बिखराकर
बोयें-काटें नेह-फसल मिल
ह्रदय-कमल भी जाएँ कुछ खिल
आखर-सबद, अंतरा-मुखड़ा
सुख थोड़ा सा, थोड़ा दुखड़ा
अपनी-अपनी राम कहानी
समय-परिस्थिति में अनुमानी
कलम-सिपाही ह्रदय बसायें
चिर समृद्ध हो रीत, पर्व यह
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
*
मैं-तुम आकर हम बन पायें
मतभेदों को विहँस पचायें
कथ्य शिल्प रस भाव शैलियाँ
चिंतन-मणि से भरी थैलियाँ
नव कोंपल, नव पल्लव सरसे
नव-रस मेघा गरजे-बरसे
आत्म-प्रशंसा-मोह छोड़कर
परनिंदा को पीठ दिखाकर
नये-नये आयाम छू रहे
मना रहे हैं प्रीत-पर्व यह
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
२४-११-२०१५
***
लघुकथा:
बुद्धिजीवी और बहस
संजीव
*
'आप बताते हैं कि बचपन में चौपाल पर रोज जाते थे और वहाँ बहुत कुछ सीखने को मिलता था। क्या वहाँ पर ट्यूटर आते थे?'
'नहीं बेटा! वहाँ कुछ सयाने लोग आते थे जिनकी बातें बाकी सभी लोग सुनते-समझते और उनसे पूछते भी थे।'
'अच्छा, तो वहाँ टी. वी. की तरह बहस और आरोप भी लगते होंगे?'
'नहीं, ऐसा तो कभी नहीं होता था।'
'यह कैसे हो सकता है? लोग हों, वह भी बुद्धिजीवी और बहस न हो... आप गप्प तो नहीं मार रहे?'
दादा समझाते रहे पर पोता संतुष्ट न हो सका।
*
***
मुक्तिका
देख जंगल
कहाँ मंगल?
हर तरफ है
सिर्फ दंगल
याद आते
बहुत हंगल
स्नेह पर हो
बाँध नंगल
भू मिटाकर
चलो मंगल
***
नवगीत:
दादी को ही नहीं
गाय को भी भाती हो धूप
तुम बिन नहीं सवेरा होता
गली उनींदी ही रहती है
सूरज फसल नेह की बोता
ठंडी मन ही मन दहती है
ओसारे पर बैठी
अम्मा फटक रहीं है सूप
हित-अनहित के बीच खड़ी
बँटवारे की दीवार
शाख प्यार की हरिया-झाँके
दीवारों के पार
भौजी चलीं मटकती, तसला
लेकर दृश्य अनूप
तेल मला दादी के, बैठी
देखूँ किसकी राह?
कहाँ छबीला जिसने पाली
मन में मेरी चाह
पहना गया मुँदरिया बनकर
प्रेमनगर का भूप
***
नवगीत:
अड़े खड़े हो
न राह रोको
यहाँ न झाँको
वहाँ न ताको
न उसको घूरो
न इसको देखो
परे हटो भी
न व्यर्थ टोको
इसे बुलाओ
उसे बताओ
न राज अपना
कभी बताओ
न फ़िक्र पालो
न भाड़ झोंको
२३-११-२०१४
***
शिशु गीत सलिला : 3
*
21. नाना
मम्मी के पापा नाना,
खूब लुटाते हम पर प्यार।
जब भी वे घर आते हैं-
हम भी करते बहुत दुलार।।
खूब खिलौने लाते हैं,
मेरा मन बहलाते हैं।
नाना बाँहों में लेकर-
झूला मुझे झुलाते हैं।।
*
22. नानी -1
कहतीं रोज कहानी हैं,
माँ की माँ ही नानी हैं।
हर मुश्किल हल कर लेतीं-
सचमुच बहुत सयानी हैं।।
*
23. नानी-2
नानी जी के गोरे बाल,
धीमी-धीमी उनकी चाल।
दाँत ले गए क्या चूहे-
झुर्रीवाली क्यों है खाल?
चश्मा रखतीं नाक पर,
देखें उससे झाँक कर।
कैसे बुन लेतीं स्वेटर?
लम्बा-छोटा आँककर।।
*
24. चाचा
चाचा पापा के भाई,
हमको लगते हैं अच्छे।
रहें बड़ों सँग, लगें बड़े-
बच्चों में लगते बच्चे।।
चाचा बच्चों संग खेलें,
सबके सौ नखरे झेलें।
जो बच्चा थक जाता -
झट से गोदी में ले लें।।
*
25. बुआ
प्यारी लगतीं मुझे बुआ,
मुझे न कुछ हो- करें दुआ।
पराई बहिना पापा की-
पाला घर में हरा सुआ।।
चना-मिर्च उसको देतीं
मुझे खिलातीं मालपुआ।
*
26.मामा
मामा मुझको मन भाते,
माँ से राखी बँधवाते।
सब बच्चों को बैठकर
गप्प मारते-बतियाते।।
हम आपस में झगड़ें तो-
भाईचारा करवाते।
मुझे कार में बिठलाते-
सैर दूर तक करवाते।।
*
27. मौसी
मौसी माँ जैसी लगती,
मुझको गोद उठा हँसती।
ढोलक खूब बजाती है,
केसर-खीर खिलाती है।
*
28. दोस्त
मुझसे मिलने आये दोस्त,
आकर गले लगाये दोस्त।
खेल खेलते हम जी भर-
मेरे मन को भाये दोस्त।।
*
29. सुबह
सुबह हुई अँधियारा भागा,
हुआ उजाला भाई।
'उठो, न सो' गोदी ले माँ ने
निंदिया दूर भगाई।।
गाय रंभाई, चिड़िया चहकी,
हवा बही सुखदाई।
धूप गुनगुनी हँसकर बोली:
मुँह धो आओ भाई।।
*
30. सूरज
आसमान में आया सूरज,
सबके मन को भाया सूरज।
लाल-लाल आकाश हो गया-
देख सुबह मुस्काया सूरज।।
डरकर भाग गयी है ठंडी
आँख दिखा गरमाया सूरज।
रात-अँधेरे से डर लगता
घर जाकर सुस्ताया सूरज।।
२३.११.२०१२
***
मुक्तिका:
जीवन की जय गाएँ हम..
*
जीवन की जय गाएँ हम..
सुख-दुःख मिल सह जाएँ हम..
*
नेह नर्मदा में प्रति पल-
लहर-लहर लहराएँ हम..
*
बाधा-संकट-अड़चन से
जूझ-जीत मुस्काएँ हम..
*
गिरने से क्यों कहोडरें?,
उठ-बढ़ मंजिल पाएँ हम..
*
जब जो जैसा उचित लगे.
अपने स्वर में गाएँ हम..
*
चुपड़ी चाह न औरों की
अपनी रूखी खाएँ हम..
*
दुःख-पीड़ा को मौन सहें.
सुख बाँटें हर्षाएँ हम..
*
तम को पी, बन दीप जलें.
दीपावली मनाएँ हम..
*
लगन-परिश्रम-कोशिश की
जय-जयकार गुंजाएँ हम..
*
पीड़ित के आँसू पोछें
हिम्मत दे, बहलाएँ हम..
*
अमिय बाँट, विष कंठ धरें.
नीलकंठ बन जाएँ हम..
***
लीक से हटकर एक प्रयोग:
मुक्तिका:
*
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है.
कहा धरती ने यूँ नभ से, न क्यों सूरज उगाता है??
*
न सूरज-चाँद की गलती, निशा-ऊषा न दोषी हैं.
प्रभाकर हो या रजनीचर, सभी को दिल नचाता है..
*
न दिल ये बिल चुकाता है, न ठगता या ठगाता है.
लिया दिल देके दिल, सौदा नगद कर मुस्कुराता है.
*
करा सौदा खरा जिसने, जो जीता वो सिकंदर है.
क्यों कीमत तू अदा करता है?, क्यों तू सिर कटाता है??
*
यहाँ जो सिर कटाता है, कटाये- हम तो नेता हैं.
हमारा शौक- अपने मुल्क को ही बेच-खाता है..
*
करें क्यों मुल्क की चिंता?, सकल दुनिया हमारी है..
है बंटाढार इंसां चाँद औ' मंगल पे जाता है..
*
न मंगल अब कभी जंगल में कर पाओगे ये सच है.
जहाँ भी पग रखे इंसान उसको बेच-खाता है..
*
न खाना और ना पानी, मगर बढ़ती है जनसँख्या.
जलाकर रोम नीरो सिर्फ बंसी ही बजाता है..
*
बजी बंसी तो सारा जग, करेगा रासलीला भी.
कोई दामन फँसाता है, कोई दामन बचाता है..
*
लगे दामन पे कोई दाग, तो चिंता न कुछ करना.
बताता रोज विज्ञापन, इन्हें कैसे छुड़ाता है??
*
छुड़ाना पिंड यारों से, नहीं आसां तनिक यारों.
सभी यह जानते हैं, यार ही चूना लगाता है..
*
लगाता है अगर चूना, तो कत्था भी लगाता है.
लपेटा पान का पत्ता, हमें खाता-खिलाता है..
*
खिलाना और खाना ही हमारी सभ्यता- मानो.
मगर ईमानदारी का, हमें अभिनय दिखाता है..
*
किया अभिनय न गर तो सत्य जानेगा जमाना यह.
कोई कीमत अदा हो हर बशर सच को छिपाता है..
*
छिपाता है, दिखाता है, दिखाता है, छिपाता है.
बचाकर आँख टंगड़ी मार, खुद को खुद गिराता है..
*
गिराता क्या?, उठाता क्या?, फंसाता क्या?, बचाता क्या??
अजब इंसान चूहे खाए सौ, फिर हज को जाता है..
*
न जाता है, न जायेंगा, महज धमकायेगा तुमको.
कोई सत्ता बचाता है, कमीशन कोई खाता है..
*
कमीशन बिन न जीवन में, मजा आता है सच मानो.
कोई रिश्ता निभाता है, कोई ठेंगा बताता है..
*
कमाना है, कमाना है, कमाना है, कमाना है.
कमीना कहना है?, कह लो, 'सलिल' फिर भी कमाता है..
२३-११-२०१०
***

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