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शनिवार, 1 मई 2021

मुक्तिका


मुक्तिका
*
परमपिता ने भेंट दी, देह धरोहर मान
स्वच्छ रखें सत्कारिए, बनिए मीत सुजान
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मन में तन का वास है, तन में मन का वास
मन की गति है असीमित, तन सीमित पहचान
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तन को मन सामर्थ्य दे, मन को तन आकार
पूरक; प्रतिद्वंदी नहीं, जीव धरोहर जान
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मन के साधे तन सधे, तन साधे मन साध
दोनों साधे योगकर, पूर्ण बने इंसान
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मन का मनका फेर ले, तन का मनका छोड़
तभी झलक दिख सकेगी, उनकी जो भगवान
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संजीव
१-५-२०२०
९४२५१८३२४४

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