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गुरुवार, 13 मई 2021

नवगीत

नवगीत:
छोड़ दें थोड़ा...
संजीव 'सलिल'
* *
जोड़ा बहुत,
छोड़ दें थोड़ा...
*
चार कमाना, एक बाँटना
जो बेहतर हो वही छाँटना
मँझधारों-भँवरों से बचना-
बिसरे तन्नक घाट-बाट ना
यही सिखाया परंपरा ने
जुत तांगें में
बनकर घोड़ा...
*
जब-जब अंतर्मुखी हुए हो
तब एकाकी दुखी हुए हो
मायावी दुनिया का यह सच
बहिर्मुखी हो सुखी हुए हो
पाठ पढ़ाया पराsपरा ने
कुंभकार ने
रच-घट फोड़ा...
*
मेघाच्छादित आसमान सच
सूर्य छिपा ऊषा से लुक-बच
चैन न लेने हवा दे रही 
मेघ बिचारा थकता है नच 
पुरवैया ने
मारा कोड़ा...
*
१३-५-२०१२ 

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