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सोमवार, 3 मई 2021

दो दुम का दोहा

दोहा सलिला 
मन में क्या किससे कहें?, कौन सुनेगा बात?
सुनकर समझेगा 'सलिल', अब न रहे हालात
*
देख रहे हैं तमाशा, अब अपने ही लोग.
ऋण ऋण मिल ऋण ही रहें, कैसा है दुर्योग?
*
जब जिसने जो कह दिया, बोला सच्ची बात
सच न कहीं है अगर तो, सच दोषी कर घात
*
दो दुम का दोहा
*
एक दूसरे को चलो,
दें हम दोनों दोष.
मिल-जुल लूटें देश को,
दिखला झूठा रोष.
लोग संतोष करेंगे
हमारा कोष भरेंगे
*
राजनीति में नीति का,
कहीं न किंचित काम.
निज प्रशस्ति कर आप मुख,
रहो बढ़ाते दाम.
लोग बिलखें या रोएँ
काँध पर तुमको ढोएँ
*

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