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शुक्रवार, 21 मई 2021

दोहा, घनाक्षरी

 दोहा

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प्राची से होती प्रगट, खोल कक्ष का द्वार.
अलस्सुबह ऊषा पुलक, गुपचुप झाँक-निहार..
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मिले अकेलापन कभी, खुद से खुद कर भेंट
'सलिल' व्यर्थ बिखराव को, होकर मौन समेट
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रक्त कमल दल मध्य है, मुक्ता मणि रद-पंक्ति
आप आप पर रीझते, नयन गहें भव-मुक्ति
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स्वर्णहार ले आओ तो, विहँस कंठ में धार
पहना दूँ पल में तुम्हें, झट बाँहों का हार
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तेल कान में डालकर, बैठे सत्तासीन
कौन सुधारे देश को, सब स्वार्थों में लीन
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सूपे जैसे नख लिये, हुई सुपनखा निंद्य
सूपे जैसे कान ले, गणपति हुए अनिंद्य
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रूप नहीं गुण देखते, जो- वे हैं मतिमान
सुनें सतासत कान पर, दें न असत पर ध्यान
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जो जन कच्चे कान के, उनसे रहें सतर्क
अफवाहों पर भरोसा, करें- न मानें तर्क
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कान खड़े कर सुन रहा, जो न समय की बात
कान बंद कर जो रहा, दोनों की है मात
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छवि देखें मुख चन्द्र की, कर्ण फूल के साथ
शतदल पाटल मध्य ज्यों, देख मुग्ध शशिनाथ
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आन गाँव का कनफटा, लगता जोगी सिद्ध
कौन बताये कब कहाँ, रहा मोह में बिद्ध
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कनबहरी करिए नहीं, अवसर जाता चूक
व्यर्थ विवादों की दवा, लेकिन यही अचूक
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कान खींचना ही नहीं, भूलों का उपचार
मार्ग प्रदर्शन भी करें, तब हो बेडा पार
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कान कटे जिसके लगे, श्रीयुत भी श्री हीन
नकटी शूर्पनखा लगे, नहीं श्रेष्ठ अति दीन
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आँखें चश्मा हीन हों, अगर नहीं हों कान
कान पकड़ चश्मा सजे, मगर न घटता मान
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कान-नाक से जुड़ा है, नाज़ुक नाड़ी-तन्त्र
छेद-कीलते विज्ञ जन, स्वस्थ्य रहे तन-यंत्र
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कान मकान दूकान से, बढ़ते क्रिया-कलाप
नहीं एक भी हो अगर, जीवन बने विलाप
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कान न हों तो सुन सकें, हम कैसे आवाज?
हो न सके संवाद तो, रुक जाएँ जग-काज
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कर्ण न हो तो श्रवण, रण, ज्यामिति शोभाहीन
कर्ण-शूल बेचैन कर, अमन चैन ले छीन
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कान न भरिये किसी के, मत तोड़ें विश्वास
कान-दान मत कीजिए, पायेंगे संत्रास
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कान कतरना चाहती, खुद को स्याना मान
अपने ही माँ-बाप के, 'सलिल' आज सन्तान
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वाद-विवाद किये बिना, करते चुप सहयोग
कान धीर-गंभीर पर, नहीं चाहते शोर
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घनाक्षरी : नाक
संजीव
नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है।
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है।।
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें।
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें।।
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ राह निकालें।
नाक नकेल भी डाल सखे, न कटे जंजाल तो नाक़ चढ़ा लें।।
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