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मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

नवगीत

नवगीत  
छंद लुगाई है गरीब की 
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छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई 

जिसका जब मन चाहे छेड़े 
ताने मारे, आँख तरेरे 
लय; गति-यति की समझ न लेकिन 
कहे सात ले ले अब फेरे 
कैसे अपनी जान बचाए? 
जान पडी सांसत में भाई
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई

कलम पकड़ कल लिखना सीखा 
मठाधीश बन आज अकड़ते 
ताल ठोंकते मुख पोथी पर 
जो दिख जाए; उससे भिड़ते 
छंद बिलखते हैं अनाथ से 
कैसे अपनी जान बचाये 
इधर कूप उस ओर है खाई 
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई

यह नवगीती पत्थर मारे 
वह तेवरिया लट्ठ भाँजता 
सजल अजल बन चीर हर रही
तुक्कड़ निज मरजाद लाँघता 
जाँघ दिखाता कुटिल समीक्षक 
बचना चाहे मति बौराई 
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई
***
संजीव 
३-१२-२०१९ 

७९९९५५९६१८

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