सरस्वती स्तवन
वीरेंद्र आस्तिक
जन्म - १५ जुलाई १९४७, रूरवाहार, कानपूर, उत्तर प्रदेश।
आत्मज - स्व. रामकुमारी - स्व. घनश्याम सिंह सेंगर, स्वतंत्रता सत्याग्रही।
शिक्षा - एम.ए. हिंदी।
संप्रति - स्वतंत्र लेखन।
प्रकाशन - गीत-ग़ज़ल परछाईं के पाँव, गीत संग्रह - आनंद तेरी हार है, तारीखों के हस्ताक्षर, आकाश तो जीने नाहने देता, दिन क्या बुरे थे, गीत अपने ही सुनें।
संपादन - समीक्षा धार पर हम १-२, कई पत्रिकाएँ।
उपलब्धि - धरर पर हम एम.ए. उत्तरार्ध बड़ोदा विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में।
संपर्क - एल ६० गंगा विहार, कानपूर २०८०१०।
चलभाष - ९४१५४७४७५५, ईमेल vsastik@gmail.com ।
*
मातु कृपा कर दे
अँधियारा घिरने से पहले
दृग दीया कर दे
देखा तेज सभी में तेरा
सबके वंदन में हिय मेरा
मेरे ह्रदय-चक्षु में अपनी
दुनिया माँ कर दे
ज्ञान-तुला सा यदि मैं पाता
नाप-तौलकर शब्द लुटाता
खाली कोष पड़ा शब्दों का
भर रत्नाकर कर दे
सात सुरों का ज्ञाता होकर
कंठ न गा पाया मीठा स्वर
मातु! आठवाँ स्वर अधरों पर
करुणा का धार दे
वीरेंद्र आस्तिक
जन्म - १५ जुलाई १९४७, रूरवाहार, कानपूर, उत्तर प्रदेश।
आत्मज - स्व. रामकुमारी - स्व. घनश्याम सिंह सेंगर, स्वतंत्रता सत्याग्रही।
शिक्षा - एम.ए. हिंदी।
संप्रति - स्वतंत्र लेखन।
प्रकाशन - गीत-ग़ज़ल परछाईं के पाँव, गीत संग्रह - आनंद तेरी हार है, तारीखों के हस्ताक्षर, आकाश तो जीने नाहने देता, दिन क्या बुरे थे, गीत अपने ही सुनें।
संपादन - समीक्षा धार पर हम १-२, कई पत्रिकाएँ।
उपलब्धि - धरर पर हम एम.ए. उत्तरार्ध बड़ोदा विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में।
संपर्क - एल ६० गंगा विहार, कानपूर २०८०१०।
चलभाष - ९४१५४७४७५५, ईमेल vsastik@gmail.com ।
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मातु कृपा कर दे
अँधियारा घिरने से पहले
दृग दीया कर दे
देखा तेज सभी में तेरा
सबके वंदन में हिय मेरा
मेरे ह्रदय-चक्षु में अपनी
दुनिया माँ कर दे
ज्ञान-तुला सा यदि मैं पाता
नाप-तौलकर शब्द लुटाता
खाली कोष पड़ा शब्दों का
भर रत्नाकर कर दे
सात सुरों का ज्ञाता होकर
कंठ न गा पाया मीठा स्वर
मातु! आठवाँ स्वर अधरों पर
करुणा का धार दे
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