एक रचना
*
हम जो कहते
हम जो करते
वही ठीक है मानो
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जंगल में जनतंत्र तभी
जब तंत्र बन सके राजा।
जन की जान रखे मुट्ठी में
पीट बजाये बाजा।
शिक्षालय हो या कार्यालय
कभी शीश मत तानो
*
लोकतंत्र में जान लोक की
तंत्र जब रुचे ले ले।
जन प्रतिनिधि ऐय्याश लोक की
इज्जत से हँस खेले।
मत विरोध कर रहो समर्पित
सेवा में सुख जानो
*
प्रजा तंत्र में प्रजा सराहे
किस्मत अन्न उगाये।
तंत्र कोठियों में भर बेचे
दो के बीस बनाये।
अफसरशाही की जय बोलो
उन्हें ईश पहचानो
*
गण पर चलती गन को पूजो
भव से तुम्हें उबारे।
धन्य झुपड़िया राजमार्ग हित
प्रभु यदि तोड़ उखाड़े।
फैक्ट्री तान सेठ जी कृषकों
तारें सुयश बखानो
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संजीव
१८-१२-२०१९
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