कुल पेज दृश्य

बुधवार, 3 जनवरी 2018

miktak

कला संगम:
मुक्तक
नृत्य-गायन वन्दना है, प्रार्थना है, अर्चना है 
मत इसे तुम बेचना परमात्म की यह साधना है 
मर्त्य को क्यों करो अर्पित, ईश को अर्पित रहे यह 
राग है, वैराग है, अनुराग कि शुभ कामना है 
***
आस का विश्वास का हम मिल नया सूरज उगाएँ
दूरियों को दूर कर दें, हाथ हाथों से मिलाएँ
ताल के संग झूम लें हम, नाद प्राणों में बसाएँ-
पूर्ण हों हम द्वैत को कर दूर, हिल-मिल नाच-गाएँ
***
नाद-ताल में, ताल नाद में, रास लास में, लास रास में
भाव-भूमि पर, भूमि भाव पर, हास पीर में, पीर हास में
बिंदु सिंधु मिल रेखा वर्तुल, प्रीत-रीत मिल, मीत! गीत बन
खिल महकेंगे, महक खिलेंगे, नव प्रभात में, नव उजास में
***
चंचल कान्हा, चपल राधिका, नाद-ताल सम, नाच नचे
गंग-जमुन सम लहर-लहर रसलीन, न सुध-बुध द्वैत तजे
ब्रम्ह-जीव सम, हाँ-ना, ना हाँ, देखें सुर-नर वेणु बजे
नूपुर पग, पग-नूपुर, छूम छन, वर अद्वैत न तनिक लजे
***
३-१-२०१७
[श्री वीरेंद्र सिद्धराज के नृत्य पर प्रतिक्रिया]

कोई टिप्पणी नहीं: