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सोमवार, 3 अगस्त 2015

navgeet

नवगीत   :
संजीव 
*
दहशत की दीवार पर 
रेंग रहे हैं लोग 
शांति व्यवस्था को हुए
हैं कैंसर सम रोग
*
मक्खी देख प्रचार की
जिव्हा लपलपा भाग
चाह रहे हैं गप्प से
लपकें सबका भाग
जान-बूझकर देश का
लूट बिगाड़ें भाग
साध्य रहा इनको सदा
अपना निज यश-भोग
जा बैठे हैं शीर्ष पर
सचमुच यह दुर्योग
दहशत की दीवार पर
रेंग रहे हैं लोग
शांति व्यवस्था को हुए
हैं कैंसर सम रोग
*
मकड़ी जैसे बुन रही
दहशतगर्दी जाल
पैसा जिनको साध्य वे
साथ जुड़ें बन काल
दोषी को हो दण्ड तो
करते व्यर्थ बवाल
न्याय कड़ा हो, शीघ्र हो
'सलिल' सुखद संयोग
जन विरोध से बंद हो
यह प्रचार-उद्योग
दहशत की दीवार पर
रेंग रहे हैं लोग
शांति व्यवस्था को हुए
हैं कैंसर सम रोग
*
छात्रवृत्ति-व्यापम रचें
नित्य नेता इतिहास
खाल लपेटे शेर की
नेता खाता घास
झंडा-पंडा कोई हो
सब रिश्वत के दास
लोकतंत्र का कर रहे
निठुर-क्रूर उपहास
जन-शोषण-आतंक मिल
करते हैं सम भोग
जनगण आहत -प्रताड़ित
हर चेहरे पर सोग
दहशत की दीवार पर
रेंग रहे हैं लोग
शांति व्यवस्था को हुए
हैं कैंसर सम रोग
*

1 टिप्पणी:

Rhea Jain ने कहा…

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