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मंगलवार, 11 अगस्त 2015

muktika

मुक्तिका:
मापनी: 212 212 212 212
छंद: महादैशिक जातीय, तगंत प्लवंगम
तुकांत (काफ़िआ): आ
पदांत (रदीफ़): चाहिये
बह्र: फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
*
बोलना छोड़िए मौन हो सोचिए
बागबां कौन हो मौन हो सोचिए

रौंदते जो रहे तितलियों को सदा
रोकना है उन्हें मौन हो सोचिए

बोलते-बोलते भौंकने वे लगे
सांसदी क्यों चुने हो मौन हो सोचिए

आस का, प्यास का है हमें डर नहीं
त्रास का नाश हो मौन हो सोचिए

देह को चाहते, पूजते, भोगते
खुद खुदी चुक गये मौन हो सोचिए

मंदिरों में तलाशा जिसे ना मिला
वो मिला आत्म में ही छिपा सोचिए

छोड़ संजीवनी खा रहे संखिया
मौत अंजाम हो मौन हो सोचिए
***

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