नजरिया अपना अपना
*
नन्दिता मेहता
मंजिल की मुझको तलब नहीं
मुझे रास्तों से ही प्यार है
न कुबूल मुझको वो ज़िन्दगी
जिसके सफ़र का सिरा भी है
मुझे रास्तों से ही प्यार है
न कुबूल मुझको वो ज़िन्दगी
जिसके सफ़र का सिरा भी है
*
संजीव वर्मा 'सलिल'
रास्तों से न प्यार कर,
जाते कहीं न रास्ते
करते सफर पग तय सदा,
बस मंजिलों के वास्ते.
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