समाचारः बाड़्मेर में अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता समिति की बैठक में राजस्थानी को हिंदी से अधिक पुरानी भाषा होने के आधार पर राष्ट्र्भाषा बनाने की माँग की गयी है. मेरा नजरिया निम्न है. आप भी अपनी बात कहें-
१. राजस्थानी, कन्नौजी, बॄज, अवधी, मगही, भोजपुरी, अंगिका, बज्जिका और अन्य शताधिक भाषायें आधुनिक हिंदी के पहले प्रचलित रही हैं. क्या इन सबको राष्ट्र्भाषा बनाया जा सकता है?
२. राजस्थानी कौन सी भाषा है? राजस्थान में मारवाड़ी, मेवाड़ी, शेखावाटी, हाड़ौती आदि सौ से अधिक भाषायें बोली जा रही हैं. क्या इन सबका मिश्रित रूप राजस्थानी है?
३. हिंदी ने कभी किसी भाषा का विरोध नहीं किया. अंग्रेजी का भी नहीं. हिन्दी की अपनी विशेषतायें हैं. राजस्थानी को हिंदी का स्थान दिया जाए तो क्या देश के अन्य राज्य उसे मान लेंगे? क्या विश्व स्तर पर राजस्थानी भारत की भाषा के तौर पर स्वीकार्य होगी?
जैसे घर में दादी सास, चाची सास, सास आदि के रहने पर भी बहू अधिक सक्रिय होती है वैसे ही हिन्दी अपने पहले की सब भाषाओं का सम्मान करते हुए भी व्यवहार में अधिक लायी जा रही है.
४. निस्संदेह हिन्दी ने शब्द संपदा सभी पूर्व भाषाओं से ग्रहण की
है.
५. आज आवश्यकता हिन्दी में सभी भाषाओं के साहित्य को जोड़्ने की है.
६. म. गांधी ने क्रमशः भारत की सभी भाषाओं को देवनागरी में लिखे जाने का सुझाव दिया था. राजनीतिक स्वार्थों ने उनके निधन की बाद ऐसा नहीं होने दिया और भाषाई विवाद पैदा किये. अब भी ऐसा हो सके तो सभी भारतीय भाषायें संस्कृत की प्रृष्ठ भूमि और समान शब्द संपदा के कारण समझी जा सकेंगी.
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 30 जुलाई 2014
राष्ट्र्भाषा हिन्दी
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