हरिशंकर परसाई अपनी मिसाल आप, न भूतो न भविष्यति …
ताली पीटना
महावीर और बुद्ध ऐसे संत हुए, जिन्होने कहा - ''सोचो। शंका करो। प्रश्न करो। तब सत्य को पहचानो। जरूरी नहीं कि वही शाश्वत सत्य है, जो कभी किसीने लिख दिया था।''
ये संत वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न थे और जब तक इन संतोंके विचारों का प्रभाव रहा तब तक विज्ञान की उन्नति भारतमें हुई। भौतिक और रासायनिक विज्ञान की शोध हुई। चिकित्सा विज्ञान की शोध हुई। नागार्जुन हुए, बाणभट्ट हुए।
इसके बाद लगभग डेढ़ शताब्दी में भारतके बड़े से बड़े दिमागने यही काम किया कि सोचते रहे - ईश्वर एक हैं या दो हैं, या अनेक हैं। हैं तो सूक्ष्म हैं या स्थूल। आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है। इसके साथ ही केवल काव्य रचना। विज्ञान नदारद।
गल्ला कम तौलेंगे, मगर द्वैतवाद, अद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद, मुक्ति और पुनर्जन्म के बारे में बड़े परेशान रहेंगे। कपड़ा कम नापेंगे, दाम ज्यादा लेंगे, पर पंच आभूषण के बारे में बड़े जाग्रत रहेंगे।
झूठे आध्यात्म ने इस देश को दुनिया में तारीफ दिलवाई, पर मनुष्य को मारा और हर डाला..
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