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रविवार, 28 अगस्त 2011

दोहा सलिला: दोहा के रंग यमक के सँग ---संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा के रंग यमक के सँग
संजीव 'सलिल'
*
मत सकाम- निष्काम कर, आपने सारे काम.
मत सब धर्मों का यही, अधिक न अच्छा काम..
*
सालों सालों से रहे, जीजा लेते माल.
सालों सालों-भगिनी ने, घर में किया धमाल..
*
हमने फूल कहा उन्हें, समझ रहे वे फूल.
दिन दूने निशि चौगुने, नित्य रहे वे फूल..
*
मद न चढ़े पद का तनिक, मदन न मोहे मीत.
हम दन-दन दुश्मन कुचल, रचें देश पर गीत..
*
घूस खोखली नींव कर, देती गिरा मकान.
घूस खोखली नींव कर, मिटा रही इंसान..
*
हमने पूछा: बतायें, है कैसा आकार?
तुरत बताने वे लगे, हमें निकट आ कार..
*
पिया पिया है प्रेम का, अमृत हुई मैं धन्य.
क्या तुम भी कर सके हो, मुझसे प्रीति अनन्य?
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

3 टिप्‍पणियां:

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

यमक अलंकार से सुसज्जित अद्भुत कृति| साहित्य को समृद्ध करने का यह क्रम जारी रहे आदरणीय|

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी,
द्विअर्थी शब्दों से अलंकृत दोहों के शब्द कौशल और अबाध गति से इस श्रंखला में लम्बे समय से एक से एक बढ़ कर दोहों का प्रस्तुतीकरण निश्चय आपकी अद्वितीय प्रतिभा का द्योतक है |
आपकी कला को पुनः नमन !
सादर
कमल

santosh bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
द्विअर्थी दोहों को पढ़ कर दंग रह गयी ,
आपके कला कौशल को नमन !!!
संतोष भाऊवाला