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शनिवार, 6 अगस्त 2011

बाल गीत: बरसे पानी --- संजीव 'सलिल'

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बरसे पानी
संजीव 'सलिल'
*
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.

बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.

वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.

छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.

कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.

काश कहीं झूला मिल जाता,
सुनते-गाते कजरी-बानी.

'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
*

18 टिप्‍पणियां:

- navincchaturvedi@gmail.com ने कहा…

वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.

छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.

वाह सलील जी क्या खूब बालगीत है, बचपन में घुमा लाये आप तो
- उद्धृत पाठ दिखाएं -
साभार
नवीन सी चतुर्वेदी
मुम्बई

मैं यहाँ हूँ : ठाले बैठे
साहित्यिक आयोजन : समस्या पूर्ति
दूसरे कवि / शायर : वातायन
मेरी रोजी रोटी : http;//vensys.biz

"रुनझुन" ने कहा…

"रुनझुन" ने आपकी पोस्ट " बाल गीत: बरसे पानी --- संजीव 'सलिल... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

अच्छी लगी ये कविता....

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

बहुत खूब सलिल जी !

'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
बहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति........!

साधुवाद !
दीप्ति

---Sat, 6/8/11

shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
मधुर बाल गीत |
बधाई
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल

2011/8/6

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी,
वर्षा पर सुन्दर बाल गीत के लिये बधाई |
विशेष
कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.

कमल

2011/8/6

- santosh.bhauwala@gmail.com ने कहा…

वाह आचार्य जी बहुत खूब ,बालगीत है
सादर संतोष भाऊवाला
2011/8/6

- pdayal_shrivastava@yahoo.com ने कहा…

--- On Sat, 8/6/11

बहुत खूब

satish mapatpuri ने कहा…

satish mapatpuri commented on sanjiv verma 'salil''s blog post 'बाल गीत: बरसे पानी --संजीव 'सलिल''

'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
साधुवाद स्वीकार करें.

shar_j_n ✆ ekavita ने कहा…

७ अगस्त
आदरणीय आचार्यजी,

ये बहुत मज़ेदार:

वे क्या जानें बहुतई अच्छा --- 'बहुतई' पढ़ के तो मज़ा आ गया!
लगे खेलना हमको पानी.

छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.
सादर शार्दुला

vandana ने कहा…

काश कहीं झूला मिल जाता,
सुनते-गाते कजरी-बानी.

'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.

बहुत अच्छे भाव

sanjiv 'salil' ने कहा…

धन्यवाद.
करूँ वंदना भोर हुलसकर
संझा मन आरती लुभानी.

NEELKAMAL VAISHNAW ने कहा…

नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें

मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........

आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"

इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
वहा से मेरे अन्य ब्लाग लिखा है वह क्लिक करके दुसरे ब्लागों पर भी जा सकते है धन्यवाद्

MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......



NEELKAMAL VAISHNAW

sanjiv 'salil' ने कहा…

धन्यवाद. यह लेख नहीं बाल गीत या बाल कविता है.

आशा जोगळेकर : ने कहा…

वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.

छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.

कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.

वाह बेहद पसंद आई ये कविता ।

आशा जोगळेकर

sanjiv 'salil' ने कहा…

आशा जी आभार आपका, आशा नयी जगाई.
गीत कर्म को समझ रहे पाठक, लिख अब भी भाई..

mahendra srivastava ने कहा…

mahendra srivastava ✆ srivastava.mahendra@yahoo.co.in द्वारा blogger.bounces.google.com

बहुत सुंदर,

veerubhai1947@gmail.com ने कहा…

veerubhai ✆
कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.
बाल मन की सुन्दर प्रस्तुति .

neha ✆ ने कहा…

neha :

bahut hi acchi rachna..