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बुधवार, 26 अगस्त 2009

गीत: अमन dalal

रिश्तो के इस शहर में,
जो हम संवर रहे हैं..
भावो की हर छुवन में,
अब हम सिहर रहे हैं....….रिश्तो के इस शहर में,

राहे-गुजर बड़ी थी,
गमो की इक झडी थी,
के मन ही मन में खिलने
अब हम ठहर रहे हैं,
रिश्तो को इस शहर में,
जो हम सँवर रहे हैं...

ये फूल और ये कलियाँ,
ये गाँव और गलियां,
न जाने क्यों यहाँ पर,
हैं कहते हमको छलियाँ,
पर कुछ कहो यहाँ की,
अब हम खबर रहे हैं....... रिश्तो के इस शहर में


हैं फिर से माँ की लोरी,
रेशम की सुर्ख डोरी,
बचपन के सारे वादे,
जो सच हैं वो बता दें,
बनते बिगड़ते कैसे,
ये हम सुधर रहे हैं..... रिश्तो के इस शहर में,


जब जाओं तुम वहां पर,
मैं गा रहा जहाँ पर,
ये वादा बस निभाना
तुम सबको ये बताना,
सपनो के इस नगर में,
हम कैसे रह रहे हैं......
रिश्तो को इस शहर में,
जो हम सँवर रहे हैं...