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रविवार, 30 अगस्त 2009

भजन: बहे राम रस गंगा -स्व. शान्ति देवी वर्मा

बहे राम रस गंगा


बहे राम रस गंगा,
करो रे मन सतसंगा.
मन को होत अनंदा,
करो रे मन सतसंगा...

राम नाम झूले में झूली,
दुनिया के दुःख झंझट भूलो.
हो जावे मन चंगा,
करो रे मन सतसंगा...

राम भजन से दुःख मिट जाते,
झूठे नाते तनिक न भाते.
बहे भाव की गंगा,
करो रे मन सतसंगा...

नयन राम की छवि बसाये,
रसना प्रभुजी के गुण गाये.
तजो व्यर्थ का फंदा,
करो रे मन सतसंगा...

राम नाव, पतवार रामजी,
सांसों के सिंगार रामजी.
'शान्ति' रहे मन रंगा,
करो रे मन सतसंगा...


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2 टिप्‍पणियां:

archana shrivastav, raipur ने कहा…

मनभावन भजन

sonal saxena, bngluru ने कहा…

करो रे मन सतसंगा... अब तो ऐसी लोक रचनाएँ दुर्लभ होने लगी हैं. इनका आनंद ही अनूठा है.