गीतिका :
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
आदमी ही भला मेरा गर करेंगे.
बदी करने से तारे भी डरेंगे.
बिना मतलब मदद कर दे किसी की
दुआ के फूल तुझ पर तब झरेंगे.
कलम थामे, न जो कहते हकीकत
समय से पहले ही बेबस मरेंगे.
नरमदा नेह की जो नहाते हैं
बिना तारे किसी के खुद तरेंगे.
न रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते
सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 30 अगस्त 2009
गीतिका : आचार्य संजीव 'सलिल'

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6 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना !!
August 28, 2009 9:45 PM
कलम थामे, न जो कहते हकीकत ..समय से पहले ही बेबस मरेंगे...सही है.
न रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते..सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे.
आप यूँ ही सतत बहते लिखते रहें..शुभकामनायें..!!
August 29, 2009 7:10 AM
prabhavpoorn rachna.
दिव्य नर्मदा एक अभिनव प्रयास है. नेट पर हिंदी के प्रसार में इसकी भूमिका सराहनीय रहेगी. असीम शुभकामनायें.
डॉ. विवेक सक्सेना
नरसिंगपुर
9424762713
आप सबको धन्यवाद.
man bhyee.
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