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रविवार, 7 जून 2020

त्रिपदिक जनकछंदी नवगीत

अंतरजाल पर पहली बार :
त्रिपदिक जनकछंदी नवगीत :
नेह नर्मदा तीर पर
- संजीव 'सलिल'
*
नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन कर धीर धर,
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
कौन उदासी-विरागी,
विकल किनारे पर खड़ा?
किसका पथ चुप जोहता?
निष्क्रिय, मौन, हताश है.
या दिलजला निराश है?
जलती आग पलाश है.
जब पीड़ा बनती भँवर,
खींचे तुझको केंद्र पर,
रुक मत घेरा पार कर...

नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन कर धीर धर
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
सुन पंछी का मशविरा,
मेघदूत जाता फिरा-
'सलिल'-धार बनकर गिरा.
शांति दग्ध उर को मिली.
मुरझाई कलिका खिली.
शिला दूरियों की हिली.
मन्दिर में गूँजा गजर,
निष्ठा के सम्मिलित स्वर,
'हे माँ! सब पर दया कर...

नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन कर धीर धर
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
पग आये पौधे लिये,
ज्यों नव आशा के दिये.
नर्तित थे हुलसित हिये.
सिकता कण लख नाचते.
कलकल ध्वनि सुन झूमते.
पर्ण कथा नव बाँचते.
बम्बुलिया के स्वर मधुर,
पग मादल की थाप पर,
लिखें कथा नव थिरक कर...

नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन कर धीर धर
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com

बाल कविता : तुहिना-दादी

बाल कविता :
तुहिना-दादी
संजीव 'सलिल'
*
तुहिना नन्हीं खेल कूदती.
खुशियाँ रोज लुटाती है.
मुस्काये तो फूल बरसते-
सबके मन को भाती है.
बात करे जब भी तुतलाकर
बोले कोयल सी बोली.
ठुमक-ठुमक चलती सब रीझें
बाल परी कितनी भोली.
दादी खों-खों करतीं, रोकें-
टोंकें सबको : 'जल्द उठो.
हुआ सवेरा अब मत सोओ-
काम बहुत हैं, मिलो-जुटो.
काँटें रुकते नहीं घड़ी के
आगे बढ़ते जायेंगे.
जो न करेंगे काम समय पर
जीवन भर पछतायेंगे.'
तुहिना आये तो दादी जी
राम नाम भी जातीं भूल.
कैयां लेकर, लेंय बलैयां
झूठ-मूठ जाएँ स्कूल.
यह रूठे तो मना लाये वह
वह गाये तो यह नाचे.
दादी-गुड्डो, गुड्डो-दादी
उल्टी पुस्तक ले बाँचें.
***
७-६-२०१०

कथा-गीत : बरगद

एक रचना
*
कथा-गीत:
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...
है याद कभी मैं अंकुर था.
दो पल्लव लिए लजाता था.
ऊँचे वृक्षों को देख-देख-
मैं खुद पर ही शर्माता था.
धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ.
शाखें फैलीं, पंछी आये.
कुछ जल्दी छोड़ गए मुझको-
कुछ बना घोंसला रह पाये.
मेरे कोटर में साँप एक
आ बसा हुआ मैं बहुत दुखी.
चिड़ियों के अंडे खाता था-
ले गया सपेरा, किया सुखी.
वानर आ करते कूद-फांद.
झकझोर डालियाँ मस्ताते.
बच्चे आकर झूला झूलें-
सावन में कजरी थे गाते.
रातों को लगती पंचायत.
उसमें आते थे बड़े-बड़े.
लेकिन वे मन के छोटे थे-
झगड़े ही करते सदा खड़े.
कोमल कंठी ललनाएँ आ
बन्ना-बन्नी गाया करतीं.
मागरमाटी पर कर प्रणाम-
माटी लेकर जाया करतीं.
मैं सबको देता आशीषें.
सबको दुलराया करता था.
सबके सुख-दुःख का साथी था-
सबके सँग जीता-मरता था.
है काल बली, सब बदल गया.
कुछ गाँव छोड़कर शहर गए.
कुछ राजनीति में डूब गए-
घोलते फिजां में ज़हर गए.
जंगल काटे, पर्वत खोदे.
सब ताल-तलैयाँ पूर दिए.
मेरे भी दुर्दिन आये हैं-
मानव मस्ती में चूर हुए.
अब टूट-गिर रहीं शाखाएँ.
गर्मी, जाड़ा, बरसातें भी.
जाने क्यों खुशी नहीं देते?
नव मौसम आते-जाते भी.
बीती यादों के साथ-साथ.
अब भी हँसकर जी लेता हूँ.
हर राही को छाया देता-
गुपचुप आँसू पी लेता हूँ.
भूले रस्ता तो रखो याद
मैं इसकी सरहद हूँ प्यारों.
दम-ख़म अब भी कुछ बाकी है-
मैं बूढा बरगद हूँ यारों..

शनिवार, 6 जून 2020

साक्षात्कार -श्रीमती सविता तिवारी

साक्षात्कार बाल साहित्य पर:
संजीव वर्मा 'सलिल'
30 मई 2017 ·
ला लौरा मौक़ा मारीशस में कार्यरत पत्रकार श्रीमती सविता तिवारी से एक दूर वार्ता
- सर नमस्ते
नमस्ते
= नमस्कार.
- आप बाल कविताएं काफी लिखते हैं
बाल साहित्य और बाल मनोविज्ञान पर आपके क्या विचार हैं?
= जितने लम्बे बाल उतना बढ़िया बाल साहित्यकार 😄😄😄😄
😂😂😇
अच्छा, यह आज के परिदृष्य पर टिप्पणी है
= बाल साहित्य के दो प्रकार है. १. विविध आयु वर्ग के बाल पाठकों के लिए और उनके द्वारा लिखा जा रहा साहित्य २. बाल साहित्य पर हो रहे शोध कार्य.
- मुझे इस विषय पर एक रेडियो कार्यक्रम करना है सोचा आपका विचार जान लेती.
= बाल साहित्य के अंतर्गत शिशु साहित्य, बाल साहित्य तथा किशोर साहित्य का वर्गीकरण आयु के आधार पर और ग्रामीण तथा नगरीय बाल साहित्य का वर्गीकरण परिवेश के आधार पर किया जा सकता है.
आप प्रश्न करें तो मैं उत्तर दूँ या अपनी ओर से ही कहूँ?
- बाल मन को बास साहित्य के जरिए कैसे प्रभावित किया जा सकता है?
= बाल मन पर प्रभाव छोड़ने के लिए रचनाकार को स्वयं बच्चे के स्तर पर उतार कर सोचना और लिखना होगा. जब वह बच्चा थी तो क्या प्रश्न उठते थे उसके मन में? उसका शब्द भण्डार कितना था? तदनुसार शब्द चयन कर कठिन बात को सरल से सरल रूप में रोचक बनाकर प्रस्तुत करना होगा.
बच्चे पर उसके स्वजनों के बाद सर्वाधिक प्रभाव साहित्य का ही होता है. खेद है कि आजकल साहित्य का स्थान दूरदर्शन और चलभाषिक एप ले रहे हैं.
- मॉरिशस जैस छोटेे देश में जहां हिदी बोलने का ही संकट है वहां इसे बच्चों में बढ़ावा देने के क्या उपाय हैं?
= जो सबका हित कर सके, कहें उसे साहित्य
तम पी जग उजियार दे, जो वह है आदित्य.
घर में नित्य बोली जा रही भाषा ही बच्चे की मातृभाषा होती है. माता, पिता, भाई, बहिनों, नौकरों तथा अतिथियों द्वारा बोले जाते शब्द और उनका प्रभाव बालम के मस्तिष्क पर अंकित होकर उसकी भाषा बनाते हैं. भारत जैस एदेश में जहाँ अंग्रेजी बोलना सामाजिक प्रतिष्ठा की पहचान है वहां बच्चे पर नर्सरी राइम के रूप में अपरिचित भाषा थोपा जाना उस पर मानसिक अत्याचार है.
मारीशस क्या भारत में भी यह संकट है. जैसे-जैसे अभिभावक मानसिक गुलामी और अंग्रेजों को श्रेष्ठ मानने की मानसिकता से मुक्त होंगे वैसे-वैसे बच्चे को उसकी वास्तविक मातृभाषा मिलती जाएगी.
इसके लिए एक जरूरत यह भी है कि मातृभाषा में रोजगार और व्यवसाय देने की सामर्थ्य हो. अभिभावक अंग्रेजी इसलिए सिखाता है कि उसके माध्यम से आजीविका के बेहतर अवसर मिल सकते हैं.
- सर! बहुत धन्यवाद आपके समय के लिए. आप सुनिएगा मेरा कार्यक्रम. मैं लिंक भेजुंगी आपको 3 june ko aayga.
अवश्य. शुभकामनाएँ. प्रणाम.
= सदा प्रसन्न रहें. भारत आयें तो मेरे पास जबलपुर भी पधारें.
वार्तालाप संवाद समाप्त |

स्वास्थ्य दोहावली अमृत फल है आँवला

स्वास्थ्य दोहावली
*
अमृत फल है आँवला, कर त्रिदोष का नाश।
आयुवृद्धि कर; स्वस्थ रख, कहता छू आकाश।।
*
नहा आँवला नीर से, रखें चर्म को नर्म।
पौधा रोपें; तरु बना, समझें पूजा-मर्म।।
*
अमित विटामिन सी लिए, करता तेज दिमाग।
नेत्र-ज्योति में वृद्धि हो, उपजा नव अनुराग।।
*
रक्त-शुद्धि-संचार कर, पाचन करता ठीक।
ओज-कांति को बढ़ाकर, नई बनाता लीक।।
*
जठर-अग्नि; मंदाग्नि में, फँकें आँवला चूर्ण।
शहद और घी लें मिला, भोजन पचता पूर्ण।।
*
भुनी पत्तियाँ फाँक लें, यदि मेथी के साथ।
दस्त बंद हो जाएंगे, नहीं दुखेगा माथ।।
*
फुला आँवला-चूर्ण को, आँख धोइए रोज।
त्रिफला मधु-घी खाइए, तिनका भी लें खोज।।
*
अाँतों में छाले अगर, मत हों अाप निराश।
शहद आँवला रस पिएँ, मिटे रोग का पाश।।
*
चूर्ण आँवला फाँकिए, नित भोजन के बाद।
आमाशय बेरोग हो, मिले भोज्य में स्वाद।।
*
खैरसार मुलहठी सँग, लघु इलायची कूट।
मिली अाँवला गोलियाँ, कंठ-रोग लें लूट।।
*
बढ़े पित्त-कफ; वमन हो, मत घबराएँ आप।
शहद-आँवला रस पाएँ, शक्ति सकेगी व्याप।।
*
5.6.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com

दोहा सलिला आम खास का खास है

दोहा सलिला
आम खास का खास है......
संजीव 'सलिल'
*
आम खास का खास है, खास आम का आम.
'सलिल' दाम दे आम ले, गुठली ले बेदाम..
आम न जो वह खास है, खास न जो वह आम.
आम खास है, खास है आम, नहीं बेनाम..
पन्हा अमावट आमरस, अमकलियाँ अमचूर.
चटखारे ले चाटिये, मजा मिले भरपूर..
दर्प न सहता है तनिक, बहुत विनत है आम.
अच्छे-अच्छों के करे. खट्टे दाँत- सलाम..
छककर खाएं अचार, या मधुर मुरब्बा आम .
पेड़ा बरफी कलौंजी, स्वाद अमोल-अदाम..
लंगड़ा, हापुस, दशहरी, कलमी चिनाबदाम.
सिंदूरी, नीलमपरी, चुसना आम ललाम..
चौसा बैगनपरी खा, चाहे हो जो दाम.
'सलिल' आम अनमोल है, सोच न- खर्च छदाम..
तोताचश्म न आम है, तोतापरी सुनाम.
चंचु सदृश दो नोक औ', तोते जैसा चाम..
हुआ मलीहाबाद का, सारे जग में नाम.
अमराई में विचरिये, खाकर मीठे आम..
लाल बसंती हरा या, पीत रंग निष्काम.
बढ़ता फलता मौन हो, सहे ग्रीष्म की घाम..
आम्र रसाल अमिय फल, अमिया जिसके नाम.
चढ़े देवफल भोग में, हो न विधाता वाम..
'सलिल' आम के आम ले, गुठली के भी दाम.
उदर रोग की दवा है, कोठा रहे न जाम..
चाटी अमिया बहू ने, भला करो हे राम!.
सासू जी नत सर खड़ीं, गृह मंदिर सुर-धाम..
*******
१४-६-२०११

दोहा दुनिया

दोहा दुनिया
शब्द विशेष :बाग़ बगीचा वाटिका, उपवन, उद्यान
*
गार्डन-गार्डन हार्ट है, बाग़-बाग़ दिल आज.
बगिया में कलिका खिली, भ्रमर बजाए साज..
*
बागीचा जंगल हुआ, देख-भाल बिन मौन.
उपवन के दिल में बसी, विहँस वाटिका कौन?
*
ओशो ने उद्यान में, पाई दिव्य प्रतीति.
अब तक खाली हाथ हम, निभा रहे हैं रीति..
*
ठिठक बगीचा देखता, पुलक हाथ ले हाथ.
कभी अधर धर चूमता, कभी लगाता माथ..
*
गुलशन-गुलशन गुल खिले, देखें लोग विदग्ध.
खिला रहा गुल कौन दल, जनता पूछे दग्ध..
***
६-६-२०१८, ७९९९५५९६१८

छंद हरिगीतिका

एक प्रयोग-
छंद हरिगीतिका 
चलता न बस, मिलता न जस, तपकर विहँस, सच मान रे
इंसान ही भगवान है, नहिं ज्ञात तू  वह जान रे 
उगता सतत, रवि मौन रह, कब चाहता, युग दाम दे
तप तू करे, संयम धरे, कब माँगता, मनु नाम दे
कल्ले बढ़ें, हिल-मिल चढ़ें, नित नव छुएँ, ऊँचाइयाँ
जंगल सजे, घाटी हँसे, गिरि पर न हों तन्हाइयाँ
परिमल बिखर, छू ले शिखर, धरती सिहर, जय-जय कहे
फल्ली खटर-खट-खट बजे, करतल सहित दूरी तजे
जब तक न मानव काट ले या गिरा दे तूफ़ान आ
तब तक खिला रह धूप - आतप सह, धरा-जंगल सजा
जयगान तेरा करेंगे कवि, पूर्णिमा के संग मिल
नव कल्पना की अल्पना लख ज्योत्सना जाएगी खिल

***
६-६-२०१६ 

गीत - शिरीष

एक गीत -
बाँहों में भर शिरीष
जरा मुस्कुराइए
*
धरती है अगन-कुंड, ये
फूलों से लदा है
लू-लपट सह रहा है पर
न पथ से हटा है
ये बाल-हठ दिखा रहा
न बात मानता-
भ्रमरों का नहीं आज से
सदियों से सगा है
चाहों में पा शिरीष
मिलन गीत गाइए
*
संसद की खड़खड़ाहटें
सुन बज रही फली
सरहद पे हड़बड़ाहटें
बंदूक भी चली
पत्तों ने तालियाँ बजाईं
झूमता पवन-
चिड़ियों की चहचहाहटें
लो फिर खिली कली
राहों पे पा शिरीष
भीत भूल जाइए
*
अवधूत है या भूत
नहीं डर से डर रहा
जड़ जमा कर जमीन में
आदम से लड़ रहा
तू एक काट, सौ उगाऊँ
ले रहा शपथ-
संघर्षशील है, नहीं
बिन मौत रह रहा
दाहों में पसीना बहा
तो चहचहाइए
***

गीतिका छंद

छंद सलिला:
गीतिका छंद
संजीव
*
छंद लक्षण: प्रति पद २६ मात्रा, यति १४-१२, पदांत लघु गुरु
लक्षण छंद:
लोक-राशि गति-यति भू-नभ , साथ-साथ ही रहते
लघु-गुरु गहकर हाथ- अंत , गीतिका छंद कहते
उदाहरण:
१. चौपालों में सूनापन , खेत-मेड में झगड़े
उनकी जय-जय होती जो , धन-बल में हैं तगड़े
खोट न अपनी देखें , बतला थका आइना
कोई फर्क नहीं पड़ता , अगड़े हों या पिछड़े
२. आइए, फरमाइए भी , ह्रदय में जो बात है
क्या पता कल जीत किसकी , और किसकी मात है
झेलिये धीरज धरे रह , मौन जो हालात है
एक सा रहता समय कब? , रात लाती प्रात है
३. सियासत ने कर दिया है , विरासत से दूर क्यों?
हिमाकत ने कर दिया है , अजाने मजबूर यों
विपक्षी परदेशियों से , अधिक लगते दूर हैं
दलों की दलदल न दल दे, आँख रहते सूर हैं
*
६-६-२०१४
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

शुक्रवार, 5 जून 2020

संस्मरण मेजर जनरल एस.पी.एस. नारंग

संस्मरण 
मेजर जनरल एस.पी.एस. नारंग (सेवानिवृत्त)
*
हाल ही में मुझे व्हाट्स ऐप पर एक मित्र ने, अङ्ग्रेज़ी भाषा में लिखित एक वृतांत, अग्रेषित किया। दिल छू लेने वाले इस प्रसंग ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं तुरंत इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद करने में जुट गया। यह वृतांत ‘मेजर जनरल एस.पी.एस. नारंग (सेवानिवृत्त) का जीवंत अनुभव है। इस मानवतावादी, पवित्र और प्रेरक अनुभव को साझा करने के लिए, आदरणीय नारंग साहब का बहुत-बहुत धन्यवाद और अनंत: साधुवाद। मेरे हिन्दी अनुवाद में अवश्य ही शब्दों या वाक्यों के उचित चयन या घटना के यथार्थ चित्रण में बहुत सी कमियाँ हो सकती है, इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। तथापि इस वृतांत में अंतर्निहित ‘मानव-धर्म’ के महान संदेश को हिन्दी भाषा के सुधि पाठकों तक पहुंचाना ही मेरे अनुवाद का उद्देश्य है। सादर: दयाराम वर्मा, ई-5, कम्फर्ट गार्डन, चूना भट्टी, कोलार रोड, भोपाल (मध्यप्रदेश) 462016;दिनांक: 04 जून, 2019
लंगर का धर्म
“पिछले नवंबर में, मैं देहरादून से चंडीगढ़ के लिए ड्राइव कर रहा था - चार घंटे की मनोहारी यात्रा में ‘पांवटा साहिब’ गुरुद्वारे के दर्शन का अतिरिक्त आकर्षण भी था। मुझे स्वयं और अपनी कार को कुछ आराम देने के लिए रास्ते में ब्रेक लेना ही था और भला ऐसे में गुरुघर में प्रवेश करने से बेहतर क्या हो सकता था। सुखदायक कीर्तन के अलावा, यहाँ जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों की भीड़, एक साथ फर्श पर बैठ कर लंगर का स्वाद ग्रहण करती है। कुछ लोग यहाँ छककर भोजन करते हैं क्योंकि अपनी भूख को तृप्त करने का उनके पास कोई और साधन नहीं है।

उन सब लोगों के साथ बैठकर भोजन करना एक अवर्णनीय आध्यात्मिक ऊँचाई देता है। और यह अनुभव करने के लिए, किसी एक धर्म विशेष से संबंधित होना आवश्यक नहीं है। मैंने भी, लंगर का आनंद लिया और अपनी आगे की यात्रा के लिए गुरुघर से बाहर निकल। गुरुद्वारे के सामने एक खोखे (छोटी दुकान) पर सजावटी सामान पर निगाह पड़ी तो वहाँ खरीदने के लिए रूक गया। तभी, मैंने एक चाय विक्रेता के सामने गुर्जरों के एक परिवार को (मुस्लिम खानाबदोशों को, जो अर्ध- पहाड़ों में मवेशियों को बेचते और दूध बेचते का धंधा करते हैं) देखा जो किसी खास विमर्श में मशगूल थे। परिवार में एक बुजुर्ग दंपति, दो मध्यम आयु वर्ग के जोड़े और चार बच्चे शामिल थे। तीन महिलाओं ने आंशिक रूप से पर्दा किया हुआ था। पहली नजर में ही वे बेहद गरीब प्रतीत हो रहे थे। उनमें सबसे बड़े सज्जन (शायद पिता) सिक्कों और कुछ टूटे हुए नोटों की गिनती कर रहे थे।
निस्संदेह: मुद्दा यह था कि वे कितना खरीद सकते थे। उन्होंने तीन कप चाय और चार समोसे (लोकप्रिय भारतीय स्नैक) मांगे। साहस जुटाते हुए, मैंने उनसे पूछा, "क्या आप सब खाना खायेंगे?" वे एक दूसरे को आश्चर्य, आशंका और एक आहत-आत्म-सम्मान के मिले जुले भाव से ताकने लगे। एकाएक सन्नाटा छा गया। कभी-कभी, मौन बहुत प्रखर होता है। बच्चों की मासूम आँखों में आशा की किरण जगी। बुजुर्ग व्यक्ति ने संभलकर उत्तर दिया, "हम पहले ही खा चुके हैं।” लेकिन बच्चों की ओर से तुरंत प्रतिरोधी जबाब आया "कहाँ खाया है सुबह से कुछ भी? अब्बा!"
यह सुन, मेरे सीने में हैरानी के साथ-साथ, एक मंद दर्द भरी टीस उठी। तीन पुरुषों की रूखी नजरों और महिलाओं की नम आँखों ने बिना बोले ही बहुत कुछ कह डाला था। मैंने थोड़ा जोर देकर कहा कि वे मेरे साथ आएं। वे थोड़ा सहमे हुए थे, तथापि मेरे आग्रह पर अनिच्छापूर्वक सहमत हो गए और हमने गुरुद्वारे में प्रवेश किया।
‘जोरा घर’ (सभी गुरुद्वारों में जूता जमा करने का कमरा) में उनके जूते जमा करवाते हुए मुझे असीम आत्मिक संतुष्टि का भान हो रहा था। गुरुद्वारे के वास्तुशिल्प को देख बुजुर्ग चकित हो रहे थे हालांकि, उनकी आंखों में भय का एक भाव स्पष्ट परिलक्षित था। संभवत: वे पहली मर्तबा एक गैर-इस्लामिक पूजा स्थल में प्रवेश कर रहे थे। लेकिन मासूम बच्चों का सम्पूर्ण ध्यान तो भोजन पर केंद्रित था।
कुछ तमाशबीनों ने अपनी आँखों के कोने से उन पर विचित्र नजर डाली। लेकिन, मैंने बच्चों का सहज मनोभाव अपनाते हुए उनका अनुसरण किया जो गुरुद्वारे की सरल परंपरा के मुताबिक उत्साहपूर्वक, अपने सर को ढांपने के लिए, विभिन्न रंगों के कपड़े चुन रहे थे। सबसे बड़े सदस्य को छोड़कर, सभी मेरे साथ थे, और मेरा अनुकरण करते हुए उन्होने शीश नवाया और माथे से फर्श को छूआ। कई अन्य लोगों ने देखा होगा, जैसा कि मैंने किया, इन बच्चों ने पूर्ण श्रद्धा के साथ इस अनुष्ठान को संपादित किया। उन्होने भाईजी से प्रसाद लिया, भाईजी ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें और अधिक की आवश्यकता है तो बच्चों ने खुशी-खुशी सिर हिलाया।
हमने लंगर हॉल में प्रवेश किया और मैं बच्चों को खाने की थाली लेने के लिए साथ ले गया। उन्होंने इसे भी सहर्ष किया, जैसे कि केवल बच्चे कर सकते हैं। हमारे सामने एक नव-विवाहित जोड़ा बैठा था। दुल्हन ने, जिसकी लाल चूड़ियाँ उसका आकर्षण बढ़ा रही थी, बच्चों को अपने पास बैठने के लिए कहा। दो बच्चे उनके मध्य में बैठ गए। जिस तरह से दुल्हन ने बच्चों को अपनत्व दिया, मैं कह सकता हूँ कि आगे चलकर वह एक प्यार करने वाली माँ साबित होगी।
लंगर (भोजन) परोसा गया, और चूंकि मैंने पहले ही खा लिया था, फिर भी अपने मेहमानों को सहज करने के लिए थोड़ा और खाया। उनकी खुशी देखते ही बनती थी। शुरुआती आशंका समाप्त हो जाने के बाद उन्होने भरपेट खाया। आनंद के उन पलों का वर्णन करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं थे।
हम लगभग भोजन समाप्त करने ही वाले थे जब एक बुजुर्ग सिख और बिखरी दाढ़ी वाले एक युवा (शायद मुख्य-ग्रंथी और सेवादार-सहायक) मेरी ओर देखकर चिल्लाये। मैं एकाएक भयभीत हो उठा और मुझसे भी ज्यादा, मेरे मेहमान डर गए थे। हाथ जोड़ते हुए मैं उनके पास पहुँचा।
उन्होंने पूछा, "इन्हानू तुसी अंदर ले के आए हो”? (क्या तुम इन्हे अंदर लेकर आये हो?)। मैंने हामी में सिर हिलाया।
उनका अगला सवाल मुझे चकित कर गया, “तुसी हर दिन पथ करदे हो”? (क्या आप प्रतिदिन अरदास (प्रार्थना) करते हैं?)। मैं लगभग “हाँ” कहने ही वाला था, लेकिन यह तो झूठ होगा, इसलिए अत्यंत विनम्रता के साथ मैंने कहा "नहीं"।
मेरी इस बात पर, मुझे उनसे एक नसीहत की उम्मीद थी लेकिन उसने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया, “तुहान्नु तो कोई लोड़ ही नहीं। अज तुहान्नु सब कुछ मिल गया है जी।” (आपको तो कोई जरूरत ही नहीं है। आज आपको सब कुछ मिल गया है, जी।)।” मैं हतप्रभ था। यह सलाह थी या व्यंग्य? उन्होंने आगे कहा, “इन्हानू बाबे दे घर ल्याके ते लंगर छका के तुसी सब कुछ पा ल्या। तुहाडा धनवाद। असि धन हो गये”। (इन लोगों को गुरुघर में लाकर और लंगर करवाकर आपने सब कुछ प्राप्त कर लिया। आपका धन्यवाद। हम धन्य हुए।)
फिर, दोनों हाथ जोड़े हुए, वह बुजुर्ग दंपति के पास गया और उनसे निवेदन किया, “आप जब भी इधर आयें तो लंगर खा के जाइये। ये तो ऊपरवाले का दिया है जी।” मैंने अपने मेहमानों को लंगर हॉल से बाहर निकाला। जैसे ही हम अपने जूते लेने वाले थे, बच्चों में से एक ने कहा, "हमें और हलवा दो ना।" हम पांचों और प्रसाद पाने के लिए पुन: अंदर चले गए। अंत में, जैसे ही वे विदा होने वाले थे, बूढ़ी औरत अपने पति के पास कुछ फुसफुसाई। मैंने पूछा, "कोई बात, मियांजी?"
लगभग विनती करते हुए, बुजुर्ग ने कहा, "ये कह रही है, क्या आप के सर पर हाथ रख सकती है”? मैं झुक गया, बूढ़ी औरत ने जब मेरे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया तो उसकी आँखों में आँसू थे। मैं जैसे भावनाओं की लहर में बह निकला।
क्या यह मेरी कल्पना है, या वास्तविक है? मैं अक्सर एक मुस्लिम महिला का पवित्रता और प्रेम में लिपटा सुंदर हाथ, अपने सर पर महसूस करता हूँ।
मेजर जनरल एस.पी.एस. नारंग (सेवानिवृत्त) देहरादून।
मूल अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद : दयाराम वर्मा, भोपाल।

मुक्तिका: मुहब्बतनामा

मुक्तिका:
मुहब्बतनामा
संजीव 'सलिल'
*
'सलिल' सद्गुणों की पुजारी मुहब्बत.
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत.१.
गंगा सी पावन दुलारी मुहब्बत.
रही रूह की रहगुजारी मुहब्बत.२.
अजर है, अमर है हमारी मुहब्बत.
सितारों ने हँसकर निहारी मुहब्बत.३.
महुआ है तू महमहा री मुहब्बत.
लगा जोर से कहकहा री मुहब्बत.४.
पिया बिन मलिन है दुखारी मुहब्बत.
पिया संग सलोनी सुखारी मुहब्बत.५.
सजा माँग सोहे भ'तारी मुहब्बत.
पिला दूध मोहे म'तारी मुहब्बत.६.
नगद है, नहीं है उधारी मुहब्बत.
है शबनम औ' शोला दुधारी मुहब्बत.७.
माने न मन मनचला री मुहब्बत.
नयन-ताल में झिलमिला री मुहब्बत.८.
नहीं ब्याहता या कुमारी मुहब्बत.
है पूजा सदा सिर नवा री, मुहब्बत.९.
जवां है हमारी-तुम्हारी मुहब्बत..
सबल है, नहीं है बिचारी मुहब्बत.१०.
उजड़ती है दुनिया, बसा री मुहब्बत.
अमन-चैन थोड़ा तो ब्या री मुहब्बत.११.
सम्हल चल, उमरिया है बारी मुहब्बत.
हो शालीन, मत तमतमा री मुहब्बत.१२.
दीवाली का दीपक जला री मुहब्बत.
न बम कोई लेकिन चला री मुहब्बत.१३.
न जिस-तिस को तू सिर झुका री मुहब्बत.
जो नादां है कर दे क्षमा री मुहब्बत.१४.
जहाँ सपना कोई पला री मुहब्बत.
वहीं मन ने मन को छला री मुहब्बत.१५.
न आये कहीं जलजला री मुहब्बत.
लजा मत तनिक खिलखिला री मुहब्बत.१६.
अगर राज कोई खुला री मुहब्बत.
तो करना न कोई गिला री मुहब्बत.१७.
बनी बात काहे बिगारी मुहब्बत?
जो बिगड़ी तो क्यों ना सुधारी मुहब्बत?१८.
कभी चाँदनी में नहा री मुहब्बत.
कभी सूर्य-किरणें तहा री मुहब्बत.१९.
पहले तो कर अनसुना री मुहब्बत.
मानी को फिर ले मना री मुहब्बत.२०.
चला तीर दिल पर शिकारी मुहब्बत.
दिल माँग ले न भिखारी मुहब्बत.२१.
सजा माँग में दिल पियारी मुहब्बत.
पिया प्रेम-अमृत पिया री मुहब्बत.२२.
रचा रास बृज में रचा री मुहब्बत.
हरि न कहें कुछ बचा री मुहब्बत.२३.
लिया दिल, लिया रे लिया री मुहब्बत.
दिया दिल, दिया रे दिया, री मुहब्बत.२४.
कुर्बान तुझ पर हुआ री मुहब्बत.
काहे सारिका से सुआ री मुहब्बत.२५.
दिया दिल लुटा तो क्या बाकी बचा है?
खाते में दिल कर जमा री मुहब्बत.२६.
दुनिया है मंडी खरीदे औ' बेचे.
कहीं तेरी भी हो न बारी मुहब्बत?२७.
सभी चाहते हैं कि दर से टरे पर
किसी से गयी है न टारी मुहब्बत.२८.
बँटे पंथ, दल, देश बोली में इंसां.
बँटने न पायी है यारी-मुहब्बत.२९.
तौलो अगर रिश्तों-नातों को लोगों
तो पाओगे सबसे है भारी मुहब्बत.३०.
नफरत के काँटे करें दिल को ज़ख़्मी.
मिलें रहतें कर दुआ री मुहब्बत.३१.
कभी माँगने से भी मिलती नहीं है.
बिना माँगे मिलती उदारी मुहब्बत.३२.
अफजल को फाँसी हो, टलने न पाये.
दिखा मत तनिक भी दया री मुहब्बत.३३.
शहादत है, बलिदान है, त्याग भी है.
जो सच्ची नहीं दुनियादारी मुहब्बत.३४.
धारण किया धर्म, पद, वस्त्र, पगड़ी.
कहो कब किसी ने है धारी मुहब्बत.३५.
जला दिलजले का भले दिल न लेकिन
कभी क्या किसी ने पजारी मुहब्बत?३६.
कबीरा-शकीरा सभी तुझ पे शैदा.
हर सूं गई तू पुकारी मुहब्बत.३७.
मुहब्बत की बातें करते सभी पर
कहता न कोई है नारी मुहब्बत?३८.
तमाशा मुहब्बत का दुनिया ने देखा
मगर ना कहा है 'अ-नारी मुहब्बत.३९.
चतुरों की कब थी कमी जग में बोलो?
मगर है सदा से अनारी मुहब्बत.४०.
बहुत हो गया, वस्ल बिन ज़िंदगी क्या?
लगा दे रे काँधा दे, उठा री मुहब्बत.४१.
निभाये वफ़ा तो सभी को हो प्यारी
दगा दे तो कहिये छिनारी मुहब्बत.४२.
भरे आँख-आँसू, करे हाथ सजदा.
सुकूं दे उसे ला बिठा री मुहब्बत.४३.
नहीं आयी करके वादा कभी तू.
सच्ची है या तू लबारी मुहब्बत?४४.
महज़ खुद को देखे औ' औरों को भूले.
कभी भी न करना विकारी मुहब्बत.४५.
हुआ सो हुआ अब कभी हो न पाये.
दुनिया में फिर से निठारी मुहब्बत.४६..
कभी मान का पान तो बन न पायी.
बनी जां की गाहक सुपारी मुहब्बत.४७.
उठाते हैं आशिक हमेशा ही घाटा.
कभी दे उन्हें भी नफा री मुहब्बत.४८.
न कौरव रहे कोई कुर्सी पे बाकी.
जो सारी किसी की हो फारी मुहब्बत.४९.
कलाई की राखी, कजलियों की मिलनी.
ईदी-सिवँइया, न खारी मुहब्बत.५०.
नथ, बिंदी, बिछिया, कंगन औ' चूड़ी.
पायल औ मेंहदी, है न्यारी मुहब्बत.५१.
करे पार दरिया, पहाड़ों को खोदा.
न तू कर रही क्यों कृपा री मुहब्बत?५२.
लगे अटपटी खटपटी चटपटी जो
कहें क्या उसे हम अचारी मुहब्बत?५३.
अमन-चैन लूटा, हुई जां की दुश्मन.
हुई या खुदा! अब बला री मुहब्बत.५४.
तू है बदगुमां, बेईमां जानते हम
कभी धोखे से कर वफा री मुहब्बत.५५.
कभी ख़त-किताबत, कभी मौन आँसू.
कभी लब लरजते, पुकारी मुहब्बत.५६.
न टमटम, न इक्का, नहीं बैलगाड़ी.
बसी है शहर, चढ़के लारी मुहब्बत.५७.
मिला हाथ, मिल ले गले मुझसे अब तो
करूँ दुश्मनों को सफा री मुहब्बत.५८.
तनिक अस्मिता पर अगर आँच आये.
बनती है पल में कटारी मुहब्बत.५९.
है जिद आज की रात सैयां के हाथों.
मुझे बीड़ा दे तू खिला री मुहब्बत.६०.
न चौका, न छक्का लगाती शतक तू.
गुले-दिल खिलाती खिला री मुहब्बत.६१.
न तारे, न चंदा, नहीं चाँदनी में
ये मनुआ प्रिया में रमा री मुहब्बत.६२.
समझ -सोच कर कब किसी ने करी है?
हुई है सदा बिन विचारी मुहब्बत.६३.
खा-खा के धोखे अफ़र हम गये हैं.
कहें सब तुझे अब अफारी मुहब्बत.६४.
तुझे दिल में अपने हमेशा है पाया.
कभी मुझको दिल में तू पा री मुहब्बत.65.
अमन-चैन हो, दंगा-संकट हो चाहे
न रोके से रुकती है जारी मुहब्बत.६६.
सफर ज़िंदगी का रहा सिर्फ सफरिंग
तेरा नाम धर दूँ सफारी मुहब्बत.६७.
जिसे जो न भाता उसे वह भगाता
नहीं कोई कहता है: 'जा री मुहब्बत'.६८.
तरसती हैं आँखें झलक मिल न पाती.
पिया को प्रिया से मिला री मुहब्बत.६९.
भुलाया है खुद को, भुलाया है जग को.
नहीं रबको पल भर बिसारी मुहब्बत.७०.
सजन की, सनम की, बलम की चहेती.
करे ढाई आखर-मुखारी मुहब्बत.७१.
न लाना विरह-पल जो युग से लगेंगे.
मिलन शायिका पर सुला री मुहब्बत.७२.
उषा के कपोलों की लाली कभी है.
कभी लट निशा की है कारी मुहब्बत.७३.
मुखर, मौन, हँस, रो, चपल, शांत है अब
गयी है विरह से उबारी मुहब्बत..
न तनकी, न मनकी, न सुध है बदनकी.
कहाँ हैं प्रिया?, अब बुला री मुहब्बत.७४.
नफरत को, हिंसा, घृणा, द्वेष को भी
प्रचारा, न क्योंकर प्रचारी मुहब्बत?७५.
सातों जनम तक है नाता निभाना.
हो कुछ भी न डर, कर तयारी मुहब्बत.७६.
बसे नैन में दिल, बसे दिल में नैना.
सिखा दे उन्हें भी कला री मुहब्बत.७७.
कभी देवता की, कभी देश-भू की
अमानत है जां से भी प्यारी मुहब्बत.७८.
पिए बिन नशा क्यों मुझे हो रहा है?
है साक़ी, पियाला, कलारी मुहब्बत.७९.
हो गोकुल की बाला मही बेचती है.
करे रास लीलाविहारी मुहब्बत.८०.
हवन का धुआँ, श्लोक, कीर्तन, भजन है.
है भक्तों की नग्मानिगारी मुहब्बत.८१.
ज़माने ने इसको कभी ना सराहा.
ज़माने पे पड़ती है भारी मुहब्बत.८२.
मुहब्बत के दुश्मन सम्हल अब भी जाओ.
नहीं फूल केवल, है आरी मुहब्बत.८३.
फटेगा कलेजा न हो बदगुमां तू.
सिमट दिल में छिप जा, समा री मुहब्बत.८४.
गली है, दरीचा है, बगिया है पनघट
कुटिया-महल है अटारी मुहब्बत.८५.
पिलाया है करवा से पानी पिया ने.
तनिक सूर्य सी दमदमा री मुहब्बत.८६.
मुहब्बत मुहब्बत है, इसको न बाँटो.
तमिल न मराठी-बिहारी मुहब्बत.८७.
न खापों का डर है न बापों की चिंता.
मिटकर निभा दे तू यारी मुहब्बत.८८.
कोई कर रहा है, कोई बच रहा है.
गयी है किसी से न टारी मुहब्बत.८९.
कली फूल कांटा है तितली- भ्रमर भी
कभी घास-पत्ती है डारी मुहब्बत.९०.
महल में मरे, झोपड़ी में हो जिंदा.
हथेली पे जां, जां पे वारी मुहब्बत.९१.
लगा दाँव पर दे ये खुद को, खुदा को.
नहीं बाज आये, जुआरी मुहब्बत.९२.
मुबारक है हमको, मुबारक है तुमको.
मुबारक है सबको, पिआरी मुहब्बत.९३.
रहे भाजपाई या हो कांगरेसी
न लेकिन कभी हो सपा री मुहब्बत.९४.
पिघल दिल गया जब कभी मृगनयन ने
बहा अश्क जीभर के ढारी मुहब्बत.९५.
जो आया गया वो न कोई रहा है.
अगर हो सके तो न जा री मुहब्बत.९६.
समय लीलता जा रहा है सभी को.
समय को ही क्यों न खा री मुहब्बत?९७.
काटे अनेकों लगाया न कोई.
कर फिर धरा को हरा री मुहब्बत.९८.
नंदन न अब देवकी के रहे हैं.
न पढ़ने को मिलती अयारी मुहब्बत.९९.
शतक पर अटक मत कटक पार कर ले.
शुरू कर नयी तू ये पारी मुहब्बत.१००.
न चौके, न छक्के 'सलिल' ने लगाये.
कभी हो सचिन सी भी पारी मुहब्बत.१०१.
'सलिल' तर गया, खुद को खो बेखुदी में
हुई जब से उसपे है तारी मुहब्बत.१०२.
'सलिल' शुबह-संदेह को झाड़ फेंके.
ज़माने की खातिर बुहारी मुहब्बत.१०३.
नए मायने जिंदगी को 'सलिल' दे.
न बासी है, ताज़ा-करारी मुहब्बत.१०४.
जलाती, गलाती, मिटाती है फिर भी
लुभाती 'सलिल' को वकारी मुहब्बत.१०५.
नहीं जीतकर भी 'सलिल' जीत पायी.
नहीं हारकर भी है हारी मुहब्बत.१०६.
नहीं देह की चाह मंजिल है इसकी.
'सलिल' चाहता निर्विकारी मुहब्बत.१०७.
'सलिल'-प्रेरणा, कामना, चाहना हो.
होना न पर वंचना री मुहब्बत.१०८.
बने विश्व-वाणी ये हिन्दी हमारी.
'सलिल' की यही कामना री मुहब्बत.१०९.
ये घपले-घुटाले घटा दे, मिटा दे.
'सलिल' धूल इनको चटा री मुहब्बत.११०.
'सलिल' घेरता चीन चारों तरफ से.
बहुत सोये अब तो जगा री मुहब्बत.१११.
अगारी पिछारी से होती है भारी.
सच यह 'सलिल' को सिखा री मुहब्बत.११२.
'सलिल' कौन किसका हुआ इस जगत में?
न रह मौन, सच-सच बता री मुहब्बत.११३.
'सलिल' को न देना तू गारी मुहब्बत.
सुना गारी पंगत खिला री मुहब्बत.११४.
'सलिल' तू न हो अहंकारी मुहब्बत.
जो होना हो, हो निराकारी मुहब्बत.११५.
'सलिल' साधना वन्दना री मुहबत.
विनत प्रार्थना अर्चना री मुहब्बत.११६.
चला, चलने दे सिलसिला री मुहब्बत.
'सलिल' से गले मिल मिल-मिला री मुहब्बत.११७.
कभी मान का पान लारी मुहब्बत.
'सलिल'-हाथ छट पर खिला री मुहब्बत.११८.
छत पर कमल क्यों खिला री मुहब्बत?
'सलिल'-प्रेम का फल फला री मुहब्बत.११९.
उगा सूर्य जब तो ढला री मुहब्बत.
'सलिल' तम सघन भी टला री मुहब्बत.१२०.
'सलिल' से न कह, हो दफा री मुहब्बत.
है सबका अलग फलसफा री मुहब्बत.१२१.
लड़ाती ही रहती किला री मुहब्बत.
'सलिल' से न लेना सिला री मुहब्बत.१२२.
तनिक नैन से दे पिला री मुहब्बत.
मरते 'सलिल' को जिला री मुहब्बत.१२३.
रहे शेष धर, मत लुटा री मुहब्बत.
कल को 'सलिल' कुछ जुटा री मुहब्बत.१२४.
प्रभाकर की रौशन अटारी मुहब्बत.
कुटिया 'सलिल' की सटा री मुहब्बत.१२५.
********************************

नवगीत

नवगीत
*
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
*
तू-तू, मैं-मैं कर हम हारे
हम न मगर हो सके बेचारे
तारणहार कह रहे उनको
मत दे जिनके भाग्य सँवारे
ठगित देवयानी
भ्रम कच है
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
*
काश आँख से चश्मा उतरे
रट्टू तोता यादें बिसरे
खुली आँख देखे क्या-कैसा?
छोड़ झुनझुना रोटी कस रे!
राग न त्याज्य
विराग न शुभ है
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
*
'खुला' न खुला बंद है तब तक
तीन तलाक मिल रहे जब तक
एसिड डालो तो प्रचार हो
दूध मिले नागों को कब तक?
पत्थरबाज
न अपना कुछ है
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
*

नवगीत

नवगीत-
*
एसिड की
शीशी पर क्यों हो
नाम किसी का?
*
अल्हड, कमसिन, सपनों को
आकार मिल रहा।
अरमानों का कमल
यत्न-तालाब खिल रहा।
दिल को भायी कली
भ्रमर गुंजार करे पर-
मौसम को खिलना-हँसना
क्यों व्यर्थ खल रहा?
तेज़ाबी बारिश की जिसने
पात्र मौत का-
एसिड की
शीशी पर क्यों हो
नाम किसी का?
*
व्यक्त असहमति करना
क्या अधिकार नहीं है?
जबरन मनमानी क्या
पापाचार नहीं है?
एसिड-अपराधी को
एसिड से नहला दो-
निरपराध की पीर
तनिक स्वीकार नहीं है।
क्यों न किया अहसास-
पीड़ितों की पीड़ा का?
एसिड की
शीशी पर क्यों हो
नाम किसी का?
*
अपराधों से नहीं,
आयु का लेना-देना।
नहीं साधना स्वार्थ,
सियासत-नाव न खेना।
दया नहीं सहयोग
सतत हो, सबल बनाकर-
दण्ड करे निर्धारित
पीड़ित जन की सेना।
बंद कीजिए नाटक
खबरों की क्रीड़ा का
एसिड की
शीशी पर क्यों हो
नाम किसी का?
*
७-४-२०१४

हाइकु सलिला

हाइकु सलिला
*
वंदना करें
अंतरात्मा से मिलें
दैवत्व वरें
*
प्रार्थना उसकी
जो न खुद प्रार्थी हो
सुन ले सबकी
*
साधना फले
यदि हो लगातार
सुफल मिले
*
गीत गाइए
पर्यावरण संग
मुस्कुराइए
*
तूफानी झौंका
सहमा कुत्ता भौंका
उड़ी झोपड़ी
*

५-६-२०१६ 

शंकर छंद

छंद सलिला:
शंकर छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद - मात्रा २६ मात्रा, यति १६ - १०, पदांत गुरु लघु.
लक्षण छंद:
बम बम भोले जय शिव शंकर , गौरीपति उमेश
सोलह गुण-दस इन्द्रियपति जय , सदय हों सर्वेश
गुरु-लघु सबका अंत तुम्हीं में , तुम्हीं सबके नाथ
सुर नर असुर झुकाते प्रभु! तव , पद पद्म में माथ
उदाहरण:
१. जय-जय भारत भूमि सुपावन , मनुज को वरदान
तरसें लेने जन्म देव भी , कवि करें गुणगान
पुरवैया पछुआ मलयज , करें जीवन दान
हिमगिरि सागर रक्षक अद्भुत , हर छंद रस-खान
२. पैर जमीं पर जमा आसमां , पर कर हस्ताक्षर
कोई निरक्षर रहे न शेष , हर जन हो साक्षर
ख्वाब पाल जो अँखिया सोये , करे कर साकार
हर दिल दिल से जुड़े मिटाकर , आपसी तकरार
३.दिल की दुनिया का दौलत से , जोड़ मत संबंध
आस-प्यास का कभी हास से , हो नहीं अनुबंध
जो पाया नाकाफी कहकर , और अधिक न जोड़
तुझसे कम हो जहाँ उसीसे , करें तुलना-होड़
*********

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

तसलीस गीतिका

तसलीस गीतिका : आचार्य संजीव 'सलिल'
सूरज
*
बिना नागा निकलता है सूरज.
कभी आलस नहीं करते देखा..
तभी पाता सफलता है सूरज...
*
सुबह खिड़की से झांकता सूरज.
कह रहा तंम को जीत लूँगा मैं..
कम नहीं ख़ुद को आंकता सूरज...
*
उजाला सबको दे रहा सूरज.
कोई अपना न पराया कोई..
दुआएं सबकी ले रहा सूरज...
*

तसलीस

तसलीस 
आँख रजनी से चुराता सूरज.
बाँह में एक चाह में दूजी..
आँख ऊषा से लडाता सूरज...
*
जाल किरणों का बिछाता सूरज.
कोई अपना न पराया कोई..
सभी सोयों को जगाता सूरज..
*
भोर पूरब में सुहाता सूरज.
दोपहर देखना भी मुश्किल हो..
शाम पश्चिम को सजाता सूरज...
*
कम निष्काम हर करता सूरज.
मंजिलें नित नयी वरता सूरज..
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज...
*********
५-६-२०१० 

मुक्तिका

मुक्तिका:
अक्षर उपासक हैं....
संजीव 'सलिल'
*
*
अक्षर उपासक हैं हम गर्व हमको, शब्दों के सँग- सँग सँवर जायेंगे हम.
गीतों में, मुक्तक में, ग़ज़लों में, लेखों में, मरकर भी जिंदा रहे आयेंगे हम..
*
बुजुर्गों से पाया खज़ाना अदब का, न इसको घटायें, बढ़ा जायेंगे हम.
चादर अगर ज्यों की त्यों रह सकी तो, आखर भी ढाई सुमिर गायेंगे हम..
*
सराहो न हमको भले सामने तुम, जो झाँकोगी दिल में तो दिख जायेंगे हम.
मिलें न मिलें  किन्तु नग्मे तुम्हारे, हुस्नो-अदा के सदा गाएँगे हम..
*


गुरुवार, 4 जून 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
*
बाँचते सपने कथाएँ
विगत को कैसे भुलाएँ?
*
कहे आगत चूकना मत
जो मिले अवसर भुनाएँ
*
बात मुँह देखी करें सब
क्या सही सच कब बताएँ?
*
हमसफर-हमकदम हैं तो
श्वास-श्वासों में घुलाएँ
*
चाह निजता की विषैली
पाल दूरी मत बढ़ाएँ
*
आप बेगम क्यों न बे-गम
ख़ुशी को हमदम बनाएँ
*
धूप-छाँवी ज़िंदगी है
स्नेह-सलिला नित नहाएँ
***
[मानव जातीय छन्द]
२४-४-२०१६
सी २५६ आवास-विकास हरदोई