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शनिवार, 21 जून 2014

rekhankan:

आओ रेखांकन करें:
संजीव
*


Kaleidoscope Names- Radial Symmetry Designs


Can you see the name?  MEG 

 
My 5th & 6th grade students are creating Kaleidoscope Names.  This is a simple project but it looks really complex when it is done. We discussed radial symmetry.  The students had fun trying to discover what name was in each design when we were finished.  Some were easier than others.

Step by step:
1. Start with a 12" x 12" piece of white drawing paper.  You can make it smaller or larger but make sure it is square.

2. Fold the paper in half to create 8 equal triangles.



8 equal triangles

3. Now, in one of the triangles write your name or a word in bubble letters.  Make sure your letters touch the top and the bottom of the triangle or the words will not join together.  Leave the top and the bottom of each letter open.  Press hard with your pencil. (The name in this design is Lola.)

Make sure your word/name touches the top & bottom of the triangle.

4. Next, fold the paper in half and rub the back to transfer the words to the next triangle.  The words will be backwards and light.  I use a marker to rub the paper but a bone folder would work better if you have one.
Rubbing the image with the marker.

Lola appears in the next triangle very light. 

5. Trace over the word to make it darker.



6. Fold in half again and rub.  Then trace again.  Repeat until the entire page is covered.





Lola completed and ready for markers.
Lola completed!

शुक्रवार, 20 जून 2014

suchna: kavya sankalan

जरूरी सूचना 
-: मित्रों बड़े हर्ष के साथ आप सभी को सूचित किया जा रहा है कि आपके अपने प्रकाशन "मणिमाला प्रकाशन" लखनऊ, उत्तर प्रदेश ने "संयुक्त काव्य संकलन" "बेजोड़ बाँसुरी" नामक प्रथम संकलन पुस्तक निकालकर नये और पुराने रचनाकारों को मुख्य धारा में लाने का निर्णय लिया है, जो भी इस संकलन में छपना चाहतें हैं उनकी रचनायें सादर आमंत्रित हैं। इस संकलन में आपकी 5 से 7 चयनित रचनाओ को स्थान दिया जायेगा, जो कि आपके नाम, फोटो और समस्त जानकारी समेत छपेगी। इस संकलन हेतु आपको 1500 रूपये सहयोग राशि देनें होगें। इस संकलन की 10-10 पुस्तके आपको मुफ्त भेंट की जायेंगी और साथ में इस संकलन का भव्य लोकार्पण समारोह भी कराया जायेगा जिसमें आप अपनी प्रकाशित रचनाओ को जनता के सामने सुना सकेंगे। और साथ ही साथ ही प्रकाशन से निकलने के बाद इस संकलन के विक्रय कीमत की 10% कमीशन बतौर आपको प्रत्येक वर्ष के अन्त में सम्पूर्ण विक्रय के आधार पर वापस कर दिया जायेगा। और आगामी अंको में आपकी रचनायें विषेश छूट अथवा निःशुल्क छापी जायेंगी। . रचनायें भेजने हेतु- आपकी रचनायें मौलिक और अप्रकाशित हों। रचनायें गद्य (कहानी, लघुकथा, निबन्ध), पद्य (कविता, गीत, गजल, छन्द) में से हो सकता है। आप अपनी रचनायें kavisachingirja@gmail.com पर इमेल करें अथवा 183, अंकवारा, नरायणपुर, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश 224001 पर डाक या कोरियर कर सकतें हैं। संपादक- श्री संतोष निर्मल (लखनऊ) सह संपादक एवं संयोजक- सचिन गुप्ता "सोनू" अधिक जानकारी और रजिस्ट्रेशन हेतु तुरन्त 08400765209 पर संपर्क करें। नोट-: आप 25 जून तक रजिस्ट्रेशन करा कर अपना स्थान अवश्य सुनिश्चित कर लें।

chitrapateey gazal:

ग़ज़ल / गीत


हम ने देखी है इन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो
हम ने देखी है ...

प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक खामोशी है सुनती है कहा करती है
ना ये बुझती है ना रुकती है ना ठहरी है कहीं
नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है
सिर्फ़ एहसास है ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो
हम ने देखी है ...

मुस्कराहट सी खिली रहती है आँखों में कहीं
और पलकों पे उजाले से छुपे रहते हैं
होंठ कुछ कहते नहीं, काँपते होंठों पे मगर
कितने खामोश से अफ़साने रुके रहते हैं
सिर्फ़ एहसास है ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो
हम ने देखी है ...

chitra salila: sahityakar.



चित्र सलिला:
हिंदी साहित्य के पुरोधा 

कान्यकुब्ज कालेज १९६१ ६२ : बैठे हुए बाँए से सर्वश्री कांति मोहन अवस्थी (प्रिन्सिपल, इण्टर विभाग), पं॰छंगालाल मालवीय (अध्यक्ष, हिन्दी विभाग), पं॰ नरेन्द्र शर्मा, कविवर सुमित्रानंदन पंत, प्रिंसिपल मदनगोपाल मिश्र, भगवती चरण वर्मा, अमृतलाल नागर, लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक', डा॰ महेन्द्र नाथ मिश्र। खड़े हुए बाँए से सर्वश्री कृपाशंकर तिवारी, श्रीपाल सिंह, हरीकृष्ण शर्मा (अध्यक्ष, संसद), सत्यप्रकाश राना (प्रधानमंत्री, संसद), सतीश चन्द्र बाजपेयी, दयाशंकर दीक्षित (सभापति, हिंदी परिषद), परमिथलेश कुमार शुक्लम लाल मणि मिश्र, कु॰ प्रभा शर्मा, कु॰ आशा मेहरोत्रा 

laghukatha: rashtreey ekta -sanjiv

लघु कथा
राष्ट्रीय एकता
संजीव
*
'माँ! दो भारतीयों के तीन मत क्यों होते हैं?'
''क्यों क्या हुआ?''
'संसद और विधायिकाओं में जितने जन प्रतिनिधि होते हैं उनसे अधिक मत व्यक्त किये जाते हैं.'
''बेटा! वे अलग-अलग दलों के होते हैं न.''
'अच्छा, फिर दूरदर्शनी परिचर्चाओं में किसी बात पर सहमति क्यों नहीं बनती?'
''वहाँ बैठे वक्ता अलग-अलग विचारधाराओं के होते हैं न?''
'वे किसी और बात पर नहीं तो असहमत होने के लिये ही सहमत हो जाएँ।
''ऐसा नहीं है कि भारतीय कभी सहमत ही नहीं होते।''
'मुझे तो भारतीय कभी सहमत होते नहीं दीखते। भाषा, भूषा, धर्म, प्रांत, दल, नीति, कर, शिक्षा यहाँ तक कि पानी पर भी विवाद करते हैं।'
''लेकिन जन प्रतिनिधियों की भत्ता वृद्धि, अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने, व्यापारियों के कर घटाने, विद्यार्थियों के कक्षा से भागने, पंडितों के चढोत्री माँगने, समाचारों को सनसनीखेज बनाकर दिखाने, नृत्य के नाम पर काम से काम कपड़ों में फूहड़ उछल-कूद दिखाने और कमजोरों के शोषण पर कोई मतभेद देखा तुमने? भारतीय पक्के राष्ट्रवादी और आस्तिक हैं, अन्नदेवता के सच्चे पुजारी, छप्पन भोग की परंपरा का पूरी ईमानदारी से पालन करते हैं। मद्रास का इडली-डोसा, पंजाब का छोला-भटूरा, गुजरात का पोहा, बंगाल का रसगुल्ला और मध्यप्रदेश की जलेबी खिलाकर देखो, पूरा देश एक नज़र आयेगा।''  
और बेटा निरुत्तर हो गया...
*

बुधवार, 18 जून 2014

apni baat : sanjiv

अपनी बात
संजीव
*
मान गनीमत समय पड़ा तो
कहें गधे को अपना बाप
सहा न जाये बिना काम जब
कहें बाप को लोग गधा.
*
समंदर में कूदो या आकाश छू लो
जो भी करो पूरे दिल से करो तुम
मुसीबत को  डरना है तुमसे डरेगी
सिवा खुद के औरों से कभी न डरो तुम

punya smaran:

पुण्य स्मरण:



रानी लक्ष्मीबाई झाँसी बलिदान दिवस
प्रथम स्वातंत्र्य समर में वीरता, पराक्रम और बलिदान की अमरगाथा बनने वाली रानी को अशेष प्रणाम।
 

उपन्यास सम्राट : देवकीनंदन खत्री
 जन्म:18 जून, 1861, हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक। उपन्यास: चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोदना, कटोरा भर, भूतनाथ। भूतनाथ को  उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने पूरा किया।
 उपन्यासों से अधिक कीर्ति और यश पाने वाले खत्री जी ने 1898 में निजी ‘लहरी प्रेस’ की स्थापना की। उपन्यासों में ऐय्यारों और पात्रों के नाम अपनी मित्रमंडली में से चुनकर उन्होंने अपने  मित्रों को अपनी रचनाओं के द्वारा अमर बना दिया। 52 वर्ष की अवस्था में काशी में एक अगस्त, 1913 को देवकीनंदन खत्री का निधन हुआ। सैंकड़ों लोगों ने उन्हें पढ़ने के लिए हिंदी सीखी। रोचक प्रसंग यह है कि हिंदी चित्रपट और रंगमंच के सितारे पृथ्वीराज कपूर  प्रारम्भ में उर्दू तथा अंग्रेजी जानते थे किन्तु हिंदी नहीं। विवाह तय होने पर उनकी भावी पत्नी ने उन्हें पहला पत्र हिंदी में लिखा। समस्या यह हुई कि वे खुद पत्र पढ़ नहीं सकते थे और किसी से पढ़वा भी नहीं सकते थे। पत्नी का पत्र पढ़ने के लिये उन्होंने हिंदी सीखी। पहले पत्नी और  पृथ्वीराज जी ने हिंदी सीखी खत्री जी के उपन्यासों से ही।  

chhand salila: chaupaiyaa chhand -sanjiv

छंद सलिला:
चौपइयाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महातैथिक, प्रति पद ३०  मात्रा, यति १०-८-१२,  पदांत गुरु (य, म ,र, स, गण)। 

लक्षण छंद:

    कवि रच चौपइया, ता ता थैया, गाओ झूमो नाचो 
    दस-आठ-सुबारह, यति-गति रखकर, छंद पत्रिका बाँचो 
    पद-अंत करे गुरु, संत भजे प्रभु, सत-शिव-सुन्दर गुनना    
    सत-चित-आनंदी, परमानंदी, नाद अनाहद सुनना 

उदाहरण:

१. शोषित मत होना, धैर्य न खोना, बदलो सरकारों को 
    गणतंत्र नदी में, नाव न डूबे, थामो पतवारों को 
    जन प्रतिनिधि चेतो, गला न रेतो, जनता-मतदाता का 
    रिश्वत मत लेना, घूस न देना, फहरा सत्य-पताका 
    जो धन विदेश में, जमा न भूलो, वापिस ले आना है 
    जन गण मन गाकर, विहँस तिरंगा, नभ में फहराना है     

२. कोशिश मत छोड़ो, मुँह मत मोड़ो, मुश्किल से मत डरना
    पथ पर रख पग दृढ़, बढ़ गिर उठ चढ़, नित नव मंज़िल वरना
    ले हाथ-हाथ में, कदम साथ में, धूप-छाँव संग सहना
    अरि-दल-दिल दहला, फेंको दहला, हर अवसर जय करना   

३. नभ-बादल छाये, द्युति धमकाये, मिटा नहीं हरियाली 
     ले पानी लाई, करूँ सफाई, भू पर हो खुशहाली
     जंगल मत काटो, गिरि मत खोदो, मत खो दो नदियों को 
     कहकर विकास मत, कर विनाश क्यों, शाप बनो सदियों को 
     गहरी कर नदियाँ, तट पर जंगल, घना खूब बढ़ने दो 
     पंछी कलरव कल,कल जल-रव तरु,विटप लता चढ़ने दो 
     मृग शावक उछलें, नाहर गरजें, गज मस्ती में झूमें 
     सीताफल जामुन, बेर फलें खा, वानर हूहें-लूमें     
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चुलियाला, चौपइया, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मरहठा, मरहठा माधवी, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila:  chaupaiyaa chhand  -sanjiv
acharya sanjiv verma 'salil', chaupaiya chhand, chhand, hindi chhand

मंगलवार, 17 जून 2014

chhand salila: chuliyala chhand -sanjiv

छंद सलिला:
चुलियालाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महायौगिक, प्रति पद २९  मात्रा, यति १३-११-५,  पदांत लघु गुरु लघु लघु  या लघु गुरु गुरु। 

विशेष: अब तक दोहा (१३-११) की पंक्तियों के बाद ५ कला लघु गुरु लघु लघु  (द्विपदी) या लघु गुरु गुरु (चतुष्पदी) जोड़कर यह छंद  से रचा गया है

दोहे के साथ संलग्न ५ मात्राओं को ८ प्रकार से १. लघु लघु लघु लघु लघु,  २. लघु लघु लघु गुरु,  ३. लघु लघु गुरु लघु , ४. लघु गुरु लघु लघु,  ५. गुरु लघु लघु लघु, ६. लघु गुरु गुरु, ७. गुरु लघु गुरु तथा ८. गुरु गुरु लघु रखा जा सकता है, जिनसे ८ प्रकार के चुलियाला छंद बनते हैं। दोहे के २३ प्रकार सर्वमान्य हैं इस तरह कुल २३ (८) = १८४ प्रकार के चुलियाला छंद रचे जा सकते हैं। यदि दोहे की २ पंक्तियों में सम तुकान्तता बनाये रखते हुए ५ मात्रिक भिन्न संयोजन उपयोग किये जाएँ तो सैंकड़ों और उपप्रकार बन जायेंगे इसी तरह दोहे की ग्यारहवीं मात्रा को ५ अतिरिक्त मात्राओं के प्रथम मात्रा के साथ जोड़ने से और सैंकड़ों उपप्रकार बन .सकते हैं पंक्ति संख्या २, ४ अथवा अधिक हो तो से छंद संरचना का प्रकार नहीं बदलता। अतः,८ प्रकार के चुलियाला छंदों के साथ १-१ प्रकार के दोहों का उपयोगकर ८ उदाहरण प्रस्तुत हैं दोहे के हर प्रकार के साथ ८-८ प्रकार के चुलियाला छंद स्थानाभाव के कारण नहीं दिये जा रहे हैं

लक्षण छंद:

    तेरह ग्यारह पाँच कला, चुलियाला पहचान छंद रच 
    मात्रिक संयोजन विविध, विविध रसों की खान मान सच 
    तेईस दोहों से बनें, नाना और प्रकार शताधिक   
    भिन्न पदान्तों से रचें, अनगिन अन्य प्रकार लिख- न बच 

उदाहरण:

१. स्वागत में ऋतुराज के, पुष्पित हैं कचनार लरजकर  
    किंशुक कुसुम विहँस रहे, या दहके अंगार बमककर (गयंद दोहा + लघु लघु लघु लघु लघु)  

२. परिवर्तन है समय की, चाह न जड़ हों आप  बदलिए  
    देश-काल अनुरूप ही, बदल सकें जग-व्याप न डरिए ( हंस दोहा + लघु लघु लघु गुरु)  

३. ढोलक टिमकी मँजीरा, ठुमक करें इसरार  कुछ बोल 
     फगुनौटी,  चिंता भुला, नाचो-गाओ यार! रस घोल (करभ दोहा + लघु लघु गुरु लघु)  

४. निराकार परब्रम्ह का, चित्र गुप्त है सत्य कहें सब  
    पले न फल की कामना, 'सलिल' करें सत्कृत्य सुनें अब  (मर्कट दोहा + लघु गुरु लघु लघु )

५. हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल चूक मत  
    सलिल संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल भूल मत (श्येन दोहा + गुरु लघु लघु लघु) 

६. बिटिया के पीले किये, जब से माँ ने हाथ सुखी है 
    गहना-बाखर बिक गये, मिली झुकाये माथ दुखी है ( शरभ दोहा + लघु गुरु गुरु) 

७. जन मत ही जनतंत्र का, 'सलिल' सुदृढ़ आधार मानिए 
     जनप्रतिनिधि शासक नहीं, सेवक हैं साकार जानिए (पयोधर दोहा + गुरु लघु गुरु)  

८.  जन्म ब्याह राखी तिलक, गृहप्रवेश त्यौहार  आओ न 
     हर शुभ अवसर दे 'सलिल', पुस्तक ही उपहार पाओ न   (बल दोहा + गुरु गुरु लघु)  
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चुलियाला, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मरहठा, मरहठा माधवी, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)

सोमवार, 16 जून 2014

chhand salila: marhatha madhvi -sanjiv

छंद सलिला:
मरहठा माधवीRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महायौगिक, प्रति पद २९  मात्रा, यति ११-८-१०, पदांत लघु गुरु। 

लक्षण छंद:

    पिंगल से कर प्रीत, ह्रदय ले जीत, मरहठा माधवी  
    नेह नर्मदा धार, करे सिंगार, सजन हित साध भी 
    रूद्र योग अवतार, हरे भू भार, करे सुख-शांति भी 
    लघु-गुरु रख पद-अंत, मौन ज्यों संत, हरे हर भ्रांति भी
संकेत: रूद्र = ग्यारह, योग = अष्टांग =८, अवतार = दशावतार = १० 
उदाहरण:

१. विपदा में मत ढहें, जमा पग रहें, छुएँ आकाश को 
    सार्थक सच ही कहें, 'सलिल' सम बहें, तोड़ हर पाश को 
    सरसिज जैसे खिलें, अधर मत सिलें, सुरभि फैलाइये  
    रचकर सुमधुर छंद, लुटा आनंद, जगत महकाइये 
     
२. कभी न छोड़ें आस, रखें विश्वास, न डरकर भागिए   
    करना सतत प्रयास, न तजना आस, नींद तज जागिए 
    गढ़ना नव इतिहास, अधर रख हास, न हिम्मत हारिए  
    मन मत करें उदास, प्राण-मन ख़ास, लक्ष्य पर वारिए 

३. अक्षर है अराध्य, छंद शुचि साध्य, गीत है आरती 
    मैया को नित पूज, धरा गौ सहित, मातु है भारती  
    अंतर में अंतरा, सतत गुनगुना, बहा रस धार भी 
    हर ले हर दुखड़ा, सरस मुखड़ा, 'सलिल' मनुहार भी 
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*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मरहठा, मरहठा माधवी, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila:   marhatha madhvi  -sanjiv
chhand, marhatha madhvi chhand, acharya sanjiv verma 'salil'

chhand salila: marhatha chhand, sanjiv

छंद सलिला:
मरहठाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महायौगिक, प्रति पद २९  मात्रा, यति १०-८-११, पदांत गुरु लघु । 

लक्षण छंद:

    मरहठा छंद रच, असत न- कह सच, पिंगल की है आन  
    दस-आठ-सुग्यारह, यति-गति रख बह, काव्य सलिल रस-खान  
    गुरु-लघु रख आखर, हर पद आखिर, पा शारद-वरदान 
    लें नमन नाग प्रभु, सदय रहें विभु, छंद बने गुणवान  

उदाहरण:

१. ले बिदा निशा से, संग उषा के, दिनकर करता रास   
    वसुधा पर डोरे, डाले अनथक, धरा न डाले घास 
    थक भरी दुपहरी, श्रांत-क्लांत सं/ध्या को चाहे फाँस 
    कर सके रास- खुल, गई पोल जा, छिपा निशा के पास 
     
२. कलकलकल बहती, सुख-दुःख सहती, नेह नर्मदा मौन    
    चंचल जल लहरें, तनिक न ठहरें, क्यों बतलाये कौन?
    माया की भँवरें, मोह चक्र में, घुमा रहीं दिन-रात 
    संयम का शतदल, महके अविचल, खिले मिले जब प्रात   

३. चल उठा तिरंगा, नभ पर फहरा, दहले दुश्मन शांत 
    दें कुचल शत्रु को, हो हमलावर यदि, होकर वह भ्रांत 
    आतंक न जीते, स्नेह न रीते, रहो मित्र के साथ 
    सुख-दुःख के साथी, कदम मिला चल, रहें उठायें माथ 
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मरहठा, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)

रविवार, 15 जून 2014

chhand salila: dhara chhand -sanjiv

छंद सलिला:
धाराRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महायौगिक, प्रति पद २९  मात्रा, यति १५ - १४, विषम चरणांत गुरु लघु सम चरणांत गुरु। 

लक्षण छंद:

    दे आनंद, न जिसका अंत , छंदों की अमृत धारा 
    रचें-पढ़ें, सुन-गुन सानंद , सुख पाया जब उच्चारा 
    पंद्रह-चौदह कला रखें, रेवा-धारा सदृश बहे
    गुरु-लघु विषम चरण अंत, गुरु सम चरण सुअंत रहे  

उदाहरण:

१. पूज्य पिता को करूँ प्रणाम , भाग्य जगा आशीष मिला           
    तुम बिन सूने सुबहो-शाम , 'सलिल' न मन का कमल खिला        
    रहा शीश पर जब तक हाथ , ईश-कृपा ने सतत छुआ 
    छाँह गयी जब छूटा साथ , तत्क्षण ही कंगाल हुआ
     
२. सघन तिमिर हो शीघ्र निशांत , प्राची पर लालिमा खिले   
    सूरज लेकर आये उजास , श्वास-श्वास को आस मिले            
    हो प्रयास के अधरों हास , तन के लगे सुवास गले  
    पल में मिट जाए संत्रास , मन राधा को रास मिले  

३. सतत प्रवाहित हो रस-धार, दस दिश प्यार अपार रहे              
    आओ! कर सोलह सिंगार , तुम पर जान निसार रहे 
    मिली जीत दिल हमको हार ,  हार ह्रदय तुम जीत गये 
    बाँटो तो बढ़ता है प्यार , जोड़-जोड़ हम रीत गये  
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)

geet: ambar ka chhor -sanjiv

गीत 
अपने अम्बर का छोर 
संजीव 
*
मैंने थाम रखी 
अपनी वसुधा की डोर 
तुम थामे रहना 
अपने अंबर का छोर.… 
*
हल धर कर 
हलधर से, हल ना हुए सवाल 
पनघट में 
पन घट कर, पैदा करे बवाल
कूद रहे 
बेताल, मना वैलेंटाइन 
जंगल कटे, 
खुदे पर्वत, सूखे हैं ताल     
पजर गयी 
अमराई, कोयल झुलस गयी- 
नैन पुतरिया 
टँगी डाल पर, रोये भोर.… 
*
लूट सिया-सत 
हाय! सियासत इठलायी 
रक्षक पुलिस
हुई भक्षक, शामत आयी
अँधा तौले  
न्याय, कोट काला ले-दे 
शगुन विचारे  
शकुनी, कृष्णा पछतायी 
युवा सनसनी 
मस्ती मौज मजा चाहें-
आँख लड़ायें 
फिरा, न पोछें भीगी कोर.... 
*
सुर करते हैं 
भोग प्रलोभन दे-देकर
असुर भोगते 
बल के दम पर दम देकर
संयम खो, 
छलकर नर-नारी पतित हुए 
पाप छिपायें 
दोष और को दे-देकर 
मना जान की
खैर, जानकी छली गयी-
चला न आरक्षित 
जनप्रतिनिधि पर कुछ जोर.... 
*
सरहद पर 
सर हद करने आतंक डटा
दल-दल का 
दलदल कुछ लेकिन नहीं घटा 
बढ़ी अमीरी 
अधिक, गरीबी अधिक बढ़ी 
अंतर में पलता  
अंतर, बढ़ नहीं पटा 
रमा रमा में 
मन, आराम-विराम चहे-
कहे नहीं 'आ 
राम' रहा नाहक शोर.... 
*    
मैंने थाम रखी 
अपनी वसुधा की डोर 
तुम थामे रहना 
अपने अंबर का छोर.… 
*
  
     
       

pitra divas par dohe: sanjiv

पितृ दिवस पर- 
पिता सूर्य सम प्रकाशक :
संजीव 

पिता सूर्य सम प्रकाशक, जगा कहें कर कर्म 
कर्म-धर्म से महत्तम, अन्य न कोई मर्म  
*
गृहस्वामी मार्तण्ड हैं, पिता जानिए सत्य 
सुखकर्ता भर्ता पिता, रवि श्रीमान अनित्य 
*
भास्कर-शशि माता-पिता, तारे हैं संतान 
भू अम्बर गृह मेघ सम, दिक् दीवार समान 
*
आपद-विपदा तम हरें, पिता चक्षु दें खोल 
हाथ थाम कंधे बिठा, दिखा रहे भूगोल 
*
विवस्वान सम जनक भी, हैं प्रकाश का रूप 
हैं विदेह मन-प्राण का, सम्बल देव अनूप 
*
छाया थे पितु ताप में, और शीत में ताप
छाता बारिश में रहे, हरकर हर संताप 
*
बीज नाम कुल तन दिया, तुमने मुझको तात
अन्धकार की कोख से, लाकर दिया प्रभात 
*
गोदी आँचल लोरियाँ, उँगली कंधा बाँह 
माँ-पापा जब तक रहे, रही शीश पर छाँह 
*
शुभाशीष से भरा था, जब तक जीवन पात्र 
जान न पाया रिक्तता, अब हूँ याचक मात्र
*
पितृ-चरण स्पर्श बिन, कैसे हो त्यौहार 
चित्र देख मन विकल हो, करता हाहाकार 
*
तन-मन की दृढ़ता अतुल, खुद से बेपरवाह 
सबकी चिंता-पीर हर, ढाढ़स दिया अथाह 
*
श्वास पिता की धरोहर, माँ की थाती आस
हास बंधु, तिय लास है, सुता-पुत्र मृदु हास 
*