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बुधवार, 24 जुलाई 2013

hindi sattire: sanjiv

व्यंग्य गीत:
हम सर्वोत्तम…
संजीव
*
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
चमत्कार की कथा सुनाएँ,
पत्थर को भी शीश नवाएँ।
लाख कमा चोरी-रिश्वत से-
प्रभु को एक चढ़ा बच जाएँ।
पाप करें, ले नाम पुण्य का
तनिक नहीं होता पल भर गम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
श्रम-कोशिश पर नहीं भरोसा,
किस्मत को हर पल मिल कोसा।
जोड़-तोड़, हेरा-फेरी को-
लाड-प्यार से पाला-पोसा।
मौज-मजा-मस्ती के पीछे
भागे ढोल बजाते ढम-ढम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
भाषण-वीर न हमसा कोई,
आश्वासन की फसलें बोई।
अफसरशाही ऐश कर रही-
मुफलिस जनता पल-पल रोई।
रोटी नहीं?, पेस्ट्री खालो-
सुख के साथ मानते हैं गम।
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
सस्ती औषधि हमें न भाती,
डॉक्टर यम के मित्र-संगाती।
न्यायालय छोड़ें अपराधी-
हैं वकील चोरों के साथी।
बनें बाद में, पहलें टूटें
हैं निर्माण भले ही बेदम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
कोई नंगा मजबूरी में,
कोई नंगा मगरूरी में।
दूरी को दें नाम निकटता-
कहें निकटता है दूरी में।
सात जन्म का बंधन तोड़ें
पल में गर पाते दहेज़ कम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
ठाकुरसुहाती हमको भाती,
सत्य न कोई बात सुहाती।
गैरों का सुख अपना मानें-
निज दुःख बाँट न करें दुभांती।
घड़ियाली आँसू से रहती
आँख हमारी हरदम ही नम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
सुर नर असुर नाम कुछ भी दो,
अनाचार हम नहीं तजेंगे।
जयमाला हित फूल उगाये-
जो ठठरी पर वही सजेंगे।
सीता तज दें, द्रुपदसुता का
चीर खींच लें फैला जाजिम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*
​​
Sanjiv verma 'Salil'

bharteey bhshaon ka haq

भारतीय भाषाओं के हक के लिये …..”
राजीव रंजन प्रसाद
 
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मुल्ला नसीरुद्दीन की बोलने वाली बकरी की कथा सर्वव्यापी है। बाजार में सबसे मंहगी बकरी बिक रही थी। राजा पहुँच गया विशेषतायें जानने। मुल्ला ने कहा कि बोलती है मेरी बकरी हुजूर और वह भी आदमी की भाषा में। बुलवाया गया बकरी से। मुल्ला ने सवाल किया कि बता यहाँ बकरी कौन? उत्तर मिला मैं…” अगला सवाल कि बता दूध यहाँ कौन देता है तो फिर वही उत्तर मैं….”। असल में यह बोली भाषा का झगडा सुलझता ही नहीं चूंकि सवाल भी सुविधा वाले हैं और जवाब भी तय से हैं। यहाँ गधा कौन? तो इसका उत्तर भी यही आता मैं….” लेकिन भाषा का खेल चतुराई से खेला गया है इस लिये इस बकरी को लाखों की कीमत मे बेचा जाना तय है। भारतीय भाषाओं के साथ भी यही दिक्कत है। इसकी नियती तय कर दी गयी है, इसके सवाल तय हैं कि विज्ञान की अच्छी किताबें कहाँ उपलब्ध नहीं हो सकतीं? उत्तर है भारतीय भाषाओं में”; कार्यालय में किस भाषा में काम करने में व्यवहारिक अडचन है? उत्तर है भारतीय भाषाओं में”; किस भाषा में न्याय पाना संभव नहीं है? उत्तर है भारतीय भाषाओं में।
पिछले कई दिनों से एक समाचार रह रह कर ध्यान खींच रहा था। श्याम रुद्र पाठक नाम का एक व्यक्ति अकेला ही एकसूत्रीय अभियान को ले कर लम्बे समय से धरने पर बैठा हुआ था। मांग भी अजीब सी थी कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की कार्यवाही भारतीय भाषाओं में होनी चाहिये। इस व्यक्ति की बात अधिक गंभारता से समझने की इच्छा हुई। उनका ही एक आलेख मुझे प्रवक्ता वेब पत्रिका पर पढने को मिला और कुछ मोटे मोटे तर्क मैं समझ सका। उदाहरण के लिये संविधान के अनुच्छेद 348 के खंड(1) के उपखंड(क) के तहत उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होंगी। यद्यपि इसी अनुच्छेद के खंड(2) के तहत किसी राज्य का राज्यपाल उस राज्य के उच्च न्यायालयों में हिंदी भाषा या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के पश्चात् प्राधिकृत कर सकेगा। इस बात का सीधा सा अर्थ निकलता है कि भारतीय भाषाओं को न्याय की भाषा के रूप में हक दिलाने का रास्ता वस्तुतसंविधान संशोधन के रास्ते से ही निकलता है। इस संदर्भ पर पाठक अपने लेख में आगे अपनी मांग को स्पष्ट करते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 348 के खंड (1) में संशोधन के द्वारा यह प्रावधान किया जाना चाहिए कि उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी अथवा कम-से-कम किसी एक भारतीय भाषा में होंगी। इसके तहत मद्रास उच्च न्यायालय में अंग्रेजी के अलावा कम-से-कम तमिल, कर्नाटक उच्च न्यायालय में अंग्रेजी के अलावा कम-से-कम कन्नड़, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड और झारखंड के उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के अलावा कम-से-कम हिंदी और इसी तरह अन्य प्रांतों के उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के अलावा कम-से-कम उस प्रान्त की राजभाषा को प्राधिकृत किया जाना चाहिए और सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी के अलावा कम-से-कम हिंदी को प्राधिकृत किया जाना चाहिए। इस मांग को जिस प्रमुख तर्क के साथ सामने रखा गया है वह है कि किसी भी नागरिक का यह अधिकार है कि अपने मुकदमे के बारे में वह न्यायालय में बोल सके, चाहे वह वकील रखे या न रखे। परन्तु अनुच्छेद 348 की इस व्यवस्था के तहत देश के चार उच्च न्यायालयों को छोड़कर शेष सत्रह उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय में यह अधिकार देश के उन सन्तानवे प्रतिशत (97 प्रतिशत) जनता से प्रकारान्तर से छीन लिया है जो अंग्रेजी बोलने में सक्षम नहीं हैं। मांग सर्वधा उचित है तथा इस दिशा में नीति-निर्धारकों का ध्यान खींचा जाना आवश्यक है।
भारत विविधताओं का देश है। हमें विविधता को मान्यता देनी ही होगी और इसी में हमारी एकता सन्निहित है। लाखों रुपये की फीस खसोंट कर पूंजीपती होते जा रहे वकीलों के लिये भाषा की यह पाबंदी एक सुविधा है। एक आम आदमी अपनी भाषा में अपने उपर घटे अपराध अथवा आरोप की बेहतर पैरवी कर सकता है अथवा माननीय अदालतों में हो रही उस जिरह को समझ सकता है जो अंतत: उसकी ही नियति का फैसला करने जा रही हैं। न्याय को तो आम जन की समझ तक पहुँचना ही चाहिये। व्यवस्था पर उंगली उठाने में हम लोग अग्रणी पंक्ति में खडे रहते हैं लेकिन अपने लोकतंत्र के संवर्धन के लिये हमारे पास न तो कोई योजना है न ही सोच। लोकतंत्र देखते देख बूढा हो गया और हम कहाँ से कहाँ पहुँच गये? शिक्षा, न्याय और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी अधिकारों से हमारी अवांछित दूरी इस भाषा ने ही बना दी है। ये तीनों ही अधिकार अब आम आदमी की पकड और उसके जेब से बाहर की बात हो गये हैं। चलिये हम झंडा नहीं पकड सकते लेकिन इन आवश्यक विषयों पर समर्थन तो व्यक्त कर ही सकते हैं? श्री श्याम रुद्र पाठक को उनके साहस और भारतीय भाषा के अधिकारों की इस लडाई के लिये हार्दिक साधुवाद। कल उन्हें सत्याग्रह करने के अपराध में दिल्ली पुलिस नें धारा 107/105 के तहत गिरफ्तार कर लिया है। कहते हैं कि नदी का रास्ता कोई नहीं रोक सकता अत: श्री पाठक की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए अपने आलेख के उपसंहार में इतना ही कहना चाहता हूँ कि भारतीय भाषाओं के हक की यह लडाई किसी अकेले व्यक्ति की नहीं है। इस मशाल की लपट को फैलना ही होगा।
·                               लेखक परिचय

लेखक :   राजीव रंजन प्रसाद
लेखक मूल रूप से बस्तर (छतीसगढ) के निवासी हैं तथा वर्तमान में एक सरकारी उपक्रम एन.एच.पी.सी में प्रबंधक है। आप साहित्यिक ई-पत्रिका "साहित्य शिल्पी" (www.sahityashilpi.in) के सम्पादक भी हैं। आपके आलेख व रचनायें प्रमुखता से पत्र, पत्रिकाओं तथा ई-पत्रिकाओं में प्रकशित होती रहती है।
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Posted: 16 Jul 2013 11:15 PM PDT
संजीव कुमार सिन्‍हा (फेसबुक वॉल से) : कल शाम में 6 बजे श्री श्‍याम रुद्र पाठक को दिल्‍ली पुलिस ने 105/151 धारा लगाकर जबरन गिरफ्तार कर लिया। यह दुर्भाग्‍यपूर्ण और निंदनीय है। श्री पाठक 225 दिन से लगातार यूपीए की चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी के निवास के आगे सत्‍याग्रह कर रहे थे। उनकी मांग है [...]
संजीव कुमार सिन्‍हा (फेसबुक वॉल से) : कल शाम में 6 बजे श्री श्‍याम रुद्र पाठक को दिल्‍ली पुलिस ने 105/151 धारा लगाकर जबरन गिरफ्तार कर लिया। यह दुर्भाग्‍यपूर्ण और निंदनीय है। श्री पाठक 225 दिन से लगातार यूपीए की चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी के निवास के आगे सत्‍याग्रह कर रहे थे। उनकी मांग है कि सर्वोच्‍च न्‍यायालय एवं देश के 17 उच्‍च न्‍यायालयों में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्‍म हो और भारतीय भाषा में भी बहस हो। श्री श्‍याम रुद्र पाठक अभी तुगलक थाना में गिरफ्तार हैं। पुलिस ने उनका एटीएम, मोबाइल सहित सारा सामान छीन लिया है।
मित्रों, भारत को बचाइए। यहां की संस्‍कार, संस्‍कृति, भाषा आदि सब पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। हम बातचीत में, लेखों में इस पतनशीलता और पराधीनता पर खूब रोना रोते हैं। आज यदि कोई स्‍वभाषा और स्‍वदेश के लिए अपना जीवन दांव पर लगाकर संघर्षरत है तो हमें कम से कम उनके साथ खड़े तो होना चाहिए, उनकी आवाज को बुलंद तो करना चाहिए। http://www.facebook.com/photo.php?fbid=10201039347319391&set=a.1103449739984.2018130.1038954127&type=1theater

पंकज कुमार झा
बिलकुल.
Zakir Hussein लानत लानत लानत है है एसे अंग्रेजियत के ग़ुलामों पर !
Anup Shukla सर्वोच्‍च न्‍यायालय एवं देश के 17 उच्‍च न्‍यायालयों में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्‍म करने की मांग जायज है। इस मांग के लिये अगर किसी को गिरफ़्तार किया जाता है तो यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है।
Abhishek Purohit Kabhi kabhi lagta he ham svtantr bharat me nahi gulam desh me rahate he.
अरुण अरोरा सर्वोच्‍च न्‍यायालय एवं देश के 17 उच्‍च न्‍यायालयों में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्‍म करने की मांग जायज है। इस मांग के लिये अगर किसी को गिरफ़्तार किया जाता है तो यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है।
Rajeev Ranjan Prasad शर्मनाक है। इस कार्यवाई की तीक्ष्ण भर्त्सना करते हैं। भारते में शासन की भाषा जब तक अंग्रेजी रहेगी, हम अपनी मानसिक गुलामी से बाहर आ ही नहीं सकते। अंग्रेजी हमारे अदालतों की भाषा इसी लिये है चूंकि आम आदमी और न्याय के बीच जान बूझ कर पैदा की गयी दूरी कायम रहे।
Subodh Kumar Tanti Lalat hai gandhi family par.
शिवानन्द द्विवेदी सहर ओह ! यह कैसा लोकतंत्र
Ranjit Kumar Sinha सोनिया जी को हिन्दी भाषा से प्यार है ।वे इनका धैर्य देखना चाहती है
Vibhay Kumar Jha oh
पंकज कुमार झा उफ़..यह इटालियन नष्ट कर देगी हम सबको.
Pankaj Mishra sharmnaak
Ashutosh Kumar Singh sharmnaak
Naresh Arora भैंस के आगे वीणा बजाने से क्या लाभ? देश में भारतीय भाषाओँ के अपमान को रोकने के लिए व्यापक जागरण अभियान की आवश्यकता है. श्री श्याम रूद्र को गिरफ्तार किया जाना शर्मनाक है. नरेश भारतीय
Devesh Rajeev Tripathi निंदनीय
Ashutosh Kumar Singh जितनी निंदा की जाए कम है
Chander Kumar Soni CM 225 din.??
Munna Kumar Sharamnak………. Nindniya hai yah.
Raj Kumar Bhatia Yeh kab hua yeh bhi bataayie
संजीव सिन्हा Raj Kumar Bhatia कल शाम में 5 बजे श्‍याम रुद्र पाठक गिरफ्तार हुए।
Chauhan Ravi very shame !!
Girish Pankaj ye kaisa loktantr hai?
Zafar Khan bhasha ka sammaan se sonia gandhi ka kya matlab …hum khud aaj ke samay mein apne bacchon ko angrezi school mein padane ko apna garv samjhte hain…
Many media people are trying to make proper Hindi words vanish or LUPT. Proper Hindi words are available still Hindi media people prefer to use Urdu or English words in Hindi. Some Examples are:
 
Wrong Word                                        Proper Hindi Word
Kirdaar –                                                            Abhinay
 Parcham  -                                                          Dwaj
Izzaffa –                                                              Vridhi
Azadi -                                                                 Swantantra
Jahrilla                                                                Vishella
Surkhi –                                                              Shirshak
Khitaab –                                                            Padvi
Kamyaab –                                                         Safalta
Guzarish –                                                                    Nivedan
Jasan –                                                                Utsav
Naakaam –                                                                   Safalta
Dahsat –                                                              Aantak
Janoon –                                                             Unmaad
Nizaat –                                                               Chutkara
Kabool –                                                              Swaikaar
Faarik –                                                               Mukt
Takat –                                                                Shakti
Jaroorat –                                                           Avaskyata
Nawaaza –                                                                    Sammanit
Sakoon –                                                             Shanti
Adakaar –                                                           Kalakaar/ Abhineta
Jumma  -                                                             Shukarvaar
Aaagaz –                                                             Aarrambh
Faisla –                                                                Nirnay
Mumkin –                                                           Sambhav
Karobaar-                                                           Vyapaar
Tabka –                                                               Varg/Samooh
Talim –                                                                Shiksha
Mukhalfit –                                                         Virodh
Bandovast –                                                        Parbandh
Kreed Fokht –                                                     Karya Bikraya
Izaafaa   -                                                            Vridhi
Slahakaar –                                                         Pramarshdata
Nakshekadam –                                                  Padhchinha
Nizaat –                                                               Chutkaara
Zahar –                                                               Vish
Masla –                                                                Samasya
Mashakkat -                                                        Parishram
 
Khair Makdam
Murabbat
 
There are several thousand Urdu words which are used in Hindi. Sad thing is that many saints and priests who are supposed to know proper Hindi use such Urdu words along with English words in Hindi. People who know proper Hindi should Telephone or send message by any means to media people that they should use proper Hindi words in Hindi.
 
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सोमवार, 22 जुलाई 2013

bhartiya :

हमें गर्व हम हिन्दुस्तानी …

Agree or Disagree ???

रविवार, 21 जुलाई 2013

baat niklegi to fir : 1 jee sanjiv

बात निकलेगी तो फिर: १  
जी 
संजीव 
*
'जी'… 
एक अक्षर, एक मात्रा…
एक शब्द…
दो मात्राएँ…
तीन अर्थ…
'जी' अर्थात सहमति।
'जी' अर्थात उपस्थिति।
जी अर्थात आदर।  
प्रथम दो अर्थों में 'जी' स्वतंत्र शब्द है जो किसी अन्य शब्द का भाग नहीं है।
तृतीय अर्थ में अर्थात किसी नाम के साथ आदर व्यक्त करने के लिए जोड़े जाने पर 'जी' नाम के अंश रूप में लिखा जाए या नाम से अलग? 'गणेशजी' या 'गणेश जी'? सही क्या है? 
कोंवेंट-शिक्षित नयी पीढ़ी को यह विषय महत्वहीन लग सकता है, कुछ पाठक कह सकते हैं कि 'जी' साथ में लिखें या अलग क्या फर्क पड़ता है? छोटी सी बात है।
छोटी सी बात के कितना बड़ा अंतर पड़ता है, इसे समझने के लिए नीचे दर्ज वाकये पर नज़र डालें।
'जी' की महिमा बड़ी है, एक बार कहा तो तीन अर्थ… दो बार कहा तो अंगरेजी के नियम दो न से हाँ / दो हाँ से न नहीं करते 'जी' जी, वे 'जीजी' बनकर आपकी माँ अथवा मातृवत बड़ी बहन बन जाते हैं।
अग्रजा या मैया से पीछा छुड़ाने के लिए जैसे ही आप 'जी' से 'जा' कहेंग वे 'जीजा' बनकर आपको 'साला' बना लेंगे। साले से याद आया एक वाकया… 
हस्बमामूल दो वकील दोस्त आपस में समझौता कर एक के बाद एक किसी न किसी कारण से पेशी बढ़वाते और अपने-अपने मुवक्किलों से धन वसूलते।  दोनों के ऐश थे। रोज कैंटीन में बेबात की बात करते-करते, चाय-पान के दौर के बीच में बात होते-होते बात बढ़ गयी। एक के मुंह से 'साला' निकल गया।  दूसरे ने तुरंत कहा: 'वकील हो तो कोर्ट में गली देकर दिखाओ। माफी न मँगवा ली तो कहना।' 
बात-बात में शर्त लग गयी। कोइ पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ।
दूसरे दिन एक वकील साहब ने बहस करते-करते विपक्षी वकील द्वारा अपने मुवक्किल पर आरोप लगाये जाते समय बनावती गुस्सा करते हुए कह दिया: 'कौन साला कहता है?'
विपक्षी वकील ने तुरंत न्यायाधीश से शिकायत की: 'हुजूर! वकील साहब गाली देते हैं'
न्यायाधीश ने प्रश्नवाचक निगाहों से घूरा तो वकील साहब सकपकाए। सहमत होते हैं तो क्षमा-प्रार्थना अथवा न्यायालय के समक्ष अभद्रता का आरोप… इधर खाई उधर कुआँ, चारों तरफ धुआँ ही धुआँ…
मरता क्या न करता, वकील साहब ने तुरंत खंडन किया: 'नहीं हुज़ूर! मैंने गाली नहीं दी…'
विपक्षी वकील ने मौके की नजाकत का फायदा उठाना चाहा, तुरत नहले पर दहला मारा: 'आप मेरे बहनोई तो हैं नहीं जो साला कहें, आपने गली ही दी है…'
वकील साहब का आला दिमाग वक़्त पर काम आया। उन्होंने हाज़िर जवाबी से काम लेते हुए उत्तर दिया: 'हजूर! मैंने तो पूछा था 'कौन सा लॉ (कानून) कहता है?' 
अब विपक्षी वकील और न्यायलय दोनों लाजवाब…   वकील साहब ने विजयी मुद्रा में मुवक्किल को देखा और अपना लोहा मनवा लिया।
तो साहब छोटी सी बात भी अपना महत्त्व तो रखती ही है। तभी तो रहीम कहते हैं: 
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डार
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै करतार
प्रभुता से लघुता भली, प्रभुता से प्रभु दूर 
चीटी लै सक्कर चली, हाथी के सर धूर
*
अब आप कहेंगे: 'यह तो ठीक लेकिन बात तो 'जी' की थी…'
तो चलिए हम 'फिर जी' पर आ जाते हैं:
भाषा विज्ञान के अनुसार एक स्थान से उच्चरित होनेवाले दो वर्णों के बीच अल्प विराम न हो तो ध्वनियाँ मिश्रित होकर भिन्न उच्चारण में बदल जाती हैं जो एक दोष है। जैसे मन ने = मनने = मन्ने आदि 
अतः, नाम और जी के मध्य अल्प विराम होना चाहिए, न हो तो 'जलज जी' को 'जलज्जी' और 'सलहज जी'
को 'सलहज्जी' होने से कोई नहीं बचा सकेगा।
*
यह तो हुई मेरी बात, अब आप बताएँ कि इस बिंदु पर आपकी राय क्या है?… 
========
salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.blogspot.in

शनिवार, 20 जुलाई 2013

geet: suraj si gunguni dhoop ko... sanjiv

गीत :
सूरज सी गुनगुनी धूप को…
संजीव
*
सूरज सी गुनगुनी धूप को
चंदा से मन बसे रूप को
सलिल-तरंगों का अभिनन्दन
अर्पित अक्षत कुंकुम चन्दन…
*
रंगोली अल्पना चौक ने
मुँह फेरा हम लगे चौंकने
अविश्वास के सारमेय मिल
विश्वासों पर लगे भौंकने  
खुद से खुद भयभीत हुआ मन
घर-आँगन जब लगे टौंकने
विचलन हुआ धुरी से वृत्त का
व्यास-चाप करते आलिंगन…
​*
नीचे शिखर, गव्हर ऊपर है
पत्ते भू में, जड़ ​​नभ पर है
शाख पुष्प-फल नोच खा रही
करता पग घायल नूपुर है
भोग-विलास चाह दोनों की
किसे कहें सुर, कौन असुर है?
मानवता की राह चल 'सलिल'
साध्य रहे शुचिता-आराधन…
*
एक ब्रम्ह, दो काया-छाया
तीन काल फँस सत्य भुलाया
चार वेद से पाँच तत्व का
षट आयामी सत-सुर पाया
अष्ट प्रहरमय काल अहर्निश
दे नव शक्ति सत्य शिव सुन्दर
सत-चित-आनंद काव्यामृत पी
जनगण करे राष्ट्र-आराधन…
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

shram ko naman

 कविता:
श्रम को नमन

हमीरपुर जिले के बदनपुर गांव की फूलमती बुंदेलखंड की धरती पर वह कर रही हैं , जिसे देखकर पुरुष भी दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। इतनी पढ़ी लिखी तो हैं नहीं कि पायलट बन सकें , लेकिन ऊपर वाले ने बाजुओं में वो ताकत जरूर दी है कि सम्मानपूर्वक परिवार का पालन-पोषण कर सकें। पति नशेबाज व अकर्मण्य निकला तो वह प्रतिदिन हमीरपुर से बदनपुर के बीच रिक्शा चलाकर सवारियां ढोती हैं ...! सलाम माँ भारती की इस माता को ... सलाम इनके जज्बे को ..!

कम किसी से हम रहें, कर सकते हर काम
कहें रहे क्यों क्यों पुरुष का, किसी कार्य हित नाम

शर्म न, गौरव है बहुत, कर सकते हर काम
रिक्शा-चालन है 'सलिल', सिर्फ एक आयाम

हम पर तरस न खाइये, दें अब पूरा मान
नारी भी हर क्षेत्र में, है नर सी गुणवान

मन अपना मजबूत है, तन भी है मजबूत
शक्ति और सामर्थ्य है, हममें भरी अकूत

हम न तनिक कमजोर हैं, सकते राह तलाश
रोक नहीं सकते कदम, परंपरा के पाश

करते नशा वही हुआ, जिनका मन कमजोर
हम संकल्पों के धनी, तम से लायें भोर

मत वरीयता दीजिए, मानें सिर्फ समान
लेने दें अधिकार लड़, आप न करिए दान



MOUNT EVEREST IN NEPAL



माउन्ट एवरेस्ट MOUNT EVEREST IN NEPAL

The 8,848 m (29,029 ft) height given is officially recognised by Nepal and China.

In 1856, Andrew Waugh announced Everest (then known as Peak XV) as 29,002 ft (8,840 m) high, after several years of calculations based on observations made by the Great Trigonometric Survey.

Mount Everest, as seen from Kalapattar

Sunset at Nuptse,a Himalayan giant in Nepal



The elevation of 8,848 m (29,029 ft) was first determined by an Indian survey in 1955, made closer to the mountain, also using theodolites.
It was subsequently reaffirmed by a 1975 Chinese measurement 8,848.13 m (29,029.30 ft). 
In May 1999 an American Everest Expedition, directed by Bradford Washburn, anchored a GPS unit into the highest bedrock. 
A rock head elevation of 8,850 m (29,035 ft), and a snow/ice elevation 1 m (3 ft) higher, were obtained via this device.




Northern panoramic view of Everest from Tibetan Plateau











Although it has not been officially recognized by Nepal,this figure is widely quoted. Geoid uncertainty casts doubt upon the accuracy claimed by both the 1999 and 2005 surveys.
A detailed photogrammetric map (at a scale of 1:50,000) of the Khumbu region, including the south side of Mount Everest, was made by Erwin Schneider as part of the 1955 International Himalayan Expedition, which also attempted Lhotse. 






An even more detailed topographic map of the Everest area was made in the late 1980s under the direction of Bradford Washburn, using extensive aerial photography.





On 9 October 2005, after several months of measurement and calculation, the Chinese Academy of Sciences and State Bureau of Surveying and Mapping officially announced the height of Everest as 8,844.43 m (29,017.16 ft) with accuracy of ±0.21 m (0.69 ft). 






This height is based on the actual highest point of rock and not on the snow and ice covering it. 


The Chinese team also measured a snow/ice depth of 3.5 m (11 ft),which is in agreement with 
a net elevation of 8,848 m (29,029 ft). 
The snow and ice thickness varies over time, making a definitive height of the snow cap impossible to determine.

It is thought that the plate tectonics of the area are adding to the height and moving the 
summit northeastwards. 
Two accounts suggest the rates of change are 4 mm (0.16 in) per year (upwards) and 3 to 6 
mm (0.12 to 0.24 in) per year (northeastwards),but another account mentions more lateral 
movement (27 mm or 1.1 in),and even shrinkage has been suggested.

Geologists have subdivided the rocks comprising Mount Everest into three units called "formations".

Each formation is separated from the other by low-angle faults, called "detachments", along which they have been thrust over each other. 

From the summit of Mount Everest to its base these rock units are the Qomolangma Formation, the North Col Formation, and the Rongbuk Formation.