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शनिवार, 13 जुलाई 2013

tretment of snake bite

ज्ञान-विज्ञान :

Photo: मित्रो अपना कीमती समय दे कर पोस्ट जरुर पड़े !

दोस्तो सबसे पहले साँपो के बारे मे एक महत्वपूर्ण बात आप ये जान लीजिये ! कि
अपने देश भारत मे 550 किस्म के साँप है ! जैसे एक cobra है ,viper है ,karit
है ! ऐसी 550 किस्म की साँपो की जातियाँ हैं ! इनमे से मुश्किल से 10 साँप है
जो जहरीले है सिर्फ 10 ! बाकी सब non poisonous है! इसका मतलब ये हुआ 540 साँप
ऐसे है जिनके काटने से आपको कुछ नहीं होगा !! बिलकुल चिंता मत करिए !

लेकिन साँप के काटने का डर इतना है (हाय साँप ने काट लिया ) और कि कई बार आदमी
heart attack से मर जाता है !जहर से नहीं मरता cardiac arrest से मर जाता है !
तो डर इतना है मन मे ! तो ये डर निकलना चाहिए !

वो डर कैसे निकलेगा ????

जब आपको ये पता होगा कि 550 तरह के साँप है उनमे से सिर्फ 10 साँप जहरीले हैं
! जिनके काटने से कोई मरता है ! इनमे से जो सबसे जहरीला साँप है उसका नाम है !
russell viper ! उसके बाद है karit इसके बाद है viper और एक है cobra ! king
cobra जिसको आप कहते है काला नाग !! ये 4 तो बहुत ही खतरनाक और जहरीले है इनमे
से किसी ने काट लिया तो 99 % chances है कि death होगी !

लेकिन अगर आप थोड़ी होशियारी दिखाये तो आप रोगी को बचा सकते हैं
होशियारी क्या दिखनी है ???

आपने देखा होगा साँप जब भी काटता है तो उसके दो दाँत है जिनमे जहर है जो शरीर
के मास के अंदर घुस जाते हैं ! और खून मे वो अपना जहर छोड़ देता है ! तो फिर
ये जहर ऊपर की तरफ जाता है ! मान लीजिये हाथ पर साँप ने काट लिया तो फिर जहर
दिल की तरफ जाएगा उसके बाद पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! ऐसे ही अगर पैर पर काट
लिया तो फिर ऊपर की और heart तक जाएगा और फिर पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! कहीं भी
काटेगा तो दिल तक जाएगा ! और पूरे मे खून मे पूरे शरीर मे उसे पहुँचने मे 3
घंटे लगेंगे !

मतलब ये है कि रोगी 3 घंटे तक तो नहीं ही मरेगा ! जब पूरे दिमाग के एक एक
हिस्से मे बाकी सब जगह पर जहर पहुँच जाएगा तभी उसकी death होगी otherwise नहीं
होगी ! तो 3 घंटे का time है रोगी को बचाने का और उस तीन घंटे मे अगर आप कुछ
कर ले तो बहुत अच्छा है !

क्या कर सकते हैं ?? ???

घर मे कोई पुराना इंजेक्शन (injection) हो तो उसे ले और आगे जहां सुई(needle)
लगी होती है वहाँ से काटे ! सुई(needle) जिस पलास्टिक मे फिट होती है उस
प्लास्टिक वाले हिस्से को काटे !! जैसे ही आप सुई के पीछे लगे पलास्टिक वाले
हिस्से को काटेंगे तो वो injection एक सक्षम पाईप की तरह हो जाएगा ! बिलकुल
वैसा ही जैसा होली के दिनो मे बच्चो की पिचकारी होती है !

उसके बाद आप रोगी के शरीर पर जहां साँप ने काटा है वो निशान ढूँढे ! बिलकुल
आसानी से मिल जाएगा क्यूंकि जहां साँप काटता है वहाँ कुछ सूजन आ जाती है और दो
निशान जिन पर हल्का खून लगा होता है आपको मिल जाएँगे ! अब आपको वो injection(
जिसका सुई वाला हिस्सा आपने काट दिया है) लेना है और उन दो निशान मे से पहले
एक निशान पर रख कर उसको खीचना है ! जैसी आप निशान पर injection रखेंगे वो
निशान पर चिपक जाएगा तो उसमे vacuum crate हो जाएगा ! और आप खींचेगे तो खून उस
injection मे भर जाएगा ! बिलकुल वैसे ही जैसे बच्चे पिचकारी से पानी भरते हैं
! तो आप इंजेक्शन से खींचते रहिए !और आप first time निकलेंगे तो देखेंगे कि उस
खून का रंग हल्का blackish होगा या dark होगा तो समझ लीजिये उसमे जहर मिक्स हो
गया है !

तो जब तक वो dark और blackish रंग blood निकलता रहे आप खिंचीये ! तो वो सारा
निकल आएगा ! क्यूंकि साँप जो काटता है उसमे जहर ज्यादा नहीं होता है 0.5
मिलीग्राम के आस पास होता है क्यूंकि इससे ज्यादा उसके दाँतो मे रह ही नहीं
सकता ! तो 0.5 ,0.6 मिलीग्राम है दो तीन बार मे आपने खीच लिया तो बाहर आ जाएगा
! और जैसे ही बाहर आएगा आप देखेंगे कि रोगी मे कुछ बदलाव आ रहा है थोड़ी
consciousness (चेतना) आ जाएगी ! साँप काटने से व्यकित unconsciousness हो
जाता है या semi consciousness हो जाता है और जहर को बाहर खींचने से चेतना आ
जाती है ! consciousness आ गई तो वो मरेगा नहीं ! तो ये आप उसके लिए first aid
(प्राथमिक सहायता) कर सकते हैं !

इसी injection को आप बीच से कट कर दीजिये बिलकुल बीच कट कर दीजिये 50% इधर 50%
उधर ! तो आगे का जो छेद है उसका आकार और बढ़ जाएगा और खून और जल्दी से उसमे
भरेगा !
तो ये आप रोगी के लिए first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए ये कर सकते हैं !
____________________________

दूसरा एक medicine आप चाहें तो हमेशा अपने घर मे रख सकते हैं बहुत सस्ती है
homeopathy मे आती है ! उसका नाम है NAJA (N A J A ) ! homeopathy medicine है
किसी भी homeopathy shop मे आपको मिल जाएगी ! और इसकी potency है 200 ! आप
दुकान पर जाकर कहें NAJA 200 देदो ! तो दुकानदार आपको दे देगा ! ये 5 मिलीलीटर
आप घर मे खरीद कर रख लीजिएगा 100 लोगो की जान इससे बच जाएगी ! और इसकी कीमत
सिर्फ पाँच रुपए है ! इसकी बोतल भी आती है 100 मिलीग्राम की 70 से 80 रुपए की
उससे आप कम से कम 10000 लोगो की जान बचा सकते हैं जिनको साँप ने काटा है !

और ये जो medicine है NAJA ये दुनिया के सबसे खतरनाक साँप का ही poison है
जिसको कहते है क्रैक ! इस साँप का poison दुनिया मे सबसे खराब माना जाता है !
इसके बारे मे कहते है अगर इसने किसी को काटा तो उसे भगवान ही बचा सकता है !
medicine भी वहाँ काम नहीं करती उसी का ये poison है लेकिन delusion form मे
है तो घबराने की कोई बात नहीं ! आयुर्वेद का सिद्धांत आप जानते है लोहा लोहे
को काटता है तो जब जहर चला जाता है शरीर के अंदर तो दूसरे साँप का जहर ही काम
आता है !

तो ये NAJA 200 आप घर मे रख लीजिये !अब देनी कैसे है रोगी को वो आप जान लीजिये
!
1 बूंद उसकी जीभ पर रखे और 10 मिनट बाद फिर 1 बूंद रखे और फिर 10 मिनट बाद 1
बूंद रखे !! 3 बार डाल के छोड़ दीजिये !बस इतना काफी है !

और राजीव भाई video मे बताते है कि ये दवा रोगी की जिंदगी को हमेशा हमेशा के
लिए बचा लेगी ! और साँप काटने के एलोपेथी मे जो injection है वो आम
अस्तप्तालों मे नहीं मिल पाते ! डाक्टर आपको कहेगा इस अस्तपाताल मे ले जाओ
उसमे ले जाओ आदि आदि !!

और जो ये एलोपेथी वालो के पास injection है इसकी कीमत 10 से 15 हजार रुपए है !
और अगर मिल जाएँ तो डाक्टर एक साथ 8 से -10 injection ठोक देता है ! कभी कभी
15 तक ठोक देता है मतलब लाख-डेड लाख तो आपका एक बार मे साफ !! और यहाँ सिर्फ
10 रुपए की medicine से आप उसकी जान बचा सकते हैं !

और राजीव भाई इस video मे बताते है कि injection जितना effective है मैं इस
दवा(NAJA) की गारंटी लेता हूँ ये दवा एलोपेथी के injection से 100 गुना
(times) ज्यादा effective है !

तो अंत आप याद रखिए घर मे किसी को साँप काटे और अगर दवा(NAJA) घर मे न हो !
फटाफट कहीं से injection लेकर first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए आप
injection वाला उपाय शुरू करे ! और अगर दवा है तो फटाफट पहले दवा पिला दे और
उधर से injection वाला उपचार भी करते रहे !
दवा injection वाले उपचार से ज्यादा जरूरी है !!
________________________________
तो ये जानकारी आप हमेशा याद रखे पता नहीं कब काम आ जाए हो सकता है आपके ही
जीवन मे काम आ जाए ! या पड़ोसी के जीवन मे या किसी रिश्तेदार के काम आ जाए! तो
first aid के लिए injection की सुई काटने वाला तरीका और ये NAJA 200 hoeopathy
दवा ! 10 - 10 मिनट बाद 1 - 1 बूंद तीन बार
रोगी की जान बचा सकती है !!

आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !!

भारत मे 550 किस्म के साँप है ! जैसे एक cobra है ,viper है ,karit
है ! ऐसी 550 किस्म की साँपो की जातियाँ हैं ! इनमे से मुश्किल से 10 साँप है
जो जहरीले है सिर्फ 10 ! बाकी सब non poisonous है! इसका मतलब ये हुआ 540 साँप
ऐसे है जिनके काटने से आपको कुछ नहीं होगा !! बिलकुल चिंता मत करिए !

लेकिन साँप के काटने का डर इतना है (हाय साँप ने काट लिया ) और कि कई बार आदमी
heart attack से मर जाता है !जहर से नहीं मरता cardiac arrest से मर जाता है !
तो डर इतना है मन मे ! तो ये डर निकलना चाहिए !

वो डर कैसे निकलेगा ????

जब आपको ये पता होगा कि 550 तरह के साँप है उनमे से सिर्फ 10 साँप जहरीले हैं
! जिनके काटने से कोई मरता है ! इनमे से जो सबसे जहरीला साँप है उसका नाम है !
russell viper ! उसके बाद है karit इसके बाद है viper और एक है cobra ! king
cobra जिसको आप कहते है काला नाग !! ये 4 तो बहुत ही खतरनाक और जहरीले है इनमे
से किसी ने काट लिया तो 99 % chances है कि death होगी !

लेकिन अगर आप थोड़ी होशियारी दिखाये तो आप रोगी को बचा सकते हैं
होशियारी क्या दिखनी है ???

आपने देखा होगा साँप जब भी काटता है तो उसके दो दाँत है जिनमे जहर है जो शरीर
के मास के अंदर घुस जाते हैं ! और खून मे वो अपना जहर छोड़ देता है ! तो फिर
ये जहर ऊपर की तरफ जाता है ! मान लीजिये हाथ पर साँप ने काट लिया तो फिर जहर
दिल की तरफ जाएगा उसके बाद पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! ऐसे ही अगर पैर पर काट
लिया तो फिर ऊपर की और heart तक जाएगा और फिर पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! कहीं भी
काटेगा तो दिल तक जाएगा ! और पूरे मे खून मे पूरे शरीर मे उसे पहुँचने मे 3
घंटे लगेंगे !

मतलब ये है कि रोगी 3 घंटे तक तो नहीं ही मरेगा ! जब पूरे दिमाग के एक एक
हिस्से मे बाकी सब जगह पर जहर पहुँच जाएगा तभी उसकी death होगी otherwise नहीं
होगी ! तो 3 घंटे का time है रोगी को बचाने का और उस तीन घंटे मे अगर आप कुछ
कर ले तो बहुत अच्छा है !

क्या कर सकते हैं ?? ???

घर मे कोई पुराना इंजेक्शन (injection) हो तो उसे ले और आगे जहां सुई(needle)
लगी होती है वहाँ से काटे ! सुई(needle) जिस पलास्टिक मे फिट होती है उस
प्लास्टिक वाले हिस्से को काटे !! जैसे ही आप सुई के पीछे लगे पलास्टिक वाले
हिस्से को काटेंगे तो वो injection एक सक्षम पाईप की तरह हो जाएगा ! बिलकुल
वैसा ही जैसा होली के दिनो मे बच्चो की पिचकारी होती है !

उसके बाद आप रोगी के शरीर पर जहां साँप ने काटा है वो निशान ढूँढे ! बिलकुल
आसानी से मिल जाएगा क्यूंकि जहां साँप काटता है वहाँ कुछ सूजन आ जाती है और दो
निशान जिन पर हल्का खून लगा होता है आपको मिल जाएँगे ! अब आपको वो injection(
जिसका सुई वाला हिस्सा आपने काट दिया है) लेना है और उन दो निशान मे से पहले
एक निशान पर रख कर उसको खीचना है ! जैसी आप निशान पर injection रखेंगे वो
निशान पर चिपक जाएगा तो उसमे vacuum crate हो जाएगा ! और आप खींचेगे तो खून उस
injection मे भर जाएगा ! बिलकुल वैसे ही जैसे बच्चे पिचकारी से पानी भरते हैं
! तो आप इंजेक्शन से खींचते रहिए !और आप first time निकलेंगे तो देखेंगे कि उस
खून का रंग हल्का blackish होगा या dark होगा तो समझ लीजिये उसमे जहर मिक्स हो
गया है !

तो जब तक वो dark और blackish रंग blood निकलता रहे आप खिंचीये ! तो वो सारा
निकल आएगा ! क्यूंकि साँप जो काटता है उसमे जहर ज्यादा नहीं होता है 0.5
मिलीग्राम के आस पास होता है क्यूंकि इससे ज्यादा उसके दाँतो मे रह ही नहीं
सकता ! तो 0.5 ,0.6 मिलीग्राम है दो तीन बार मे आपने खीच लिया तो बाहर आ जाएगा
! और जैसे ही बाहर आएगा आप देखेंगे कि रोगी मे कुछ बदलाव आ रहा है थोड़ी
consciousness (चेतना) आ जाएगी ! साँप काटने से व्यकित unconsciousness हो
जाता है या semi consciousness हो जाता है और जहर को बाहर खींचने से चेतना आ
जाती है ! consciousness आ गई तो वो मरेगा नहीं ! तो ये आप उसके लिए first aid
(प्राथमिक सहायता) कर सकते हैं !

इसी injection को आप बीच से कट कर दीजिये बिलकुल बीच कट कर दीजिये 50% इधर 50%
उधर ! तो आगे का जो छेद है उसका आकार और बढ़ जाएगा और खून और जल्दी से उसमे
भरेगा !
तो ये आप रोगी के लिए first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए ये कर सकते हैं !
____________________________

दूसरा एक medicine आप चाहें तो हमेशा अपने घर मे रख सकते हैं बहुत सस्ती है
homeopathy मे आती है ! उसका नाम है NAJA (N A J A ) ! homeopathy medicine है
किसी भी homeopathy shop मे आपको मिल जाएगी ! और इसकी potency है 200 ! आप
दुकान पर जाकर कहें NAJA 200 देदो ! तो दुकानदार आपको दे देगा ! ये 5 मिलीलीटर
आप घर मे खरीद कर रख लीजिएगा 100 लोगो की जान इससे बच जाएगी ! और इसकी कीमत
सिर्फ पाँच रुपए है ! इसकी बोतल भी आती है 100 मिलीग्राम की 70 से 80 रुपए की
उससे आप कम से कम 10000 लोगो की जान बचा सकते हैं जिनको साँप ने काटा है !

और ये जो medicine है NAJA ये दुनिया के सबसे खतरनाक साँप का ही poison है
जिसको कहते है क्रैक ! इस साँप का poison दुनिया मे सबसे खराब माना जाता है !
इसके बारे मे कहते है अगर इसने किसी को काटा तो उसे भगवान ही बचा सकता है !
medicine भी वहाँ काम नहीं करती उसी का ये poison है लेकिन delusion form मे
है तो घबराने की कोई बात नहीं ! आयुर्वेद का सिद्धांत आप जानते है लोहा लोहे
को काटता है तो जब जहर चला जाता है शरीर के अंदर तो दूसरे साँप का जहर ही काम
आता है !

तो ये NAJA 200 आप घर मे रख लीजिये !अब देनी कैसे है रोगी को वो आप जान लीजिये
!
1 बूंद उसकी जीभ पर रखे और 10 मिनट बाद फिर 1 बूंद रखे और फिर 10 मिनट बाद 1
बूंद रखे !! 3 बार डाल के छोड़ दीजिये !बस इतना काफी है !

और राजीव भाई video मे बताते है कि ये दवा रोगी की जिंदगी को हमेशा हमेशा के
लिए बचा लेगी ! और साँप काटने के एलोपेथी मे जो injection है वो आम
अस्तप्तालों मे नहीं मिल पाते ! डाक्टर आपको कहेगा इस अस्तपाताल मे ले जाओ
उसमे ले जाओ आदि आदि !!

और जो ये एलोपेथी वालो के पास injection है इसकी कीमत 10 से 15 हजार रुपए है !
और अगर मिल जाएँ तो डाक्टर एक साथ 8 से -10 injection ठोक देता है ! कभी कभी
15 तक ठोक देता है मतलब लाख-डेड लाख तो आपका एक बार मे साफ !! और यहाँ सिर्फ
10 रुपए की medicine से आप उसकी जान बचा सकते हैं !

और राजीव भाई इस video मे बताते है कि injection जितना effective है मैं इस
दवा(NAJA) की गारंटी लेता हूँ ये दवा एलोपेथी के injection से 100 गुना
(times) ज्यादा effective है !

तो अंत आप याद रखिए घर मे किसी को साँप काटे और अगर दवा(NAJA) घर मे न हो !
फटाफट कहीं से injection लेकर first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए आप
injection वाला उपाय शुरू करे ! और अगर दवा है तो फटाफट पहले दवा पिला दे और
उधर से injection वाला उपचार भी करते रहे !
दवा injection वाले उपचार से ज्यादा जरूरी है !!
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तो ये जानकारी आप हमेशा याद रखे पता नहीं कब काम आ जाए हो सकता है आपके ही
जीवन मे काम आ जाए ! या पड़ोसी के जीवन मे या किसी रिश्तेदार के काम आ जाए! तो
first aid के लिए injection की सुई काटने वाला तरीका और ये NAJA 200 hoeopathy
दवा ! 10 - 10 मिनट बाद 1 - 1 बूंद तीन बार
रोगी की जान बचा सकती है !!

gyan-vigyan: smaran shakti barhayen

ज्ञान-विज्ञान

Photo: स्मरणशक्ति कैसे बढ़ायें?

अच्छी और तीव्र स्मरण शक्ति के लिए हमें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ, सबल और निरोग रहना होगा। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और सशक्त हुए बिना हम अपनी स्मृति को भी अच्छी और तीव्र नहीं बनाये रख सकते।

आप यह बात ठीक से याद रखें कि हमारी यादशक्ति हमारे ध्यान पर और मन की एकाग्रता पर निर्भर करती है। हम जिस तरफ जितना ज्यादा एकाग्रतापूर्वक ध्यान देंगे, उस तरफ हमारी विचारशक्ति उतनी ज्यादा केन्द्रित हो जायेगी। जिस कार्य में भी जितनी अधिक तीव्रता, स्थिरता और शक्ति लगायी जायेगी, उतनी गहराई और मजबूती से वह कार्य हमारे स्मृति पटल पर अंकित हो जायेगा।

स्मृति को बनाये रखना ही स्मरणशक्ति है और इसके लिए जरूरी है सुने हुए व पढ़े हुए विषयों का बार-बार मानना करना, अभ्यास करना। जो बातें हमारे ध्यान में बराबर आती रहती हैं, उनकी याद बनी रहती है और जो बातें लम्बे समय तक हमारे ध्यान में नहीं आतीं, उन्हें हम भूल जाते हैं। विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने अभ्यासक्रम (कोर्स) की किताबों को पूरे मनोयोग से एकाग्रचित्त होकर पढ़ा करें और बारंबार नियमित रूप से दोहराते भी रहें। फालतू सोच विचार करने से, चिंता करने से, ज्यादा बोलने से, फालतू बातें करने से, झूठ बोलने से या बहाने बाजी करने से तथा कार्य के कार्यों में उलझे रहने से स्मरणशक्ति नष्ट होती है।

बुद्धि कहीं बाजार में मिलने वाली चीज नही है, बल्कि अभ्यास से प्राप्त करने की और बढ़ायी जाने वाली चीज है। इसलिए आपको भरपूर अभ्यास करके बुद्धि और ज्ञान बढ़ाने में जुटे रहना होगा।

विद्या, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च किया जाय उतना ही ये बढ़ते जाते हैं जबकि धन या अन्य पदार्थ खर्च करने पर घटते हैं। विद्या की प्राप्ति और बुद्धि के विकास के लिए आप जितना प्रयत्न करेंगे, अभ्यास करेंगे, उतना ही आपका ज्ञान और बौद्धिक बल बढ़ता जायगा।

सतत अभ्यास और परिश्रम करने के लिए यह भी जरूरी है कि आपका दिमाग और शरीर स्वस्थ व ताकतवर बना रहे। यदि अल्प श्रम में ही आप थक जायेंगे तो पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा समय तक मन नहीं लगेगा। इसलिए निम्न प्रयोग करें।

आवश्यक सामग्रीः शंखावली (शंखपुष्पी) का पंचांग कूट-पीसकर, छानकर, महीन, चूर्ण करके शीशी में भर लें। बादाम की 2 गिरी और तरबूज, खरबूजा, पतली ककड़ी और मोटी खीरा ककड़ी इन चारों के बीज 5-5 ग्राम, 2 पिस्ता, 1 छुहारा, 4 इलायची (छोटी), 5 ग्राम सौंफ, 1 चम्मच मक्खन और एक गिलास दूध लें।

विधिः रात में बादाम, पिस्ता, छुहारा और चारों मगज 1 कप पानी में डालकर रख दें। प्रातःकाल बादाम का छिलका हटाकर उन्हें दो बार बूँद पानी के साथ पत्थर पर घिस लें और उस लेप को कटोरी में ले लें। फिर पिस्ता, इलायची के दाने व छुहारे को बारीक काट-पीसकर उसमें मिला लें। चारों मगज भी उसमें ऐसे ही डाल लें। अब इन सबको अच्छी तरह मिलाकर खूब चबा-चबाकर खा जायें। उसके बाद 3 ग्राम शंखावली का महीन चूर्ण मक्खन में मिलाकर चाट लें और एक गिलास गुनगुना मीठा दूध 1-1 घूँट करके पी लें। अंत में, थोड़े सौंफ मुँह में डालकर धीरे-धीरे 15-20 मिनट तक चबाते रहें और उनका रस चूसते रहें। चूसने के बाद उन्हें निगल जायें।

लाभः यह प्रयोग दिमागी ताकत, तरावट और स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए बेजोड़ है। साथ ही साथ यह शरीर में शक्ति व स्फूर्ति पैदा करता है। लगातार 40 दिन तक प्रतिदिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर खाली पेट इसका सेवन करके आप चमत्कारिक लाभ देख सकते हैं।

यह प्रयोग करने के दो घंटे बाद भोजन करें। उपरोक्त सभी द्रव्य पंसारी या कच्ची दवा बेचने वाले की दुकान से इकट्ठे ले आयें और 15-20 मिनट का समय देकर प्रतिदिन तैयार करें। इस प्रयोग को आप 40 दिन से भी ज्यादा, जब तक चाहें कर सकते हैं।

एक अन्य प्रयोगः एक गाजर और लगभग 50-60 ग्राम पत्ता गोभी अर्थात् 10-12 पत्ते काटकर प्लेट में रख लें। इस पर हरा धनिया काटकर डाल दें। फिर उसमें सेंधा नमक, काली मिर्च का चूर्ण और नींबू का रस मिलाकर खूब चबा चबाकर नाश्ते के रूप में खाया करें।
भोजन के साथ एक गिलास छाछ भी पिया करें।

1) जड़-पत्तों सहित ब्राह्मी को उखाडकर एवं जल से धोकर ओखली में कुटे और कपडे में छाल ले. तत्पश्चात उसके एक तोले रस में छह माशे गौ घृत डालकर पकावे और हल्दी, आँवला, कूट, निसोत, हरड, चार-चार तोले, पीपल, वायविडंग, सेंधा नमक, मिश्री और बच एक-एक तोले इन सबकी चटनी उसमे डालकर मंद आग पर पकावे. जब पानी सुख जाए और घृत शेष रहे, तो उसे छानकर, लेवे और प्रतिदिन प्रातः काल एक तोला घृत चाटे. इसके सेवन से वाणी शुद्ध होती है. सात दिन तक सेवन करने से अनेक शास्त्रों को धारण कराता है. १८ प्रकार के कोढ़, ६ प्रकार के बवासीर, २ प्रकार के गुल्मी, २० प्रकार के प्रमेह और खाँसी दूर होती है. बंध्या स्त्री और अल्प वीर्य वाले मनुष्टों के लिए यह सारस्वत घृत वर्ण, वायु और बल को बढाता है. –चक्रदत्त.

२) बच का एक माशा चूर्ण जल, दूध या घृत के साथ एक मास सेवन करने से मनुष्य पंडित और बुद्धिमान बन जाता है. –वृहन्नीघण्टु

३) बेल कि जड़ का छाल और शतावरी का क्वाथ प्रतिदिन दूध के साथ स्नान और हवन के पश्चात पीजिए. इससे आयु और बुद्धि कि वृद्धि होती है. –सुश्रुत

४) गिलोय, ओंगा, वायविडंग, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बच, सोंठ और शतावर इन सबको बराबर लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनावे और प्रातःकाल चार माशे मिश्री के साथ चाटे, तो तीन हजार श्लोक कंठस्थ करने कि शक्ति हो जाती है.

सावधानियाँ

रात को 9 बजे के बाद पढ़ने के लिए जागरण करें तो आधे-आधे घंटे के अंतर पर आधा गिलास ठंडा पानी पीते रहें। इससे जागरण के कारण होने वाला वातप्रकोप  नहीं होगा। वैसे 11 बजे से पहले सो जाना ही उचित है।

लेटकर या झुके हुए बैठकर न पढ़ा करें। रीढ़ की हड्डी सीधी रखकर बैठें। इससे आलस्य या निद्रा का असन नहीं होगा और स्फूर्ति बनी रहेगी। सुस्ती महसूस हो तो थोड़ी चहलकदमी करें। नींद भगाने के लिए चाय या सिगरेट का सेवन कदापि न करें।

स्मरणशक्ति कैसे बढ़ायें?

अच्छी और तीव्र स्मरण शक्ति के लिए हमें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ, सबल और निरोग रहना होगा। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और सशक्त हुए बिना हम अपनी स्मृति को भी अच्छी और तीव्र नहीं बनाये रख सकते।

आप यह बात ठीक से याद रखें कि हमारी यादशक्ति हमारे ध्यान पर और मन की एकाग्रता पर निर्भर करती है। हम जिस तरफ जितना ज्यादा एकाग्रतापूर्वक ध्यान देंगे, उस तरफ हमारी विचारशक्ति उतनी ज्यादा केन्द्रित हो जायेगी। जिस कार्य में भी जितनी अधिक तीव्रता, स्थिरता और शक्ति लगायी जायेगी, उतनी गहराई और मजबूती से वह कार्य हमारे स्मृति पटल पर अंकित हो जायेगा।

स्मृति को बनाये रखना ही स्मरणशक्ति है और इसके लिए जरूरी है सुने हुए व पढ़े हुए विषयों का बार-बार मानना करना, अभ्यास करना। जो बातें हमारे ध्यान में बराबर आती रहती हैं, उनकी याद बनी रहती है और जो बातें लम्बे समय तक हमारे ध्यान में नहीं आतीं, उन्हें हम भूल जाते हैं। विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने अभ्यासक्रम (कोर्स) की किताबों को पूरे मनोयोग से एकाग्रचित्त होकर पढ़ा करें और बारंबार नियमित रूप से दोहराते भी रहें। फालतू सोच विचार करने से, चिंता करने से, ज्यादा बोलने से, फालतू बातें करने से, झूठ बोलने से या बहाने बाजी करने से तथा कार्य के कार्यों में उलझे रहने से स्मरणशक्ति नष्ट होती है।

बुद्धि कहीं बाजार में मिलने वाली चीज नही है, बल्कि अभ्यास से प्राप्त करने की और बढ़ायी जाने वाली चीज है। इसलिए आपको भरपूर अभ्यास करके बुद्धि और ज्ञान बढ़ाने में जुटे रहना होगा।

विद्या, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च किया जाय उतना ही ये बढ़ते जाते हैं जबकि धन या अन्य पदार्थ खर्च करने पर घटते हैं। विद्या की प्राप्ति और बुद्धि के विकास के लिए आप जितना प्रयत्न करेंगे, अभ्यास करेंगे, उतना ही आपका ज्ञान और बौद्धिक बल बढ़ता जायगा।

सतत अभ्यास और परिश्रम करने के लिए यह भी जरूरी है कि आपका दिमाग और शरीर स्वस्थ व ताकतवर बना रहे। यदि अल्प श्रम में ही आप थक जायेंगे तो पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा समय तक मन नहीं लगेगा। इसलिए निम्न प्रयोग करें।

आवश्यक सामग्रीः शंखावली (शंखपुष्पी) का पंचांग कूट-पीसकर, छानकर, महीन, चूर्ण करके शीशी में भर लें। बादाम की 2 गिरी और तरबूज, खरबूजा, पतली ककड़ी और मोटी खीरा ककड़ी इन चारों के बीज 5-5 ग्राम, 2 पिस्ता, 1 छुहारा, 4 इलायची (छोटी), 5 ग्राम सौंफ, 1 चम्मच मक्खन और एक गिलास दूध लें।

विधिः रात में बादाम, पिस्ता, छुहारा और चारों मगज 1 कप पानी में डालकर रख दें। प्रातःकाल बादाम का छिलका हटाकर उन्हें दो बार बूँद पानी के साथ पत्थर पर घिस लें और उस लेप को कटोरी में ले लें। फिर पिस्ता, इलायची के दाने व छुहारे को बारीक काट-पीसकर उसमें मिला लें। चारों मगज भी उसमें ऐसे ही डाल लें। अब इन सबको अच्छी तरह मिलाकर खूब चबा-चबाकर खा जायें। उसके बाद 3 ग्राम शंखावली का महीन चूर्ण मक्खन में मिलाकर चाट लें और एक गिलास गुनगुना मीठा दूध 1-1 घूँट करके पी लें। अंत में, थोड़े सौंफ मुँह में डालकर धीरे-धीरे 15-20 मिनट तक चबाते रहें और उनका रस चूसते रहें। चूसने के बाद उन्हें निगल जायें।

लाभः यह प्रयोग दिमागी ताकत, तरावट और स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए बेजोड़ है। साथ ही साथ यह शरीर में शक्ति व स्फूर्ति पैदा करता है। लगातार 40 दिन तक प्रतिदिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर खाली पेट इसका सेवन करके आप चमत्कारिक लाभ देख सकते हैं।

यह प्रयोग करने के दो घंटे बाद भोजन करें। उपरोक्त सभी द्रव्य पंसारी या कच्ची दवा बेचने वाले की दुकान से इकट्ठे ले आयें और 15-20 मिनट का समय देकर प्रतिदिन तैयार करें। इस प्रयोग को आप 40 दिन से भी ज्यादा, जब तक चाहें कर सकते हैं।

एक अन्य प्रयोगः एक गाजर और लगभग 50-60 ग्राम पत्ता गोभी अर्थात् 10-12 पत्ते काटकर प्लेट में रख लें। इस पर हरा धनिया काटकर डाल दें। फिर उसमें सेंधा नमक, काली मिर्च का चूर्ण और नींबू का रस मिलाकर खूब चबा चबाकर नाश्ते के रूप में खाया करें।
भोजन के साथ एक गिलास छाछ भी पिया करें।

1) जड़-पत्तों सहित ब्राह्मी को उखाडकर एवं जल से धोकर ओखली में कुटे और कपडे में छाल ले. तत्पश्चात उसके एक तोले रस में छह माशे गौ घृत डालकर पकावे और हल्दी, आँवला, कूट, निसोत, हरड, चार-चार तोले, पीपल, वायविडंग, सेंधा नमक, मिश्री और बच एक-एक तोले इन सबकी चटनी उसमे डालकर मंद आग पर पकावे. जब पानी सुख जाए और घृत शेष रहे, तो उसे छानकर, लेवे और प्रतिदिन प्रातः काल एक तोला घृत चाटे. इसके सेवन से वाणी शुद्ध होती है. सात दिन तक सेवन करने से अनेक शास्त्रों को धारण कराता है. १८ प्रकार के कोढ़, ६ प्रकार के बवासीर, २ प्रकार के गुल्मी, २० प्रकार के प्रमेह और खाँसी दूर होती है. बंध्या स्त्री और अल्प वीर्य वाले मनुष्टों के लिए यह सारस्वत घृत वर्ण, वायु और बल को बढाता है. –चक्रदत्त.

२) बच का एक माशा चूर्ण जल, दूध या घृत के साथ एक मास सेवन करने से मनुष्य पंडित और बुद्धिमान बन जाता है. –वृहन्नीघण्टु

३) बेल कि जड़ का छाल और शतावरी का क्वाथ प्रतिदिन दूध के साथ स्नान और हवन के पश्चात पीजिए. इससे आयु और बुद्धि कि वृद्धि होती है. –सुश्रुत

४) गिलोय, ओंगा, वायविडंग, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बच, सोंठ और शतावर इन सबको बराबर लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनावे और प्रातःकाल चार माशे मिश्री के साथ चाटे, तो तीन हजार श्लोक कंठस्थ करने कि शक्ति हो जाती है.

सावधानियाँ

रात को 9 बजे के बाद पढ़ने के लिए जागरण करें तो आधे-आधे घंटे के अंतर पर आधा गिलास ठंडा पानी पीते रहें। इससे जागरण के कारण होने वाला वातप्रकोप नहीं होगा। वैसे 11 बजे से पहले सो जाना ही उचित है।

लेटकर या झुके हुए बैठकर न पढ़ा करें। रीढ़ की हड्डी सीधी रखकर बैठें। इससे आलस्य या निद्रा का असन नहीं होगा और स्फूर्ति बनी रहेगी। सुस्ती महसूस हो तो थोड़ी चहलकदमी करें। नींद भगाने के लिए चाय या सिगरेट का सेवन कदापि न करें।

chitra par kavita: kahan ja rahe ho... -sanjiv

चित्र पर कविता:
प्रस्तुत है चित्र, रच दीजिए इस पर सरस कविता 
http://static.mydailyhonk.com/wp-content/uploads/2013/05/Rich-2.jpg
नव गीत:कहाँ जा रहे हो…
संजीव
*
पाखी समय का
ठिठक पूछता है
कहाँ जा रहे हो?...
*
उमड़ आ रहे हैं बादल गगन पर
तूफां में उड़ते पंछी भटककर
लिये हाथ में हाथ जाते कहाँ हो?
बैठे हो क्यों बन्धु! खुद में सिमटकर
साथी प्रलय से
सतत जूझता और
सुस्ता रहे हो?...
*
मलय कोई देखे कैसे नयन भर
विलय कोई लेखे कैसे शयन कर
निलय काँपते देख झंझा-झकोरे
मनुज क्यों सशंकित थमकर, ठिठककर  
साथी 'सलिल' का 
नहीं सूझता देख
मुस्का रहे हो?...
*


 

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

ज्ञानविज्ञान :
पीपल के पत्ते से मोबाइल चार्ज करें
राजीव दीक्षित
*
Photo: यह बहुत अजीब है परन्तु सत्य है !!!  राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

अब आपको अपने मोबाइल को चार्ज करने के लिए मोबाइल चार्जर की आवश्यकता नही है आपको केवल पीपल के दो हरे पत्ते चाहिए और कुछ समय बाद आपकी मोबाइल चार्ज हो जाएगी।

जल्द ही लोगों ने इसको सिख लिया फिर परीक्षण किया और पाया के परिणाम उत्साहजनक हैं। यदि आपकी मोबाइल की चार्ज ख़तम हो जाये और आप किसी जंगल के भीतर हो तो आपको किसी भी चार्जर की उपयोग की आवश्यकता नही। आप बस दो पीपल के पत्ते तोडिये और आपका काम हो जायेगा। 

यह बहुत अच्छा विचार है और अपने मोबाइल चार्ज करने के लिए आसान है। आपको अपने मोबाइल की बैटरी को खोलना और पीपल के पत्ते के साथ कनेक्ट करना होगा। कुछ समय के बाद आपके मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाएगी।

हालांकि यह अविश्वसनीय है, लेकिन जैसे ही चित्रकूट के निवासियों को इस खोज के बारे में पता चला वे इस खबर को विश्वास नहीं कर सके। लेकिन जब वे इसको व्यावहारिक रूप से देखा तो घटना की सत्यता को स्वीकार किया।

अब सैकड़ों मोबाइल धारक इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं और उनके मोबाइल फोन चार्ज कर रहें है।

जबकि वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार, यह सिर्फ म्युचुअल ऊर्जा विद्युत ऊर्जा शक्ति में बदलना है जो बैटरी में संचित होता है। उन्होंने कहा कि यह शोध का विषय है।
पीपल पत्ती का उपयोग से मोबाइल की बैटरी चार्ज करने का मार्गदर्शन :-
1. अपने मोबाइल की कवर खोलिए।
2. बैटरी को निकाले।
3. पीपल / अश्वथ्थ पेड़ के दो ताज़ा पत्ते लीजिये।
4. अपने मोबाइल की बैटरी टर्मिनल पर इन पत्तियों के ठूंठ को एक मिनट के लिए छु कर रखिये।
5. अब मुलायम कपड़े से मोबाइल बैटरी टर्मिनल साफ करिए।
6. अपनी बैटरी फिर से आपके मोबाइल में रखिये और स्विच ओन करिए।
7. अब आप परिणाम देख सकते हैं।
8. यदि आवश्यक हो ताजा पत्तों के साथ इस प्रक्रिया को दोहराएँ।

राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

अब आपको अपने मोबाइल को चार्ज करने के लिए मोबाइल चार्जर की आवश्यकता नही है आपको केवल पीपल के दो हरे पत्ते चाहिए और कुछ समय बाद आपकी मोबाइल चार्ज हो जाएगी।

जल्द ही लोगों ने इसको सिख लिया फिर परीक्षण किया और पाया के परिणाम उत्साहजनक हैं। यदि आपकी मोबाइल की चार्ज ख़तम हो जाये और आप किसी जंगल के भीतर हो तो आपको किसी भी चार्जर की उपयोग की आवश्यकता नही। आप बस दो पीपल के पत्ते तोडिये और आपका काम हो जायेगा।

यह बहुत अच्छा विचार है और अपने मोबाइल चार्ज करने के लिए आसान है। आपको अपने मोबाइल की बैटरी को खोलना और पीपल के पत्ते के साथ कनेक्ट करना होगा। कुछ समय के बाद आपके मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाएगी।

हालांकि यह अविश्वसनीय है, लेकिन जैसे ही चित्रकूट के निवासियों को इस खोज के बारे में पता चला वे इस खबर को विश्वास नहीं कर सके। लेकिन जब वे इसको व्यावहारिक रूप से देखा तो घटना की सत्यता को स्वीकार किया।

अब सैकड़ों मोबाइल धारक इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं और उनके मोबाइल फोन चार्ज कर रहें है।

जबकि वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार, यह सिर्फ म्युचुअल ऊर्जा विद्युत ऊर्जा शक्ति में बदलना है जो बैटरी में संचित होता है। उन्होंने कहा कि यह शोध का विषय है।
पीपल पत्ती का उपयोग से मोबाइल की बैटरी चार्ज करने का मार्गदर्शन :-
1. अपने मोबाइल की कवर खोलिए।
2. बैटरी को निकाले।
3. पीपल / अश्वथ्थ पेड़ के दो ताज़ा पत्ते लीजिये।
4. अपने मोबाइल की बैटरी टर्मिनल पर इन पत्तियों के ठूंठ को एक मिनट के लिए छु कर रखिये।
5. अब मुलायम कपड़े से मोबाइल बैटरी टर्मिनल साफ करिए।
6. अपनी बैटरी फिर से आपके मोबाइल में रखिये और स्विच ओन करिए।
7. अब आप परिणाम देख सकते हैं।
8. यदि आवश्यक हो ताजा पत्तों के साथ इस प्रक्रिया को दोहराएँ।

rani padmini ka amar balidan - rajni saxena

इतिहास के झरोखे से: 
महारानी पद्मिनी की बलिदान गाथा
रजनी सक्सेना

Photo: १३०२इश्वी में मेवाड़ के राजसिंहासन पर रावल रतन सिंह आरूढ़ हुए. उनकी रानियों में एक थी पद्मिनी जो श्री लंका के राजवंशकी राजकुँवरी थी.
रानी पद्मिनी का अनिन्द्य सौन्दर्य यायावर गायकों (चारण/भाट/कवियों) के गीतों का विषय बन गया था.
दिल्ली के तात्कालिक सुल्तान अल्ला-उ-द्दीन खिलज़ी ने पद्मिनी के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन सुना और वह पिपासु हो गया उस सुंदरी को अपने हरम में शामिल करने के लिए. अल्ला-उ-द्दीन ने चित्तौड़ (मेवाड़ की राजधानी) की ओर कूच किया अपनी अत्याधुनिक हथियारों से लेश सेना के साथ. मकसद था चित्तौड़ पर चढ़ाई कर उसे जीतना और रानी पद्मिनी को हासिल करना.ज़ालिम सुलतान बढा जा रहा था,चित्तौड़गढ़ के नज़दीक आये जा रहा था.उसने चित्तौड़गढ़ में अपने दूत को इस पैगामके साथ भेजा कि अगर उसको रानी पद्मिनी को सुपुर्द कर दिया जाये तो वह मेवाड़ पर आक्रमण नहीं करेगा. रणबाँकुरे राजपूतों के लिए यह सन्देश बहुत शर्मनाक था.उनकी बहादुरी कितनी ही उच्चस्तरीय क्यों ना हो, उनके हौसले कितने ही बुलंद क्यों ना हो, सुलतान की फौजी ताक़त उनसे कहीं ज्यादा थी. रणथम्भोर के किले को सुलतान हाल ही में फतह कर लिया था ऐसे में बहुत ही गहरे सोच का विषय हो गया था सुल्तान का यह घृणित प्रस्ताव, जो सुल्तान की कामुकता और दुष्टता का प्रतीक था.कैसे मानी ज सकती थी यह शर्मनाक शर्त.नारी के प्रति एक कामुक नराधम का यहरवैय्या क्षत्रियों के खून खौला देने के लिए काफी था.
रतन सिंह जी ने सभी सरदारों से मंत्रणा की, कैसे सामना किया जाय इस नीच लुटेरे का जो बादशाह के जामे में लिपटा हुआ था.कोई आसान रास्ता नहीं सूझ रहा था.मरने मारने का विकल्प तो अंतिम था.क्यों ना कोई चतुराईपूर्ण राजनीतिक कूटनीतिक समाधान समस्या का निकाला जाय ?रानी पद्मिनी न केवल अनुपम सौन्दर्यकी स्वामिनी थी, वह एक बुद्धिमता नारी भी थी. उसने अपने विवेक से स्थिति पर गौर किया और एक संभावित हल समस्या का सुझाया.
अल्ला-उ-द्दीनको जवाब भेजा गया कि वह अकेला निरस्त्र गढ़ (किले) में प्रवेश कर सकता है, बिना किसी को साथ लिए,राजपूतों का वचन है कि उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा….हाँ वह केवल रानी पद्मिनी को देख सकता है..बस. उसके पश्चात् उसे चले जाना होगा चित्तौड़ को छोड़ कर…. जहाँ कहीं भी.
उम्मीद कम थी कि इस प्रस्ताव को सुल्तान मानेगा.किन्तु आश्चर्य हुआ जब दिल्ली के आका ने इस बात को मान लिया. निश्चित दिन को अल्ला-उ-द्दीन पूर्व के चढ़ाईदार मार्ग से किले के मुख्य दरवाज़े तक चढ़ा, और उसके बाद पूर्व दिशा में स्थित सूरजपोल तक पहुंचा. अपने वादे के मुताबिक वह नितान्त अकेला और निरस्त्र था.पद्मिनी के पति रावल रतन सिंह ने महलतक उसकी अगवानी की.
महल के उपरी मंजिल पर स्थित एक कक्ष कि पिछली दीवार पर एक दर्पण लगाया गया, जिसके ठीक सामने एक दूसरे कक्ष की खिड़की खुल रही थी…उस खिड़की के पीछे झील में स्थित एक मंडपनुमा महल था जिसे रानी अपनेग्रीष्म विश्राम के लिए उपयोग करती थी. रानी मंडपनुमा महल में थी जिसका बिम्ब खिडकियों से होकर उस दर्पण में पड़ रहा था अल्लाउद्दीन को कहा गया कि दर्पण में झांके. हक्केबक्के सुलतान ने आईने की जानिब अपनी नज़र की और उसमें रानी का अक्स उसे दिख गया …तकनीकी तौर पर.उसेरानी साहिबा को दिखा दिया गया था….
सुल्तान को एहसास हो गया कि उसके साथ चालबाजी की गयी है, …किन्तु बोल भी नहीं पा रहा था, मेवाड़ नरेश ने रानी के दर्शन कराने का अपना वादा जो पूरा किया था……और उस पर वह नितान्त अकेला और निरस्त्र भी था. परिस्थितियां असमान्य थी, किन्तु एक राजपूत मेजबान की गरिमा को अपनाते हुए,दुश्मन अल्लाउद्दीन को ससम्मान वापस पहुँचाने मुख्य द्वार तक स्वयं रावल रतन सिंह जी गये थे …..अल्लाउद्दीन ने तो पहले से ही धोखे की योजना बना रखी थी .उसके सिपाही दरवाज़े के बाहर छिपे हुए थे….दरवाज़ा खुला…….रावल साहब को जकड लिया गया और उन्हें पकड़ कर शत्रु सेना के खेमे में कैद कर दिया गया.रावल रतन सिंह दुश्मन की कैद में थे.अल्लाउद्दीन ने फिर से पैगाम भेजा गढ़ में कि राणाजी को वापस गढ़ में सुपुर्द कर दिया जायेगा, अगर रानी पद्मिनी को उसे सौंप दिया जाय.चतुर रानी ने काकोसा गोरा और उनके १२वर्षीय भतीजे बादल से मशविरा किया और एक चातुर्यपूर्णयोजना राणाजी को मुक्त करने के लिए तैयार की.
अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा गया कि अगले दिन सुबह रानी पद्मिनी उसकी खिदमत में हाज़िर हो जाएगी, दिल्ली में चूँकि उसकी देखभालके लिए उसकी खास दसियों की ज़रुरत भी होगी, उन्हें भी वह अपने साथ लिवा लाएगी. प्रमुदित अल्लाउद्दीन सारी रात्रि सो न सका…कब रानी पद्मिनी आये उसके हुज़ूर में, कब वह विजेता की तरह उसे भी जीते…..कल्पना करता रहा रात भर पद्मिनी के सुन्दर तन की….प्रभात बेला में उसने देखा कि एक जुलुस सा सात सौ बंद पालकियों का चला आ रहा है.खिलज़ी अपनी जीत पर इतरा रहा था.खिलज़ी ने सोचा था कि ज्योंही पद्मिनी उसकी गिरफ्त में आ जाएगी, रावल रतन सिंह का वधकर दिया जायेगा…और चित्तौड़ परहमला कर उस पर कब्ज़ा करलिया जायेगा. कुटिल हमलावर इस सेज्यादा सोच भी क्या सकता था.खिलज़ी के खेमे में इस अनूठे जुलूस ने प्रवेशकिया……और तुरंतअस्तव्यस्तता का माहौल बन गया…पालकियों से नहीं उतरी थी अनिन्द्यसुंदरी रानी पद्मिनी औरउसकी दासियों का झुण्ड……बल्कि पालकियों से कूद पड़े थे हथियारों से लेश रणबांकुरे राजपूत योद्धा ….जो अपनी जान पर खेल कर अपने राजा को छुड़ा लेने का ज़ज्बा लिए हुए थे.गोरा और बादल भी इन में सम्मिलित थे.मुसलमानों ने तुरत अपने सुल्तान को सुरक्षा घेरे में लिया. रतन सिंहजी को उनके आदमियों ने खोज निकाला और सुरक्षा के साथ किले में वापस ले गये.घमासान युद्ध हुआ,जहाँ दया करुणा को कोई स्थान नहीं था.मेवाड़ी और मुसलमान दोनों ही रण-खेत रहे. मैदान इंसानी लाल खून से सुर्ख हो गया था. शहीदों में गोरा और बादल भी थे, जिन्होंने मेवाड़ के भगवा ध्वज की रक्षा के लिए अपनी आहुति दे दी थी.
अल्लाउद्दीन की खूब मिटटी पलीद हुई.खिसियाता, क्रोध में आग बबूला होता हुआ, लौमड़ी सा चालाक और कुटिल सुल्तान दिल्ली को लौट गया. उसे चैन कहाँ था, जुगुप्सा का दावानल उसे लगातार जलाए जा रहा था. एक औरत ने उस अधिपति को अपने चातुर्य और शौर्य सेमुंह के बल पटक गिराया था. उसका पुरुषचित्त उसे कैसे स्वीकारका सकता था….उसके अहंकार को करारी चोट लगी थी….मेवाड़ का राज्य उसकी आँख की किरकिरी बन गया था. कुछ महीनों के बाद वह फिर चढ़ बैठा था चित्तौडगढ़ पर, ज्यादा फौज और तैय्यारी के साथ. उसने चित्तौड़गढ़ के पास मैदान में अपना खेमा डाला. किले को घेरलिया गया……किसी का भी बाहर निकलना सम्भव नहीं था…दुश्मन कि फौजके सामने मेवाड़ के सिपाहियों की तादाद और ताक़त बहुत कम थी. थोड़े बहुत आक्रमण शत्रु सेना पर बहादुर राजपूत कर पाते थे लेकिन उनको कहा जा सकता था ऊंट के मुंह में जीरा. सुल्तान की फौजें वहां अपना पड़ाव डाले बैठी थी, इंतज़ारमें. छः महीने बीत गये, किले में संगृहीत रसद ख़त्म होने को आई. अब एक ही चारा बचा था, “करो या मरो.”या “घुटने टेको.” आत्मसमर्पण या शत्रु के सामने घुटने टेक देना बहादुर राजपूतों के गौरव लिए अभिशाप तुल्य था,………
ऐसे में बस एक ही विकल्प बचा था झूझना…..युद्ध करना…..शत्रु का यथा संभव संहार करते हुए वीरगति को पाना. बहुत बड़ी विडंबना थी कि शत्रु के कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. वे न केवल पुरुषों को मारते काटते, नारियों से बलात्कार करते और उन्हें भी मार डालते.यही चिंता समायी थी धर्म परायणशिशोदिया वंश के राजपूतों में. …….
और मेवाड़ियों ने एक ऐतिहासिक निर्णयलिया…..किले के बीच स्थित मैदान में लकड़ियों, नारियलों एवम् अन्य इंधनों का ढेर लगाया गया…..सारी स्त्रियों ने,रानी से दासी तक, अपने बच्चों के साथ गोमुख कुन्ड में विधिवत पवित्र स्नान किया….सजी हुई चित्ता को घी, तेल और धूप से सींचा गया….औरपलीता लगाया गया. चित्ता से उठती लपटें आकाश को छू रही थी……नारियां अपने श्रेष्ठतम वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित थी…..अपने पुरुषों को अश्रुपूरितविदाई दे रही थी….अंत्येष्टि के शोक गीत गाये जा रही थी. अफीम अथवा ऐसेही किसी अन्य शामक औषधियों के प्रभाव से प्रशांत हुई, महिलाओं ने रानी पद्मावती के नेतृत्व में चित्ता कि ओर प्रस्थान किया…..और कूद पड़ी धधकती चित्ता में….अपने आत्मदाह के लिए….जौहर के लिए….देशभक्ति और गौरव के उस महान यज्ञ में अपनी पवित्र आहुति देने के लिए. जय एकलिंग, हर हरमहादेव के उदघोषों से गगन गुंजरितहो उठा था. आत्माओं का परमात्मा से विलय हो रहा था.
अगस्त २५, १३०३कि भोर थी, आत्मसंयमी दुखसुख को समानरूप से स्वीकार करने वाला भाव लिए, पुरुष खड़े थे उस हवन कुन्ड के निकट, कोमलता से भगवद गीता के श्लोकों का कोमल स्वर में पाठ करते हुए…..अपनी अंतिमश्रद्धा अर्पित करते हुए…. प्रतीक्षा में कि वह विशाल अग्नि उपशांत हो. पौ फटगयी…..सूरज कि लालिमा ताम्रवर्ण लिए आकाश में आच्छादित हुई…..पुरुषों ने केसरिया बागे पहन लिए….अपने अपने भालपर जौहर की पवित्र भभूत से टीका किया….मुंह में प्रत्येक ने तुलसी का पता रखा….दुर्ग के द्वार खोल दिए गये.
जय एकलिंग….हर हर महादेव कि हुंकार लगते रणबांकुरे मेवाड़ी टूट पड़े शत्रु सेना पर……मरने मारनेका ज़ज्बा था….आखरी दम तक अपनी तलवारों को शत्रु का रक्त पिलाया…और स्वयं लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये.अल्लाउद्दीन खिलज़ी की जीत उसकी हार थी, क्योंकि उसे रानी पद्मिनी का शरीर हासिल नहीं हुआ, मेवाड़ कि पगड़ी उसके कदमों में नहीं गिरी. चातुर्य और सौन्दर्य की स्वामिनी रानी पद्मिनी ने उसे एक बार और छल लिया था.

आभार Thakur's Era (Rajput Era) Page

१३०२ ईस्वी में मेवाड़ के राजसिंहासन पर रावल रतन सिंह आरूढ़ हुए. उनकी रानियों में एक थी पद्मिनी जो श्री लंका के राजवंश की राजकुँवरी थी. रानी पद्मिनी का अनिन्द्य सौन्दर्य यायावर गायकों (चारण/भाट/कवियों) के गीतों का विषय बन गया था. दिल्ली के तात्कालिक सुल्तान अल्ला-उ-द्दीन खिलज़ी ने पद्मिनी के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन सुना और वह पिपासु हो गया उस सुंदरी को अपने हरम में शामिल करने के लिए. अल्ला-उ-द्दीन ने चित्तौड़ (मेवाड़ की राजधानी) की ओर कूच किया अपनी अत्याधुनिक हथियारों से लैस सेना के साथ. मकसद था चित्तौड़ पर चढ़ाई कर उसे जीतना और रानी पद्मिनी को हासिल करना. ज़ालिम सुलतान बढा जा रहा था, चित्तौड़गढ़ के नज़दीक आये जा रहा था. उसने चित्तौड़गढ़ में अपने दूत को इस पैगाम के साथ भेजा कि अगर उसको रानी पद्मिनी को सुपुर्द कर दिया जाये तो वह मेवाड़ पर आक्रमण नहीं करेगा. रणबाँकुरे राजपूतों के लिए यह सन्देश बहुत शर्मनाक था. उनकी बहादुरी कितनी ही उच्चस्तरीय क्यों ना हो, उनके हौसले कितने ही बुलंद क्यों ना हो, सुलतान की फौजी ताक़त उनसे कहीं ज्यादा थी. रणथम्भोर के किले को सुलतान हाल ही में फतह कर लिया था ऐसे में बहुत ही गहरे सोच का विषय हो गया था सुल्तान का यह घृणित प्रस्ताव, जो सुल्तान की कामुकता और दुष्टता का प्रतीक था, कैसे माना जा  सकता था? नारी के प्रति एक कामुक नराधम का यह रवैय्या क्षत्रियों के खून खौला देने के लिए काफी था.

रतन सिंह जी ने सभी सरदारों से मंत्रणा की, कैसे सामना किया जाए इस नीच लुटेरे का जो बादशाह के जामे में लिपटा हुआ था?. कोई आसान रास्ता नहीं सूझ रहा था. मरने-मारने का विकल्प तो अंतिम था. क्यों ना कोई चतुराईपूर्ण राजनीतिक कूटनीतिक समाधान समस्या का निकाला जाय? रानी पद्मिनी न केवल अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी थी, वह एक बुद्धिमती नारी भी थी. उसने अपने विवेक से स्थिति पर गौर किया और एक संभावित हल समस्या का सुझाया.

अल्ला-उ-द्दीन को जवाब भेजा गया कि वह अकेला निरस्त्र गढ़ (किले) में प्रवेश कर सकता है, बिना किसी को साथ लिए, राजपूतों का वचन है कि उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा….हाँ, वह केवल रानी पद्मिनी को देख सकता है. उसके पश्चात् उसे चले जाना होगा चित्तौड़ को छोड़ कर…. उम्मीद कम थी कि इस प्रस्ताव को सुल्तान मानेगा. किन्तु आश्चर्य हुआ जब दिल्ली के आका ने इस बात को मान लिया. निश्चित दिन को अल्ला-उ-द्दीन पूर्व के चढ़ाईदार मार्ग से किले के मुख्य दरवाज़े तक चढ़ा, और उसके बाद पूर्व दिशा में स्थित सूरजपोल तक पहुंचा. अपने वादे के मुताबिक वह नितान्त अकेला और निरस्त्र था. पद्मिनी के पति रावल रतन सिंह ने महल तक उसकी अगवानी की.

महल के उपरी मंजिल पर स्थित एक कक्ष कि पिछली दीवार पर एक दर्पण लगाया गया, जिसके ठीक सामने एक दूसरे कक्ष की खिड़की खुल रही थी…उस खिड़की के पीछे झील में स्थित एक मंडपनुमा महल था जिसे रानी अपने ग्रीष्म विश्राम के लिए उपयोग करती थी. रानी मंडपनुमा महल में थी जिसका बिम्ब खिडकियों से होकर उस दर्पण में पड़ रहा था अल्लाउद्दीन को कहा गया कि दर्पण में झांके. हक्के-बक्के सुलतान ने आईने की जानिब अपनी नज़र की और उसमें रानी का अक्स उसे दिख गया, तकनीकी तौर पर उसे रानी साहिबा को दिखा दिया गया था….

सुल्तान को एहसास हो गया कि उसके साथ चालबाजी की गयी है, …किन्तु बोल भी नहीं पा रहा था, मेवाड़ नरेश ने रानी के दर्शन कराने का अपना वादा जो पूरा किया था…… और उस पर वह नितान्त अकेला और निरस्त्र भी था. परिस्थितियां असमान्य थी, किन्तु एक राजपूत मेजबान की गरिमा को अपनाते हुए, दुश्मन अल्लाउद्दीन को ससम्मान वापस पहुँचाने मुख्य द्वार तक स्वयं रावल रतन सिंह जी गये थे …..अल्लाउद्दीन ने तो पहले से ही धोखे की योजना बना रखी थी. उसके सिपाही दरवाज़े के बाहर छिपे हुए थे…. दरवाज़ा खुला……. रावल साहब को जकड लिया गया और उन्हें पकड़कर शत्रु सेना के खेमे में कैद कर दिया गया. रावल रतन सिंह दुश्मन की कैद में थे. अल्लाउद्दीन ने फिर से पैगाम भेजा गढ़ में कि राणाजी को वापस गढ़ में सुपुर्द कर दिया जायेगा, अगर रानी पद्मिनी को उसे सौंप दिया जाए . चतुर रानी ने काकोसा गोरा और उनके १२ वर्षीय भतीजे बादल से मशविरा किया और एक चातुर्यपूर्ण योजना राणाजी को मुक्त करने के लिए तैयार की.
अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा गया कि अगले दिन सुबह रानी पद्मिनी उसकी खिदमत में हाज़िर हो जाएगी, दिल्ली में चूँकि उसकी देखभाल के लिए उसकी खास दासियों की ज़रुरत भी होगी, उन्हें भी वह अपने साथ लाएगी. प्रमुदित अल्लाउद्दीन सारी रात्रि सो न सका…कब रानी पद्मिनी आये उसके हुज़ूर में, कब वह विजेता की तरह उसे भी जीते….. कल्पना करता रहा रात भर पद्मिनी के सुन्दर तन की…. प्रभात बेला में उसने देखा कि सात सौ बंद पालकियों का जुलूस चला आ रहा है. खिलज़ी अपनी जीत पर इतरा रहा था. खिलज़ी ने सोचा था कि ज्योंही पद्मिनी उसकी गिरफ् त में आ जाएगी, रावल रतन सिंह का वध कर दिया जायेगा… और चित्तौड़ पर हमला कर उस पर कब्ज़ा कर लिया जायेगा. कुटिल हमलावर इस से ज्यादा सोच भी क्या सकता था.? खिलज़ी के खेमे में इस अनूठे जुलूस ने प्रवेश किया……और तुरंत अस्त-व्यस्तता का माहौल बन गया… पालकियों से नहीं उतरी थी अनिन्द्य सुंदरी रानी पद्मिनी और उसकी दासियों का झुण्ड…… बल्कि पालकियों से कूद पड़े थे हथियारों से लैस रणबांकुरे राजपूत योद्धा ….जो अपनी जान पर खेल कर अपने राजा को छुड़ा लेने का ज़ज्बा लिए हुए थे. गोरा और बादल भी इन में सम्मिलित थे. मुसलमानों ने तुरत अपने सुल्तान को सुरक्षा घेरे में लिया. रतन सिंह जी को उनके आदमियों ने खोज निकाला और सुरक्षा के साथ किले में वापस ले गये. घमासान युद्ध हुआ, जहाँ दया-करुणा को कोई स्थान नहीं था. मेवाड़ी और मुसलमान दोनों ही रण-खेत रहे. मैदान इंसानी लाल खून से सुर्ख हो गया था. शहीदों में गोरा और बादल भी थे, जिन्होंने मेवाड़ के भगवा ध्वज की रक्षा के लिए अपनी आहुति दे दी थी.

अल्लाउद्दीन की खूब मिटटी पलीद हुई. खिसियाता, क्रोध में आग बबूला होता हुआ, लौमड़ी सा चालाक और कुटिल सुल्तान दिल्ली को लौट गया. उसे चैन कहाँ था? जुगुप्सा का दावानल उसे लगातार जलाए जा रहा था. एक औरत ने उस अधिपति को अपने चातुर्य और शौर्य से मुंह के बल पटक गिराया था. उसका पुरुष चित्त उसे कैसे स्वीकार कर सकता था…. उसके अहंकार को करारी चोट लगी थी…. मेवाड़ का राज्य उसकी आँख की किरकिरी बन गया था. कुछ महीनों के बाद वह फिर चढ़ बैठा था चित्तौडगढ़ पर, ज्यादा फौज और तैय्यारी के साथ. उसने चित्तौड़गढ़ के पास मैदान में अपना खेमा डाला. किले को घेर लिया गया……किसी का भी बाहर निकलना सम्भव नहीं था…दुश्मन की फौज के सामने मेवाड़ के सिपाहियों की तादाद और ताक़त बहुत कम थी. थोड़े बहुत आक्रमण शत्रु सेना पर बहादुर राजपूत कर पाते थे लेकिन उनको कहा जा सकता था ऊंट के मुंह में जीरा. सुल्तान की फौजें वहां अपना पड़ाव डाले बैठी थी, इंतज़ार में. छः महीने बीत गये, किले में संग्रहीत रसद ख़त्म होने को आई. अब एक ही चारा बचा था, “करो या मरो.” या “घुटने टेको.” आत्मसमर्पण या शत्रु के सामने घुटने टेक देना बहादुर राजपूतों के गौरव लिए अभिशाप तुल्य था, बस एक ही विकल्प बचा था जूझना….. युद्ध करना….. शत्रु का यथा संभव संहार करते हुए वीरगति को पाना. बहुत बड़ी विडंबना थी कि शत्रु के कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. वे न केवल पुरुषों को मारते काटते, नारियों से बलात्कार करते और उन्हें भी मार डालते. यही चिंता समायी थी धर्म परायण सीसोदिया वंश के राजपूतों में.

मेवाड़ियों ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया….. किले के बीच स्थित मैदान में लकड़ियों, नारियलों एवम् अन्य इंधनों का ढेर लगाया गया….. सारी स्त्रियों ने, रानी से दासी तक,  अपने बच्चों के साथ गोमुख कुन्ड में विधिवत पवित्र स्नान किया….सजी हुई चित्ता को घी, तेल और धूप से सींचा गया…. और पलीता लगाया गया. चित्ता से उठती लपटें आकाश को छू रही थी…… नारियां अपने श्रेष्ठतम वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित थी….. अपने पुरुषों को अश्रुपूरित विदाई दे रही थी…. अंत्येष्टि के शोक गीत गाये जा रही थी. अफीम अथवा ऐसे ही किसी अन्य शामक औषधियों के प्रभाव से प्रशांत हुई, महिलाओं ने रानी पद्मावती के नेतृत्व में चित्ता की ओर प्रस्थान किया….. और कूद पड़ी धधकती चित्ता में…. अपने आत्मदाह के लिए…. जौहर के लिए…. देशभक्ति और गौरव के उस महान यज्ञ में अपनी पवित्र आहुति देने के लिए. जय एकलिंग, हर हर महादेव के उदघोषों से गगन गुंजरित हो उठा था. आत्माओं का परमात्मा से विलय हो रहा था.

अगस्त २५, १३०३ की भोर थी, आत्मसंयमी दुख-सुख को समान रूप से स्वीकार करने वाला भाव लिए, पुरुष खड़े थे उस हवन कुन्ड के निकट, कोमलता से भगवद गीता के श्लोकों का कोमल स्वर में पाठ करते हुए…..अपनी अंतिम श्रद्धा अर्पित करते हुए…. प्रतीक्षा में कि वह विशाल अग्नि उपशांत हो. पौ फट गयी…..सूरज की लालिमा ताम्रवर्ण लिए आकाश में आच्छादित हुई….. पुरुषों ने केसरिया बाने पहन लिए…. अपने अपने भाल पर जौहर की पवित्र भभूत से टीका किया…. मुंह में प्रत्येक ने तुलसी का पता रखा…. दुर्ग के द्वार खोल दिए गये. 'जय एकलिंग….हर हर महादेव ' की हुंकार लगाते रणबांकुरे मेवाड़ी टूट पड़े शत्रु सेना पर……मरने-मारने का ज़ज्बा था…. आखरी दम तक अपनी तलवारों को शत्रु का रक्त पिलाया…और स्वयं लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये. अल्लाउद्दीन खिलज़ी की जीत उसकी हार थी, क्योंकि उसे रानी पद्मिनी का शरीर हासिल नहीं हुआ, मेवाड़ की पगड़ी उसके कदमों में नहीं गिरी. चातुर्य और सौन्दर्य की स्वामिनी रानी पद्मिनी ने उसे एक बार और मात दे दी थी.
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amar shaheed

Photo: हिन्दुस्तानमे आज हमारी सेना के दो जवानो को गद्दार पाकिस्तान के जवानो ने पीठ के पीछे से वार किया और वो लोग शहीद हुए। मेरे महादेव से उन जवान भाई श्री सुधानकर सिंह और भाई श्री हेमराज के आत्मा को परम सदगति दे यही दुआ हे। और हमारे भ्रष्ट और नमाले नेताओ को मर्दानगी दे और इट का जवाब पत्थर से दे। ताकि हमारे शहीदों जवान को सही रूप में शांति मिले। हमारे नेताओ में मर्दानगी हे तो इनका मुह तोड़ जवाब दे " यही श्रधांजलि हे। : श्री गिरिबापू

हिन्दुस्तान मे आज हमारी सेना के दो जवानो को गद्दार पाकिस्तान के जवानो ने पीठ के पीछे से वार कर  शहीद कर दिया। जवान भाई श्री सुधाकर सिंह और भाई श्री हेमराज के आत्मा को परम सदगति दे यही दुआ हे। और हमारे नेताओ को मर्दानगी दे कि ईंट का जवाब पत्थर से दें ताकि हमारे शहीदों जवान को सही रूप में शांति मिले।
शर्म आनी चाहिए सेकुलरिस्टो को इस चित्र को देखकर ... एक ओर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर शहीद लॉसनायक सुधाकर के बलिदान होने पर शव यात्रा मे स्वयं कंधा दिया, और मीडीया के पूछने पर ज़वाब दिया अब पाक की इस नापाक हारकर पर उसे मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए !

....वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश मे मुख्यमंत्री या कोई भी अधिकारी वीर शहीद लॉसनायक हेमराज की सुध तक नहीं लेने आया । और अखिलेश यादव का भी अभी तक पाकिस्तान पर कोई बयान नहीं ??


Photo: शर्म आनी चाहिए सेकुलरिस्टो को इस चित्र को देखकर ... एक ओर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर शहीद लॉसनायक सुधाकर के बलिदान होने पर शव यात्रा मे स्वयं कंधा दिया, और मीडीया के पूछने पर ज़वाब दिया अब पाक की इस नापाक हारकर पर उसे मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए !

....वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश मे मुख्यमंत्री या कोई भी अधिकारी वीर शहीद लॉसनायक हेमराज की सुध तक नहीं लेने आया । और अखिलेश यादव का भी अभी तक पाकिस्तान पर कोई बयान नहीं ??


peacock

बरसो मेघा बरसो रे

Photo: भक्तो के आठ भाव जो श्री भगवान् को प्रिये है !

१. अहिंसा (तन मन वचनसे न किसी का बुरा चाहना और ना ही करना )२.इन्द्रिये-निग्रेह (इन्द्रियोंको मनमाने विषेयोमें ना जाने देना )३. प्राणिमात्र पर दया (ये संत स्वभाव का भी लक्षण है ! संत हिरदये नवनीत समाना .....दुसरोके दुःख को अपना दुःख समझकर दूर करने की चेष्टा करना )४. शान्ति (किसी भी अवस्थामें चितका छुब्ध न होना)५. शम (मन का वशमें रहना)६.तप (स्वधर्म के पालन के लिये कष्ट सहना )७.ध्यान (अपने आराध्य देव में चित को लगाना )८.सत्य (सत्य तो अपने आपमें प्रगट है जिसे प्रगट करनेके लिये किसी सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ती )...श्रीराधेश्याम...हरि हर

sharmnaak

शर्म हमको मगर नहीं आती

Photo: Prince Kumawat हिन्दू हो, कुछ प्रतिकार करो, तुम भारत माँ के क्रंदन का !
यह समय नहीं है, शांति पाठ और गाँधी के अभिनन्दन का !!
यह समय है शस्त्र उठाने का, गद्दारों को समझाने का !
शत्रु पक्ष की धरती पर, फिर शिव तांडव दिखलाने का !!
यह समय है हर एक हिन्दू के, राणा प्रताप बन जाने का !
इस हिन्दुस्थान की धरती पर, फिर भगवा ध्वज फहराने का !!
जब शस्त्रों से परहेज तुम्हे, तोराम-राम क्यों जपते हो !
क्या जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो !!
साभार :- प्रिन्स कुमावत

शर्मनाक :

शर्मनाक :

Photo: क्या स्वतंत्रता के लिए जान की कुर्बानी देने वाले अमर सेनानियों की याद में बनी समाधियों की अब ऐसी ही दुर्दशा होगी? क्या यही हमारी असली स्वतंत्रता है ? आज की यह खबर स्वतंत्रता दिवस के स्वाद को कसैला कर रही है?


इसका जवाब किसके पास मिलेगा?

chitr par kavita: nav geet kahan ja rahe ho --sanjiv

नव गीत:
कहाँ जा रहे हो…
संजीव
*
पाखी समय का
ठिठक पूछता है
कहाँ जा रहे हो?...
*
उमड़ आ रहे हैं बादल गगन पर
तूफां में उड़ते पंछी भटककर
लिए  हाथ में हाथ जाते कहाँ हो?
बैठा है कोई खुद में सिमटकर
साथी प्रलय का
सतत जूझता है
सुस्ता रहे हो?...
*
मलय कोई देखे कैसे नयन भर
विलय कोई लेखे कैसे शयन कर
घन श्याम आते न छाते यहाँ हो?
बेकार है कार थमकर, ठिठककर 
साथी 'सलिल' का
नहीं सूझता है
मुस्का रहे हो?...
*

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

Family tree os amar shaheed Ram Prasad Bismil

अमर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मिल' का वंश वृक्ष 

चंबल के सपूत जिन्हें ख्याति तो मिली आजादी की लड़ाई हेतु सशस्त्र क्रांति में भाग लेते हुए फांसी के फंदे पर हँसते -गाते हुए झूल जाने के लिए और मशहूर हुए राम प्रसाद ' बिस्मिल ' के नाम से उनका ' वंश-वृक्ष ' निम्न है -
ठा .अमान सिंह                      समान सिंह              नारायण सिंह 
         । 
    राजाराम सिंह 
         । 
    करन सिंह --------------------  भीकम सिंह** --------------   कोक सिंह**
                          ** (जब पुस्तक प्रकाशित हुई 1996तब दोनों जीवित ऐसा उल्लेख )  
                                             । 
                              नारायण सिंह (दादा जी )
                           श्रीमती विचित्रा देवी ( दादी जी )
                                            । 
ठा .मुरलीधर सिंह -----------------------------------------ठा .कल्याणमल सिंह 
          । 
राम प्रसाद सिंह ( बिस्मिल )-----रमेश सिंह** ---------श्रीमती शाश्त्री देवी 
                                   **सुशीलचंद्र (उपनाम )
 ग्राम -बरवाई ,तहसील -अम्बाह ,जिला मुरेना   
                                          
सौजन्य: " शहीद -बिस्मिल " लेखक -रामस्वरूप उपाध्याय ' सरस ' प्रकाशक: रामायणी सत्संग मंदिर , मुरेना रोड, अम्बाह 
विकिपीडिया:
Ram Prasad Bismil About this sound pronunciation  (11 June 1897 Shahjahanpur, United Province, British India - 19 December 1927 Gorakhpur Jail, United Province, British India ) was an Indian revolutionary who participated in Mainpuri Conspiracy of 1918, and the Kakori conspiracy of 1925, both against British Empire. As well as being a freedom fighter, he was also a patriotic poet and wrote in Hindi and Urdu using the pen names Ram, Agyat and Bismil. But, he became popular with the last name "Bismil" only. He was associated with Arya Samaj where he got inspiration from Satyarth Prakash, a book written by Swami Dayanand Saraswati. He also had a confidential connection with Lala Har Dayal through his guru Swami Somdev, a preacher of Arya Samaj.
Bismil was one of the founder members of the revolutionary organisation Hindustan Republican Association. Shaheed Bhagat Singh praised him[1][2] as a great poet-writer of Urdu and Hindi, who had also translated the books Catherine from English and Bolshevikon Ki Kartoot from Bengali. Several inspiring patriotic verses are attributed to him. The poem Sarfaroshi ki Tamanna is also popularly attributed to him, although some writers say that "Bismil" Azimabadi actually wrote the poem and Ram Prasad Bismil immortalized it.

Early life

Ram Prasad Bismil was born on 11 June 1897 to Murlidhar and Moolmati at Shahjahanpur, in Uttar Pradesh.[3]

Contact with Somdev

As an 18 year old student, Bismil read of the death sentence passed on Bhai Parmanand, a scholar and companion of Lala Har Dayal. At that time he was regularly attending the Arya Samaj Temple at Shahjahanpur daily, where Swami Somdev, a friend of Paramanand, was staying. Angered by the sentence, Bismil composed a poem in Hindi titled Mera Janm (en: My Birth), which he showed to Somdev. This poem demonstrated a commitment to remove the British control over India.[3]

Lucknow Congress

Bismil left school in the following year and traveled to Lucknow with some friends. The Naram Dal (of the Indian National Congress) was not prepared to allow the Garam Dal to stage a grand welcome of Tilak in the city.[3] They organised a group of youths and decided to publish a book in Hindi on the history of American independence, America Ki Swatantrata Ka Itihas, with the consent of Somdev. This book was published under the authorship of the fictitious Babu Harivans Sahai and its publisher's name was given as Somdev Siddhgopal Shukla. As soon as the book was published, the government of Uttar Pradesh proscribed its circulation within the state.

Mainpuri Conspiracy

Bismil formed a revolutionary organization called Matrivedi (Altar of Motherland) and contacted Pt. Genda Lal Dixit, a school teacher at Auraiya. Som Dev arranged this, knowing that Bismil could be more effective in his mission if he had experienced people to support him. Dixit had contacts with some powerful dacoits of the state.[3]
Dixit wanted to utilize their power in the armed struggle against the British rulers. Like Bismil, Dixit had also formed an armed organisation of youths called Shivaji Samiti (named after Shivaji). The pair organised youths from the Etawah, Mainpuri, Agra and Shahjahanpur districts of United Province (now Uttar Pradesh) to strengthen their organisations.
On 28 January 1918, Bismil published a pamphlet titled Deshvasiyon Ke Nam Sandesh (A Message to Countrymen), which he distributed along with his poem Mainpuri Ki Pratigya (Vow of Mainpuri). In order to collect funds for the party looting was undertaken on three occasions in 1918. Police searched for them in and around Mainpuri while they were selling books proscribed by the U.P. Government in the Delhi Congress of 1918. When police found them, Bismil absconded with the books unsold. When he was planning another looting between Delhi and Agra, a police team arrived and firing started from both the sides. Bismil jumped into the Yamuna and swam underwater. The police and his companions thought that he had died in the encounter. Dixit was arrested along with his other companions and was kept in Agra fort. From here, he fled to Delhi and lived in hiding. A criminal case was filed against them. The incident is known as the "Mainpuri Conspiracy" against the British King Emperor. On 1 November 1919 the Judiciary Magistrate of Mainpuri B.S. Chris announced the judgement against all accused and declared Dixit and Bismil as absconders.

Underground activities

From 1919 to 1920 Bismil remained inconspicuous, moving around various villages in Uttar Pradesh and producing several books. Among these was a collection of poems written by him and others, entitled Man Ki Lahar, while he also translated two works from Bengali (Bolshevikon Ki Kartoot and Yogik Sadhan) and fabricated Catherine or Swadhinta Ki Devi from an English text.[3]
He got all these books published through his own resources under Sushilmala - a series of publications except one Yogik Sadhan which was given to a publisher who absconded and could not be traced. These books have since been found. Another of Bismil's books, Kranti Geetanjali, was published in 1929 after his death and was proscribed by British Raj in 1931.

Formation of Hindustan Republican Association

In February 1920, when all the prisoners in the Mainpuri conspiracy case were freed, Bismil returned home to Shahjahanpur, where he agreed with the official authorities that he would not participate in revolutionary activities. This statement of Ram Prasad was also recorded in vernacular before the court.
In 1921, Bismil was among the many people from Shahjahanpur who attended the Ahmedabad Congress. He had a seat on the dias, along with the senior congressman Prem Krishna Khanna, and the revolutionary Ashfaqulla Khan. Bismil played an active role in the Congress with Maulana Hasrat Mohani and got the most debated proposal of Poorna Swaraj passed in the General Body meeting of Congress. Mohandas K. Gandhi, who was not in the favour of this proposal became quite helpless before the overwhelming demand of youths. He returned to Shahjahanpur and mobilised the youths of United Province for non-cooperation with the Government. The people of U.P. were so much influenced by the furious speeches and verses of Bismil that they became hostile against British Raj. As per statement of Banarsi Lal (approver)[4] made in the court - "Ram Prasad used to say that independence would not be achieved by means of non-violence."
In February 1922 some agitating farmers were killed in Chauri Chaura by the police. The police station of Chauri Chaura was attacked by the people and 22 policemen were burnt alive. Gandhi, without ascertaining the facts behind this incident, declared an immediate stop the non-cooperation movement without consulting any executive committee member of the Congress. Bismil and his group of youths strongly opposed Gandhi in the Gaya session of Indian National Congress (1922). When Gandhi refused to rescind his decision, its then president Chittranjan Das resigned and the Indian National Congress was divided into two groups - the Naram Dal and the Garam Dal. In January 1923, the rich group of party formed a new Swaraj Party under the joint leadership of Pt. Moti Lal Nehru and Chittranjan Das, and the youth group formed a revolutionary party under the leadership of Bismil.

Yellow Paper constitution

With the consent of Lala Har Dayal, Bismil went to Allahabad where he drafted the constitution of the party in 1923 with the help of Sachindra Nath Sanyal and another revolutionary of Bengal, Dr. Jadugopal Mukherjee. The basic name and aims of the organisation were typed on a Yellow Paper[5] and later on a subsequent Constitutional Committee Meeting was conducted on 3 October 1924 at Kanpur in U.P. under the Chairmanship of Sachindra Nath Sanyal.
This meeting decided the name of the party would be the Hindustan Republican Association (HRA). After a long discussion from others Bismil was declared there the District Organiser of Shahjahanpur and Chief of Arms Division. An additional responsibility of Provincial Organiser of United Province (Agra and Oudh) was also entrusted to him. Sachindra Nath Sanyal, was unanimously nominated as National Organiser and another senior member Jogesh Chandra Chatterjee, was given the responsibility of Coordinator, Anushilan Samiti. After attending the meeting in Kanpur, both Sanyal and Chatterjee left the U.P. and proceeded to Bengal for further extension of the organisation.

Manifesto of H.R.A.

A pamphlet entitled as The Revolutionary was distributed throughout the United Province in India about the end of January 1925. Copies of this leaflet, referred to in the evidence as the "White Leaflet", were also found with some other alleged conspirators of Kakori Conspiracy as per judgement of the Chief Court Of Oudh. A typed copy of this manifesto was found with Manmath Nath Gupta.[6] It was nothing but the Manifesto of H.R.A. in the form of a four paged printed pamphlet on white paper which was circulated secretly by post and by hands in most of the districts of United Province and other parts of India.
This pamphlet bore no name of the printing press. The heading of the pamphlet was: "The Revolutionary" (An Organ of the Revolutionary Party of India). It was given 1st number and 1st issue of the publication. The date of its publication was given as 1 January 1925.[7]

Kakori conspiracy

Bismil executed a meticulous plan for looting the government treasury carried in a train at Kakori, near Lucknow in U.P. This historical event happened on August 9, 1925 and is known as the Kakori conspiracy. Ten revolutionaries stopped the 8 Down Saharanpur-Lucknow passenger train at Kakori - a station just before the Lucknow Railway Junction. German-made Mauser C96 semi-automatic pistols were used in this action. Ashfaqulla Khan, the lieutenant of the HRA Chief Ram Prasad Bismil gave away his Mauser to Manmath Nath Gupta and engaged himself to break open the cash chest. Eagerly watching a new weapon in his hand, Manmath Nath Gupta fired the pistol and incidentally a passenger Ahmed Ali, who got down the train to see his wife in ladies compartment, was killed in this rapid action.
More than 40 revolutionaries were arrested whereas only 10 persons had taken part in the decoity. Persons completely unrelated to the incident were also captured. However some of them were let off.[8] The government appointed Jagat Narain Mulla as public prosecuter at an incredible fee. Dr Harkaran Nath Mishra (Barrister M.L.A.) and Dr. Mohan Lal Saxena (M.L.C.) were appointed as defence councellers. The defence commitee was also formed to defend the accused.[9] Govind Ballabh Pant, Chandra Bhanu Gupta and Kripa Shankar Hajela defended their case. The men were found guilty and subsequent appeals failed. On 16 September 1927, a final appeal for clemency was forwarded to the Privy Council in London but that also failed.
Following 18 months of legal process, Bismil, Ashfaq, Roshan Singh and Rajendra Nath Lahiri were sentenced to death. Bismil was hanged on 19 December 1927 at Gorakhpur Jail, Ashfaq at the Faizabad Jail and Roshan Singh at Naini Allahabad Jail. Lahiri had been hanged two days earlier at Gonda Jail.

Cremation

Bismil's body was taken to the Rapti river for a Hindu cremation, and the site became known as Rajghat. A new Transport Nagar has been developed in the side bye area of this place. A Rajghat police station has also been established there to commemorate the historical place.

Literary works

Bismil was known for his poems that acted as motivation for his fellow revolutionaries.[10] Among them, Sarfaroshi Ki Tamanna is the most well-known.
He had also published a pamphlet titled Deshvasiyon ke nam sandesh (en: A message to my countrymen. While living underground, he translated some of Bengali books viz. Bolshevikon Ki Kartoot (en: The Bolshevik's programme) and Yogik Sadhan (of Arvind Ghosh). Beside these a collection of poems Man Ki Lahar (en: A sally of mind) and Swadeshi Rang was also written by him. Another Swadhinta ki devi: Catherine was fabricated from an English book[11] into Hindi. All of these were published by him in Sushil Mala series. Bismil wrote his autobiography while he was kept as condemned prisoner in Gorakhpur jail.[12]
The autobiography of Ram Prasad Bismil was published by Ganesh Shankar Vidyarthi in 1928.

Memorials

Statue at Shahjahanpur

Shaheed Smarak Samiti of Shahjahanpur established a memorial at Khirni Bagh mohalla of Shahjahanpur city where Bismil was born in 1897 and named it "Amar Shaheed Ram Prasad Bismil Smarak". A statue made of white marble was inaugurated by the then Governor of Uttar Pradesh Motilal Vora on 18 December 1994 on the 68th martyr's day of Bismil.

Station in Shahjahanpur district

Northern railway zone of Indian Railways has established a permanent station and named as Pt. Ram Prasad Bismil Railway Station. It is exact 11 km away from Shahajahanpur towards Lucknow on State Highway 25 Uttar Pradesh.[13]

Memorial at Kakori

There is a memorial to the Kakori conspiracists at Kakori itself.[14]

Indian Postal Stamp

Government of India issued a multicoloured commemorative postal stamp on 19-12-1997 in the Birth Centenary year of Ram Prasad Bismil.[15]
 सन्दर्भ:
  1. ^ "About the valiants of Kakori And the scenes of their hanging (From the pen of Revolutionary Martyr Bhagat Singh". Retrieved 15-05-2013. "Shri Ram Prasad Bismal was a very promising young man. He was a great poet. He was very handsome. His capability was of very high order. Those who knew him would say confidently that if he had been born in some other country or at some other time, he would have become the Commander-in-Chief of the Army. He was regarded the leader of the entire conspiracy. Though he was not very highly educated, he could make the govt. counsels like Pt. Jagat Narayan Mulla lose his wits. He had written his own appeal to the Chief Court, for which the Judges had to say that behind this was the hand of some very enlightened intellectual."
  2. ^ Waraich, Malwinder Jit Singh (2007). Musings from the gallows : autobiography of Ram Prasad Bismil. Unistar Books, Ludhiana. p. 101.
  3. ^ a b c d e Igen., B. (2005). Ram Prasad Bismil (1 ed.). Delhi 110084 India: Manoj Publications. p. 96. ISBN 81-310-0111-3.
  4. ^ Manzar, Habib (2004). "Revisiting Kakori Case on the basis of Vernacular Reportage". In Sinha, Atul Kumar. Perspectives In Indian History. p. 180.
  5. ^ Manzar, Habib (2004). "Revisiting Kakori Case on the basis of Vernacular Reportage". In Sinha, Atul Kumar. Perspectives In Indian History. p. 178.
  6. ^ Manzar, Habib (2004). "Revisiting Kakori Case on the basis of Vernacular Reportage". In Sinha, Atul Kumar. Perspectives In Indian History. p. 178.
  7. ^ Waraich, Malwinder Jit Singh (2007). Hanging of Ram Prasad Bismil : the judgement. Unistar Books, Chandigarh. p. 12-13.
  8. ^ Rana, Bhawan Singh (2005). Chandra Shekhar Azad. Diamond Pocket Books. p. 46.
  9. ^ Manzar, Habib (2004). "Revisiting Kakori Case on the basis of Vernacular Reportage". In Sinha, Atul Kumar. Perspectives In Indian History. pp. 179–180.
  10. ^ History Book Sl.No. 12 Chapter Ram Prasad Bismil Page No. 82
  11. ^ http://archive.org/details/littlegrandmothe00bresuoft
  12. ^ "Ram Prasad Bismil". Maps of India.com. Retrieved 3 June 2013.
  13. ^ http://indiarailinfo.com/station/map/pt-ram-prasad-bismil-prpm/10021
  14. ^ Sinha, Arunav (9 August 2011). "Tourist spot tag may uplift Kakori". Lucknow: Times Of India. Retrieved 9 May 2013.
  15. ^ POSTAL STAMP ON RAM PRASAD BISMIL & ASHFAQUALLAH KHAN

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हा ... हा ... हा ...

deepti gupta <drdeepti25@yahoo.co.in>
 
यह सच्चाई बिल गेट  ने  भी  घोषित  की  है  और  विश्व  भी  ,मानता है  कि भारतीय बड़े प्रखर  और  प्रत्युत्पन्नमति होते हैं ! विदेशो में  भारतीय  अपने  हर तरह   के  'कौशल ' के बल पर ही  लम्बे समय से  स्थायी  रूप से बसे हुए  है  !  और जब बात  व्यापार में निष्णात  मारवाडी  और   वैश्य लोगों की  उठे  तो वे  धन के मामले में धोखा नहीं  खाते  हैं भले  दूसरा   अपने को उनसे  कितना भी  'स्मार्ट' समझे !  तो  मनोविनोद  के   लिए  पढ़िए हम भारतीयों की smartness   का एक  किस्सा  -          Cheerio !



Einstein & a Marwari sitting next to each other on a long flight..
Einstein says,"Let's play a game.. I will ask u a question,if u don't know the answer,u pay me only $5 and if I don't know the answer,I will pay you $500.."

Einstein asks the first question: What's the distance from the Earth to the Moon..?

Marwari doesn't say a word,reaches his pocket,pulls out a $5..

Now,it's the Marwari's turn..

He asks Einstein: What goes up a hill with 3 legs and comes down on 4 legs..?

Einstein searches the net and asks all his smart friends.. After an hour he gives Marwari $500..

Einstein going nuts and asks: Well,so what goes up a hill with three legs and comes down with four..?

Marwari reaches his pocket and gives Einstein $5..

Einstein fainted.....

Moral of the story, you might be Einstein, don't take panga with Marwari where money is concerned..... they are smarter than even Einstein...




                                                            Have  a  cheerful  day ! 

                                                                                                        Deepti

rochak charcha: she'r kisi ka, wahawhi kisi ko... nida fazli


रोचक चर्चा:
शेर किसी का, वाहवाही किसी को...
 

 
 
दिलीप कुमार और सायरा बानो
मशहूर फ़िल्म अभिनेता दिलीप कुमार को शेर सुनाने का शौक है
दिलीप कुमार उर्फ़ यूसुफ ख़ान, राज कपूर, देव आनंद और राजकुमार के ज़माने में ट्रेजिडी किंग कहे जाते थे.
हालांकि उनकी वे फ़िल्में भी कम अहम नहीं हैं जिनमें वह हँसते, मुस्कुराते और शरारतें करते नज़र आते हैं.
उनके समकालीनों में सिर्फ़ राजकुमार ही ऐसे अभिनेता थे जो स्क्रीन पर शेर इस तरह सुनाते थे कि मुश्किल से मुश्किल लफ़्जों वाले शेर पर भी सिनेमा हाल में लोग तालियाँ बजाते थे.
फ़िल्म ‘बुलंदी’ में डायरेक्टर इस्माईल श्रॉफ ने उनसे डाक्टर इक़बाल का एक शेर पढ़वाया था.
शेर था-ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है.
पार्टीशन के बाद भारत में फ़ारसी और अरबी की जगह भाषा में इलाक़ाई ज़ुबानों के लफ़्जों से तालमेल ज़्यादा बढ़ा है.
दिलीप कुमार और पृथ्वी राज कपूर की मुग़ले आज़म अब फ़िल्मों के संवादों में नज़र नहीं आती.
साहिर लुधियानवी ने फ़िल्मों की ज़ुबान में इसी तब्दीली के कारण अपने संग्रह में शामिल एक नज़्म को जब फ़िल्म ‘प्यासा’ का एक गीत बनाया तो किताब में नज़्म की लाइन सना ख़्वाने तकदीसे मशरिक़ कहाँ है (पश्चिम की पवित्रता के प्रशंसक) को 'जिन्हें नाज़ है हिंद पर वे कहाँ हैं' से बदल दिया.
फ़िल्म कला के साथ एक कारोबार भी है और हर कारोबार का पहला उसूल ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचना होता है.
कारोबार का संबंध धार्मिक सीमाओं या भाषा-विवाद की रेखाओं से नहीं होता, समाज कैसे बदलता है, वह इस पर नहीं सोचता, समाज में किस समय क्या चलता है, वह इसको खोजता है.
राजकुमार अस्थमा के मरीज़ थे. मर्ज़ की इस मजबूरी को उन्होंने डायलॉग अदायगी का स्टाइल बना लिया था.
वह हर वाक्य को चबा-चबा कर और अपनी तरह से तोड़-तोड़ के बोलते थे.
उनके दर्शकों को उनका यह स्टाइल पसंद भी आता था. यही वजह थी कि ‘ख़ुदी’ और ‘रज़ा’ जैसे कठिन लफ़्जों के होते हुए भी, फ़िल्म में इक़बाल के शेर पर भी उन्होंने तालियाँ बजवा ली थीं.
फ़िल्म की लोकप्रियता ने इस शेर को भी लोकप्रिय बना दिया है.
अब यह आम बोलचाल में भी नज़र आता है और लोक सभा में भी बोला जाता है कि एक बार ममता बैनर्जी ने जब अपने बंगाली लहजे में ख़ुदी के ‘ख़’ के नीचे की और ‘रज़ा’ के ‘ज़’ के नीचे की बिंदियाँ निकाल कर जब लोक सभा में इसे दोहराया तो तालियों के शोर से पूरा हॉल गूंज उठा था.
राजकुमार की तरह दिलीप साहब का भी अपना बोलने का तरीका है.
रूक-रूक कर माथे पर एक साथ कई बल उभार कर, लफ़्जों को आवाज़ के उतार-चढ़ाव से संवार कर, जुमलों के बीच में थोड़ी-थोड़ी ख़ामोशियों को उतार कर वह अपने देखने और सुनने वालो को दीवाना बना देते थे.
किसी और को श्रेय
राजकुमार की तुलना में स्क्रीन पर तो उन्होंने बहुत कम शेर पढ़े हैं, लेकिन घरेलू महफ़िलों और मुशायरों के स्टेज पर उन्हें शेर सुनाते अक्सर सुना है.
मुंबई के एक मुशायरे की शुरुआत तो उन्हीं की पढ़ी हुई ग़ज़ल से हुई. उस ग़ज़ल के दो शेर आज भी ज़हन में हैं.
इस शान से वह आज पए-इम्तहाँ चले
कितनो ने पाँव चूम के पूछा कहाँ चले
जब मैं चलूँ तो साया भी मेरा न साथ दे
जब वह चलें, ज़मीन चले, आसमाँ चले.
दिलीप साहब की शुरू की तालीम उर्दू के अंजुमन हाईस्कूल बम्बई में हुई है.
उन्हें उर्दू शायरी से लगाव भी है. जोश, नज़ीर अकबराबादी, दाग़, और फैज़ उनके पसंदीदा शायर हैं जिनकी नज़्में और ग़ज़ले वह स्टेज से सुनाते नज़र आते हैं और सुनाने से पहले शायर का नाम भी ज़रूर बताते हैं.
लेकिन मुंबई के उस मुशायरे में जलील मानकपुरी की ग़ज़ल फैज़ के नाम से सुना गए.
दूसरे दिन हर भाषा के अख़बारों में फैज़ साहब ने जो लिखा नहीं था, वह उनके नाम से जुड़ गया और जलील मानकपुरी जिनके संकलन में यह ग़ज़ल मौजूद है, वह इस रचना से हाथ धो बैठे.
जलील मानकपुरी दाग़ देहलवी के समकालीन थे और दाग़ के बाद नवाब हैदराबाद के उस्ताद भी बनाए गए थे.
जलील के एक बेटे मुश्ताक जलीली मुंबई में फ़िल्म राइटर थे. कई फ़िल्मों के संवाद और पटकथा उन्हीं की क़लम का नतीजा है.
अख़बारों में जब उन्होंने अपने वालिद के साथ यह नाइंसाफ़ी देखी तो बहुत ग़ुस्से में आए लेकिन कुछ नहीं कर पाए, क्योंकि दिलीप साहब की शोहरत के मुक़ाबले में मुश्ताक जलीली की फ़िल्मी हैसियत कम थी.
इसलिए वह अपने बाप के साथ की गई नाइंसाफ़ी को इंसाफ़ में नहीं बदलवा सके. अदब में ऐसी ही नाइंसाफ़ियों की कई मिसालें मिलती हैं.
कभी किसी बड़ी घटना से किसी का शेर ऐसा चिपक जाता है कि इतिहास में वह इसी तरह के ग़लत नाम से जुड़ जाता है.
इसकी एक मिसाल आज़ादी की लड़ाई के क्राँतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल है, उन्हें देशप्रेम के अपराध में अंग्रेज़ हुकूमत ने फाँसी दी थी.
फाँसी का फँदा गर्दन में डालने से पहले उन्होंने अंग्रेज़ राज को ललकारते हुए एक शेर पढ़ा था-
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है.
और यह पिछले कई वर्षों से उन्हीं के नाम से मशहूर है. रामप्रसाद भी शायर थे. बिस्मिल उनका तख़ल्लुस था.
लेकिन यह मतला उनका नहीं है. इसके शायर का नाम बिस्मिल अज़ीमावादी था. इसी ग़ज़ल का एक और शेर यूँ है.
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ए आसमाँ
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है.
बिस्मिल अज़ीमावादी की यह ग़ज़ल पहली बार जिस अख़बार में छपी थी उसकी कापी कलकत्ता की नेशनल लाइब्रेरी में महफ़ूज़ है.
ग़ज़ल के प्रतीक, बिंब और ख़याल परंपरागत शायरी जैसे हैं लेकिन रामप्रसाद जी की ट्रेजेडी ने इन प्रतीको, बिंबो और शब्दों को नए मानी पहना दिए.
अब इनका अर्थ वह नहीं है जो शायर के ख़यालों में था. ऐसे बहुत से शेर हैं जो होते हैं किसी के लेकिन उन्हें शोहरत मिलती है किसी और नाम से.
बहुत से शेर ऐसे भी हैं जो बोलचाल में तो शामिल होते हैं लेकिन वे हक़ीक़त में किस की क़लम का नतीजा है, यह मालूम नहीं होता, जाँ निसार अख़्तर अच्छे शायर और कई फ़िल्मों के नगमा निगार थे.
उनकी आख़िरी फ़िल्म कमाल अमरोही की रज़िया सुल्तान थी. फ़िल्म तो कामयाब नहीं हुई मगर उनका गीत, ऐ दिले नादाँ....आरज़ू क्या है, जुस्तुजू क्या है. ख़ैयाम की धुन में काफ़ी मशूहर हुआ.
वह मुज़तर खैरावादी के छोटे बेटे थे, मुज़तर का कोई दीवान नहीं छपा लेकिन उनके शेर अक्सर लोगों की ज़ुबान पर है.
काफ़ी समय पहले जाँ निसार अख़्तर ने एक ग़ज़ल के संबंध में, जो बहादुर शाह ज़फ़र के नाम से मंसूब थी, उसे मुज़तर की ग़ज़ल बताया है. ग़ज़ल का मतला है.
न किसी की आँख का नूर हूँ, न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके, मैं वो एक मुश्ते ग़ुबार हूँ.
यह ग़ज़ल ज़फ़र के संकलन में नहीं है.
जाँ निसार अख़्तर जब मुज़तर का संग्रह तैयार कर रहे थे तो उन्हें ग़ज़ल की डायरी में यह ग़ज़ल मिली थी, लेकिन इसके बावजूद पढ़ने वाले ग़ज़ल के मिज़ाज को ज़फ़र के इतिहास से जब जोड़कर देखते हैं तो उन्हें इसमें आख़िरी मुग़ल की हिकायत नज़र आती है.
यह मुज़तर की होते हुए ज़फ़र के नाम से मशहूर है.