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सोमवार, 18 जून 2012

स्मृति गीत: हर दिन पिता याद आते हैं... --संजीव 'सलिल'

स्मृति गीत:
हर दिन पिता याद आते हैं...

संजीव 'सलिल'

*

जान रहे हम अब न मिलेंगे.

यादों में आ, गले लगेंगे.

आँख खुलेगी तो उदास हो-

हम अपने ही हाथ मलेंगे.

पर मिथ्या सपने भाते हैं.

हर दिन पिता याद आते हैं...

*

लाड, डांट, झिडकी, समझाइश.

कर न सकूँ इनकी पैमाइश.

ले पहचान गैर-अपनों को-

कर न दर्द की कभी नुमाइश.

अब न गोद में बिठलाते हैं.

हर दिन पिता याद आते हैं...

*

अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.

नित घर-घाट दिखाए तुमने.

जब-जब मन कोशिश कर हारा-

फल साफल्य चखाए तुमने.

पग थमते, कर जुड़ जाते हैं

हर दिन पिता याद आते हैं...

*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
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हिंदी में मात्रा गणना - २ -- संजीव 'सलिल', दीप्ति गुप्ता


यह हिंदी है- 2      

हिंदी में मात्रा गणना

संजीव 'सलिल', दीप्ति गुप्ता                                                                                                     
इस लेख माला के आगामी कड़ियों में भाषा के विविध अंगों और तत्वों पर चर्चा होगी. पाठकों की जिज्ञासाओं का स्वागत है -सं
संस्कृत में वाचिक परंपरा में आश्रमों में गुरु उच्च स्वर से पाठ करते थे जिन्हें सुनकर शिष्य स्मरण करने के साथ-साथ उच्चारण विधि भी सीख लेते थे. ज्ञान राशि के विस्तार तथा जटिलता के कारण श्रुति-स्मृति युग का स्थान लिपि युग ने लिया जो अब तक चल रहा है. संभव है कि भविष्य में विविध भाषाओं में प्राप्त विज्ञान तथा साहित्य सबके लिये सुलभ बनाने के लिये शब्द संकेतों के स्थान पर  यांत्रिक ध्वनि संकेतों का प्रयोग हो जिसे हर भाषा-भाषी समझ सके. अस्तु...
संस्कृत में वाचिक परंपरा में आश्रमों में गुरु उच्च स्वर से पाठ करते थे जिन्हें सुनकर शिष्य स्मरण करने के साथ-साथ उच्चारण विधि भी सीख लेते थे. ज्ञान राशि के विस्तार तथा जटिलता के कारण श्रुति-स्मृति युग का स्थान लिपि युग ने लिया जो अब तक चल रहा है. संभव है कि भविष्य में विविध भाषाओं में प्राप्त विज्ञान तथा साहित्य सबके लिये सुलभ बनाने के लिये शब्द संकेतों के स्थान पर  यांत्रिक ध्वनि संकेतों का प्रयोग हो जिसे हर भाषा-भाषी समान रूप से समझ सके।

संस्कृत की वाचिक परंपरा हिंदी में प्रारंभिक दौर में ही अवरुद्ध हो गयी. विविध अंचलों में भाषा के विविध रूप प्रचलित होने से शब्दों व क्रियापदों के रूप-उच्चारण में अंतर आया. इस कारण छंदों का प्रयोग कठिन प्रतीत होने लगा चूँकि छंद में लय के अनुसार शब्द संयोजन करना जरूरी है. मुग़ल काल में प्रशासन की भाषा उर्दू होने से उर्दू की शिक्षा विधिवत लेनेवाले उस्ताद-शागिर्द परंपरा में बोलने तथा लिखने (तक़्तीअ करने) के अभ्यस्त हो गये. उर्दू के विविध रूप दिल्ली, लखनऊ तथा हैदराबाद में विकसित हुए किंतु तक़्तीअ के नियम एक से ही रहे.

हिंदी में खड़ी बोली के विकास से भाषा के मानकीकरण का दौर प्रारंभ हुआ किंतु अंग्रेजी तथा आंचलिक भाषा रूपों के प्रति लगाव ने बाधा उपस्थित की. संस्कृत व्याकरण-पिंगल पर आधारित हिंदी में मात्रा गणना के लिये अनुनासिक और अनुस्वर को समझना आवश्यक है. 
अनुनासिक और अनुस्वर--
       


इस सर्वोपयोगी चर्चा को आगे बढ़ाने के पूर्व यह जान लें कि कहना और लिखना एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं. निस्संदेह भाषा पहले बोली गयी फिर लिखी गयी. बोले गये में अलग-अलग स्थानों, बोलनेवाले के ज्ञान, उच्चारण क्षमता तथा अभ्यास के कारण परिवर्तन होने पर शुद्ध रूप को लिखने की आवश्यकता हुई. 


अनुनासिक: जिन वर्णों में ध्वनि मुख के साथ-साथ नासिका से भी निकलती है, उन्हें नासिक ध्वनि (Nasal  sound) के कारण अनुनासिक  कहते हैं. प्रत्येक वर्ण समूह का पाँचवाँ अक्षर अर्थात क वर्ग (क, ,,, ), च वर्ग (, , ,, ), ट वर्ग (, , , ढ,), त वर्ग (,, , ध, ), प वर्ग (, ,, भ, ) आदि के अंतिम पंचम वर्ण ङ्, ञ्, ण, न, म 'अनुनासिक'  कहलाते हैं. उच्चारण को सरल रूप से समझने के लिये अनुनासिक के स्थान पर अर्ध ध्वन्याक्षर का प्रयोग प्रचलन में है. 

शुद्ध पाञ्चजन्य = प्रचलित पान्चजन्य, प्रत्यञ्चा = प्रत्यंचा,  
शुद्ध वाङ्मय / वाङ् मय = प्रचलित वांग्मय, गङ्गा = गंगा, तरङ्गिणी = तरंगिनी,
उद्दण्ड = उद्दंड = उद्दन्ड,  अखण्ड = अखंड = अख
न्ड

अन्य  (इसे अंय नहीं लिख सकते)  क्यों ?
प्रणम्य (यहाँ आधे म को हटाकर उसके स्थान पर पूर्वाक्षर पर बिंदी नहीं रख सकते)


अनुस्वर: स्वर के बाद  बोला जाने वाला  हलंत (अर्ध ध्वनि) अनुस्वार कहलाता है जिसका उच्चारण अनुनासिक वर्णानुसार किया जाता है ! इसका चिन्ह . वर्ण के ऊपर बिंदी (जैसी यहाँ बि पर लगी है) होता  है ! जिस अक्षर के ऊपर अनुस्वर (बिंदी) हो उसका अगला अक्षर जिस वर्ण समूह का हो उसके पंचम अक्षर की अर्ध ध्वनि अनुस्वर के स्थान पर बोली जाती है. यथा: शङ्का = शंका, शङ्ख = शंख, गङ्ग = गंग, उल्लङ्घन = उल्लंघन, प्रपंच , लांछन , सञ्जय = संजय, झंझट, घण्टा = घंटा = घन्टा, कण्ठ = कंठ = कन्ठ, दण्ड = दंड = दन्ड, माण्ढेर = मांढेर, मान्ढेर, संत = सन्त, पंथ = पन्थ, छंद = छन्द, धंधा = धन्धा, चंपत = चम्पत, गुंफित = गुम्फ़ित, कंबल = कम्बलदंभ = दम्भ, मंजूषा = मन्जूषा  आदि.
                                                                                                

-- संयुक्त अक्षर यदि प्रथम हो तो अर्ध अक्षर की मात्रा की गणना नहीं होती.  
यथा प्रचुर = १ १ १ = ३, क्रय १ १ = २, क्रिया १ २ = ३, क्रेता = २ २ = ४, विक्रय = २ १ १ = ४, विक्रेता = २ २ १ = ५, ग्रह = १ १ = २, विग्रह = २ १ १ = ४  किन्तु  अनुस्वार वाले शब्द  की मात्रा २ गिनी जायेगी ! 

हंस (पक्षी) और हँस (क्रिया हँसना) के उच्चारण पर ध्यान दें तो शब्दों में कहाँ बिंदी और कहाँ चन्द्र बिंदी लगाना है स्पष्ट होगा. प्रायः इसमें गलती होती है.                            

(उर्दू में भी ऐसी ही गणना होती है और उसे ’वज़न’ कहते हैं और वह भी ’मल्फ़ूज़ी’ (यानी तल्फ़्फ़ुज़=उच्चारण के आधार पर होती है. दो-हर्फ़ी कलमा को ’सबब’ और 3- हर्फ़ी कलमा को ’वतद’ और 4-हर्फ़ी कलमा को फ़ासिला’ कहते हैं.)

-- ‘क्ष’ संयुक्त अक्षर में क् और मूर्धन्य ष का योग है न कि तालव्य श का.
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रविवार, 17 जून 2012

बाल गीत: पाखी की बिल्ली --संजीव 'सलिल'

बाल गीत:
पाखी की बिल्ली
संजीव 'सलिल'
*

 
 




*
पाखी ने बिल्ली पाली.
सौंपी घर की रखवाली..

फिर पाखी बाज़ार गयी.
लाये किताबें नयी-नयी



तनिक देर जागी बिल्ली.
हुई तबीयत फिर ढिल्ली..

लगी ऊंघने फिर सोयी.
सुख सपनों में थी खोयी..



मिट्ठू ने अवसर पाया.
गेंद उठाकर ले आया..

गेंद नचाना मन भाया.
निज करतब पर इठलाया..



घर में चूहा आया एक.
नहीं इरादे उसके नेक..

चुरा मिठाई खाऊँगा. 
ऊधम खूब मचाऊँगा..



आहट सुन बिल्ली जागी.
चूहे के पीछे भागी..

झट चूहे को जा पकड़ा.
भागा चूहा दे झटका..



बिल्ली खीझी, खिसियाई.
मन ही मन में पछताई..




अगर न दिन में सो जाती.
खो अवसर ना पछताती.

******

गीत: संग समय के... --संजीव 'सलिल'

गीत:
संग समय के...
संजीव 'सलिल'
*
 
*
संग समय के चलती रहती सतत घड़ी.
रहे अखंडित कालचक्र की मौन कड़ी.....
*


छोटी-छोटी खुशियाँ मिलकर जी पायें.
पीर-दर्द सह आँसू हँसकर पी पायें..
सभी युगों में लगी दृगों से रही झड़ी.....
*


अंकुर, पल्लव, कली, फूल, फल, बीज बना.
सीख न पाया झुकना तरुवर रहा तना।
तूफां ने आ शीश झुकाया व्यथा बड़ी.....
*


दूब डूब जाती पानी में- मुस्काती.
जड़ें जमा माटी में, रक्षे हरियाती..
बरगद बब्बा बोले रखना जड़ें गडी.....
*
 

वृक्ष मौलश्री किसको हेरे एकाकी.
ध्यान लगा खो गया, नगर अब भी बाकी..
'ओ! सो मत', ओशो कहते: 'तज सोच सड़ी'.....
*


शैशव यौवन संग बुढ़ापा टहल रहा.
मचल रही अभिलाषा देखे, बहल रहा..
रुक, झुक, चुक मत, आगे बढ़ ले 'सलिल' छड़ी.....
*


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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नयी कहानी : आँखों के साँप धर्मेन्द्र कुमार सिंह

नयी कहानी :

 आँखों के साँप

धर्मेन्द्र कुमार सिंह 

कजरी गाँव से नई नई आई थी शहर में अपने मामा के पास। उसकी माँ और तीन छोटी बहनें गाँव में ही थे। उसका बाप चौथी बेटी के जन्म के बाद घर छोड़कर भाग गया था ऐसा गाँव के लोग कहते थे। उसकी माँ का कहना था कि उसका बाप इलाहाबाद के माघ मेले में नहाने गया था और मेले के दौरान संगम के करीब जो नाव डूबी थी उसमें उसका बाप भी सवार था। जिन लोगों को थोड़ा बहुत तैरना आता था उनको तो बचा लिया गया पर जो बिल्कुल ही अनाड़ी थे उनको गंगाजी ने अपनी गोद में सुला लिया। तब वह छह साल की थी। उसकी माँ ने पुलिस में रिपोर्ट भी लिखाई थी। तत्कालीन दरोगा का घर इलाहाबाद में था इसलिए जब तक वो थाने में रहा उसने इस केस के नाम पर हर शनिवार इलाहाबाद का कार्यालयीन दौरा किया, उसका तबादला होने के बाद नए दरोगा ने कुछ दिन इधर उधर करके यह लिखकर मामला बंद कर दिया कि उस डूबी हुई नाव में उसका बाप भी सवार था। नाव वाले अपनी सवारियों का नाम पता लिखकर बैठाते नहीं और गोताखोर सारी लाशें ढूँढ नहीं पाते। रिपोर्ट की एक प्रति नया दरोगा उसकी माँ को दे कर गया था जो उसकी माँ ने सँभाल कर रख ली थी। उनकी झोपड़ी और थोड़ी सी जमीन जो झोपड़ी के पीछे थी उसके बाप के नाम पर थी।

उसकी माँ दूसरों के घरों में झाड़ू पोंछा बर्तन (कुछ संज्ञाओं को समय क्रिया बना देता है और कुछ क्रियाओं को संज्ञा) करती थी। पहले तो वह अपनी माँ के जाने के बाद दिनभर झोपड़ी में अपनी बहनों की देखभाल करती थी पर जब उससे छोटी वाली बहन थोड़ा बड़ी हो गई तो कजरी की माँ कजरी को भी अपने साथ हाथ बँटाने के लिए ले जाने लगी। वक्त बीतने लगा और देखते ही देखते कजरी बारह साल की हो गई। वो बिल्कुल अपनी माँ पर गई थी। उसका भी रंग हल्का साँवला और बदन भारी था। बारह साल की उम्र में ही उसका बदन चौदह पंद्रह साल की लड़कियों जैसा लगने लगा था। एक दिन उसकी माँ बीमार पड़ गई और उसने अकेले ही कजरी को काम पर भेज दिया। पहले दो घरों का काम निबटाने के बाद जब वो तीसरे घर में पहुँची तो घर के मालिक रामकिशोर पांडेय अपनी दैनिक पूजा में व्यस्त थे। उसने घर में जाकर देखा सारा घर सूना पड़ा हुआ है।

कजरी ने उनके पास जाकर पूछा, “पंडित जी प्रणाम, पंडिताइन और घर के बाकी लोग कहाँ चले गए।”

“सब मंदिर गए हैं आ रहे होंगें। जाओ अपना काम करो और मुझे पूजा करने दो।”

उसने पोंछा उठाया और बगल वाले कमरे की तरफ चली गई। थोड़ी देर बाद पांडेय जी अपनी पूजा समाप्त करके आए और देखा कि कजरी उनके ही कमरे में पोंछा लगा रही थी। अचानक उन्होंने कहा, “अरे मैंने यहीं सौ का नोट रखा था कहाँ गया”।

कजरी ने कहा, “मुझे क्या मालूम, मैंने तो यहाँ कोई नोट नहीं देखा”।

“अच्छा बड़ी ईमानदार बनती है, रुक जा अभी तेरी तलाशी लेता हूँ”।

“तलाशी लेनी है तो ले लीजिए लेकिन बेवजह इल्ज़ाम मत लगाइए”। कहकर कजरी ने पंडित जी के चेहरे की तरफ देखा।

अचानक कजरी को पंडित जी की आँखों में एक साँप दिखाई पड़ा, वैसा ही साँप जैसा कुछ दिन पहले उसने अपनी झोपड़ी के पीछे खेतों में देखा था। जिसको देख कर वो इतना डर गई थी कि कुछ पलों तक एकदम जड़ होकर रह गई। लेकिन वो साँप तो कजरी की आहट पाते ही भागने लग गया था। तभी कजरी ने देखा कि साँप पंडित जी की आँखों से बाहर निकल आया और उसने पंडित जी को डस लिया। पल भर में पंडित जी कजरी के सामने मरे पड़े थे और वो साँप अब धीरे धीरे कजरी के करीब आ रहा था। कजरी डर के मारे हिल भी नहीं पा रही थी। जैसे ही साँप का मुँह उसके पाँवों की अँगुलियों से छुआ उसको लगा बर्फ़ का एक टुकड़ा उसकी अँगुलियों के बीच रख दिया गया हो। उसका पैर काँप उठा साँप धीरे धीरे उसके पैरों को अपनी कुंडली में लपेटता हुआ ऊपर की ओर बढ़ने लगा और वो अपने पैरों को काँपने से रोकने की भरपूर कोशिश करने लगी। उसकी माँ ने कहा था कि साँप के सामने लाश की तरह साँस रोककर बिना हिले डुले खड़ी हो जाओ तो साँप काटता नहीं। आज माँ की बात की सच्चाई परखने का समय आ गया था। साँप ने जब उसके फ़्राक के भीतर मुँह घुसेड़ा तो साँस रोकने के बावजूद उसके मुँह से हल्की सी चीख निकल गई। उसने अपनी आँखें कस कर बंद कर लीं। साँप ने एक पल के लिए उसके फ़्राक से बाहर मुँह निकाला और उसकी आँखें बंद देखकर फिर उसके पैरों से लिपटता हुआ ऊपर चढ़ने लगा। कजरी का पैर साँप के ठंढे शरीर की वजह से धीरे धीर सुन्न पड़ता जा रहा था। जब साँप का मुँह उसकी जाँघों से ऊपर की ओर बढ़ा तो उसके मुँह से एक जोर की चीख निकली और न जाने कैसे उसने अपने पैर को जोर से झटक दिया। साँप की कुंडली खुल गई और वो दीवाल से टकराकर नीचे गिरा। कजरी ने देखा कि अचानक पंडित जी जिंदा हो उठे और साँप जल्दी से उनकी आँखों में घुसकर गायब हो गया।

उसने घर पहुँचकर सारी कहानी अपनी माँ को सुनाई तो उसकी माँ को विश्वास ही नहीं हुआ। उसकी माँ बोली, “ऐसा तो पुराने किस्से कहानियों में होता था लेकिन सचमुच में ऐसा कहीं होता है? साँप तो आदमी को देखते ही भाग जाता है और वो तो पंडित जी हैं भूतों पिशाचों को भी अपने मंतर से वश में कर लेते हैं तो एक साँप की क्या मजाल। तू ये बता फिर पंडित जी ने रूपयों के बारे में क्या कहा।”

कजरी बोली, “दुबारा जिंदा होने के बाद पंडित जी ने कहा कि हो सकता है पंडिताइन ने नोट उठा लिया हो या मैंने ही कहीं और रखा हो”।

“चलो अच्छा है वरना बेवजह चोरी का इल्ज़ाम लगता और गाँव के बाकी घरों में भी काम मिलना मुश्किल हो जाता।”

लेकिन कजरी को यकीन था कि जो कुछ उसने देखा वो सब सच था। उसके दिमाग में तरह तरह के विचार आने लगे। वो सोचने लगी क्या हर आदमी की आँख में साँप रहता है? क्या ऐसा भी होता है कि कुछ आदमी साँप के विष से मरने के बाद दुबारा जिंदा ही न हो सकें? क्या सारे साँप आदमियों की आँखों में ही छिपकर रहते हैं? सोचते सोचते उसके मन में साँपों के प्रति एक अजीब सा डर पैदा हो गया। उसने अपनी माँ से कह दिया कि अब से वो अकेले पंडित जी के घर नहीं जाएगी उसे साँपों से बहुत डर लगता है। उसके बाद जब भी वो अपनी माँ के साथ पंडित जी के घर में पोंछा कर रही होती उसे वही साँप अक्सर पंडित जी की आँखों से बाहर निकलने को बेताब दिखाई पड़ता। वो अपनी माँ के कान में जाकर बताती मगर जब तक उसकी माँ देखती साँप गायब हो जाता। धीरे धीरे उसे वही साँप एक दो और घरों के आदमियों की आँखों में दिखाई पड़ने लगा। अक्सर वो भोर में सपना देखती कि एक साँप ने उसको अपनी कुंडली में जकड़ रखा है। वो छूटने की कोशिश कर रही है मगर सारी ताकत लगाकर भी वो हिल तक नहीं पाती। आखिरकार वो थककर चूर हो जाती और छटपटाने की कोशिश भी बंद कर देती तब साँप उसके होंठों पर डस लेता और वो चीखते हुए उठ जाती। उसकी माँ ओझा के पास से ताबीज ले आई, मौलवी से कलमा पढ़वाकर नमक खिलाया, पंडित से मंतर मरवाकर प्रसाद खिलाया मगर कोई फायदा नहीं हुआ।

कुछ दिन बाद शहर से कजरी का मामा आया। वो शहर में रिक्शा चलाता था और कजरी की मामी लोगों के घरों में झाड़ू पोंछा करती थी। उनकी शादी को पंद्रह साल हो गए थे लेकिन कोई बच्चा नहीं हुआ था। कजरी की माँ ने उनको सपने के बारे में बताया। उसके मामा ने कहा, “जरूर किसी ने भूत परेत कर दिया है। गाँव में लोगों को कोई काम धाम तो है नहीं बस भूत परेत करते रहते हैं। शहर में ये सब नहीं होता। वहाँ किसको इतनी फुर्सत है कि दूसरों के घरों मे झाँके। सब अपने अपने में मस्त। हमें तो कोई औलाद दी नहीं भगवान ने। कजरी को हमारे साथ भेज दो। अब तो तुम्हारी दूसरी बेटी भी काम करने लायक हो गई है, उसे काम पर ले जाया करो। कजरी शहर में रहेगी तो कुछ शऊर सीख जाएगी, यहाँ रहेगी गँवार की गँवार बनी रहेगी और ऊपर से ये भूत-परेत। इसको हम गोद ले लेते हैं।”

कजरी की माँ को अपने भाई की बात सही लगी और कजरी आ गई गाँव से शहर। अगले दिन उसकी मामी उसे लेकर राहुल शर्मा के घर गई। राहुल शर्मा एक प्राइवेट कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर थे। उनकी पत्नी ललिता शर्मा बच्चों के स्कूल में पढ़ाती थीं। पति पत्नी की जोड़ी किसी रोमांटिक फ़िल्म के नायक नायिका जैसी थी। अभी चार महीने पहले उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। राहुल की माँ ललिता और बच्चे की देखभाल के लिए आई हुई थीं मगर एक हफ़्ते बाद वो वापस उसके पिता और छोटे भाई के पास जाने वाली थीं। कस्बे में राहुल के पिता की परचून की दूकान थी और राहुल का भाई भी उनके साथ दूकान में हाथ बँटाता था। राहुल और उनकी पत्नी दोनों नौकरी करते थे इसलिए बच्चा सँभालने के लिए स्थायी रूप से किसी को रखना चाहते थे जो सुबह से शाम तक बच्चे की देखभाल कर सके। कजरी का मामा कजरी को इसीलिए गाँव से ले आया था।

राहुल शर्मा उसे देखते ही बोले, “अरे ये तो अभी बच्ची है इससे काम करवाना तो कानूनन जुर्म है। अगर आपसे कोई पूछे तो किसी से कहिएगा नहीं कि ये हमारे यहाँ काम करती है। कह दीजिएगा यहाँ पढ़ने आती है।”

“जैसा आप कहें।” कहकर उसकी मामी उसे शाम तक वहीं रहकर बच्चा सँभालने की हिदायत देकर चली गईं।
कजरी की निगाह राहुल की आँखों पर गई। वहाँ उसे कोई साँप नहीं दिखाई पड़ा। उसे राहत मिली। ललिता ने उसको समझाया दी कि बच्चा जब रोए तो कैसे बच्चे का दूध गर्म करना है फिर बॉटल और निपल उबालना है। उसके कपड़े और डायपर कैसे बदलने हैं। सारी हिदायत देकर दोनों पति पत्नी अपने काम पर चले गए। कजरी के दिन आराम से कटने लगे। अब उसे लोगों की आँखों में साँप दिखाई देना काफी कम हो गया था। उसे अपने मामा और राहुल की आँखों में वो साँप अब तक कभी नहीं दिखा इसलिए धीरे धीरे वो पूरी तरह निश्चिंत हो गई।
दो साल और बीत गए। कजरी थी तो चौदह साल की लेकिन शरीर भारी होने के कारण अठारह की लगने लगी थी। एक दिन वो पोंछा मार रही थी और ललिता स्नान कर रही थी। अचानक कजरी की निगाह ऊपर उठी तो उसने देखा राहुल उसे ही देख रहे हैं और उनकी आँखों में भी एक साँप लहरा रहा है। पर कजरी से निगाह मिलते ही वो साँप डर कर भाग गया। कजरी को लगा कि ये वही खेत वाला साँप है जो इंसानों से डरकर भाग जाता है। कजरी को आज थोड़ी खुशी हुई कि उसके पास साँप को डराकर भगाने की भी ताकत है। अब कजरी जानबूझकर तभी पोंछा लगाती जब ललिता स्नान करने के लिए जाती ताकि वो राहुल की आँखों के साँप पर अपनी ताकत आजमा सके। उसने कई बार राहुल की आँखों में साँप को आते और डरकर भागते देखा। अब ललिता को ये एक तरह का खेल लगने लगा और इसे खेलने में उसे मजा आने लगा। धीरे धीरे ललिता में आत्मविश्वास जागने लगा कि वो जब चाहे राहुल की आँखों में साँप को बुला सकती है और फिर उसे पलक झपकते ही भगा सकती है।

एक दिन रात में अचानक कोई आवाज सुनकर ललिता की नींद टूट गई। उसने अँधेरे में इधर उधर देखा पर उसे कुछ भी नहीं दिखा। कुछ क्षण बाद वही आवाज़ दुबारा आई तो उसे पता लगा कि आवाज़ उस कमरे से आ रही है जिसमें उसके मामा मामी सोते हैं। उसने दरवाज़े की झिरी से अंदर झाँका तो दंग रह गई। कमरे की लाइट जली हुई थी और उसकी मामी बिना कपड़ों के लेटी हुई थीं। एक मरियल से साँप ने उनको अपनी कुंडली में जकड़ रखा था। साँप बार बार उसकी मामी के होंठों पर डस रहा था। एक नागिन उसकी मामी के एक तरफ़ मरी पड़ी थी और दूसरी तरफ़ उसके मामा मरे पड़े थे। थोड़ी देर तक यही क्रम जारी रहा फिर अचानक उसके मामा जिंदा हो गए और वो साँप उनकी आँखों में समा गया। उसके मामा के सोने के बाद वो नागिन भी जिंदा हो गई और उसकी मामी की आँख में जाकर गायब हो गई। उसे आश्चर्य हुआ कि ये दोनों भी जानते हैं आँखों में रहने वाले साँप के बारे में तो उसकी कहानी पर विश्वास क्यों नहीं करते। अचानक उसे लगा कि उसकी आँखों में कुछ चुभ रहा है। उसने धीरे से अपने कमरे का बल्ब जलाया और आइना उठाकर अपना चेहरा देखा। उसकी मुँह से चीख निकलते निकलते रह गई। एक नागिन उसकी आँखों से धीरे धीरे बाहर आ रही थी। अचानक नागिन तेजी से बाहर निकली और उसने कजरी को डस लिया। उसके बाद उसकी नींद तब खुली जब उसकी मामी दरवाजा खटखटा रही थी। वो जल्दी से उठी और अपने काम में जुट गई। आज उसे अपना बदन फूलों जैसा हल्का फुल्का लग रहा था। उसे आज एक नई बात पता चली कि औरतों की आँखों में नागिन रहती है।

एक दिन कजरी जब राजेश के घर गई तो राजेश को हल्का बुखार था। उसने आफ़िस से छुट्टी ले ली थी और एक क्रोसिन खाकर बिस्तर पर पड़ा हुआ था। ललिता ने उसे बच्चे के साथ साथ राजेश का ख्याल रखने की भी हिदायत दी और स्कूल चली गई। डेढ़ घंटे बाद राजेश की तबीयत कुछ सुधरी तो उसने ललिता से पानी माँगा। वह पानी लेकर राजेश के पास गई तो उसे वही साँप फिर राजेश की आँखों में दिखाई पड़ा। उसने उसे डराकर भगाने की कोशिश की मगर वह न तो डर कर भाग रहा था न ही बाहर निकल रहा था। कजरी को न जाने क्यूँ अब इस साँप से डर नहीं लगता था। राजेश ने कजरी को खाना लगाने के लिए कहा। खाना लगाने के बाद कजरी वहीं राजेश के सामने ही डाइनिंग टेबल पर बैठ गई। साँप लगातार राजेश की आँखों में दिखाई पड़ रहा था। थोड़ी देर बाद कजरी को अपनी आँखों में चुभन महसूस हुई। वो उठकर बाथरूम में गई तो उसे वही नागिन दिखाई पड़ी जिसने उस रात उसे डसा था। वह वापस आकर फिर कुर्सी पर बैठ गई। अचानक दोनों की आँखें मिलीं। कजरी ने सोचा क्या राजेश को पता है कि उसकी आँखों में नागिन रहती है? क्या मेम साहब की आँखों में भी नागिन रहती है? पर उसने तो कभी मेम साहब की आँखों में नागिन नहीं देखी। अचानक साँप राजेश की आँखों से बाहर निकला और उसने राजेश को डस लिया। कजरी के सामने राजेश मरा पड़ा था और साँप धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ रहा था। उसे लगा कि साँप अब भी उससे डर रहा है। अचानक कजरी की आँखों से नागिन बाहर निकली और उसने कजरी को डस लिया।

उसके बाद जब कजरी की आँखें खुलीं तो उसने अपने आप को राजेश के साथ बिना कपड़ों के बेड पर लेटा पाया। राजेश गहरी नींद सो रहा था और साँप शायद वापस उसकी आँख में घुसकर गायब हो गया था। उसने घड़ी देखी मेमसाब के आने का समय हो गया था। उसने फटाफट राजेश को जगाया। अब राजेश की आँखों में उसे वह साँप नहीं दिखाई दे रहा था। दोनों ने जल्दी से अपने कपड़े पहन लिए। कजरी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अगर सब की आँखों में साँप रहता है तो लोग उसकी बात का विश्वास क्यों नहीं करते। उसने राजेश से पूछा क्या आपको मेरी आँखों में नागिन दिखी थी। राजेश ने हाँ में सिर हिला दिया। फिर उसने अपनी कहानी राजेश को सुनाई और ये भी बताया कि लोग उसकी बात का विश्वास ही नहीं करते। राजेश ने कहा कि उसे कजरी पर पूरा विश्वास है। ये सुनकर कजरी खुश हो गई। उस रात कजरी ने सपना देखा कि राजेश के बेडरूम में वो दोनों मरे पड़े हैं और राजेश की आँखों का साँप और उसकी आँखों की नागिन एक दूसरे के इर्द गिर्द लिपटकर झूम रहे हैं। लेकिन उसे इस सपने से बिल्कुल भी डर नहीं लगा।

इसके बाद महीने में तीन चार बार राजेश घर में अकेले रहने का कोई न कोई बहाना ढूँढ ही लेता। कभी दफ़्तर से जल्दी आ जाता, कभी सर दर्द का बहाना करके घर में ही पड़ा रहता। एक दिन वो दफ़्तर से जल्दी घर आया तो देखा कजरी बिस्तर पर पड़ी हुई है।

उसने कजरी से पूछा, “क्या हुआ तबियत ठीक नहीं है क्या?”

वो बोली, “नहीं सारे बदन में अजीब सा दर्द है। सर भारी भारी लग रहा है।”

राजेश ने उसका माथा छुआ। कजरी को तेज बुखार था। वो उसे लेकर अपने मित्र अनुज के पास गया। राजेश और अनुज इंटर तक एक ही स्कूल में पढ़े थे। उसके बाद राजेश ने इंजीनियरिंग करके एमबीए कर लिया था और अनुज एमबीबीएस और फिर मेडिसिन में एमडी करके राजेश के घर से थोड़ी दूर स्थित एक बड़े प्राइवेट हास्पिटल में नौकरी कर रहा था। राजेश ने अनुज को कजरी के बारे में बताया। अनुज ने कजरी की आँखें देखीं। आँखें लाल हो रही थीं। कजरी ने अनुज की आँखें देखीं उसमें उसे साँप नहीं दिखाई पड़ा।

अनुज ने राजेश से कहा, “लगता है इसे मलेरिया हो गया है। इसके खून की जाँच करनी पड़ेगी।”

खून की जाँच रिपोर्ट देखकर अनुज को झटका लगा।

उसने राजेश से कहा, “अरे ये लड़की तो प्रेगनेंट है। ये तो पुलिस केस है। नाबालिग के साथ रेप का मामला है।”
उसके बाद राजेश ने अनुज को एक कोने में ले जाकर सारी बात समझाई कि इसमें उसका कोई कसूर नहीं है वो चाहे तो कजरी से पूछ ले। जो कुछ किया है आँखों में रहने वाले साँप ने किया है। वरना वो तो एक सीधा सादा इज्जतदार आदमी है और कानून की बहुत इज़्जत करता है। अनुज ने कजरी से पूछा तो कजरी ने उसे भी साँप वाली कहानी सुनाई। कजरी ने देखा कि वो कहानी सुनने के बाद अनुज की आँखों में भी वैसा ही साँप दिखाई पड़ने लगा है। अनुज ने किसी तरह कजरी का गर्भपात कराया और आगे से राजेश को साँप से सावधान रहने की हिदायत दी। लेकिन अगले दिन शाम को ललिता के आने से बहुत पहले अनुज और राजेश दोनों घर आ गए। कजरी ने देखा दोनों की आँखों में साँप लहरा रहे हैं। आज उसे राजेश की आँखों के साँप से भी डर लगा। फिर अचानक कजरी ने देखा कि दोनों की आँखों से साँप बाहर निकले और दोनों को डस लिया। पल भर में कजरी के सामने दोनों मरे पड़े थे। दोनों साँप तेजी से कजरी की ओर बढ़े। कजरी की आँखों से आज कोई नागिन नहीं निकली। आज वो साँपों को देखकर डर से काँप रही थी। फिर दोनों साँपों ने उसे एक साथ अपनी कुंडली में जकड़ लिया। अचानक न जाने कहाँ से कजरी में इतनी ताकत आ गई कि उसने जोर से झटका दिया और दोनों साँप जाकर दीवार से टकराए। उसने जल्दी से दरवाजा खोला और बाहर निकलते निकलते उसने देखा कि राजेश और अनुज जिंदा हो गए हैं और दोनों साँप उनकी आँखों में समा रहे हैं।

अगले दिन कजरी काम पर नहीं आई और उसका मामा राजेश के घर आया।

ललिता ने पूछा, “आज कजरी क्यों नहीं आई। आज बच्चा कौन सँभालेगा।“

कजरी के मामा ने कहा, “आज कजरी बीमार है और बच्चा वो खुद सँभालेगा”।

ललिता के जाने के बाद राजेश आफ़िस जाने की तैयारी कर रहा था कि कजरी के मामा ने उससे कहा, “कल कजरी ने मुझे घर आने के बाद सारी बात बता दी। आपने ठीक नहीं किया मालिक। बच्ची है वो।”

राजेश को जैसे लकवा मार गया। वो तो सोचे बैठा था कि जैसे अब तक कजरी ने घर पर कुछ नहीं कहा था कल भी कुछ नहीं कहेगी। मगर ये क्या हो गया। राजेश का मुँह लटक गया।

कजरी के मामा ने मौका देखकर कहा, “मालिक अब जो हो गया सो हो गया। बात बढ़ाकर मैं आपके सुखी परिवार में आग नहीं लगाना चाहता। लेकिन मैं चाहता हूँ कि अब कजरी की शादी हो जाय और बात खत्म हो। पर मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं उसकी शादी कर सकूँ। समझ रहे हैं न मालिक।”

राजेश पल भर में सबकुछ समझ गया। उसके बाद कजरी के मामा ने रिक्शा बेचकर आटो खरीद लिया और उसकी मामी ने घरों में झाड़ू पोंछा लगाना बंद कर दिया। कुछ दिन के बाद कजरी की शादी चालीस साल के एक विधुर से कर दी गई जिसके दो छोटे बच्चे थे और पत्नी की मौत के बाद उसे बच्चा सँभालने वाली चाहिए थी। शादी के बाद पहली रात जब कजरी का पति उसके पास आया तो कजरी ने उसकी आँखों में वैसा ही साँप लहराता हुआ देखा। तभी कजरी ने देखा कि उसकी आँखों से नागिन चुपचाप निकली और उसने फर्श पर अपना सर पटक पटक कर दम तोड़ दिया। अचानक उसके पति की आँखों के साँप ने बाहर निकलकर उसके पति को डस लिया। अब उसका पति उसकी बगल में मरा पड़ा था और साँप उसे कुंडली में लपेटकर उसके होंठों पर डसने जा रहा था। उसके मुँह से घुटी घुटी चीख निकली और साँप बार बार उसके होंठों पर डसने लगा। कुछ देर बाद साँप ने उसे छोड़ा तो उसका पति जिंदा हो गया और साँप उसके पति की आँखों में समा गया। फर्श पर मरी हुई नागिन भी जिंदा हो गई और उसके सीने पर चढ़ कर झूमने लगी। आज उसे इस नागिन से डर लग रहा था। वो न तो उसे डस रही थी न ही उसकी आँखों में समा रही थी। बस उसके सीने पर चढ़कर झूमे जा रही थी। फिर नागिन उसके सीने से उतरी और फर्श पर कुंडली मारकर झूमने लगी। कजरी का भी मन हो रहा था कि वो भी नागिन के साथ झूमे। थोड़ी देर बाद वो भी फर्श पर बैठकर नागिन के साथ झूमने लगी। उसके बाल खुलकर बिखर गये। काफी देर तक यही चलता रहा फिर अचानक नागिन ने उसे डस लिया। सुबह जब वो उठी तो उसका पति गहरी नींद में था। वो घर के कामों में लग गई।

कई महीनों तक यही चलता रहा। एक दिन रात में उसके पति की नींद टूट गई और उसने कजरी को फर्श पर बैठकर झूमते हुए देखा। उसे नागिन नहीं दिखाई पड़ी। डर के मारे उसकी हालत खराब हो गई। उसकी समझ में कुछ नहीं आया। उसने कजरी के कंधों पर हाथ रखा तो वो चीखमार बेहोश हो गई। उसके पति ने सुबह उसके मामा से बात की तो उसके मामा ने गाँव में भूत परेत किए जाने की बात स्वीकार की। कजरी का पति उसे लेकर तुरंत एक बाबा के पास गया। कजरी को बाबा की आँखों में भी वही साँप दिखाई पड़ा। कजरी के पति ने सारी कहानी बाबा को सुनाई। कजरी ने देखा कि कहानी सुनने के बाद वो साँप बाबा की आँखों से बाहर निकलने के लिए जोर जोर से फुँफकार रहा था। बाबा ने कजरी के पति से कजरी को एक सप्ताह के लिए उनके आश्रम में छोड़ कर जाने के लिए कहा। कजरी का पति उसे छोड़कर चला गया। बाबा ने अपने चेलों से उसकी कुटिया में एक हवनकुंड बनाने के लिए कहा।

रात को जब बाहर झिल्ली जोर जोर से झनझना रही थी कुटिया के अंदर हवनकुंड में आग की लपटें उठ रही थीं। हवन कुंड के एक तरफ बाबा बैठा था। दूसरी तरफ कजरी बैठी थी और बाकी दोनों तरफ बाबा के दो चेले बैठे थे। कजरी की निगाहें बार बार बाबा की आँखों की तरफ जा रही थी जहाँ साँप जोर जोर से लहरा रहा था। बाबा ने कजरी से कहा कि अब तक जो कुछ भी उसके साथ हुआ है वो सबकुछ उसे बता दे। कजरी ने सारी बातें बाबा को बता दीं। बाबा ने कजरी को समझाया कि आँखों में रहने वाला साँप अगर कच्ची उम्र में किसी लड़की को छू ले तो वो लड़की अभिशप्त हो जाती है। उसे वही साँप जीवन भर सारे मर्दों की आँखों में दिखलाई पड़ता है। इस शाप से छुटकारा पाना बहुत मुश्किल है। अगर वो किसी को भी यहाँ हुए अनुष्ठान के बारे में बताएगी तो उसे इस शाप से छुटकारा कभी नहीं मिलेगा। ऐसा कहकर बाबा ने चेलों को बाहर जाने का इशारा किया। चेलों के बाहर जाने के बाद कजरी को फिर वही जाना पहचाना दृश्य दिखाई पड़ा। साँप बाबा की आँखों से बाहर निकला और बाबा को डँसने के बाद उसकी ओर बढ़ा। कजरी की आँखों से नागिन निकली और उसने फर्श पर फन पटक पटककर दम तोड़ दिया। धीरे धीरे साँप ने उसे अपनी कुंडली में भर लिया। जैसे ही साँप ने कजरी के होंठों पर डँसा वो जोर से चीख पड़ी। साँप बार बार उसके होंठों पर डँसने लगा और वो बार बार चीखने लगी। आश्रम में इस तरह के अनुष्ठान और चीखें आम रही होंगी इसलिए कजरी को बचाने कोई नहीं आया। कुछ देर बाद कजरी ने देखा कि नागिन जीवित हो उठी। वो तेजी से आकर उस नाग से लिपट गई। साँप ने कजरी को छोड़ दिया और नागिन से लिपटने लगा। अब कजरी के सामने साँप और नागिन एक दूसरे से लिपट लिपटकर खेल रहे थे। थोड़ी देर बाद दोनों थककर चूर हो गए और साँप और नागिन जहाँ से निकले थे वहीं जाकर गायब हो गए। कजरी को रात भर नींद नहीं आई। आज नागिन बीच में ही कैसे जिंदा क्यों हो गई और जिंदा होने के बाद उसने कजरी को डसा क्यों नहीं? ऐसे प्रश्न बार बार उसके दिमाग में घूम रहे थे मगर उसे लगता था कि उसे इन प्रश्नों का उत्तर कभी नहीं मिलेगा। 

एक सप्ताह बीतने पर उसका पति वापस आया और उसे अपने साथ ले गया। कजरी की आँखों से एक महीने तक नागिन बाहर नहीं निकली। एक महीने बाद उसे पता चला कि वो गर्भवती हो गई है। रात में उसने स्वप्न देखा कि वो अस्पताल में है और नर्स उसे उसका बच्चा दिखा रही है। उसकी निगाह अपने बच्चे पर गई तो उसकी चीख निकल गई। उसे बच्चे की जगह नर्स के हाथ में कुंडली मारे बैठा साँप दिखाई पड़ा। वो चीखकर जग गई। उसने अपने पति को जगाकर सपने के बारे में बताया। उसके पति ने समझा कि भूत परेत फिर से उसके सिर पर सवार हो गए हैं। वो उसे ले जाकर फिर बाबा के आश्रम में छोड़ आया। लेकिन इस बार वहाँ हफ़्ते भर रहने के बाद उसकी हालत और खराब हो गई। आश्रम से वापस आकर एक दिन उसने अपने पेट में पल रहे साँप को मुक्के मारकर खत्म कर देने की कोशिश की। उसका पति उसे डाक्टर के पास ले गया। कजरी ने डाक्टर को बताया कि उसके पेट में साँप है और वो उसे मार डालना चाहती है। डाक्टर ने अल्ट्रासाउंड किया तो उसे कजरी के पेट में बच्चा दिखाई पड़ा। डाक्टर ने घोषित कर दिया कि कजरी की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और बच्चा पैदा होने तक उसे अस्पताल में ही रखा जाय। उसके आठ महीने बाद कजरी को बच्चा पैदा हुआ। कजरी उसे देखकर जोर से चीखी और बेहोश हो गई। कजरी को पागलखाने में डाल दिया गया।

पागलखाने में कजरी को कभी वार्ड ब्वाय की आँखों में कभी डाक्टर की आँखों में वही साँप दिखाई पड़ता। कभी उसे लगता कि साँप उसके भीतर है और उसका पेट फाड़कर बाहर आ रहा है। वक्त बीतता गया और वक्त के साथ कजरी का पागलपन बढ़ता गया। एक बार उसने डाक्टर की आँखों में उँगलियाँ घुसेड़ने की कोशिश की। उसके बाद उसे खतरनाक पागलों के वार्ड में भेज दिया गया।
आभार: दैट्स मी 

**********

शनिवार, 16 जून 2012

जागरण गीत: क्यों सो रहा..... संजीव 'सलिल'

जागरण गीत:
क्यों सो रहा.....
संजीव 'सलिल'
*
क्यों सो रहा मुसाफिर,
उठ भोर रही है.
चिड़िया चहक-चहककर,
नव आस बो रही है.
*
मंजिल है दूर तेरी,
कोई नहीं ठिकाना.
गैरों को माने अपना-
तू हो गया दीवाना.
आये घड़ी न वापिस
जो व्यर्थ खो रही है...
*
आया है हाथ खाली,
जायेगा हाथ खाली.
नातों की माया नगरी
तूने यहाँ बसा ली.
जो बोझ जिस्म पर है
चुप रूह ढो रही है...
*
दिन सोया रात जागा,
सपने सुनहरे देखे.
नित खोट सबमें खोजे,
नपने न अपने लेखे.
आँचल के दाग सारे-
की नेकी धो रही है...
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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शुक्रवार, 15 जून 2012

दोहा सलिला: बेहतर रच नग्मात..... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
बेहतर रच नग्मात.....
संजीव 'सलिल'
*
जिसकी जैसी सोच है, वैसा देखे चित्र.
कोई लिए दुर्गन्ध है, कोई चाहता इत्र..

कौन किसी से कब कहाँ, क्या क्यों कहता बात.
जो सोचे हो परेशां, बेहतर रच नग्मात..

*
नीलम आभित गगन पर, बदरी छाई आज.
शुभ प्रभात है वाकई, मिटे ग्रीष्म का राज..

मिश्रा-मिश्राइन मिले, मिश्री बाँटी खूब.
पहुँचायें कुछ 'सलिल' तक, सके हर्ष में डूब..

लखनौआ  तहजीब को, बारम्बार सलाम.
यह तो खासुलखास है, भले खिलाये आम..
*
प्रीति मिले तो हो सलिल, खुशियों की बरसात.
पूनम जैसी चमकती, है अंधियारी रात..

रहे प्रीति के साथ नित, हो धरती पर स्वर्ग.
बिना स्वर्गवासी हुए, सुख पाए संवर्ग..

दूर प्रीति से ज़िन्दगी, हो जाती बेनूर.
रीति-नीति है भीति से, रहिए दूर हुजूर..

हूर दूर रहती 'सलिल', तनिक न आती काम.
प्रीति समीप सदा रहे, मिल जाती बिन दाम..

सूरत क्यों देखे 'सलिल', सीरत से रख चाह.
कविता कर जी भर विहँस, तज जग की परवाह..

बाँट सके जो प्रीति वह, पाता आत्म-प्रकाश.
बाँहों में लेता समा, वह सारा आकाश..

सूरत-सीरत प्रीति पा, हो जाती जब एक.
दीखता तभी अनेक में, उसको केवल एक ..

प्रीति न चाहे निकटता, राधा-हरि थे दूर.
अमर प्रीति गाते रहे, 'सलिल' निरंतर सूर..

प्रीति करें जिससे रखें, उससे कोई न चाह.        
सबसे ज्यादा कीजिए, उसकी ही परवाह..

आप चाहते हैं जिसे, चाहें दिल से खूब.
यह न जरूरी बाँह में, आ पाये महबूब..

प्रीति खो गयी है कहाँ, कहो बताये कौन.
'सलिल' प्रीति बिन मत करो, कविता हो अब मौन..

जो सूरत रब ने गढ़ी, हर सूरत है खूब.
दिया तले तम दे भुला, जा प्रकाश में डूब..

कब आयें आकाश में, झूम-झूम घन श्याम.
गरज-गरज बरसें 'सलिल', ग्रीष्म हरें घनश्याम..

अच्छे को अच्छा लगे, सारा जग है सत्य.
जिसे न कुछ अच्छा लगे, वह है निरा असत्य..

************

गुरुवार, 14 जून 2012

हिंदी में संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना -डॉ. प्राची सिंह

हिंदी में संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना       

(आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी से वार्तालाप के आधार पर ) 

            डॉ. प्राची सिंह


संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना:
(आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी से वार्तालाप के आधार पर )
•जब दो अक्षर मिलकर संयुक्त अक्षर बनाते हैं तो जिस अक्षर की आधी ध्वनि होती है उसकी गणना पूर्व अक्षर के साथ होती है.
यथा:अर्ध = (अ + आधा र) + ध = २ + १ = ३
मार्ग = (मा + आधा र) + ग = २ + १ = ३
दर्शन = (द + आधा र) + श + न = २ + १ + १ = ४
•आधे अक्षर के पहले दीर्घ या बड़ा अक्षर हो तो आधा अक्षर उसके साथ मिलकर उच्चरित होता है इसलिए मात्रा २ ही रहती हैं. ढाई या तीन मात्रा नहीं हो सकती.
क्ष = आधा क + श
कक्षा = (क + आधा क) + शा = २ + २ = ४
क्षत = (आधा क + श ) + त = १ + १ = २
विक्षत = ( वि + आधा क ) + श + त = २ +१+१ = ४
ज्ञ = आधा ग + य
विज्ञ = (वि + आधा ग) + य = २ + १ = ३
ज्ञान की मात्रा ३ होगी, पर विज्ञान की मात्रा ५ होगी
त्र में त तथा र का उच्चारण एक साथ होता है अतः त्र की मात्रा २ होगी
पत्र = १ + २ = ३
पात्र = २ + २ = ४
•संयुक्त अक्षर यदि प्रथम हो तो अर्ध अक्षर की गणना नहीं होती
प्रचुर १+१+१ = ३
त्रस्त = २ + १ = ३
क्षत = (आधा क + श ) + त = १ + १ = २
•जिन्हें तथा उन्हीं की मात्रा गणना किस प्रकार होगी ?
जिन्हें तथा उन्हीं को जोर से बोलिए अप पहले जि फिर न्हें तथा उ फिर न्हीं बोलेंगी. इसी अधार पर गिनिए. मात्रा गणना के नियन ध्वनि विज्ञान अर्थात उच्चारण के अधार पर ही बने हैं.
उन्हीं = उ + (आधा न + हीं) = १ + २ = ३
जिन्हें = जि + (आधा न + हें) = १ + २ = ३
इन्हें यदि ४-४ गिनेंगे तो भ्रम होगा.
•मात्रा गणना बिलकुल आसान है . शब्द को जोर से बोलिए... उच्चारण में लगने वाले समय का ध्यान रखें. कम समय लघु मात्रा १, अधिक समय दीर्घ मात्रा २ . कुल इतना है... शेष अभ्यास...
बोलकर अंतर समझें कन्या, हंस आदि में ‘न’ का उच्चारण क्रमशः ‘क’ व ‘ह’ के साथ है. कन्हैया में ‘न’ का उच्चारण ‘है’ के साथ है क + न्है + या
कन्या = (क + आधा न) + या = २ + २ = ४
हंस = (ह + आधा न) + स = २ + १ = ३
कन्हैया = क + न्है + या = १ + २ + २ = ५

बाल मुक्तिका: हरियल तोता --संजीव 'सलिल'



बाल मुक्तिका:
हरियल तोता
संजीव 'सलिल'
*

*
सबका प्यारा हरियल तोता.
चुग्गा चुगता खुशियाँ बोता..



आसमान में उड़ते तोते
देख-देख मन ही मन रोता..



पिंजरे में सिर पटक-पटककर
अमन-चैन, सुध-बुध भी खोता..



नासमझी कर पलट कटोरी
पानी की- प्यासा ही सोता..



सुबह-सुबह जग राम-राम कह
सबको सुख देकर खुश होता..



भीगे चने मिर्च ताज़ा फल
रुच-रुच खाता ज्यों हो न्योता..



गर्मी लगती पंख भिगाता
फिर फैला पर सुखा-निचोता..



हीरामन को दिखती मैना.
नैन लड़ाता, दिल भी खोता..

***************


Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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श्री गणेश स्मरण हिंदी पद्यानुवाद : संजीव 'सलिल'



श्री गणेश स्मरण

हिंदी पद्यानुवाद : संजीव 'सलिल'

*

प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथ बन्धुं, सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मं
उद्दंडविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमाखण्डलादि सुरनायकवृन्दवन्द्यं

दीनबंधु गणपति नमन, सुबह सुमिर नत माथ.
शोभित गाल सिँदूर से, रखिए सिर पर हाथ..

विघ्न निवारण हित हुए, देव दयालु प्रचण्ड.
सुर-सुरेश वन्दित प्रभो, दें पापी को दण्ड..
*

प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानं
त तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो: शिवाय

ब्रम्ह चतुर्भुज प्रात ही, करें वंदना नित्य.
मनचाहा वर दास को, देवें देव अनित्य..

उदार विशाल जनेऊ है, सर्प महाविकराल.
कीड़ाप्रिय शिव-शिवा सुत, नमन करूँ हर काल..
*

प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोकदावानलं  गणविभुं वरकुंजरास्यं 
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाहमुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्यं

शोक हरें दावाग्नि बन, अभय प्रदायक दैव.
गणनायक गजवदन प्रिय, रहिए सदय सदैव..

जड़ जंगल अज्ञान का,करें अग्नि बन नष्ट.
शंकरसुत वंदन-नमन, दें उत्साह विशिष्ट..
*

श्लोकत्रयमिदं पुण्यं सदा साम्राज्यदायकं
प्रातरुत्थाय सततं यः पठेत प्रयते पुमान

नित्य प्रात उठकर पढ़ें, यह पावन श्लोक.
सुख-समृद्धि पायें अमित, भू पर हो सुरलोक..

************
 
 
श्री गणेश पूजन मंत्र 
हिंदी पद्यानुवाद: संजीव 'सलिल'
*
गजानना  पद्मर्गम  गजानना महिर्षम 
अनेकदंतम  भक्तानाम एकदंतम उपास्महे


 
कमलनाभ गज-आननी, हे ऋषिवर्य महान.
करें भक्त बहुदंतमय, एकदन्त का ध्यान..

गजानना = हाथी जैसे मुँहवाले, पद्मर्गम =  कमल को नाभि में धारण करने वाले अर्थात जिनका नाभिचक्र शतदल कमल की तरह पूर्णता प्राप्त है, महिर्षम = महान ऋषि के समतुल्य, अनेकदंतम = जिनके दाँत दान हैं, भक्तानाम भक्तगण, एकदंतम = जिनका एक दाँत है, उपास्महे = उपासना करता हूँ.
 
************

बुधवार, 13 जून 2012

मुक्तिका: गान है बचा -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:गान है बचा
संजीव 'सलिल'
*



*विस्मय यही है अब तलक ईमान है बचा
दर्पण बता रहा है कि इन्सान है बचा..

बेमौत छंद मर गया, थी घोषणा हुई.
गीतों की लय, गज़ल का उन्वान है बचा.


विरसे में जो मिला वो कबाड़ा लगा जिन्हें
उनके लबों पे अब भी एक पान है बचा.

हर कोई कह रहा है, सुनता न कोई भी
लब कह रहा कि कैसे कहें कान है बचा.

संसद में मौन कोयलों से काग कह रहे
देखो हमारी दम से 'सलिल' गान है बचा.

***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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गीत: थिरक रही है... --संजीव 'सलिल'


गीत: 

थिरक रही है... 

-- संजीव 'सलिल'

*
थिरक रही है,
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*

*
बाधाओं की चट्टानों पर
शिलालेख अंकित प्रयास के.
नेह नर्मदा की धारा में,
लहर-भँवर प्रवहित हुलास के.
धुआँधार का घन-गर्जन रव,
सुन-सुन रेवा सिहर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*

 
*
मौन मौलश्री ध्यान लगाये,
आदम से इन्सान बनेगा.
धरती पर रहकर जीते जी,
खुद अपना भगवान गढ़ेगा.
जिजीविषा सांसों की अप्रतिम
आस-हास बन बिखर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*



*
अक्षर-अक्षर अंकित करता,
संकल्पों की नव चेतनता.
शब्द-शब्द से झंकृत होती,
भाव, शिल्प, लय की नूतनता.
पुरा-पुरातन चिर नवीन बन
आत्म वेदना निखर रही है
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*