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शुक्रवार, 8 जून 2012

MAGIC OF MATHEMATICS

MAGIC OF MATHEMATICS

'''1 x 8 + 1 = 9
12 x 8 + 2 = 98
123 x 8 + 3 = 987
1234 x 8 + 4 = 9876
12345 x 8 + 5 = 98765
123456 x 8 + 6 = 987654
1234567 x 8 + 7 = 9876543
12345678 x 8 + 8 = 98765432
123456789 x 8 + 9 = 987654321
'''

'''1 x 9 + 2 = 11
12 x 9 + 3 = 111
123 x 9 + 4 = 1111
1234 x 9 + 5 = 11111
12345 x 9 + 6 = 111111
123456 x 9 + 7 = 1111111
1234567 x 9 + 8 = 11111111
12345678 x 9 + 9 = 111111111
123456789 x 9 +10= 1111111111
'''

'''9 x 9 + 7 = 88
98 x 9 + 6 = 888
987 x 9 + 5 = 8888
9876 x 9 + 4 = 88888
98765 x 9 + 3 = 888888
987654 x 9 + 2 = 8888888
9876543 x 9 + 1 = 88888888
98765432 x 9 + 0 = 888888888
'''

Brilliant, isn't it?

And look at this symmetry:

'''1 x 1 = 1
11 x 11 = 121
111 x 111 = 12321
1111 x 1111 = 1234321
11111 x 11111 = 123454321
111111 x 111111 = 12345654321
1111111 x 1111111 = 1234567654321
11111111 x 11111111 = 123456787654321
111111111 x 111111111 = 12345678987654321
'''


Now, take a look at this.. .


101%



From a strictly mathematical viewpoint:



What Equals 100%?
What does it mean to give MORE than 100%?

Ever wonder about those people who say they are giving more than 100%?

We have all been in situations where someone wants you to GIVE OVER 100%.

How about ACHIEVING 101%?

What equals 100% in life?

Here's a little mathematical formula that might help
answer these questions:


If:

A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z

Is represented as:

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26.


If:

H-A-R-D-W-O- R- K

8+1+18+4+23+ 15+18+11 = 98%


And:

K-N-O-W-L-E-D-G-E

11+14+15+23+ 12+5+4+7+ 5 = 96%


But:

A-T-T-I-T-U-D-E

1+20+20+9+20+ 21+4+5 = 100%


THEN, look how far the love of God will take you:



L-O-V-E-O-F- G-O-D

12+15+22+5+15+ 6+7+15+4 = 101%


Therefore, one can conclude with mathematical certainty that:

While Hard Work and Knowledge will get you close, and Attitude will get you there, It's the Love of God that will put you over the top!

गुरुवार, 7 जून 2012

गीतिका: नर्मदा है नेह की --संजीव 'सलिल'

गीतिका


- संजीव 'सलिल' -
*
 
*
'सलिल' को दे दर्द अपने, चैन से सो जाइए.

नर्मदा है नेह की, फसलें यहाँ बो जाइए. 

चंद्रमा में चांदनी भी और धब्बे-दाग भी.

चन्दनी अनुभूतियों से पीर सब धो जाइए. 

होश में जब तक रहे, मैं-तुम न हम हो पाए थे.

भुला दुनिया मस्त हो, मस्ती में खुद खो जाइए. 

खुदा बनने था चला, इंसा न बन पाया 'सलिल'.

खुदाया अब आप ही, इंसान बन दिखलाइए. 

एक उँगली उठाता है, जब भी गैरों पर सलिल'

तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए. 

***

बुधवार, 6 जून 2012

दोहा मुक्तिका: पल पल हो मधुमास... -- संजीव 'सलिल'



दोहा मुक्तिका: 

पल पल हो मधुमास... 

--संजीव 'सलिल'


*
आसमान में मेघ ने, फैला रखी कपास.
कहीं-कहीं श्यामल छटा, झलके कहीं उजास..
*
श्याम छटा घन श्याम में, घनश्यामी आभास.
वह नटखट छलिया छिपे, तुरत मिले आ पास..
*
सुमन-सुमन में 'सलिल' को, उसकी मिली सुवास.
जिसे न पाया कभी भी, किंचित कभी उदास..
*
उसकी मृदु मुस्कान से, प्रेरित सफल प्रयास.
कर्म-धर्म का मर्म दे, अधर-अधर को हास.
*
पूछ रहा मन मौन वह, क्यों करता परिहास.
क्यों दे पीड़ा उन्हीं को, जिन्हें मानता खास..
*
मोहन भोग कभी मिले, कभी किये उपवास.
दोनों में जो सम रहे, वह खासों में खास..
*
सज्जन पायें शांति-सुख, दुर्जन पायें त्रास.
मूरत उसकी एक पर, भिन्न-भिन्न अहसास..
*
गौओं के संग विचरता, पद-तल कोमल घास.
सिहर सराहे भाग्य निज,  पल-लप हो मधुमास..
*
कभी अधर पर मुरलिया, कभी सरस मृदु हास.
'सलिल' अधर पर धर नहीं, कभी सत्य-उपहास..
***

मुक्तिका: मुस्कुराते रहो... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
मुस्कुराते रहो...
संजीव 'सलिल'

*
 
*
मुस्कुराते रहो, खिलखिलाते रहो
स्वर्ग नित इस धरा पर बसाते रहो..
*
गैर कोई नहीं, है अपरिचित अगर
बाँह फैला गले से लगाते रहो..
*
बाग़ से बागियों से न दूरी रहे.
फूल बलिदान के नव खिलाते रहो..
*
भूल करते सभी, भूलकर भूल को
ख्वाब नयनों में अपने सजाते रहो..
*
नफरतें दूर कर प्यार के, इश्क के
गीत, गज़लें 'सलिल' गुनगुनाते रहो..
***

मंगलवार, 5 जून 2012

दोहा सलिला: अंगरेजी में - २ संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
अंगरेजी में - २  
संजीव 'सलिल'
*
हिंदी का उपहास कर, अंग्रेजी के गीत.
जो गाते वे जान लें, स्वस्थ्य नहीं यह रीत..
*
'मीन' संकुचित है 'सलिल', 'मीन' मायने अर्थ.
अदल-बदल से अर्थ का, होता बहुत अनर्थ..
*
कहते हैं 'गुड़ रेस्ट' को, 'बैड रेस्ट' क्यों आप?
यह लगता वरदान- वह, लगता है अभिशाप..
*
'लैंड' करें फिर 'लैंड' का, नाप लीजिए मीत.
'बैंड' बजाकर 'बैंड' हो, 'बैंड' बाँधना रीत..
*
'सैड' कहा सुन 'सैड' हो, आप हो गये मौन.
दुःख का कारण क्या रहा, बतलायेगा कौन??
*
'सैंड' कर दिया 'सैंड' को, जा मोटर स्टैंड.
खड़े न नीचे पूछते, 'यू अंडरस्टैंड?',
*
'पेंट' कर रहे 'पेंट' को, 'सेंट' न करते' सेंट'.
'डेंट' कर रहे दाँत वे, कर खरोच को 'डेंट'..
*
'मातृ' हुआ 'मातर' पुनः. 'मादर' 'मदर' विकास.
भारत से इंग्लॅण्ड जा, शब्द कर रहे हास..
*
'पितृ' 'पितर' से 'फिदर' हो, 'फादर' दिखता आज.
पिता-पादरी अर्थ पा, साध रहा बहु काज..
*
'भ्रातृ' 'बिरादर' 'ब्रदर' है, गले मिलें मिल झूम.
भाईचारा अमित सुख किसे नहीं मालूम..
*
'पंथ' विहँस 'पथ' 'पाथ' हो, पहुँचा दूर विदेश.
हो 'दीवार' 'द वाल' क्या, दे सुन लें संदेश..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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सोमवार, 4 जून 2012

मुक्तक: -- संजीव 'सलिल'

मुक्तक
संजीव 'सलिल'
*
१.
हे विधि हरि हर प्यारे भारत को देना ऐसी औलाद.
मक्खन जैसा मन हो जिसका, तन हो दृढ़ जैसे फौलाद.
बोझ न हो जो इस धरती पर, बने सहारा औरों का-
हर्ष लुटाये, दुःख-विषाद जो विहँस सके कंधों पर लाद..
२.
भारत आत्म प्रकाशित होकर सब जग को उजियारा दे.
हर तन को घर आँगन छत दे, मन को भू चौबारा दे.
जड़-चेतन जो जहाँ रह रहे, यथा-शक्ति नित काम करें-
ऐसा जीवन जी जायें जो जन्म-जन्म जयकारा दे..
३.
कंकर में शंकर को देखें, प्रलयंकर से सदा डरें.
किसी आँख के आँसू पोछें, पीर किसी की तनिक हरें.
ज्यादा जोड़ें नहीं, न ही जो बहुत जरूरी वह तज दें-
कर्म-धर्म का मर्म जानकर, जीवन-पथ पर शांति वरें..
४.
मत-मत में अंतर को कोई मंतर दूर न कर सकता.
मन-मन में कुछ भेद न हो सत्पथ कोई भी वर सकता.
तारणहार न कोई पराया, तेरे मन में ईश्वर है-
दीनबंधु बन नर होकर भी तू सुरत्व को वर सकता..
५.
कण-कण में भगवान समाया, खोजे व्यर्थ दूर इंसान.
जैसे थाली में परसे तज, चित्रों में देखे पकवान.
सदय रहे औरों पर, दुःख-तकलीफें गैरों की हर ले-
सुर धरती पर आकर नर का, स्वयं करे बरबस गुणगान..
*


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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विचित्र किन्तु सत्य : चमक उठता है महिला का चेहरा पुरुष से मिलने पर

विचित्र किन्तु सत्य :

चमक उठता है महिला का चेहरा पुरुष से मिलने पर 

 

http://hindi.in.com/media/images/2011/Jan/09mar_relation.jpg

 

 

 

                                          

पुरुषों की संगत में महिलाओं के चेहरे का तापमान अपने आप बढ़ता है 

एक नए शोध अध्ययन में सामने आया है कि किसी पुरुष से मात्र बातचीत करने से ही महिलाओं के चेहरे पर चमक आ जाती है.

सेंट एंड्रियूज विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं ने पाया है कि पुरुषों से बिना यौन संबंध बनाए भी महिलाओं के चेहरे का तापमान बढ़ने लगता है जो साफ दिखाई देता है. इस टीम ने महिलाओं में हो रहे बदलावों को पता लगाने के लिए उनकी पुरुषों से मुलाकात के दौरान 'थर्मल इमेजिंग' की मदद ली. उन्होंने पाया कि पुरुषों की संगत में महिलाओं के चेहरे का तापमान अपने आप बढ़ सकता है.


 

 
कैसे किया शोध  ?

महिलाओं के चेहरे


शोध करने वाली टीम का कहना है कि इन परिणामों को थर्मल इमेजिंग के विकास में इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे भविष्य में तनाव इत्यादी पर नजर रखी जा सकती है, जैसे कि झूठ पकड़ने वाले यानी लाई डिटेक्टर टेस्ट में.

अध्ययन की मुख्य लेखक अमांदा हाहन

 

"उत्तेजना में किसी प्रयोगात्मक बदलाव के बिना ही, यह बदलाव साधारण सामाजिक मुलाकातों में देखा जाता है. हमारे सहभागियों ने मुलाकात के दौरान किसी शर्मिंदगी या असुविधा का अहसास नहीं किया."
इस अध्ययन की मुख्य लेखक अमांदा हाहन ने कहा कि शोधकर्ताओं ने पुरुषों से महिलाओं की मुलाकात के दौरान उनके हाथ, बाजू, छाती और चेहरे की त्वचा के तापमान को नापा. उन्होंने कहा, ''उत्तेजना में बिना किसी प्रयोगात्मक बदलाव के ही, यह बदलाव साधारण सामाजिक मुलाकात में देखा गया. हमारे सहभागियों ने मुलाकात के दौरान किसी शर्मिंदगी या असुविधा का अहसास नहीं किया.''

इस महीने 'बायेलॉजी लेटर्स' में छपने वाले इस अध्ययन में दिखाया गया है कि यह प्रतिक्रिया केवल महिलाओं में ही पाई जाती है. लेकिन दूसरी महिलाओं से मुलाकात के दौरान किसी महिला के चेहरे के तापमान में कोई बदलाव नहीं देखा जाता.


शोध करने वाली टीम का अगला लक्ष्य यह देखना होगा कि क्या इन शारीरिक बदलावों का सामाजिक मुलाकातों पर असर होता है.

*********

बाइबिल की सीख:

बाइबिल की सीख:

रविवार, 3 जून 2012

बाल गीत चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना ---संजीव 'सलिल'

बाल गीत
चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना
संजीव 'सलिल'
*

*
चूँ-चूँ चिड़िया चुन दाना.
मुझे सुना मीठा गाना..

तुझको मित्र  बनाऊँगा
मैंने मन में है ठाना..

कौन-कौन तेरे घर में
मम्मी, पापा या नाना?

क्या तुझको भी पड़ता है
पढ़ने को शाला जाना?

दाल-भात है गरम-गरम
जितना मन-मर्जी खाना..

मुझे पूछना एक सवाल
जल्दी उत्तर बतलाना..

एक सरीखी चिड़ियों में
माँ को कैसे पहचाना?

सावधान रह इंसां से.
बातों में मत आ जाना..

जब हो तेरा जन्मदिवस
मुझे निमंत्रण भिजवाना..

अपनी गर्ल फ्रेंड से भी
मेरा परिचय करवाना..

बातें हमने बहुत करीं
चल अब तो चुग ले दाना..
****
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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मुक्तिका: चूहे करते रोज धमाल।.. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
चूहे करते रोज धमाल...
संजीव 'सलिल'
*

*
हुआ रसोई में भूचाल.
चूहे करते रोज धमाल..
*
रोटी करने चली निकाह
हाथ न लेकिन आयी दाल..
*
तसला ले या पकड़ कुदाल.
काम न लेकिन कल पर टाल..

*
औरों की माँ-बहिनें क्यों
बोल तुझे लगती हैं माल?.
*
खून न पानी हो पाये.
चाहे समय उधेड़े खाल..
*
तोड़ न पाये समय जिसे.
उस साँचे में खुद को ढाल..
*
करनी ऐसी रहे 'सलिल'
झुके न औरों सम्मुख भाल..
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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शनिवार, 2 जून 2012

दोहा गीत: धरती भट्टी सम तपी... --संजीव 'सलिल'

दोहा गीत:
धरती भट्टी सम तपी...
संजीव 'सलिल'
*

***
धरती भट्टी सम तपी,
सूरज तप्त अलाव.
धूप लपट लू से हुआ,
स्वजनों सदृश जुड़ाव...


बेटी सर्दी के करे,
मौसम पीले हाथ.
गर्मी के दिन आये हैं,
ले बाराती साथ..

बाबुल बरगद ने दिया,
पत्ते लुटा दहेज.
पवन उड़ाकर ले गया,
रखने विहँस सहेज..

धार पसीने की नदी,
छाँव बन गयी नाव.
बाँह थाम कर आस की,
श्वास पा रही ठाँव...
***

छोटी साली सी सरल,
मीठी लस्सी मीत.
सरहज ठंडाई चहक,
गाये गारी गीत..

घरवारी शरबत सरस,
दे सुख कर संतोष.
चटनी भौजी पन्हा पर,
करती नकली रोष..

प्याज दूर विपदा करे,
ज्यों माँ दूर अभाव.
गमछा अग्रज हाथ रख
सिर पर करे बचाव...
***

देवर मट्ठा हँस रहा,
नन्द महेरी झूम.
झूला झूले पेंग भर
अमराई में लूम..

तोता-मैना गा रहे,
होरी, राई, कबीर.
ऊषा-संध्या ने माला,
नभ के गाल अबीर..

थकन-तपन के चढ़ गाये-
आसमान पर भाव.
बेकाबू होकर बजट
देता अनगिन घाव...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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शुक्रवार, 1 जून 2012

नवगीत: आँख में आंसू ... --संजीव 'सलिल'

नवगीत:
आँख में आंसू ...
संजीव 'सलिल'
*

*
आँख में आँसू,
अधर पर मुस्कराहट...
*

भोर से संझा तलक
सूरज बिचारा,
कर रहा बेगार
बेबस थका-हारा.
अमलतासी दुपहरी ने
हँस गुहारा.
गुलमोहर ने बाँह में
भर-हँस निहारा.
सारिका-शुक के
हृदय में छटपटाहट...
*

पुदीना, अमिया,
नमक, गुड़, मिर्च चटनी.
प्याज-रोटी खा
नचेगी हवा कुटनी.
लू-लपट बनकर
सताए हाय नटनी.
कब रुकेगी हाय!
खुशहाली ये घटनी.
तरावट की चाल में
है लड़खड़ाहट...
*

फट रही छाती,
धरा है विकल प्यासी.
कटे जंगल, खो गये
पंछी प्रवासी.
खुद गये पर्वत,
दसों दिश है उदासी.
तोडती दम नदी
वीरानी हुलासी.
आयी गर्मी
खो गयी है चहचहाहट...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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गुरुवार, 31 मई 2012

नवगीत: गर्मी के दिन... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
गर्मी के दिन...
संजीव 'सलिल'
*
बतियाते-इठलाते
गर्मी के दिन..
*
ठंडी से ठिठुर रहे.
मौसम के पाँव.
सूरज ले उषा किरण
आया हँस गाँव.
नयनों में सपनों ने
पायी फिर ठाँव.
अपनों की पलकों में
खोज रहे छाँव.
महुआ से मदिराए
पनघट के दिन.
चुक जाते-थक जाते
गर्मी के दिन..
*
पेड़ों का कत्ल देख
सिसकता पलाश.
पर्वत का अंत देख
नदी हुई लाश.
शहरों में सीमेंटी
घर हैं या ताश?
जल-भुनता इंसां
फँस यंत्रों के पाश.
होली की लपटें-
चौपालों के दिन.
मुरझाते झुलसाते
गर्मी के दिन..
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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मंगलवार, 29 मई 2012

गीत: प्रभु जैसी चादर दी तूने... संजीव 'सलिल'

गीत:
प्रभु जैसी चादर दी तूने...
संजीव 'सलिल'
*

*
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार.
जैसी भी मैं रख पाया
अब तू कर अंगीकार...
*
तुझसे मेरी कोई न समता,
मैं अक्षम, तू है सक्षमता.
तू समर्थ सृष्टा निर्णायक,
मेरा लक्षण है अक्षमता.
जैसा नाच नचाया नाचूँ-
विजयी हूँ वर हार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
*
तू ऐसा हो, तू वैसा कर,
मेरी रही न शर्त.
क्यों न मुझे स्वीकार रहा हरि!
ज्यों का त्यों निश्शर्त.
धर्माधर्म कहाँ-कैसा
हारो अब सकूँ बोसार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
*
जला न पाये आग तनिक प्रभु!
भीगा न पाये पानी.
संचयकर्ता मुझे मत बना,
और न अवढरदानी.
जग-नाटक में 'सलिल' सम्मिलित
हो निर्लिप्त निहार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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मुक्तिका: दिल में दूरी... --संजीव 'सलिल'

 
मुक्तिका:
दिल में दूरी...
संजीव 'सलिल'

*
 
*
दिल में दूरी हो मगर हाथ मिलाये रखना.
भूख सहकर भी 'सलिल' साख बचाये रखना..

जहाँ माटी ही न मजबूत मिले छोड़ उसे.
भूल कर भी न वहाँ नीव के पाये रखना..

गैर के डर से न अपनों को कभी बिसराना.
दर पे अपनों के न कभी मुँह को तू बाये रखना..

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

कोई प्यासा ले बुझा प्यास, मना मत करना.
जूझ पत्थर से सलिल धार बहाये रखना..

********


सोमवार, 28 मई 2012

ॐ सूर्य द्वादश नामावली --हिंदी काव्यानुवाद: संजीव 'सलिल'

ॐ सूर्य द्वादश नामावली
हिंदी काव्यानुवाद: संजीव 'सलिल'
*



आदित्यः प्रथमं नामः, द्वितीयं तु दिवाकरः.
तृतीयं भास्करं प्रोक्तं, चतुर्थं च प्रभाकरः..
पंचमं च सहस्त्रान्शु, षष्ठं चैव त्रिलोचनः .
सप्तमं हरिदश्वश्चं, ह्यअष्ठं च विभावसु:..
नवमं दिनकृतं प्रोक्तं, दशमं द्वादशात्मकः.
एकादशं त्रयीमूर्ति द्वादशं सूर्य एव च..
द्वादशैतानि नामानि प्रातःकाले पठेन्नरः.
दु:स्वप्न नाशन सद्यः सर्व सिद्धिः प्रजायते..
***
ॐ सूर्य द्वादश नामावली हिंदी काव्यानुवाद



प्रथम नाम आदित्य, दूसरा नाम दिवाकर.
नाम तीसरा भास्कर, चौथा नाम प्रभाकर..
पंचम सहस्त्रान्शु है, छठवां नाम त्रिलोचन.
हरिद अश्व सातवाँ, विभावसु नाम सुअष्टम..
दिनकृत नवमां नाम, द्वादशात्मक है दसवां. 
त्रयीमूर्ति ग्यारहवां,  सूर्य सुनाम बारवाँ..
नित्य प्रात बारह नामों का, जाप करे जो.
तुरत दुस्वप्न नष्ट हों, सिद्धि सभी पाये वो.



*****
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त्रिपदिक नवगीत : नेह नर्मदा तीर पर - संजीव 'सलिल'

: अभिनव सारस्वत प्रयोग :
त्रिपदिक नवगीत :
             नेह नर्मदा तीर पर
                            - संजीव 'सलिल'

                     *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन कर धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
कौन उदासी-विरागी,
विकल किनारे पर खड़ा?
किसका पथ चुप जोहता?

          निष्क्रिय, मौन, हताश है.
          या दिलजला निराश है?
          जलती आग पलाश है.

जब पीड़ा बनती भँवर,
       खींचे तुझको केंद्र पर,
           रुक मत घेरा पार कर...
                   *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन का धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
सुन पंछी का मशविरा,
मेघदूत जाता फिरा-
'सलिल'-धार बनकर गिरा.

          शांति दग्ध उर को मिली.
          मुरझाई कलिका खिली.
          शिला दूरियों की हिली.

मन्दिर में गूँजा गजर,
       निष्ठां के सम्मिलित स्वर,
           'हे माँ! सब पर दया कर...
                   *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन का धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
पग आये पौधे लिये,
ज्यों नव आशा के दिये.
नर्तित थे हुलसित हिये.

          सिकता कण लख नाचते.
          कलकल ध्वनि सुन झूमते.
          पर्ण कथा नव बाँचते.

बम्बुलिया के स्वर मधुर,
       पग मादल की थाप पर,
           लिखें कथा नव थिरक कर...
                   *
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salil.sanjiv@gmail.com

शनिवार, 26 मई 2012

-- श्री सूर्यमंडलाष्टकं -- हिंदी काव्यानुवाद : संजीव 'सलिल'

-- श्री सूर्यमंडलाष्टकं --
हिंदी काव्यानुवाद : संजीव 'सलिल'
*


नमः सवित्रे जगदेक चक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थिति नाशहेतवे.
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरंचिनारायण शंकरात्मने..१..

जगत-नयन सविते! नमन, रचें-पाल कर अंत.
त्रयी-त्रिगुण के नाथ हे!, विधि-हरि-हर प्रिय कंत....



यंमन्डलं दीप्तिकरं विशालं, रत्नप्रभं तीव्रमनादि रूपं.
दारिद्र्य-दुःख-क्षय कारणं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम..२..

आभा मंडल दीप्त सुविस्तृत, रूप अनादि रत्न-मणि-भासित.
दुःख-दारिद्र्य क्षरणकर्ता हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..२..



यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितं विप्रेस्तुते भावन मुक्तिकोविदं.
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..३..

आभा मंडल मुक्तिप्रदाता, सुरपूजित विप्रों से वन्दित.
लो प्रणाम देवाधिदेव हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..३..



यन्मण्डलं ज्ञान घनं त्वगम्यं, त्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपं.
समस्त तेजोमय दिव्यरूपं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..४..

आभा मंडल गम्य ज्ञान घन, त्रिलोकपूजित त्रिगुण समाहित.
सकल तेजमय दिव्यरूप हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..४..


यन्मण्डलं गूढ़मति प्रबोधं, धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानां.
यत्सर्वपापक्षयकारणं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..५..

आभा मंडल सूक्ष्मति बोधक, सुधर्मवर्धक पाप विनाशित .
नित प्रकाशमय भव्यरूप हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..५..
 

यन्मण्डलं व्याधि-विनाशदक्षं, यद्द्रिग्यजुः साम सुसंप्रगीतं.
प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्व:, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..६..

आभा मंडल व्याधि-विनाशक,ऋग-यजु-साम कीर्ति गुंजरित.
भूर्भुवः व: लोक प्रकाशक!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..६..




यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति, गायन्ति यच्चारण सिद्ध्-संघाः.
यदयोगिनो योगजुषां च संघाः, पुनातु मांतत्सवितुर्वरेण्यं..७..

आभा मंडल वेदज्ञ-वंदित, चारण-सिद्ध-संत यश-गायित .
योगी-योगिनी नित्य मनाते, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..७..
 

यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितं, ज्योतिश्च कुर्यादित मर्त्यलोके.
यत्कालकल्पक्षय कारणं च , पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..८..

आभा मंडल सब दिश पूजित, मृत्युलोक को करे प्रभासित.
काल-कल्प के क्षयकर्ता हे!, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..८.. 
 

यन्मण्डलंविश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्ति रक्षा पल प्रगल्भं.
यस्मिञ्जगत्संहरतेsअखिलन्च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यं..९..

आभा मंडल सृजे विश्व को, रच-पाले कर प्रलय-प्रगल्भित.
लीन अंत में सबको करते, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..९.
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यन्मण्डलं सर्वगतस्थ विष्णोरात्मा परंधाम विशुद्ध् तत्वं  .
सूक्ष्मान्तरै योगपथानुगम्यं, पुनातु मां तत्सवितुरवतुरवरेण्यं..१०..

आभा मंडल हरि आत्मा सम, सब जाते जहँ धाम पवित्रित.
सूक्ष्म बुद्धि योगी की गति सम, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..१०..
 

यन्मण्डलं विदविदोवदन्ति, गायन्तियच्चारण सिद्ध-संघाः.   
यन्मण्डलं विदविद: स्मरन्ति, पुनातु मां तत्सवितुरवतुरवरेण्यं..११..

आभा मंडल सिद्ध-संघ सम, चारण-भाटों से यश-गायित.
आभा मंडल सुधिजन सुमिरें, रवि वरेण्य कर हमें प्रकाशित..११..
 


मण्डलाष्टतयं पुण्यं, यः पथेत्सततं नरः.
सर्व पाप विशुद्धात्मा, सूर्य लोके महीयते..

मण्डलाष्टय पाठ कर, पायें पुण्य अनंत.
पापमुक्त शुद्धतम हो, वर रविलोक दिगंत..



..इति श्रीमदादित्य हृदयेमण्डलाष्टकं संपूर्णं.. 
..अब श्रीमदसूर्यहृदयमंडल अष्टक पूरा हुआ..



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मुक्तिका: कुशलता से... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
कुशलता से...
संजीव 'सलिल'
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कुशलता से मैं यहाँ हूँ, कुशलता से आप हों.
कोशिशों की सुमिरनी ले, सफलता के जाप हों.

जमाना कुछ भी कहे, हो राह कितनी भी कठिन.
कदम हों मजबूत ऐसे, मंजिलों के नाप हों..

अहल्या शुचिता से यदि, टकराये कोई इन्द्र तो.
मेट कोई भी न पाये, आप ऐसे शाप हों..

सियासत लंका दशानन भ्रष्ट नेता मुख अनेक.
चुनावी रण राम, हम मतदान शर, मत चाप हों.. 

खुले खिड़की दिमागों की, हवा ताज़ी आ सके.
बंद दरवाज़ा न दिल का कीजिए, मत खाप हों..

पोछ लें आँसू किसी की आँख का- पूजा यही.
आत्म हो परमात्मपूजक, ना तिलक ना छाप हों..

संकटों के नगाड़े हों सामने तो मत डरो.
हौसलों की हथेली, संकल्प की शत थाप हों..

नियम-पालन का हवन, संतोष की करिए कथा.
दूसरों का प्राप्य पाने का 'सलिल' मत पाप हों..
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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रचना-प्रति रचना : ...लिखूँगा मुकेश श्रीवास्तव-संजीव 'सलिल'

रचना-प्रति रचना :
...लिखूँगा  
मुकेश श्रीवास्तव-संजीव 'सलिल'
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अपनी भी इक दिन कहानी लिखूंगा
टीस  है  कितनी  पुरानी - लिखूंगा
तफसील से तुम्हारी अदाएं  याद  हैं
ली तुमने कब कब अंगड़ाई - लिखूंगा 
साए में तुम्हारे गुज़ारे हैं तमाम दिन
ज़ुल्फ़ हैं तुम्हारी - अमराई लिखूंगा
तपते दिनों में ठंडा ठंडा सा एहसास
है  रूह  तुम्हारी रूहानी - लिखूंगा
छेड़ छेड़ डालती रही मुहब्बत के रंग
है आँचल तुम्हारा - फगुनाई लिखूगा
तुलसी का बिरवा, मुहब्बत की बेल
स्वर्ग सा तुम्हारा - अंगनाई लिखूंगा 
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मुकेश इलाहाबादी
<mukku41@yahoo.com>
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मुकेश जी आपकी कहानी तो आपकी हर रचना में पढ़ कर हम आनंदित होते ही हैं. इस सरस रचना हेतु बधाई. आपको समर्पित कुछ पंक्तियाँ-
मुक्तिका:
लिखूँगा...
संजीव 'सलिल'
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कही-अनकही हर कहानी लिखूँगा.
बुढ़ाती नहीं वह जवानी लिखूँगा..

उफ़ न करूँगा, मिलें दर्द कितने-
दुनिया है अनुपम सुहानी लिखूँगा..

भले जग बताये कि नातिन है बच्ची
मैं नातिन को नानी की नानी लिखूँगा..

रही होगी नादां कभी मेरी बेटी.
बिटिया है मेरी सयानी लिखूँगा..

फ़िदा है नयेपन पे सारा जमाना.
मैं बेहतर विरासत पुरानी लिखूँगा..

राइम सुनाते हैं बच्चे- सुनायें.
मैं साखी, कबीरा, या बानी लिखूँगा..

गिरा हूँ, उठा हूँ, सम्हल कर बढ़ा हूँ.
'सलिल' हूँ लहर की रवानी लिखूँगा..
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'