दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
मंगलवार, 17 जनवरी 2012
Subject: Clever ideas to make life easier Clever Ideas to Make Life Easier
मंगलवार, 10 जनवरी 2012
सँग चले दोहा-यमक: --संजीव 'सलिल'
सँग चले दोहा-यमक
संजीव 'सलिल'
*
चल न अकेले चलन है, चलना सबके साथ.
कदममिलाकर कदम से, लिये हाथ में हाथ..
*
सर गम हो अनुभव अगर, सरगम दे आनंद.
झूम-झूमकर गाइए, गीत गजल नव छंद..
*
कम ला या ज्यादा नहीं, मुझको किंचित फ़िक्र.
कमला-पूजन कर- न कर, धन-संपद का ज़िक्र..
*
गमला ला पौधा लगा, खुशियाँ मिलें अनंत.
गम लाला खो जायेंगे, महकें दिशा-दिगंत..
*
ग्र कोशिश चट की नहीं, होगी मंजिल दूर.
चटकी मटकी की तरह, सृष्टि लगे बेनूर..
*
नाम रखा शिशु का नहीं, तो रह अज्ञ अनाम.
नाम रखा यदि बड़े का, नाम हुआ बदनाम..
*
लाला ला ला कह मँगे, माखन मिसरी खूब.
मैया प्रीत लुटा रहीं, नेह नर्मदा डूब..
*
आँसू जल न बने अगर, दिल की जलन जनाब.
मिटे न कम हो तनिक भी, टूटें पल में ख्वाब..
*
छप्पर छाया तो मिली, सिर पर छाया मीत.
सोजा पाँव पखार कर, घर हो स्वर्ग प्रतीत..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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संजीव 'सलिल'
*
चल न अकेले चलन है, चलना सबके साथ.
कदममिलाकर कदम से, लिये हाथ में हाथ..
*
सर गम हो अनुभव अगर, सरगम दे आनंद.
झूम-झूमकर गाइए, गीत गजल नव छंद..
*
कम ला या ज्यादा नहीं, मुझको किंचित फ़िक्र.
कमला-पूजन कर- न कर, धन-संपद का ज़िक्र..
*
गमला ला पौधा लगा, खुशियाँ मिलें अनंत.
गम लाला खो जायेंगे, महकें दिशा-दिगंत..
*
ग्र कोशिश चट की नहीं, होगी मंजिल दूर.
चटकी मटकी की तरह, सृष्टि लगे बेनूर..
*
नाम रखा शिशु का नहीं, तो रह अज्ञ अनाम.
नाम रखा यदि बड़े का, नाम हुआ बदनाम..
*
लाला ला ला कह मँगे, माखन मिसरी खूब.
मैया प्रीत लुटा रहीं, नेह नर्मदा डूब..
*
आँसू जल न बने अगर, दिल की जलन जनाब.
मिटे न कम हो तनिक भी, टूटें पल में ख्वाब..
*
छप्पर छाया तो मिली, सिर पर छाया मीत.
सोजा पाँव पखार कर, घर हो स्वर्ग प्रतीत..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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रचना-प्रति रचना: कुसुम सिन्हा-संजीव 'सलिल
मेरी एक कविता
आदरणीय कुसुम जी!
मर्मस्पर्शी रचना हेतु साधुवाद... प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिपक्ष प्रस्तुत करती पंक्तियाँ आपको समर्पित हैं.
प्रति गीत :
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
संजीव 'सलिल'
*
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
मेरा जीवन वन प्रांतर सा
उजड़ा उखड़ा नीरस सूना-सूना.
हो गया अचानक मधुर-सरस
आशा-उछाह लेकर दूना.
उमगा-उछला बन मृग-छौना
जब तुम बसंत बन थीं आयीं..
*
दिन में भी देखे थे सपने,
कुछ गैर बन गये थे अपने.
तब बेमानी से पाये थे
जग के मानक, अपने नपने.
बाँहों ने चाहा चाहों को
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुमसे पाया विश्वास नया.
अपनेपन का आभास नया.
नयनों में तुमने बसा लिया
जब बिम्ब मेरा सायास नया?
खुद को खोना भी हुआ सुखद
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
अधरों को प्यारे गीत लगे
भँवरा-कलिका मन मीत सगे.
बिन बादल इन्द्रधनुष देखा
निशि-वासर मधु से मिले पगे.
बरसों का साथ रहा पल सा
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जीवन रजनी-'मावस
नयनों में मन में है पावस.
हर श्वास चाहती है रुकना
ज्यों दीप चाहता है बुझना.
करता हूँ याद सदा वे पल
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
सुन रुदन रूह दुःख पायेगी.
यह सोच अश्रु निज पीता हूँ.
एकाकी क्रौंच हुआ हूँ मैं
व्याकुल अतीत में जीता हूँ.
रीता कर पाये कर फिर से
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जग-जीवन हुआ सजा
हर पल चाहूँ आ जाये कजा.
किससे पूछूँ क्यों मुझे तजा?
शायद मालिक की यही रजा.
मरने तक पल फिर-फिर जी लूँ
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*******
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सांसों में महकता था चन्दन
आँखों में सपने फुले थे ल
लहराती आती थी बयार
बालों को छेड़कर जाती थी
जब तुम बसंत बन थे आये
जब शाम घनेरी जुल्फों से
पेड़ों को ढकती आती थी
चिड़िया भी मीठे कलरव से
मन के सितार पर गाती थी
जब तुम बसंत बन थे आये
खुशियों के बदल भी जब तब
मन के आंगन घिर आते थे
मन नचा करता मोरों सा
कोयल कु कु कर जाती थी
जब तुम बसंत बन थे आये
तुम क्या रूठे की जीवन से
अब तो खुशियाँ ही रूठ गईं
मेरे आंगन से खुशियों के
पंछी आ आ कर लौट गए
जब तुम बसंत बन थे आये
साँझ ढले अंधियारे संग
यादें उनकी आ जाती हैं
रात रात भर रुला मुझ्रे
बस सुबह हुए ही जाती हैं
आदरणीय कुसुम जी!
मर्मस्पर्शी रचना हेतु साधुवाद... प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिपक्ष प्रस्तुत करती पंक्तियाँ आपको समर्पित हैं.
प्रति गीत :
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
संजीव 'सलिल'
*
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
मेरा जीवन वन प्रांतर सा
उजड़ा उखड़ा नीरस सूना-सूना.
हो गया अचानक मधुर-सरस
आशा-उछाह लेकर दूना.
उमगा-उछला बन मृग-छौना
जब तुम बसंत बन थीं आयीं..
*
दिन में भी देखे थे सपने,
कुछ गैर बन गये थे अपने.
तब बेमानी से पाये थे
जग के मानक, अपने नपने.
बाँहों ने चाहा चाहों को
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुमसे पाया विश्वास नया.
अपनेपन का आभास नया.
नयनों में तुमने बसा लिया
जब बिम्ब मेरा सायास नया?
खुद को खोना भी हुआ सुखद
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
अधरों को प्यारे गीत लगे
भँवरा-कलिका मन मीत सगे.
बिन बादल इन्द्रधनुष देखा
निशि-वासर मधु से मिले पगे.
बरसों का साथ रहा पल सा
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जीवन रजनी-'मावस
नयनों में मन में है पावस.
हर श्वास चाहती है रुकना
ज्यों दीप चाहता है बुझना.
करता हूँ याद सदा वे पल
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
सुन रुदन रूह दुःख पायेगी.
यह सोच अश्रु निज पीता हूँ.
एकाकी क्रौंच हुआ हूँ मैं
व्याकुल अतीत में जीता हूँ.
रीता कर पाये कर फिर से
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जग-जीवन हुआ सजा
हर पल चाहूँ आ जाये कजा.
किससे पूछूँ क्यों मुझे तजा?
शायद मालिक की यही रजा.
मरने तक पल फिर-फिर जी लूँ
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*******
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सोमवार, 9 जनवरी 2012
नीर-क्षीर दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'
नीर-क्षीर दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
कभी न हो इति हास की, रचें विहँस इतिहास.
काल करेगा अन्यथा, कोशिश का उपहास.
*
रिसा मकान रिसा रहे, क्यों कर आप हुजूर?
पानी-पानी हो रहे, बादल-दल भरपूर..
*
दल-दल दलदल कर रहे, संसद में है कीच
नेता-नेता पर रहे लांछन-गंद उलीच..
*
धन का धन उपयोग बिन, बन जाता है भार.
धन का ऋण, ऋण दे डुबा, इज्जत बीच बज़ार..
*
माने राय प्रवीण की, भारत का सुल्तान.
इज्जत राय प्रवीण की, कर पाये सम्मान..
*
कभी न कोई दर्द से, कहता 'तू आ भास'.
सभी कह रहे हर्ष से, हो हर पल आभास..
*
बीन बजाकर नचाते, नित्य सँपेरे नाग.
बीन रहे रूपये पुलक, बुझे पेट की आग..
*
बस में बस इतना बचा, कर दें हम मतदान.
किन्तु करें मत दान मत, और न कुछ आदान..
*
नपना सबको नापता, नप ना पाता आप.
नपने जब नपने गये, विवश बन गये नाप..
*
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संजीव 'सलिल'
*
कभी न हो इति हास की, रचें विहँस इतिहास.
काल करेगा अन्यथा, कोशिश का उपहास.
*
रिसा मकान रिसा रहे, क्यों कर आप हुजूर?
पानी-पानी हो रहे, बादल-दल भरपूर..
*
दल-दल दलदल कर रहे, संसद में है कीच
नेता-नेता पर रहे लांछन-गंद उलीच..
*
धन का धन उपयोग बिन, बन जाता है भार.
धन का ऋण, ऋण दे डुबा, इज्जत बीच बज़ार..
*
माने राय प्रवीण की, भारत का सुल्तान.
इज्जत राय प्रवीण की, कर पाये सम्मान..
*
कभी न कोई दर्द से, कहता 'तू आ भास'.
सभी कह रहे हर्ष से, हो हर पल आभास..
*
बीन बजाकर नचाते, नित्य सँपेरे नाग.
बीन रहे रूपये पुलक, बुझे पेट की आग..
*
बस में बस इतना बचा, कर दें हम मतदान.
किन्तु करें मत दान मत, और न कुछ आदान..
*
नपना सबको नापता, नप ना पाता आप.
नपने जब नपने गये, विवश बन गये नाप..
*
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गले मिले दोहा यमक : -- संजीव 'सलिल'
गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
दस सिर तो देखे मगर, नौ कर दिखे न दैव.
नौकर की ही चाह क्यों, मालिक करे सदैव..
*
करे कलेजा चाक री, लगे चाकरी सौत.
सजन न आये चौथ पर, अरमानों की मौत..
*
बिना हवा के चाक पर, है सरकार सवार.
सफर करे सर कार क्यों?, परेशान सरदार..
*
चाक जनम से घिस रहे, कोई न समझे पीर.
पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..
*
कर वट की आराधना, ब्रम्हदेव का वास.
करवट ले सो चैन से, ले अधरों पर हास..
*
पी मत खा ले जाम तू, गह ले नेक सलाह.
जाम मार्ग हो तो करे, वाहन-इंजिन दाह..
*
माँग न रम पी ले शहद, पायेगा नव शक्ति.
नरम जीभ टूटे नहीं, टूटे रद की पंक्ति..
*
कर धन गह कर दिवाली, मना रहे हैं रोज.
करधन-पायल ठुमकतीं, क्यों करिए कुछ खोज?
*
सीना चीरें पवनसुत, दिखे राम का नाम.
सीना सीना जानता, कहिये कौन अनाम?
*
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संजीव 'सलिल'
*
दस सिर तो देखे मगर, नौ कर दिखे न दैव.
नौकर की ही चाह क्यों, मालिक करे सदैव..
*
करे कलेजा चाक री, लगे चाकरी सौत.
सजन न आये चौथ पर, अरमानों की मौत..
*
बिना हवा के चाक पर, है सरकार सवार.
सफर करे सर कार क्यों?, परेशान सरदार..
*
चाक जनम से घिस रहे, कोई न समझे पीर.
पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..
*
कर वट की आराधना, ब्रम्हदेव का वास.
करवट ले सो चैन से, ले अधरों पर हास..
*
पी मत खा ले जाम तू, गह ले नेक सलाह.
जाम मार्ग हो तो करे, वाहन-इंजिन दाह..
*
माँग न रम पी ले शहद, पायेगा नव शक्ति.
नरम जीभ टूटे नहीं, टूटे रद की पंक्ति..
*
कर धन गह कर दिवाली, मना रहे हैं रोज.
करधन-पायल ठुमकतीं, क्यों करिए कुछ खोज?
*
सीना चीरें पवनसुत, दिखे राम का नाम.
सीना सीना जानता, कहिये कौन अनाम?
*
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रविवार, 8 जनवरी 2012
रचना-प्रति रचना: महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश-संजीव वर्मा
रचना-प्रति रचना
ताबीर जिस की कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ –
ताबीर जिसकी कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ
*
ताबीर चाहे हो न हो हसीन एक ख्वाब हूँ.
पढ़ रहे सभी जिसे वो प्यार की किताब हूँ..
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ताबीर जिस की कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ –
महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश
कोई जिसे समझा नहीं मैं वो अजब किताब हूँ
न रंग है न रूप है, मैं फूल हूँ खिजाओं का
मीज़ान जिसका है सिफ़र वो ना-असर हिसाब हूँ
जो आँसुओं को सोख कर भीतर ही भीतर रहे नम
बाहर से दिखे मखमली वो रेशमी हिजाब हूँ
हस्ती मेरी किस काम की जीवन ही मेरा घुट गया
जो उम्र-कैद पा चुकी, बोतल की वो शराब हूँ
लिखता तो हूँ गज़ल ख़लिश, न शायरों में नाम है
जिस की रियासत न कोई वो नाम का नवाब हूँ.
ताबीर = स्वप्नफल
खिजा = पतझड़
मीज़ान = जोड़, कुल जमा
*
मुक्तिका:
संजीव वर्मा*
ताबीर चाहे हो न हो हसीन एक ख्वाब हूँ.
पढ़ रहे सभी जिसे वो प्यार की किताब हूँ..
अनादि हूँ, अनंत हूँ, दिशाएँ हूँ, दिगंत हूँ.
शून्य हूँ ये जान लो, हिसाब बेहिसाब हूँ..
शून्य हूँ ये जान लो, हिसाब बेहिसाब हूँ..
मुस्कुराता अश्रु हूँ, रो रही हँसी हूँ मैं..
दिख रहा हिजाब सा, लग रहा खिजाब हूँ..
दिख रहा अतीत किन्तु आज भी नवीन हूँ.
दे रहा मजा अधिक-अधिक कि ज्यों शराब हूँ..
ले मिला मैं कुछ नहीं, दे चला मैं कुछ नहीं.
खाली हाथ फिर रहा दिल का मैं नवाब हूँ..
'सलिल' खलिश बटोरता, लुटा रहा गुलाब हूँ.
जवाब की तलाश में, सवाल लाजवाब हूँ..
*'सलिल' खलिश बटोरता, लुटा रहा गुलाब हूँ.
जवाब की तलाश में, सवाल लाजवाब हूँ..
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शनिवार, 7 जनवरी 2012
भोजपुरी के संग: दोहे के रंग --संजीव 'सलिल'
भोजपुरी के संग: दोहे के रंग
संजीव 'सलिल'
भइल किनारे जिन्दगी, अब के से का आस?
ढलते सूरज बर 'सलिल', कोउ न आवत पास..
*
अबला जीवन पड़ गइल, केतना फीका आज.
लाज-सरम के बेंच के, मटक रहल बिन काज..
*
पुड़िया मीठी ज़हर की, जाल भीतरै जाल.
मरद नचावत अउरतें, झूमैं दै-दै ताल..
*
कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु.
लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु..
*
रउआ लिखले सत्य बा, कहले दूनो बात.
मारब आ रोवन न दे, अजब-गजब हालात..
*
पथ ताकत पथरा गइल, आँख- न दरसन दीन.
मत पाकर मतलब सधत, नेता भयल विलीन..
*
हाथ करेजा पे धइल, खोजे आपन दोष.
जे नर ओकरा सदा ही, मिलल 'सलिल' संतोष..
*
मढ़ि के रउआ कपारे, आपन झूठ-फरेब.
लुच्चा बाबा बन गयल, 'सलिल' न छूटल एब..
*
कवि कहsतानी जवन ऊ, साँच कहाँ तक जाँच?
सार-सार के गह 'सलिल', झूठ-लबार न बाँच..
***************************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
संजीव 'सलिल'
भइल किनारे जिन्दगी, अब के से का आस?
ढलते सूरज बर 'सलिल', कोउ न आवत पास..
*
अबला जीवन पड़ गइल, केतना फीका आज.
लाज-सरम के बेंच के, मटक रहल बिन काज..
*
पुड़िया मीठी ज़हर की, जाल भीतरै जाल.
मरद नचावत अउरतें, झूमैं दै-दै ताल..
*
कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु.
लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु..
*
रउआ लिखले सत्य बा, कहले दूनो बात.
मारब आ रोवन न दे, अजब-गजब हालात..
*
पथ ताकत पथरा गइल, आँख- न दरसन दीन.
मत पाकर मतलब सधत, नेता भयल विलीन..
*
हाथ करेजा पे धइल, खोजे आपन दोष.
जे नर ओकरा सदा ही, मिलल 'सलिल' संतोष..
*
मढ़ि के रउआ कपारे, आपन झूठ-फरेब.
लुच्चा बाबा बन गयल, 'सलिल' न छूटल एब..
*
कवि कहsतानी जवन ऊ, साँच कहाँ तक जाँच?
सार-सार के गह 'सलिल', झूठ-लबार न बाँच..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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गुरुवार, 5 जनवरी 2012
चंद चौपदे: --संजीव 'सलिल'
चंद चौपदे
संजीव 'सलिल'
*
ज़िन्दगी है कि जिए जाते हैं.
अश्क अमृत सा पिए जाते हैं.
आह भरना भी ज़माने को गवारा न हुआ
इसलिए होंठ चुपचाप सिये जाते हैं..
*
नेट ने जेट को था मार दिया.
हमने भी दिल को तभी हार दिया.
नेट अब हो गया जां का बैरी.
फिर भी हमने उसे स्वीकार किया..
*
ज़िन्दगी हमेशा बेदाम मिली.
काम होते हुए बेकाम मिली.
मंजिलें कितनी ही सर की इसने-
फिर भी हमेशा नाकाम मिली..
*
छोड़कर छोड़ कहाँ कुछ पाया.
जो भी छोड़ा वही ज्यादा भाया.
जिसको छोड़ा उसी ने जकड़ा है-
दूर होकर न हुआ सरमाया..
*
हाथ हमदम का पकड़ना आसां
साथ हमदम के मटकना आसां
छोड़ना कहिये नहीं मुश्किल क्या?
माथ हमदम के चमकना आसां..
*
महानगर में खो जाता है अपनापन.
सूनापन भी बो जाता है अपनापन.
कभी परायापन गैरों से मिलता है-
देख-देखकर रो जाता है अपनापन..
*
फायर न हो सके मिसफायर ही हो गये.
नेट ना हुए तो वायर ही हो गये.
सारे फटीचरों की यही ज़िंदगी रही-
कुछ और न हुए तो शायर ही हो गये..
*
हाय अब तक न कुछ भी लिख पाया.
खुद को भी खुद ही नहीं दिख पाया.
जो हुआ, हुआ खुदा खैर करे.
खुद को सबसे अधिक नासिख पाया..
*
अब न दम और न ख़म बाकी है.
नहीं मैखाना है, न साकी है.
जिसने सबसे अधिक गुनाह किये-
उसका दावा है वही पाकी है..
*
चाहा सम्हले मगर बहकती है.
भ्रमर के संग कली चहकती है.
आस अंगार, साँस की भट्टी-
फूँक कोशिश की पा दहकती है..
*
हमने खुद को भले गुमनाम किया.
जगने हमको सदा बदनाम किया.
लोग छिपकर गुनाहकर पुजते-
हम पिटे, पुण्य सरेआम किया..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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संजीव 'सलिल'
*
ज़िन्दगी है कि जिए जाते हैं.
अश्क अमृत सा पिए जाते हैं.
आह भरना भी ज़माने को गवारा न हुआ
इसलिए होंठ चुपचाप सिये जाते हैं..
*
नेट ने जेट को था मार दिया.
हमने भी दिल को तभी हार दिया.
नेट अब हो गया जां का बैरी.
फिर भी हमने उसे स्वीकार किया..
*
ज़िन्दगी हमेशा बेदाम मिली.
काम होते हुए बेकाम मिली.
मंजिलें कितनी ही सर की इसने-
फिर भी हमेशा नाकाम मिली..
*
छोड़कर छोड़ कहाँ कुछ पाया.
जो भी छोड़ा वही ज्यादा भाया.
जिसको छोड़ा उसी ने जकड़ा है-
दूर होकर न हुआ सरमाया..
*
हाथ हमदम का पकड़ना आसां
साथ हमदम के मटकना आसां
छोड़ना कहिये नहीं मुश्किल क्या?
माथ हमदम के चमकना आसां..
*
महानगर में खो जाता है अपनापन.
सूनापन भी बो जाता है अपनापन.
कभी परायापन गैरों से मिलता है-
देख-देखकर रो जाता है अपनापन..
*
फायर न हो सके मिसफायर ही हो गये.
नेट ना हुए तो वायर ही हो गये.
सारे फटीचरों की यही ज़िंदगी रही-
कुछ और न हुए तो शायर ही हो गये..
*
हाय अब तक न कुछ भी लिख पाया.
खुद को भी खुद ही नहीं दिख पाया.
जो हुआ, हुआ खुदा खैर करे.
खुद को सबसे अधिक नासिख पाया..
*
अब न दम और न ख़म बाकी है.
नहीं मैखाना है, न साकी है.
जिसने सबसे अधिक गुनाह किये-
उसका दावा है वही पाकी है..
*
चाहा सम्हले मगर बहकती है.
भ्रमर के संग कली चहकती है.
आस अंगार, साँस की भट्टी-
फूँक कोशिश की पा दहकती है..
*
हमने खुद को भले गुमनाम किया.
जगने हमको सदा बदनाम किया.
लोग छिपकर गुनाहकर पुजते-
हम पिटे, पुण्य सरेआम किया..
*
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मंगलवार, 3 जनवरी 2012
दोहा सलिला: दोहा-यमक-मुहावरे, मना रहे नव साल --संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
दोहा-यमक-मुहावरे, मना रहे नव साल
संजीव 'सलिल'
*
बरस-बरस घन बरस कर, तनिक न पाया रीत.
बदले बरस न बदलती, तनिक प्रीत की रीत..
*
साल गिरह क्यों साल की, होती केवल एक?
मन की गिरह न खुद खुले, खोलो कहे विवेक..
*
गला काट प्रतियोगिता, कर पर गला न काट.
गला बैर की बर्फ को, मन की दूरी पाट..
*
पानी शेष न आँख में, यही समय को पीर.
पानी पानी हो रही, पानी की प्राचीर..
*
मन मारा, नौ दिन चले, सिर्फ अढ़ाई कोस.
कोस रहे संसार को, जिसने पाला पोस..
*
अपनी ढपली उठाकर, छेड़े अपना राग.
राग न विराग न वर सका, कर दूषित अनुराग..
*
गया न आये लौटकर, कभी समय सच मान.
पल-पल का उपयोग कर, करो समय का मान..
*
निज परछाईं भी नहीं, देती तम में साथ.
परछाईं परछी बने, शरणागत सिर-माथ..
*
दोहा यमक मुहावरे, मना रहे नव साल.
साल रही मन में कसक, क्यों ना बने मिसाल?
*
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दोहा-यमक-मुहावरे, मना रहे नव साल
संजीव 'सलिल'
*
बरस-बरस घन बरस कर, तनिक न पाया रीत.
बदले बरस न बदलती, तनिक प्रीत की रीत..
*
साल गिरह क्यों साल की, होती केवल एक?
मन की गिरह न खुद खुले, खोलो कहे विवेक..
*
गला काट प्रतियोगिता, कर पर गला न काट.
गला बैर की बर्फ को, मन की दूरी पाट..
*
पानी शेष न आँख में, यही समय को पीर.
पानी पानी हो रही, पानी की प्राचीर..
*
मन मारा, नौ दिन चले, सिर्फ अढ़ाई कोस.
कोस रहे संसार को, जिसने पाला पोस..
*
अपनी ढपली उठाकर, छेड़े अपना राग.
राग न विराग न वर सका, कर दूषित अनुराग..
*
गया न आये लौटकर, कभी समय सच मान.
पल-पल का उपयोग कर, करो समय का मान..
*
निज परछाईं भी नहीं, देती तम में साथ.
परछाईं परछी बने, शरणागत सिर-माथ..
*
दोहा यमक मुहावरे, मना रहे नव साल.
साल रही मन में कसक, क्यों ना बने मिसाल?
*
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रविवार, 1 जनवरी 2012
नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'
नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'
संजीव 'सलिल'
*
महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
**********************
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नव वर्षमंगलमय हो deepti gupta ✆ drdeepti25@yahoo.co.in
वसुधैव कुटुम्बकम्
नव वर्ष की शुभकामनाएँ / नव वर्षमंगलमय हो
नव वर्षाची शुभेच्छा (मराठी)
नवे साल दी बधाईयाँ (पंजाबी)
Deepti
An unusual tunnel in California 's Sequoia National Park
Marcus Levine - slaughtering an artist in the literal sense. He creates his paintings by nailing a white wooden panel. At his latest series of paintings exhibited in a gallery in London, Marcus has sp
नव वर्ष की शुभकामनाएँ / नव वर्षमंगलमय हो
नव वर्षाची शुभेच्छा (मराठी)
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नूतन वर्षाभिनन्दन (गुजराती)
नुआ बर्षा शुभेच्छा (उडिया)
नव्यु साल मुबारक होजे (सिंधी)
शुवो नबो बर्षो (बंगाली)
नव्यु साल मुबारक होजे (सिंधी)
शुवो नबो बर्षो (बंगाली)
Bonne Annee (French)
Prosit Neujahr (German)
Felice Anno Nuovo (Italian)
Szczesliwego
Nowego Roku (Polish)
S Novim Godom (Russian)
Let us have a look around the amazing world. It is simply beautiful....!
The world's highest chained carousel, located in Vienna , at a height of 117 meters.
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गुरुवार, 29 दिसंबर 2011
गले मिले दोहा-यमक भोग लगा प्रभु को प्रथम --संजीव 'सलिल
गले मिले दोहा-यमक
भोग लगा प्रभु को प्रथम
संजीव 'सलिल
*
सर्व नाम हरि के 'सलिल', है सुंदर संयोग.
संज्ञा के बदले हुए, सर्वनाम उपयोग..
संज्ञा के बदले हुए, सर्वनाम उपयोग..
*
भोग लगा प्रभु को प्रथम, फिर करना सुख-भोग.
हरि को अर्पण किये बिन बनता भोग कुरोग..
*
कहें दूर-दर्शन किये, दर्शन बहुत समीप.
चाहा था मोती मिले, पाई खाली सीप..
*
जी! जी! कर जीजा करें, जीजी का दिल शांत.
जी, जा जी- वर दे रहीं, जीजी कोमल कांत..
*
वाहन बिना न तय किया, सफ़र किसी ने मीत.
वाह न की जिसने- भरी, आह गँवाई प्रीत..
*
बटन न सोहे काज बिन, हो जाता निर्व्याज.
नीति- कर्म कर फल मिले, मत कर काज अकाज.
*
मन भर खा भरता नहीं, मन- पर्याप्त छटाक.
बरसों काम रुका रहा, पल में हुआ फटाक..
*
बाटी-भरता से नहीं, मन भरता भरतार.
पेट फूलता बाद में, याद आये करतार..
*
उसका रण वह ही लड़े, किस कारण रह मौन.
साथ न देते शेष क्यों, बतलायेगा कौन??
*
ताज महल में सो रही, बिना ताज मुमताज.
शिव-मंदिर को मकबरा, बना दिया बेकाज. .
*
योग कर रहे सेठ जी, योग न कर कर जोड़.*
जोड़ सकें सबसे अधिक, खुद से खुद कर होड़..
*******
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एक हुए दोहा-यमक: दिलवर का दिल वर लिया संजीव 'सलिल'
एक हुए दोहा-यमक
दिलवर का दिल वर लिया
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दिलवर का दिल वर लिया
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
दिलवर का दिल वर लिया, सिल ने सधा काज.
दिलवर ने दिल पर किया, ना जाने कब राज?
जीवन जीने के लिये, जी वन कह इंसान.
अगर न जी वन सका तो, भू होगी शमशान..
मंजिल सर कर मगर हो, ठंडा सर मत भूल.
अकसर केसर-दूध पी, सुख-सपनों में झूल..
जिसके सर चढ़ बोलती, 'सलिल' सफलता एक.
अवसर पा बढ़ता नहीं, खोता बुद्धि-विवेक..
टेक यही बिन टेक के, मंजिल पाऊँ आज.
बिना टेक अभिनय करूँ, हो हर दिल पर राज..
दिल पर बिजली गिराकर, हुए लापता आप.
'सलिल' ला पता आपका, करे प्रेम का जाप..
कर धो खा जिससे न हो, बीमारी का वार.
कर धोखा जो जी रहे, उन्हें न करिए प्यार..
पौधों में जल डाल- दें, काष्ठ हवा फल फूल.
डाल कभी भी काट मत, घातक है यह भूल..
****************************** **
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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सोमवार, 19 दिसंबर 2011
प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध द्वारा किया गया श्रीमद्भगवत गीता का हिन्दी पद्यानुवाद
ई बुक के रूप में प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध द्वारा किया गया श्रीमद्भगवत गीता का हिन्दी पद्यानुवाद उपहार स्वरूप आपको और पाठको को समर्पित है !!
http://www.rachanakar.org/2011/12/blog-post_18.html#comment-form
http://www.rachanakar.org/2011/12/blog-post_18.html#comment-form
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
मंगलवार, 6 दिसंबर 2011
लघुकथा: काल की गति --संजीव 'सलिल'
लघुकथा:
काल की गति
संजीव 'सलिल'
*
'हे भगवन! इस कलिकाल में अनाचार-अत्याचार बहुत बढ़ गया है. अब तो अवतार लेकर पापों का अंत कर दो.' - भक्त ने भगवान से प्रार्थना की.
' नहीं कर सकता.' भगवान् की प्रतिमा में से आवाज आयी .
' क्यों प्रभु?'
'काल की गति.'
'मैं कुछ समझा नहीं.'
'समझो यह कि परिवार कल्याण के इस समय में केवल एक या दो बच्चों के होते राम अवतार लूँ तो लक्ष्मण, शत्रुघ्न और विभीषण कहाँ से मिलेंगे? कृष्ण अवतार लूँ तो अर्जुन, नकुल और सहदेव के अलावा कौरव ९८ कौरव भी नहीं होंगे. चित्रगुप्त का रूप रखूँ तो १२ पुत्रों में से मात्र २ ही मिलेंगे. तुम्हारा कानून एक से अधिक पत्नियाँ भी नहीं रखने देगा तो १२८०० पटरानियों को कहाँ ले जाऊंगा? बेचारी द्रौपदी के ५ पतियों की कानूनी स्थिति क्या होगी?
भक्त और भगवान् दोनों को चुप देखकर ठहाका लगा रही थी काल की गति.
*****
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मतदान मशीन कितनी निष्पक्ष ?...
मतदान मशीन कितनी निष्पक्ष ?...
देखिये दुरूपयोग का तरीका...
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मतदान मशीन,
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रविवार, 4 दिसंबर 2011
Festivals in India
05 Thursday Vaikuntha Ekadashi
09 Monday Paush Purnima
12 Thursday Sakat Chauth
15 Sunday Pongal, Sankranti
19 Thursday Shattila Ekadashi
23 Monday Mauni Amavas
28 Saturday Basant Panchami
kalash February 2012 kalash decoration
03 Friday Bhaimi Ekadashi
07 Tuesday Magha Purnima
17 Friday Vijaya Ekadashi
20 Monday Maha ShivRatri
kalash March 2012 kalash decoration
04 Sunday Amalaki Ekadashi
07 Wednesday Holi/Holika Dahan
08 Thursday Rangwali Holi
18 Sunday Papmochani Ekadashi
23 Friday Yugadi, Gudi Padwa
25 Sunday Gauri Puja/Gangaur
29 Thursday Yamuna Chhath
kalash April 2012 kalash decoration
01 Sunday Ram Naumi
03 Tuesday Kamada Ekadashi
06 Friday Hanuman Jayanti
13 Friday Orissa New Year
14 Saturday Tamil New Year
16 Monday Varuthini Ekadashi
24 Tuesday Akshaya Tritiya, ParashuRam Jayanti
kalash May 2012 kalash decoration
02 Wednesday Mohini Ekadashi
04 Friday Narasimha Jayanti
06 Sunday Buddha Purnima
16 Wednesday Apara Ekadashi
20 Sunday Surya Grahan, Wat Savitri Vrat
31 Thursday Nirjala Ekadashi, Ganga Dussehra
kalash June 2012 kalash decoration
01 Friday Dujee Ekadashi
04 Monday Chandra Grahan, Wat Purnima Vrat
15 Friday Yogini Ekadashi
21 Thursday Jagannath Rathyatra
30 Saturday Devshayani Ekadashi
kalash July 2012 kalash decoration
03 Tuesday Guru Purnima
14 Saturday Kamika Ekadashi
22 Sunday Hariyali Teej
23 Monday Nag Panchami
27 Friday Varalakshmi Vrat
29 Sunday Putrada Ekadashi
kalash August 2012 kalash decoration
02 Thursday Narali Purnima, Raksha Bandhan
09 Thursday Janmashtami *
10 Friday Janmashtami *ISKCON
13 Monday Ajaa Ekadashi
27 Monday Padimini Ekadashi
kalash September 2012 kalash decoration
12 Wednesday Parama Ekadashi
19 Wednesday Ganesh Chaturthi
23 Sunday Radha Ashtami
26 Wednesday Parsva Ekadashi
29 Saturday Ganesh Visarjan, Anant Chaturdashi
30 Sunday Pratipada Shraddha, BhadraPad Purnima
kalash October 2012 kalash decoration
11 Thursday Indira Ekadashi
15 Monday SarvaPitru Amavasya
16 Tuesday Navratri Started
20 Saturday Saraswati Avahan
21 Sunday Sarasvati Puja
22 Monday Durga Ashtami
23 Tuesday Maha Navami
24 Wednesday Dussehra
25 Thursday Pasankusha Ekadashi
29 Monday Sharad Purnima
kalash November 2012 kalash decoration
02 Friday Karwa Chauth
07 Wednesday Ahoi Ashtami
10 Saturday Rama Ekadashi
11 Sunday Dhan Teras
13 Tuesday Surya Grahan,Diwali/Lakshami Puja, Narak Chaturdashi
14 Wednesday Gowardhan Puja
15 Thursday Bhaiya Duj
19 Monday Chhath Puja
23 Friday Kansa Vadh
24 Saturday Devutthana Ekadashi
25 Sunday Tulasi Vivah
28 Wednesday Chandra Grahan, Kartik Purnima
kalash December 2012 kalash decoration
09 Sunday Utpanna Ekadashi
17 Monday Vivah Panchami
23 Sunday Gita Jayanti, Mokashada Ekadashi
28 Friday Margashirsha Purnima
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festivals in india 2012
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011
स्वस्तिक के अर्थ, प्रभाव, परिणाम एवं कारणों का विश्लेषण – पंडित दयानन्द शास्त्री
स्वस्तिक के अर्थ, प्रभाव, परिणाम एवं कारणों का विश्लेषण – पंडित दयानन्द शास्त्री
स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है।
स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला। ‘अमरकोश’ में भी ‘स्वस्तिक’ का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं – ‘स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध’ अर्थात् ‘सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।’ इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना निहित है।
‘स्वस्तिक’ शब्द की निरुक्ति है – ‘स्वस्तिक क्षेम कायति, इति स्वस्तिकः’ अर्थात् ‘कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है।
स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वस्तिक’ कहते हैं। यही शुभ चिह्व है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही ‘वामावर्त स्वस्तिक’ अंकित था। ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है।
भारतीय संस्कृति में मांगलिक कार्यो में हर काम की शुरुआत में स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। स्वस्तिक को कल्याण का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू परंपरा के अनुसार स्वस्तिक को सर्व मंगल , कल्याण की दृष्टि से , सृष्टि में सर्व व्यापकता ही स्वास्तिक का रहस्य है। अनंत शक्ति, सौन्दर्य, चेतना , सुख समृद्धि, परम सुख का प्रतीक माना जाता है। स्वस्तिक चिन्ह लगभग हर समाज मे आदर से पूजा जाता है क्योंकि स्वस्तिक के चिन्ह की बनावट ऐसी होती है, कि वह दसों दिशाओं से सकारात्मक एनर्जी को अपनी तरफ खींचता है। इसीलिए किसी भी शुभ काम की शुरुआत से पहले पूजन कर स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। ऐसे ही शुभ कार्यो में आम की पत्तियों को आपने लोगों को अक्सर घर के दरवाजे पर बांधते हुए देखा होगा क्योंकि आम की पत्ती ,इसकी लकड़ी ,फल को ज्योतिष की दृष्टी से भी बहुत शुभ माना जाता है। आम की लकड़ी और स्वास्तिक दोनों का संगम आम की लकड़ी का स्वस्तिक उपयोग किया जाए तो इसका बहुत ही शुभ प्रभाव पड़ता है। यदि किसी घर में किसी भी तरह वास्तुदोष हो तो जिस कोण में वास्तु दोष है उसमें आम की लकड़ी से बना स्वास्तिक लगाने से वास्तुदोष में कमी आती है क्योंकि आम की लकड़ी में सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करती है। यदि इसे घर के प्रवेश द्वार पर लगाया जाए तो घर के सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। इसके अलावा पूजा के स्थान पर भी इसे लगाये जाने का अपने आप में विशेष प्रभाव बनता है।
मंगल प्रसंगों के अवसर पर पूजा स्थान तथा दरवाजे की चौखट और प्रमुख दरवाजे के आसपास स्वस्तिक चिह्न् बनाने की परंपरा है। वे स्वस्तिक कतई परिणाम नहीं देते, जिनका संबंध प्लास्टिक, लोहा, स्टील या लकड़ी से हो।
सोना, चांदी, तांबा अथवा पंचधातु से बने स्वस्तिक प्राण प्रतिष्ठित करवाकर चौखट पर लगवाने से सुखद परिणाम देते हैं, जबकि रोली-हल्दी-सिंदूर से बनाए गए स्वस्तिक आत्मसंतुष्टि ही देते हैं। अशांति दूर करने तथा पारिवारिक प्रगति के लिए स्वस्तिक यंत्र रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य तथा दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी श्रीयंत्र के साथ लगाना लाभदायक है।
अकेला स्वस्तिक यंत्र ही एक लाख बोविस घनात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम है। वास्तुदोष के निवारण में भी चीनी कछुआ ७00 बोविस भर देने की क्षमता रखता है, जबकि गणोश की प्रतिमा और उसका वैकल्पिक स्वस्तिक आकार एक लाख बोविस की समानता रहने से प्रत्येक घर में स्थापना वास्तु के कई दोषों का निराकरण करने की शक्ति प्रदान करता है।
गाय के दूध, गाय के दूध से बने हुए दही और घी, गोनीत, गोबर, जिसे पंचगव्य कहा जाता है, को समानुपात से गंगा जल के साथ मिलाकर आम अथवा अशोक के पत्ते से घर तथा व्यावसायिक केंद्रों पर प्रतिदिन छिटकाव करने से ऋणात्मक ऊर्जा का संहार होता है। तुलसी के पौधे के समीप शुद्ध घी का दीपक प्रतिदिन लगाने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। गृहप्रवेश से पहले मुख्य द्वार के ऊपर स्वस्तिक चिह्व अंकित करके कल्याण की कामना की जाती है। देवपूजन, विवाह, व्यापार, बहीखाता पूजन, शिक्षारम्भ तथा मुण्डन-संस्कार आदि में भी स्वस्तिक-पूजन आवश्यक समझा जाता है। महिलाएँ अपने हाथों में मेहन्दी से स्वस्तिक चिह्व बनाती हैं। इसे दैविक आपत्ति या दुष्टात्माओं से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
स्वस्तिक की दो रेखाएँ पुरुष और प्रकृति की प्रतीक हैं। भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक चिह्व को विष्णु, सूर्य, सृष्टिचक्र तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना गया है। कुछ विद्वानों ने इसे गणेश का प्रतीक मानकर इसे प्रथम वन्दनीय भी माना है। पुराणों में इसे सुदर्शन चक्र का प्रतीक माना गया है। वायवीय संहिता में स्वस्तिक को आठ यौगिक आसनों में एक बतलाया गया है। यास्काचार्य ने इसे ब्रह्म का ही एक स्वरूप माना है। कुछ विद्वान इसकी चार भुजाओं को हिन्दुओं के चार वर्णों की एकता का प्रतीक मानते हैं। इन भुजाओं को ब्रह्मा के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में भी स्वीकार किया गया है। स्वस्तिक धनात्मक चिह्व या प्लस को भी इंगित करता है, जो अधिकता और सम्पन्नता का प्रतीक है। स्वस्तिक की खडी रेखा को स्वयं ज्योतिर्लिंग का तथा आडी रेखा को विश्व के विस्तार का भी संकेत माना जाता है। इन चारों भुजाओं को चारों दिशाओं के कल्याण की कामना के प्रतीक के रूप में भी स्वीकार किया जाता है, जिन्हें बाद में इसी भावना के साथ रेडक्रॉस सोसायटी ने भी अपनाया। इलेक्ट्रोनिक थ्योरी ने इन दो भुजाओं को नगेटिव और पोजिटिव का भी प्रतीक माना जाता है, जिनके मिलने से अपार ऊर्जा प्राप्त होती है। स्वस्तिक के चारों ओर लगाये जाने वाले बिन्दुओं को भी चार दिशाओं का प्रतीक माना गया है। एक पारम्परिक मान्यता के अनुसार चतुर्मास में स्वस्तिक व्रत करने तथा मन्दिर में अष्टदल से स्वस्तिक बनाकर उसका पूजन करने से महिलाओं को वैधव्य का भय नहीं रहता। पद्मपुराण में इससे संबंधित एक कथा का भी उल्लेख है।
हमारे मांगलिक प्रतीकों में स्वस्तिक एक ऐसा चिह्व है, जो अत्यन्त प्राचीन काल से लगभग सभी धर्मों और सम्प्रदायों में प्रचलित रहा है। भारत में तो इसकी जडें गहरायी से पैठी हुई हैं ही, विदेशों में भी इसका काफी अधिक प्रचार प्रसार हुआ है। अनुमान है कि व्यापारी और पर्यटकों के माध्यम से ही हमारा यह मांगलिक प्रतीक विदेशों में पहुँचा। भारत के समान विदेशों में भी स्वस्तिक को शुभ और विजय का प्रतीक चिह्व माना गया। इसके नाम अवश्य ही अलग-अलग स्थानों में, समय-समय पर अलग-अलग रहे।
सिन्धु-घाटी से प्राप्त बर्तन और मुद्राओं पर हमें स्वस्तिक की आकृतियाँ खुदी मिली हैं, जो इसकी प्राचीनता का ज्वलन्त प्रमाण है। सिन्धु-घाटी सभ्यता के लोग सूर्यपूजक थे और स्वस्तिक चिह्व, सूर्य का भी प्रतीक माना जाता रहा है। ईसा से पूर्व प्रथम शताब्दी की खण्डगिरि, उदयगिरि की रानी की गुफा में भी स्वस्तिक चिह्व मिले हैं। मत्स्य पुराण में मांगलिक प्रतीक के रूप में स्वस्तिक की चर्चा की गयी है। पाणिनी की व्याकरण में भी स्वस्तिक का उल्लेख है। पाली भाषा में स्वस्तिक को साक्षियों के नाम से पुकारा गया, जो बाद में साखी या साकी कहलाये जाने लगे। जैन परम्परा में मांगलिक प्रतीक के रूप में स्वीकृत अष्टमंगल द्रव्यों में स्वस्तिक का स्थान सर्वोपरि है। स्वस्तिक चिह्व की चार रेखाओं को चार प्रकार के मंगल की प्रतीक माना जाता है। वे हैं – अरहन्त-मंगल, सिद्ध-मंगल, साहू-मंगल और केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगल। महात्मा बुद्ध की मूर्तियों पर और उनके चित्रों पर भी प्रायः स्वस्तिक चिह्व मिलते हैं। अमरावती के स्तूप पर स्वस्तिक चिह्व हैं। विदेशों में इस मंगल-प्रतीक के प्रचार-प्रसार में बौद्ध धर्म के प्रचारकों का भी काफी योगदान रहा है।
बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण ही जापान में प्राप्त महात्मा बुद्ध की प्राचीन मूर्तियों पर स्वस्तिक चिह्व अंकित हुए मिले हैं। ईरान, यूनान, मैक्सिको और साइप्रस में की गई खुदाइयों में जो मिट्टी के प्राचीन बर्तन मिले हैं, उनमें से अनेक पर स्वस्तिक चिह्व हैं। आस्ट्रिया के राष्ट्रीय संग्रहालय में अपोलो देवता की एक प्रतिमा है, जिस पर स्वस्तिक चिह्व बना हुआ है। टर्की में ईसा से २२०० वर्ष पूर्व के ध्वज-दण्डों में अंकित स्वस्तिक चिह्व मिले हैं। इटली के अनेक प्राचीन अस्थि कलशों पर भी स्वस्तिक चिह्व हैं। एथेन्स में शत्रागार के सामने यह चिह्व बना हुआ है। स्कॉटलैण्ड और आयरलैण्ड में अनेक ऐसे प्राचीन पत्थर मिले हैं, जिन पर स्वस्तिक चिह्व अंकित हैं। प्रारम्भिक ईसाई स्मारकों पर भी स्वस्तिक चिह्व देखे गये हैं। कुछ ईसाई पुरातत्त्ववेत्ताओं का विचार है कि ईसाई धर्म के प्रतीक क्रॉस का भी प्राचीनतम रूप स्वस्तिक ही है। छठी शताब्दी में चीनी राजा वू ने स्वस्तिक को सूर्य के प्रतीक के रूप में मानने की घोषणा की थी।
चीन में ताँगवंश के इतिहास-लेखक फुंगल्से ने लिखा है – प्रतिवर्ष सातवें महीने के सातवें दिन मकडयों को लाकर उनसे जाले में स्वस्तिक चिह्व बुनवाते हैं। अगर कहीं किसी को पहले से ही जाले में स्वस्तिक चिह्व बना हुआ मिल जाए तो उसे विशेष सौभाग्य का सूचक मानते हैं। तिब्बत में मृतकों के साथ स्वस्तिक चिह्व रखने की प्राचीन परम्परा रही है।
बेल्जियम के नामूर संग्रहालय में एक ऐसा उपकरण रखा है, जो हड्डी से बना हुआ है। उस पर क्रॉस के कई चिह्व बने हुए हैं तथा उन चिह्वों के बीच में एक स्वस्तिक चिह्व भी है। इटली के संग्रहालय में रखे एक भाले पर भी स्वस्तिक का चिह्व है। रेड इण्डियन, स्वस्तिक को सुख और सौभाग्य का प्रतीक मानते हैं। वे इसे अपने आभूषणों में भी धारण करते हैं।
इस प्रकार हमारा मंगल-प्रतीक स्वस्तिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सदैव पूज्य और सम्माननीय रहा है तथा इसके इस स्वरूप में हमारे यहाँ आज भी कोई कमी नहीं आयी है।
हिन्दू धर्म परंपराओं में स्वस्तिक शुभ व मंगल का प्रतीक माना जाता है। इसलिए हर धार्मिक, मांगलिक कार्य, पूजा या उपासना की शुरुआत स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर की जाती है। धर्मशास्त्रों में स्वस्तिक चिन्ह के शुभ होने और बनाने के पीछे विशेष कारण बताया गया हैं। जानते हैं यह खास बात -
सूर्य और स्वस्तिक सूर्य देव अनेक नामो वाले प्रत्यक्ष देव है , यह अपनी पृथ्वी को ही नहीं अपितु अपने विशाल परिवार जिसमें गृह नक्श्तर आदि प्रमुख हैं अक सञ्चालन करते हैं स्वस्तिक का अर्थ है >>सुख,और आनंद देने वाला चतुष्पथ चोराहा .
सूर्य और स्वस्तिक का कितना गहरा सम्बन्ध है यह इस से सोपस्ट हो जाता है देवत गोल और नक्श्तर मार्ग में से चारो दिशाओं के देवताओं से स्वस्तिक बनता है और इस मार्ग में आने वाले सभी देवी देव भी हमें स्वस्ति प्रदान करते हैं . वेदों में इसका लेख बहुत देखने को मिलता है..स्वस्तिक का बहुत ही महत्व है , इससे सुख,वैभव,यश,लक्ष्मी , कीर्ति और आनंद मिलता है, और हर शुभ कार्य में स्वस्तिक को प्रथम और प्रमुख स्थान प्राप्त होता है, वैदिक युग से ही इनकी सर्व मान्यता पाई और देखी जाती है,
दरअसल, शास्त्रों में स्वस्तिक विघ्रहर्ता व मंगलमूर्ति भगवान श्री गणेश का साकार रूप माना गया है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गं बीजमंत्र होता है, जो भगवान श्री गणेश का स्थान माना जाता है। इसमें जो चार बिन्दियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कूर्म यानी कछुआ और अनन्त देवताओं का वास माना जाता है।
विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में भी स्वस्तिक के श्री गणेश स्वरूप होने की पुष्टि होती है। हिन्दू धर्म की पूजा-उपासना में बोला जाने वाला वेदों का शांति पाठ मंत्र भी भगवान श्रीगणेश के स्वस्तिक रूप का स्मरण है। यह शांति पाठ है –
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:
स्वस्तिनस्ता रक्षो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पर्तिदधातु
इस मंत्र में चार बार आया स्वस्ति शब्द चार बार मंगल और शुभ की कामना से श्री गणेश का ध्यान और आवाहन है।
असल में स्वस्तिक बनाने के पीछे व्यावहारिक दर्शन यही है कि जहां माहौल और संबंधों में प्रेम, प्रसन्नता, श्री, उत्साह, उल्लास, सद्भाव, सौंदर्य, विश्वास, शुभ, मंगल और कल्याण का भाव होता है, वहीं श्री गणेश का वास होता है और उनकी कृपा से अपार सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है। चूंकि श्रीगणेश विघ्रहर्ता हैं, इसलिए ऐसी मंगल कामनाओं की सिद्धि में विघ्रों को दूर करने के लिए स्वस्तिक रूप में गणेश स्थापना की जाती है। इसीलिए श्रीगणेश को मंगलमूर्ति भी पुकारा जाता है।
स्वस्तिक को हिन्दू धर्म ने ही नहीं, बल्कि विश्व के सभी धर्मों ने परम पवित्र माना है। स्वस्तिक शब्द सू + उपसर्ग अस् धातु से बना है। सु अर्थात अच्छा, श्रेष्ठ, मंगल एवं अस् अर्थात सत्ता। यानी कल्याण की सत्ता, मांगल्य का अस्तित्व। स्वस्तिक हमारे लिए सौभाग्य का प्रतीक है।स्वस्तिक दो रेखाओं द्वारा बनता है। दोनों रेखाओं को बीच में समकोण स्थिति में विभाजित किया जाता है। दोनों रेखाओं के सिरों पर बायीं से दायीं ओर समकोण बनाती हुई रेखाएं इस तरह खींची जाती हैं कि वे आगे की रेखा को न छू सकें। स्वस्तिक को किसी भी स्थिति में रखा जाए, उसकी रचना एक-सी ही रहेगी। स्वस्तिक के चारों सिरों पर खींची गयी रेखाएं किसी बिंदु को इसलिए स्पर्श नहीं करतीं, क्योंकि इन्हें ब्रहाण्ड के प्रतीक स्वरूप अन्तहीन दर्शाया गया है।
स्वस्तिक की खड़ी रेखा स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का संकेत देती है। आड़ी रेखा विश्व के विस्तार को बताती है। स्वस्तिक गणपति का भी प्रतीक है। स्वस्तिक को भगवान विष्णु व श्री का प्रतीक चिह्न् माना गया है। स्वस्तिक की चार भुजाएं भगवान विष्णु के चार हाथ हैं। इस धारणा के अनुसार, भगवान विष्णु ही स्वस्तिक आकृति में चार भुजाओं से चारों दिशाओं का पालन करते हैं। स्वस्तिक के मध्य में जो बिन्दु है, वह भगवान विष्णु का नाभिकमल यानी ब्रम्हा का स्थान है। स्वस्तिक धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी उपासना के लिए भी बनाया जाता है।
हिंदू व्यापारियों के बहीखातों पर स्वस्तिक चिह्न् बना होता है। जब इसकी कल्पना गणेश रूप में हो तो स्वस्तिक के दोनों ओर दो सीधी रेखाएं बनायी जाती हैं, जो शुभ-लाभ एवं ऋद्धि-सिद्धि की प्रतीक हैं। हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार, अभिमंत्रित स्वस्तिक रूप गणपति पूजन से घर में लक्ष्मी की कमी नहीं होती। पतंजलि योगशास्त्र के अनुसार, कोई भी कार्य निर्विघ्न समाप्त हो जाए, इसके लिए कार्य के प्रारम्भ में मंगलाचरण लिखने का प्रचलन रहा है। परन्तु ऐसे मंगलकारी श्लोकों की रचना सामान्य व्यक्तियों से संभव नहीं। इसी लिए ऋषियों ने स्वस्तिक का निर्माण किया। मंगल कार्यो के प्रारम्भ में स्वस्तिक बनाने मात्र से कार्य संपन्न हो जाता है, यह मान्यता रही है।
वैज्ञानिक आधार -
स्वस्तिक चिह्न् का वैज्ञानिक आधार भी है। गणित में + चिह्न् माना गया है। विज्ञान के अनुसार, पॉजिटिव तथा नेगेटिव दो अलग-अलग शक्ति प्रवाहों के मिलनबिन्दु को प्लस (+) कहा गया है, जो कि नवीन शक्ति के प्रजनन का कारण है। प्लस को स्वस्तिक चिह्न् का अपभ्रंश माना जाता है, जो सम्पन्नता का प्रतीक है। किसी भी मांगलिक कार्य को करने से पूर्व हम स्वस्तिवाचन करते हैं अर्थात मरीचि, अरुन्धती सहित वसिष्ठ, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह तथा कृत आदि सप्त ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
वास्तुशास्त्र में स्वस्तिक -
स्वस्तिक का वास्तुशास्त्र में अति विशेष महत्व है। यह वास्तु का मूल चिह्न् है। स्वस्तिक दिशाओं का ज्ञान करवाने वाला शुभ चिह्न् है। घर को बुरी नजर से बचाने व उसमें सुख-समृद्धि के वास के लिए मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वस्तिक चिह्न् बनाया जाता है। स्वस्तिक चक्र की गतिशीलता बाईं से दाईं ओर है। इसी सिद्धान्त पर घड़ी की दिशा निर्धारित की गयी है। पृथ्वी को गति प्रदान करने वाली ऊर्जा का प्रमुख स्रोत उत्तरायण से दक्षिणायण की ओर है। इसी प्रकार वास्तुशास्त्र में उत्तर दिशा का बड़ा महत्व है। इस ओर भवन अपेक्षाकृत अधिक खुला रखा जाता है, जिससे उसमें चुम्बकीय ऊर्जा व दिव्य शक्तियों का संचार रहे। वास्तुदोष क्षय करने के लिए स्वस्तिक को बेहद लाभकारी माना गया है। मुख्य द्वार के ऊपर सिन्दूर से स्वस्तिक का चिह्न् बनाना चाहिए। यह चिह्न् नौ अंगुल लम्बा व नौ अंगुल चौड़ा हो। घर में जहां-जहां वास्तुदोष हो, वहां यह चिह्न् बनाया जा सकता है।
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रचना-प्रति रचना दिल के तार महेश चन्द्र गुप्ता-संजीव 'सलिल'
रचना-प्रति रचना
दिल के तार
महेश चन्द्र गुप्ता-संजीव 'सलिल'
*****
लिखा तुमने खत में इक बार
— २ दिसंबर २०११
लिखा तुमने खत में इक बार
मिला लें दिल से दिल के तार
मगर मैंने न दिया ज़वाब
नहीं भेजा मैंने इकरार
खली होगी तुमको ये बात
लगा होगा दिल को आघात
तुम्हारी आँखों से कुछ रोज़
बहे होंगे संगीं जज़्बात
बतादूँ तुमको मैं ये आज
छिपाऊँ न तुमसे ये राज़
हसीं हो सबसे बढ़ कर तुम
तुम्हारे हैं दिलकश अंदाज़
मगर इक सूरत सादी सी
रहे बिन बात उदासी सी
बसी है दिल के कोने में
लगे मुझको रास आती सी
बहुत मन में है ऊहापोह
रखूँ न गर तुमसे मैं मोह
लगेगी तुमको अतिशय ठेस
करेगा मन मेरा विद्रोह
पिसा मैं दो पाटों के बीच
रहे हैं दोनों मुझको खींच
नहीं जाऊँ मैं जिसके संग
रहे वो ही निज आँखें सींच
भला है क्या मुझको कर्तव्य
बताओ तुम अपना मंतव्य
कहाँ पर है मेरी मंज़िल
किसे मानूँ अपना गंतव्य.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
२७ नवंबर २०११
--
(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
www.writing.com/authors/mcgupta44
आत्मीय!
यह रचना मन को रुची
प्रतिरचना स्वीकार.
उपकृत मुझको कीजिये-
शत-शत लें आभार..
प्रति-रचना:
संजीव 'सलिल'
*
न खोजो मन बाहर गंतव्य.
डूब खुद में देखो भवितव्य.
रहे सच साथ यही कर्त्तव्य-
समय का समझ सको मंतव्य..
पिसो जब दो पाटों के बीच.
बैठकर अपनी ऑंखें मींच.
स्नेह सलिला से साँसें सींच.
प्राण-रस लो प्रकृति से खींच..
व्यर्थ सब संशय-ऊहापोह.
कौन किससे करता है मोह?
स्वार्थ से कोई न करता द्रोह.
सत्य किसको पाया है सोह?
लगे जो सूरत भाती सी,
बाद में वही उबाती सी.
लगे गत प्यारी थाती सी.
जले मन में फिर बाती सी..
राज कब रह पाता है राज?
सभी के अलग-अलग अंदाज.
किसी को बोझा लगता ताज.
कोई सुनता मन की आवाज..
सहे जो हँसकर सब आघात.
उसी की कभी न होती मात.
बदलती तनिक नहीं है जात.
भूल मत 'सलिल' आप-औकात..
करें या मत करिए इजहार,
जहाँ इनकार, वहीं इकरार.
बरसता जब आँखों से प्यार.
झनक-झन बजते दिल के तार..
*************
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
२ दिसम्बर २०११ १:१० पूर्वाह्न को, Dr.M.C. Gupta ने लिखा:
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