विशेष लेख
जबलपुर के विकास में बंगाली समाज का अवदान
आचार्य इं. संजीव वर्मा 'सलिल'
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[लेखक परिचय- जन्म २० अगस्त १९५२ मंडला मध्य प्रदेश, डी.सी.ई., बी.ई., एम.आई.ई., एम.आई.जी.एस., विशारद, एम. ए. (अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र), एल-एल. बी., डिप्लोमा पत्रकारिता, डी. सी. ए., संप्रति- संप्रति : पूर्व कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग म. प्र., अधिवक्ता म. प्र. उच्च न्यायालय, सभापति विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर, संस्थापक सूत्रधार अभियान जबलपुर, चेयरमैन इंडियन जिओटेक्नीकल सोसायटी जबलपुर चैप्टर, पूर्व वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष / महामंत्री राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद, पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, संरक्षक राजकुमारी बाई बाल निकेतन जबलपुर।, लिखित पुस्तकें १४, संपादित पुस्तकें २५, भूमिका लेखन ७० पुस्तकें, समीक्षा ३०० से अधिक पुस्तकें, छंद शास्त्री, संपादक, समीक्षक, ५ देशों में काव्य पाठ, ५ विश्व कीर्तिमानों में सहभागी]
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सनातन सलिला नर्मदा का अञ्चल आदिकाल से साधना-क्षेत्र रहा है। निंगादेव से बूड़ादेव, बड़ादेव, महादेव, शिव, शंकर तक की लोक मान्यता इस सत्य की साक्षी है। शिव की प्रथम साधनास्थली अमरकंटक, शिव-शिवा की लीला-स्थली भी रही है। शिव प्रिया और शिव-सुता के रूप में कलकल निनादिनी नर्मदा का गौरव गान साहित्यकारों और भक्तों ने ''जाकी रही भवन जैसी'' के अनुसार किया है। शिवा अर्थात दुर्गा आदिकाल से नर्मदांचल वासियों की आराध्या हैं। आज जबलपुर की पहचान शानदार नवरात्रि पर्व और जानदार राम लीलाओं तथा दशहरा चल समारोह से है। इस गौरवपूर्ण पहचान का सर्वाधिक श्रेय जबलपुर के बांग्ला भाषी बंगाली समाज को है। 'संस्कारधानी' के विशेषण से संत विनोबा भावे जी द्वारा जबलपुर को अलंकृत किए जाने में जबलपुर की सांस्कृतिक समरसता और सामाजिक अभिन्नता हीहै। इस समन्वय के लिए भी बंगाली समाज सदा सजग रहा है।
जबलपुर में सार्वजनिक दुर्गा पूजा का श्री गणेश बंगाली समुदाय द्वारा वर्ष १८७२ में बृजेश्वर दत्त जी के निवास स्थान पर हुआ। तीन वर्ष पश्चात अम्बिकाचरण बैनर्जी के गलगला स्थित निवास स्थान शक्ति पूजन किया जाने लगा। जबलपुर के दुर्गोत्सव में ठेठ बुंदेली के साथ बंगाली और मराठी रंगों की इंद्रधनुषी छटा बिखरने लगी। छह वर्ष बाद १८७८ में नगर के हृदस्थल सुनरहाई में बुन्देली शैली की प्रथम दुर्गा प्रतिमा की स्थापना नगर-सेठानी के रूप में की जाकर उन्हें आपाद मस्तक स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित किया जाने लगा। आरंभ में आभूषणों का स्वर्णाभित रंगों में चित्रण किया जाता था किंतु क्रमश: भक्तों द्वारा मैया को इतने स्वर्णाभूषण अर्पित किए गए कि अब असली स्वर्णाभूषणों से मैया का शृंगार किया जाता है।
वर्ष सन १९०० तक, जबलपुर में बंगाली समुदाय की संख्या बहुत ही कम थी। वे स्थानीय समाज के साथ घुल-मिलकर दुर्गा पूजन किया करते थे। १९०४ से गन कैरीज फैक्ट्री का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। तब सुरक्षा संस्थानों के मुख्यालय कलकत्ता से बड़ी संख्या में बंगाली भाषियों का आगमन जबलपुर में हुआ। व्दितीय विश्व युद्ध के पहले, टेलीग्राफ वर्कशॉप और ऑर्डनेन्स फैक्ट्री खमरिया आरंभ होने पर रोजगार की विपुल संभावना देखते हुए शिक्षित और कुशल जनों का आगमन विदर्भ (महाराष्ट्र) व बंगाल से हुआ। सुरक्षा संस्थानों के विस्तार के चलते यह क्रम निरंतर जारी रहा। सुशिक्षित, सुसंस्कृत, सजग, समर्पित और एकता सूत्र में बँधे बंगाली जन साहित्य, नाट्य-गायन और पर्वोत्सवों की विरासत के पौधे को जबलपुर की उर्वर भूमि में रोपकर वट वृक्ष बनाने में जुट गए। बंगाल की मिट्टी की सुरभि से सराबोर बंगाली दशहरा में पूजन विधि और प्रतिमाओं की संख्या, नाक-नक्श, हाव-भाव, वस्त्र, आभूषण आदि स्थानीय से भिन्न बंगाली परंपरा के अनुरूप होते गए।
डाक-तार विभाग में बड़ी संख्या में बंगाली कर्मचारी थे। विभाग की एक मंजिल आवासीय कॉलोनी के मध्य विशाल परिसर में महिषासुर मर्दिनी, महासरस्वती, महालक्ष्मी, गणेश और कार्तिकेय की जगदीश विश्वास, कलकत्ता द्वारा निर्मित भव्य प्रतिमाओं के दर्शन किए बिना देवी दर्शन अपूर्ण ही रहता था। असंख्य दर्शनार्थियों तथा अस्थायी विक्रेताओं के कारण वहाँ एक मेला लग जाता था। जबलपुर के बंगभाषियों की शीर्ष संस्था, कर्मचंद चौक पर ‘सिटी बंगाली क्लब’ / ‘सिद्धि बाला बोस लाइब्ररी’ की दुर्गा-पूजा की प्रतिष्ठा केवल जबलपुर नहीं अपितु मध्य प्रदेश के बाहर तक है। यहाँ मूर्तिकार, ढाक (ढोल) वादक आदि बंगाल से आकार षष्ठी के दिन माँ की प्राण-प्रतिष्ठा होती हैं, और इन चार दिनों, अन्यों की तरह हर एक बँगला भाषिक भक्त भी माँ की आराधना में लीन रहता है। सर्वपित्री अमावस्या के दिन सुबह बंगाली और संस्कृत भाषा में यह चंडी पाठ ‘महालया’ होता है। इस दौरान शंख और 'ऊलू ध्वनि' से पूरा सभागृह गूँज उठता है। बंगाली समाज की विशेषता दुर्गा-पूजा पंडाल में बंग भाषा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गरिमापूर्ण आयोजन है। सिटी बंगाली क्लब, देबेन्द्र बंगाली क्लब गन केरिज फैक्ट्री परिसर, गैरिसन ग्राउंड पेंटीनाका, वेस्टलैण्ड खमरिया, रांझी कालीवाड़ी, रांझी बंगाली कॉलोनी, रामकृष्ण मिशन, अधारताल दुर्गा पूजा समिति, नर्मदा दुर्गा पूजा समिति, प्रेमनगर कालीवाड़ी, अग्रवाल कालोनी दुर्गा पूजा, दक्षिण जबलपुर बंगाली एसोसियेशन, नारी मंगल समिति, निखित भारत बंग साहित्य सम्मेलन, बंगाली समाज वेलफेयर सोसायटी, जगधात्री पूजा समिति, मनसा पूजा समिति, केन्ट दुर्गा उत्सव समिति, भारत सेवाश्रम आदि स्थानों पर धर्म और संस्कृति का सम्मिलन नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित और समाज को संस्कारित करता है।
जबलपुर की सभी बंग उत्सव समितियाँ एक साथ मिलकर दुर्गा-विसर्जन शोभायात्रा निकालती हैं जिसमें जबलपुर की लगभग १२–१५ बंग दुर्गा उत्सव समितियाँ कुछ अंतर रखकर साथ चलती हैं, बंगाली महिलाएँ बहुत उत्साह के साथ ‘सिंदूर खेला’ खेलती हैं। बंगाल की इस समृद्ध संस्कृति पूर्ण शोभायात्रा को यदि मुख्य शोभायात्रा में जोड़ा जाए तो बंगाली समाज और स्थानीय बुंदेली समाज में नीर-क्षीर की तरह मल-मिलाप बढ़ सकता है।
जबलपुर शहर के मध्य में स्थित सिद्धि बाला बोस लाइब्रेरी एसोसियेशन परिसर में दक्षिणेश्वर काली मंदिर कोलकाता का प्रतिरूप, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर व स्वामी विवेकानंद की पराभव शाली प्रतिमाएँ, शिक्षा संस्थान, पुस्तकालय तथा सभागृह जबलपुरवासियों के लिए सदा सुलभ रहता है। यहाँ छात्रों के लिए विविध प्रतियोगिताओं का आयोजन कर, उन्हें संस्कारित व प्रोत्साहित किया जाता है। सिद्धि बाला बोस लाइब्रेरी एसोसियेशन द्वारा निखिल बंग साहित्य परिषद का राष्ट्रीय सम्मेलन पूर्ण गरिमा के साथ आयोजित किया जा चुका है जिसे मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करने का गौरव इस लेखक को भी मिला। ऐसे आयोजनों के साथ भारत की राजभाषा हिंदी और बांग्ला भाषा के रचनाकारों की रचनाओं का सम्मिलित संकलन भी प्रकाशित किया जाए तो दोनों भाषाओं में सहयोग भाव की वृद्धि होगी। सिद्धि बाला बोस लाइब्रेरी एसोसियेशन ने दुर्गा पूजन के अवसर पर सुरुचिपूर्ण सामरिक 'यात्री' का प्रकाशन कर एक महत्वपूर्ण सारस्वत अनुष्ठान करने की परंपरा बनाई है। इस स्मारिका में हिंदी, बांग्ला तथा अंग्रेजी तीनों भाषाओं की त्रिवेणी प्रकाशित होती रही है। 'यात्री' के हर अंक में एक बांग्ला विभूति पर लेख लिखने की परंपरा ने मुझे स्वामी रामकृष्ण परमहंस, गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर, स्वामी विवेकानंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, राजा राम मोहन राय, जगदीश चंद्र बोस, मेघनाद साहा, काजी नजरुल इस्लाम आदि बंग-महानात्माओं तथा अमृत लाल वेगड़, गुरुदेव की कुछ काव्य रचनाओं का हिंदी रूपांतर, दुर्गा पूजा परंपरा इत्यादि पर सारगर्भित लेखों द्वारा युवाओं को प्रेरित-संस्कारित करने का सुअवसर उपलब्ध कराया है।
सिद्धी बाला बोस लाइब्रेरी एसोसियेशन का शताब्दी समारोह के शुभारंभ कार्यक्रम में प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री श्री राकेश सिंह ने कला और साहित्य के संरक्षण में बंग समाज के योगदान को अतुलनीय बताया तथा कहा- ''कोई भी संस्कृति तभी आगे बढ़ सकती है जब उसकी सांस्कृतिक विरासत नई पीढ़ी तक पहुँचती रहे, बंग समाज ने यह बखूबी किया है। ... स्वामी विवेकानंद के रूप में एक नरेन्द्र ने पूरी दुनिया में भारत के ज्ञान की अलख जगाई तो वहीं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के रूप में दूसरे नरेन्द्र ने पूरे विश्व में भारत को जिन ऊँचाईयों तक पहुँचाया उसकी कभी कल्पना नहीं की जा सकती थी। इस समारोह के अंतर्गत पूरे वर्ष सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए।
बंग-भाषियों के अवदान को उल्लेखनीय बताते हुए "एक भारत-श्रेष्ठ भारत "की थीम पर पश्चिम बंगाल की स्थापना दिवस कार्यक्रम में राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल ने कहा- ''आजादी के आंदोलन का सूत्रपात बंगाल से ही हुआ था। बंगाल महान विभूतियों के गौरव से आच्छादित है, जिसमें राजा राममोहन राय, गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर, बंकिम चंद्र चटर्जी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जगदीश चंद्र बसु, सुभाष चंद्र बोस, अमर्त्य सेन, सुचित्रा सेन आदि का उल्लेख है। इन्होंने भारत का नाम रोशन किया। "एक भारत-श्रेष्ठ भारत" मंत्र से पश्चिम बंगाल राज्य ने सभी को स्पर्श किया है। पश्चिम बंगाल के समाज की सांस्कृतिक विरासत ने भारत को समृद्ध किया है। बंगाली समाज के नवरात्रि और दुर्गा-पूजन ने पवित्रता के साथ समाज को सुखद संदेश देने का काम किया है।''
जबलपुर में बंगाली समाज ने साहित्य और कला के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कई बंगाली लेखक, कलाकार, और संगीतकारों ने जबलपुर में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है और वे जबलपुर की सांस्कृतिक समृद्धि में सहायक रहे हैं। जबलपुर में सांस्कृतिक-सामाजिक विकास व समरसता में सतत योगदान कार रहे प्रेरक व्यक्तित्वों में सर्व श्री/श्रीमती/सुश्री स्वामी भूपेंदो जी महाराज, सुभाष बैनर्जी, जयश्री बैनर्जी, सुशील दास, प्रो. गायत्री सिन्हा, सुब्रत पाल, प्रकाश साहा, सुरजीत गुहा, प्रीति भादुड़ी, एस.पी. दत्ता, संदीप विश्वास, संतोष देवधरिया, मानतोश दत्त, अभिजीत मुखर्जी, कृष्णा चटर्जी आदि उल्लेखनीय हैं।
जबलपुर के विकास में बंगाली समाज ने न केवल बहुमुखी योगदान दिया है अपितु हिंदी-बांग्ला-अंग्रेजी भाषाओं में सतत समन्वय बनाए रखते हुए भारत की भाषा समस्या के समाधान का व्यावहारिक पथ भी प्रशस्त किया है जिसका अनुकरण अन्य भाषा-भाषियों द्वारा किया जाना चाहिए। भविष्य में जबलपुर का बंग समाज नगर के विकास के साथ-साथ युवाओं के मध्य सामाजिक-सांस्कृतिक समरसता, साहचर्य, सद्भाव तथा सहयोग की वृद्धि हेतु सर्वाधिक प्रयास कार कीर्तिमान स्थापित करता रहेगा यह विश्वास है।
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संपर्क- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४
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