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रविवार, 9 मई 2021

लघुकथा मीठा-मीठा गप्प

लघुकथा
मीठा-मीठा गप्प
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आपको गंभीर बीमारी है. इसकी चिकित्सा लंबी और खर्चीली है. हम पूरा प्रयास करेंगे पर सफलता आपके शरीर द्वारा इलाज के प्रति की जाने वाली प्रतिक्रिया पर निर्भर है. तत्काल इलाज न प्रारंभ करने पर यह बीमारी बहुत तेजी से फैलती है. तब इसका कोई उपचार संभव नहीं होता. आप निराश न हों, अभिशाप में वरदान यह है की आरम्भ में ही चिकित्सा हो तो यह पूरी तरह ठीक हो जाती है. चिकित्सक अपनी तरफ से मेरा मनोबल बढ़ाने का पूरा - पूरा प्रयास कर रहा था.
मरता क्या न करता? किसी तरह धन की व्यवस्था की और चिकित्सा आरम्भ हुई. मझे ईश्वर से बहुत शिकायत थी कि मैंने कभी किसी का कुछ बुरा नहीं किया. फिर साथ ऐसा क्यों हुआ? अस्पताल में देखा मेरी अपेक्षा बहुत कम आर्थिक संसाधन वाले, बहुत कम आयु के बच्चे, कठिन चिकित्सा प्रक्रिया से गुजर रहे थे. मुझे उनके आगे अपनी पीड़ा बिसर जाती. उनके दुःख से अपना दुःख बहुत कम प्रतीत होता.
अस्पताल प्रांगण में स्थापित भगवान् की मूर्ति पर दृष्टि पड़ी तो लगा भगवान् पूछ रहे हैं मैं निर्मम हूँ या करूँ इसकी जाँच हर व्यक्ति अपने-अपने कष्ट के समय ही क्यों करता है, आनंद के समय क्यों नहीं करता? खुशियाँ तुम्हारे कर्म का परिणाम है तो कष्ट के लिए भी तुम्हारे कर्म ही कारण हैं न?. मैं कुछ पाती इसके पहले ही अपना पल्लू खिंचते देख पीछे मुड़कर देखा. कीमोथिरेपी कराकर बाहर आया वही छोटा सा बच्चा था जिसे मैंने वादा किया था कि बीमारी के कारण उसकी पढ़ाई की हानि नहीं हो इसलिए मुझसे पूछ लिया करे. एक हाथ में किताब लिए पूछ रहा था- इस मुहावरे का अर्थ बताइए 'मीठा-मीठा गप्प, कड़वा-कड़वा थू.'
९-५-२०१७
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लघुकथा
धुँधला विवेक
संसार में अन्याय, अत्याचार और पीड़ा देखकर संदेह होता है कि ईश्वर नहीं है. जरा से बच्चे को इतनी बीमारियाँ, बेईमानों को सफलता, मेहनती की फाकाकशी देखकर जगता है या तो ईश्वर है ही नहीं या अविवेकी है? - एक ने कहा.
संसार में आनेवाले और संसार से जानेवाले हर जीव के कर्मों का खाता होता है. ठीक वैसे ही जैसे बैंक में घुसने और बैंक से निकलनेवाले का होता है. कोई खाली हाथ जाकर गड्डियाँ लाता है तो कोई गड्डी ले जाकर खाली हाथ निकलता है. हम इसे अंधेरगर्दी नहीं कहते क्योंकि हम जानते हैं कि कोई पहले जमा किया धन निकाल रहा है, कोई आगे के लिए जमा कर रहा है या कर्ज़ चुका रहा है. किसी जीव की कर्म पुस्तक हम नहीं जानते, इसलिए उसे मिल रहा फल हमें अनुचित प्रतीत होता है.
ईश्वर परम न्यायी और निष्पक्ष है तो वह करुणासागर नहीं हो सकता. कोई व्यक्ति कितना ही प्रसाद चढ़ाए या प्रार्थना करे, अपने कर्म फल से बच नहीं सकता. दूसरे ने समझाया.
ऐसा है तो हर धर्म में पुजारी वर्ग कर्मकांड और पूजा-पाठ क्यों करता है?
पेट पालने के लिए और यजमान को गलत राह पर ले जाता है किसी भी प्रकार राहत पाने की इच्छा और उसका धुंधला विवेक.
९-५-२०१७
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सफेदपोश तबका
देश के विकास और निर्माण की कथा जैसी होती है वैसी दिखती नहीं, और जैसी दिखती है वैसी दिखती नहीं.... क्या कहा?, नहीं समझे?... कोइ बात नहीं समझाता हूँ.
किसी देश का विकास उत्पादन से होता है. उत्पादन सिर्फ दो वर्ग करते हैं किसान और मजदूर. उत्पादनकर्ता की समझ बढ़ाने के लिए शिक्षक, तकनीक हेतु अभियंता तथा स्वास्थ्य हेतु चिकित्सक, शांति व्यवस्था हेतु पुलिस तथा विवाद सुलझाने हेतु न्यायालय ये पाँच वर्ग आवश्यक हैं. शेष सभी वर्ग अनुत्पादक तथा अर्थ व्यवस्था पर भार होते हैं. -वक्ता ने कहा.
फिर तो नेता, अफसर, व्यापारी और बाबू अर्थव्यवस्था पर भार हुए? क्यों न इन्हें हटा दिया जाए?-किसी ने पूछा.
भार ही तो हुए. ये कितने भी अधिक हों हमेशा खुद को कम बताएँगे और अपने अधिकार, वेतन और सुविधाएं बढ़ाते जायेंगे. यह शोषक वर्ग प्रशासन के नाम पर पुलिस के सहारे सब पर लद जाता है. उत्पादक और उत्पादन-सहायक वर्ग का शोषण करता है. सारे काले कारनामे करने के बाद भी कहलाता है 'सफेदपोश तबका'.
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