लघुकथा कलश:

कीर्ति ध्वज
फहरा रहा है
लघुकथा कलश...
*
कर रहा है योग राज, सकल हिंद पर
कल्पना की अल्पना से लघुकथा आँगन
हुआ शोभित, ताज हिंदी सजा हिंद पर
मेघा सा
घहरा रहा है
लघुकथा कलश...
*
कमल पुष्पा, श्री गणेश यज्ञ का हुआ
हो न सीमा सृजन की, है विज्ञ की दुआ
चंद्रेश राधेश्याम लता लघुकथा की देख
'हो अशोक' कह रहे हैं, बाँटकर पुआ
था, न अब
ठहरा रहा है
लघुकथा कलश
*
मिथिलेश-अवध संग करें भगीरथ प्रयास
आदित्य का आशीष है, गुरमीत का हुलास
बलराम-राम को न भूल आच्छा-मुकेश
पीयूष उदयवीर का संजीव सह प्रवास
संदीप हो
मुस्का रहा है
लघुकथा कलश
मेघा हो गंभीर तो, बिजली गिरती खूब
चंचल हो तो जल बरस, कहता जाओ डूब.
जाएँ तो जाएँ कहाँ हम?
कल्पना से निकले दम
कोइ इते आओ री!, कोइ उते जाओ री!
नोनी दुलनिया हे समझाओ री!
*
साँझा परे से जा सोबे खों जुटी
काम-धंधा छोर दैया! खाबे खों जुटी
तन्नाक तो कोई आके देख जाओ री!
*
जैसे-तैसे तो
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