दोहा
धरती मैया निरुपमा, धरती रूप अनूप
कभी किसी की कब हुई?, मरे जीत कर भूप
*
दोहे की महिमा अमित, कहते युग का सत्य
जो रचता संतुष्ट हो, मंगलकारी कृत्य
*
जीवन जी वन में कभी, देख जानवर मीत
कभी न माँगे जान वर, कोशिश करना रीत
*
होली हो ली, हो रही, होगी मानो मीत
उन्मन तन-मन शांत हों, फागुन में कर प्रीत
*
धरती मैया निरुपमा, धरती रूप अनूप
कभी किसी की कब हुई?, मरे जीत कर भूप
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दोहे की महिमा अमित, कहते युग का सत्य
जो रचता संतुष्ट हो, मंगलकारी कृत्य
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जीवन जी वन में कभी, देख जानवर मीत
कभी न माँगे जान वर, कोशिश करना रीत
*
होली हो ली, हो रही, होगी मानो मीत
उन्मन तन-मन शांत हों, फागुन में कर प्रीत
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