मुक्तक सलिला:
निरुपमा की उपमा कैसे शब्द कहेंगे?
अपनी अक्षमता पर लज कर मौन रहेंगे।
कसे कसौटी पर कवि बार-बार शब्दों को-
पूर्ण न तब भी, आंशिक ही कह 'वाह' गहेंगे।
*
असमय ही बिन खिले फूल कुछ मुरझाये,
मौसम कैसे हँसे, कहें कैसे गाये?
दोषी जो उनको भी ऐसी पीड़ा हो-
ईश्वर मंत्री, सचिव, प्रशासन दुःख पाए।
*
आह निकलती मुख से, आँसू नैनों में.
जाएँ नर्क में जो झूठे हैं बैनों में।
जन जागे, नेताओं-अधिकारी को कुचले-
शर्म न किंचित भी है जिनके सैनों में। .......
*
निरुपमा की उपमा कैसे शब्द कहेंगे?
अपनी अक्षमता पर लज कर मौन रहेंगे।
कसे कसौटी पर कवि बार-बार शब्दों को-
पूर्ण न तब भी, आंशिक ही कह 'वाह' गहेंगे।
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असमय ही बिन खिले फूल कुछ मुरझाये,
मौसम कैसे हँसे, कहें कैसे गाये?
दोषी जो उनको भी ऐसी पीड़ा हो-
ईश्वर मंत्री, सचिव, प्रशासन दुःख पाए।
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आह निकलती मुख से, आँसू नैनों में.
जाएँ नर्क में जो झूठे हैं बैनों में।
जन जागे, नेताओं-अधिकारी को कुचले-
शर्म न किंचित भी है जिनके सैनों में। .......
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salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर
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