अलंकार सलिला: २४
उत्प्रेक्षा के प्रकार
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उत्प्रेक्षा के ३ भेद (प्रकार) होते हैं- १. वस्तूत्प्रेक्षा, २. हेतूत्प्रेक्षा तथा ३. फलोत्प्रेक्षा।

१. वस्तूत्प्रेक्षा: जब एक वस्तु या व्यक्ति में दूसरी वस्तु की सम्भावना (उपस्थिति की अभिव्यक्ति) की जाती है तब वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. हरखि ह्रदय दशरथ-पुर आई। जनु गृह-दशा दुःसह दुखदाई।।
यहाँ अयोध्या की दुस्सह गृह-दशा में सरस्वती की सम्भावना की गयी है।
२. लखन मंजु मुनिमंडली, मध्य सीय-रघुचंद।
ज्ञान-सभा जनु तनु धरे, भगति सच्चिदानंद।।
यहाँ मुनि-मंडली में ज्ञान सभा की, सीता में भक्ति की और राम में सच्चिदानंद की संभावना की गयी है।
३. प्रात-समय उठि सोवत हरि को, बदन उघार् यो नंद।
स्वच्छ सेज में ते मुख निकस्यो, गयो तिमिर मिटि मंद।।
मानो मथि पय सिंधु फेन फटि, दरिस दिखायो चंद।
यहाँ स्वच्छ शैया में क्षीर-सागर की,चद्दर में फेन की और कृष्ण-मुख में शांद्रमा की संभावना की गयी है। देवों द्वारा सागर-मंथन करने पर जैसे चन्द्रमा निकला वैसे ही नन्द द्वारा सफ़ेद चद्दर हटाने से श्री कृष्ण का मुख दिखाई दिया।
४. नारी में दुर्गा दिखी, किया तुरंत प्रणाम।
नाम रखो तुम कह रहीं, देखे 'सलिल' अनाम।।
५. केश-लट में
सरसराती हुई
नागिन दिखी।
२. हेतूत्प्रेक्षा: जब अहेतु में हेतु की सम्भावना की जाती है अर्थात जब उसे कारण मान लिया जाता है जो वस्तुत: कारण नहीं होता तब हेतूत्प्रेक्षा अलंकारहोता है।
उदाहरण:
१. अरुण भये कोमल चरण भुवि चलिबें ते मानु।
कोमल चरण मानो पृथ्वी पर चलने से लाल (सूरज की तरह) हो गए। चरण प्राकृतिक रूप से लाल होने पर भी धरती पर चलने से लाल होने कीकी संभावना की गयी है अर्थात जो कारण नहीं है उसे कारण कहा गया है।
२. मुख सम नहिं याते मनों चंदहि छाया छाय।
मानो चंद्रमा मुख के समान नहीं है, इसलिए उसे कालिमा छाये रहती है। चंद्रमा पर कालिमा छाये राख्ने का कारण उसका मुख-समान न होना नहीं है किन्तु कहा गया है।
३. मुख सम नहिं यातें कमल मनु जल रह्यो छिपाइ।
जल में कमल के छिपने का कारण उसका मुख के समान न होना नहीं होने पर भी मान लिया गया है। इसलिए हेतूत्प्रेक्षा है।
४. सोवत सीतानाथ के, भृगु मुनि दीनी लात।
भृगुकुल-पति की गति हरी, मनो सुमिरि वह बात।।
५. अकस्मात् साहित्य के, लौटाते ईनाम।
सामाजिक टकराव का, कहते हैं परिणाम।।
३. फलोत्प्रेक्षा: जो उद्देश्य परिणाम या फल न हो किन्तु मान लिया किन्तु मान लिया जाए तो फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है। अफल में फल की सम्भावना फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।
१. तव पद समता को कमल, जल-सेवत एक पाँव
तुम्हारे चरणों की समता पाने के लिए कमल एक पैर (कमल नाल) पर खड़ा होकर जल की सेवा कर रहा है।कमल नाल पर खिले कमल का उद्देश्य तप कर चरणों की समानता पाना न होने पर भी मान लिया गया है, इसलिए फलोत्प्रेक्षा है।
२. रोज अन्हात है छीरधि में ससि, तव मुख की समता लहिवे को।
३. शिव से समता के लिये, दुर्गा रखे त्रिनेत्र ।
४. लड़ें चुनाव
जनसेवा के हेतु
नेता औ' दल।
५. नक्सलवाद
गरीब जनता का
रण निनाद
शासन के विरुद्ध,
विषमता मिटाने।
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फलोत्प्रेक्षा और हेतूत्प्रेक्षा में अंतर:
काव्य में वर्णित कार्य या क्रिया किस उद्देश्य से करी जा रही है? इस प्रश्न का उत्तर मिले तो फलोत्प्रेक्षा अलंकार होगा अन्यथा हेतूत्प्रेक्षा।
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