वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं। आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्ता दों में गिने जाते हैं। आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' - दो काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
माहिया" पंजाब का प्रसिद्ध लोकगीत है। इसमें श्रृंगार रस के दोनोंपक्ष संयोग और वियोग की परम्पराहै किंतु अब अन्य रस शामिल किये जाने लगे हैं। इस छंद में प्रेमी प्रेमिका की नोंक- झोंक भी होती है। यह तीन पंक्तियों का छंद है। पहली और तीसरी पंक्ति में बारह मात्राएँ यानि 2211222 दूसरी पंक्ति में दस मात्राएँ यानि 211222 होती हैं। तीनों पंक्तियों में सारे गुरु (2) आ सकते हैं।
माहिया:
इसकी परिभाषा से
हम अनजान रहे
जीवन की भाषा से
सब कुछ पढ़कर देखा
पढ़ न सके लेकिन
जीवन की हम रेखा
आँखों में पानी है
हर इक प्राणी की
इक राम कहानी है
भावुकता में खोना
चलता आया है
मन का रोना-धोना
उड़ते गिर जाता है
कागज़ का पंछी
कुछ पल ही भाता है
नभ के बेशर्मी से
सड़कें पिघली हैं
सूरज की गर्मी से
कुछ ऐसा लगा झटका
टूट गया पल में
मिट्टी का इक मटका
हर बार नहीं मिलती
भीख भिखारी को
हर द्वार नहीं मिलती
सागर में सीप न हो
यह तो नहीं मुमकिन
मंदिर में दीप न हो
हर कतरा पानी है
समझो तो जानो
हर शब्द कहानी है
क्यों मुंह पे ताला है
चुप---चुप है राही
क्या देश- निकाला है
हर बार नहीं करते
अपनों का न्यौता
इनकार नहीं करते
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